New

होम -> सियासत

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 23 जुलाई, 2016 03:30 PM
राकेश उपाध्याय
राकेश उपाध्याय
  @rakesh.upadhyay.1840
  • Total Shares

बात 3 जुलाई 2016 की है. अहमदाबाद में आरएसएस के बड़े कार्यकर्ताओं के बीच विचार व्यक्त करने के लिए आरएसएस के वरिष्ठ नेता और भारतीय मजदूर संघ के पूर्व अध्यक्ष हंसुभाई दवे को आमंत्रित किया गया था. भारतीय जनता पार्टी के कई सांसद, गुजरात सरकार के कई मंत्री, अहमदाबाद में आरएसएस के सभी वरिष्ठ प्रचारक इस बौद्धिक कार्यक्रम में मौजूद थे.

खुद सांसद और मौजूदा केंद्रीय मंत्री मनसुख भाई मांडविया, गुजरात बीजेपी के संगठन मंत्री भीखूभाई दलसानिया भी हंसुभाई दवे को सुन रहे थे. दत्तोंपंत ठेंगड़ी समेत आरएसएस की पहली पीढ़ी के बड़े प्रचारकों के साथ काम कर चुके स्वभाव से सौम्य और अनुभवों से लबरेज हंसुभाई दवे ने बोलना शुरु किया तो किसी को अंदाजा नहीं था कि उनके शब्दों की तल्खी सवाल बनकर हर जेहन पर दौड़ने लगेगी.

कार्यक्रम के हॉल में बैठे हुए सैकड़ों वरिष्ठ लोगों के चेहरे उनके सवाल सुनकर निरुत्तर जैसे हो गए. हंसते-खिलते हर चेहरे की भाव भंगिमा से अचानक ही प्रसन्नता और आमोद विदा हो गया. सभागार का माहौल हंसुभाई दवे का सवाल सुनकर बेहद गंभीर हो गया.

यह भी पढ़ें- भाजपा बनाने वाले ने ही लिख दी थी उसकी समाप्ति की शर्त

दरअसल, हंसुभाई दवे ने अपने बौद्धिक में संघ परिवार के मौजूदा नेतृत्व समूह पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए. उन्होंने पूछा, 'यहां संघ के तपे-तपाए और भारतीय जनता पार्टी समेत संघ के आनुषंगिक क्षेत्रों के वरिष्ठ कार्यकर्ता उपस्थित हैं. सभी ने संघ-स्थान यानी शाखा में जाकर संस्कार प्राप्त किया है लेकिन क्या यहां कोई कार्यकर्ता मौजूद है जो आज के अपने सबसे वरिष्ठतम और आदर्श कहे जाने वाले नेताओं के बारे में पूरे विश्वास से यह कह सकता है कि उनके नेता संगठन की कसौटी पर बिल्कुल सच्चे, प्रामाणिक और खरे हैं? सौ फीसद न सही अधिकतर मामलों में हमारे नेता का बर्ताव कार्यकर्ता के भरोसे पर सही साबित होता है?'

hasu-bhai-650_072316024510.jpg
 आरएसएस नेता हंसुभाई दवे के सवालों पर क्या बोलेगी बीजेपी?

आरएसएस के सैकड़ों कार्यकर्ताओं के लिए आदर्श कहे जाने वाले हंसुभाई दवे यहीं नहीं रुके. उन्होंने सवालों के साथ नसीहतों की बौछार कर दी. कार्यक्रम में मौजूद गुजरात बीजेपी के नेताओं की और देखते हुए उन्होंने साफ कहा, 'कार्यकर्ता के विश्वास निर्माण का काम सर्किट हाउस, थ्री स्टार होटल, फाइव स्टार होटल में रहकर उपदेश देने वाले नहीं कर सकते. ये काम तब होगा जबकि कार्यकर्ता को ये भरोसा पक्का हो कि उनका नेता देश के आम जन से ज्यादा सुख-सुविधा का उपभोग नहीं करता, उन्हीं की तरह किसी कार्यकर्ता के घर पर या कार्यालय पर या किसी आश्रम-धर्मशाला में रुककर संगठन का काम करता है.

सवाल है कि क्या आज ऐसा कोई कार्यकर्ता गुजरात में है जिसे ये भरोसा हो कि उनका नेता सुख-सुविधाओं और आरामतलबी के मोह से दूर रहकर देश के आम जन में संगठन की भावना के प्रचार-प्रसार में जुटा है?'

