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Updated: 21 अगस्त, 2015 05:16 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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बिहार चुनाव से ऐन पहले तीन चुनाव हो चुके हैं. तीनों ही में बीजेपी को लोगों ने वोट दिया है. इन तीनों में एक चुनाव तो बिहार से ही रहा. जुलाई में बिहार विधान परिषद चुनाव के नतीजों ने बीजेपी को जश्न मनाने का मौका दिया. अब मध्य प्रदेश और राजस्थान में स्थानीय निकाय के नतीजों ने जश्न में इजाफा कर दिया है.

स्थानीय निकाय चुनावों के नतीजे इसलिए काफी अहम हैं क्योंकि दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री विवादों में रहे - और कांग्रेस की अगुवाई में विपक्ष ने इन दोनों के इस्तीफे की मांग को लेकर पूरे मॉनसून सेशन में हंगामा किया.

सिर्फ जीत नहीं, हार भी

मध्य प्रदेश के चुनाव नतीजों पर व्यापम घोटाले का कोई असर नहीं दिखा. बीजेपी ने 10 में से 8 सीटें जीतकर नेताओं को सेलीब्रेट करने मौका पूरा मौका दिया है.

काफी दिनों से विपक्ष के निशाने पर रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी कॉन्फिडेंस से लबालब नजर आए, "ये नतीजे उन लोगों को जवाब हैं, जिन्होंने मध्य प्रदेश को बदनाम करने की कोशिश की है. प्रदेश की जनता ने बीजेपी को अभूतपूर्व समर्थन दिया है."

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट करके बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं को बधाई दी, ''मध्य प्रदेश निकाय चुनाव के नतीजे खुश करने वाले हैं. मैं बीजेपी पर भरोसा जताने के लिए मध्य प्रदेश की जनता का धन्यवाद देता हूं. मैं पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं को उनकी कोशिशों के लिए सैल्यूट करता हूं."

लेकिन क्या ये नतीजे सिर्फ बीजेपी की जीत ही बता रहे हैं? या फिर, ये नतीजे मध्य प्रदेश में कांग्रेस की बड़ी हार माने जाएंगे. कांग्रेस के जिन नेताओं ने व्यापम के मुद्दे पर मॉनसून सत्र में सदन चलने तक नहीं दिया, उसी घोटाले के साए में हो रहे चुनाव की ओर झांकने की भी जहमत नहीं उठाई.

दूसरी तरफ, मध्य प्रदेश से अलग राजस्थान में कांग्रेस नेता सक्रिय रहे - और उन्हें इसका फायदा भी मिला. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की विधानसभा सीट झालरापटन में आनेवाली 25 सीटों में से 15 पर कांग्रेस ने जीत हासिल की. यही हाल वसुंधरा के बेटे दुष्यंत के संसदीय क्षेत्र का रहा जहां झालावाड़ और बारन नगर पालिका परिषदों पर कांग्रेस ने कब्जा जमा लिया.

ऐसे देखा जाए तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस को शिकस्त जरूर मिली लेकिन राजस्थान में उसने मुख्यमंत्री वसुंधरा और उनके बेटे के गढ़ में घुस कर मात दी है.

बिहार में डीएनए टेस्ट

2014 के लोकसभा चुनावों के बाद मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में जीत हासिल की तो जम्मू-कश्मीर में भी साझा सरकार बनाने में सफल रही. मगर दिल्ली लौटते ही बात बिगड़ गई.

बिहार विधान परिषद के चुनाव हुए तो बीजेपी ने सीटों का आंकड़ा डबल कर लिया. जितनी सीटों के लिए चुनाव हुए उनमें बीजेपी के पास छह सीटें थी लेकिन चुनाव में उसने रामविलास पासवान के साथ 12 सीटों तक आंकड़ा पहुंचा दिया.

हालांकि, लोक सभा चुनावों के तीन महीने बाद ही बिहार विधानसभा की 10 सीटों के लिए उपचुनाव हुए थे. लेकिन लालू-नीतीश और कांग्रेस के महागठबंधन ने 10 में से छह सीटें झटक ली थी.

इस तरह देखें तो दिल्ली विधान सभा और बिहार विधानसभा के लिए उपचुनाव को छोड़ कर बाकी चुनाव बीजेपी जीतती आई है. वैसे तो आम चुनाव को छोड़कर बाकी चुनावों में स्थानीय मुद्दे ही ज्यादा हावी रहते हैं. जहां तक बिहार की बात है तो वहां बाकी मुद्दों से कहीं ज्यादा जातिवाद हावी है.

दिल्ली में माना गया कि प्रधानमंत्री मोदी सहित तमाम बीजेपी नेताओं द्वारा अरविंद केजरीवाल को टारगेट करना भी हार का एक कारण बना. उसी तरह बिहार में नीतीश के डीएनए को चुनौती देकर मोदी ने एक बार फिर नीतीश को अपने पक्ष में हवा बदलने का मौका दे दिया.

हालांकि, मोदी ने सवा सौ करोड़ का पैकेज देकर भूल सुधार करने की कोशिश की है. फिर भी बिहार में डीएनए बड़ा मुद्दा बना हुआ है - और टेस्ट होना बाकी है.

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मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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