यह भी पढ़ें- RSS का स्वाध्याय मंडलः 'सकल घरेलू उत्पाद' VS 'सकल राष्ट्रीय सुख' की नई बहस!

हंसुभाई देव के इस बौद्धिक वर्ग की चर्चा गुजरात से लेकर दिल्ली तक संघ गलियारों में सुनी गई है. शुक्रवार 22 जुलाई को दिल्ली में मौजूद हंसुभाई दवे से जब ये सवाल पूछा गया कि क्या उन्होंने सचमुच ये बातें अहमदाबाद आरएसएस के बौद्धिक वर्ग में कहीं हैं? हंसुभाई दवे ने अपनी ओर से बीएमएस के मुखपत्र विश्वकर्मा संकेत की ताजा प्रति आजतक संवाददाता के हाथ में रख दी और कहा कि जो बौद्धिक वर्ग में कहा, उसके कुछ अंशों को प्रकाशित भी कर दिया है. विश्वकर्मा संकेत के जुलाई अंक के पृष्ठ नंबर 9 पर हंसुभाई दवे लिखते हैं- 'क्या नए कार्यकर्ताओँ में दायित्व निर्वहन करने की क्षमता है? और उसी तरह से क्या उन्हें सही रूप मे मार्गदर्शन करने वाले परिपक्व वरिष्ठ कार्यकर्ता हमारे पास हैं जिन पर विश्वास कर नए कार्यकर्ता आगे बढ़ सकें?’

गुजरात के मौजूदा राजनीतिक हालात पर उठे सवाल पर हंसुभाई दवे ने कहा-'गुजरात में आरक्षण को लेकर जो आंदोलन पाटीदार समुदाय ने किया, और अब जो आंदोलन दलित अत्याचार के मुद्दे पर हो रहा है, वह सिर्फ सामाजिक अशांति का परिणाम नहीं है. इसमें भारतीय जनता पार्टी संगठन में अंदुरुनी तौर पर चल रहे सत्ता संघर्ष की भी बड़ी भूमिका है. और इस बात को गुजरात में आरएसएस से जुड़ा हर कार्यकर्ता गहराई से देख-समझ रहा है.'

हंसुभाई दवे खुद भी गुजरात के राजकोट के रहने वाले हैं. 85 साल की उम्र में जिंदगी का ज्यादातर हिस्सा आरएसएस और भारतीय मजदूर संघ का कार्यकर्ता हुए हंसुभाई दवे ने बिताया है. वो 2002 से 2005 तक बीएमएस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे. आरएसएस के बड़े चिंतक दत्तोपंत ठेंगड़ी के साथ उनकी नजदीकी उन्हें संघ से भारतीय मजदूर संघ में ले आई. हंसुभाई दवे ने आरएसएस प्रचारकों और आनुषंगिक संगठनों के कार्यकर्ताओं के बीच बौद्धिक वर्ग में संगठन से जुड़े जो गंभीर सवाल उठाए हैं, उस पर वो बेलौस कहते हैं कि 'अगर समस्या पर समय रहते विचार नहीं किया जाएगा तो फिर उसमें सुधार का उपाय कैसे हो सकेगा?'

यह भी पढ़ें- लिखेंगे गांव-गांव का इतिहास, ढूंढेंगे ‘वामपंथी इतिहास-घोटाला’

गौरतलब है कि आरएसएस की ओर से पूरे देश में कार्यकर्ता विकास वर्ग तेजी से चलाए जा रहे हैं. कानपुर में भी 11 जुलाई-12 जुलाई को कार्यकर्ता विकास वर्ग आयोजित किया गया था जिसमें बड़ी संख्या में चुने हुए आरएसएस और विविध संगठनों का कार्यकर्ता बुलाए गए थे. लेकिन अहमदाबाद के बौद्धिक वर्ग में जो सवाल 3 जुलाई को हंसुभाई दवे ने उठाए, वो सवाल फिलहाल आरएसएस के बड़े नेताओं के लिए मील का पत्थर बन गए हैं.

इसका संकेत साफ है कि अगर खुद की जिंदगी में सत्ता की चमक-दमक से दूर रहते हुए अहंकार-शून्य और पूर्वाग्रह मुक्त रहकर संगठन का काम करने का अभ्यास नहीं है तो फिर दूसरे कार्यकर्ताओं को किस मुंह से आदर्शवाद का पाठ पढाने की परंपरा टिक सकेगी?

लेखक

राकेश उपाध्याय राकेश उपाध्याय @rakesh.upadhyay.1840

लेखक भारत अध्ययन केंद्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय