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Updated: 26 अप्रिल, 2018 06:24 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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आधी रात को इंडिया गेट पर कांग्रेस का कैंडल मार्च जबरदस्त एक्शन रहा. कांग्रेस ने कठुआ और उन्नाव गैंग रेप को लेकर ऐसा धावा बोला कि बीजेपी को बैकफुट पर आना पड़ा.

पहले तो सवाल ये उठा कि राहुल गांधी ने कैंडल मार्च का फैसला अचानक किया या फिर काफी पहले से तयशुदा रहा. ऐसी कई बातें रहीं जो उछल उछल कर बता रही थीं कि सब कुछ अचानक नहीं हुआ.

कैंडल मार्च को लेकर नया सवाल ये है कि ये राहुल गांधी का आइडिया था या उनके सलाहकारों की टीम का या फिर किसी और का? खुद कांग्रेस के नेताओं के मन में भी ये सवाल काफी देर तक घूमता रहा.

राहुल गांधी भट्टा परसौल जैसी छापामार राजनीतिक करते रहे हैं और फिर कुछ वैसे ही अंदाज में दलितों के घर पहुंच कर डिनर भी करते रहे हैं - लेकिन आधी रात को कैंडल मार्च का आइडिया कांग्रेस के कल्चर से मेल खाता नहीं दिखता, ये बात कांग्रेस की अंदरूनी चर्चाओं का भी काफी देर तक हिस्सा रही.

बहरहाल, बात मुद्दे की ये नहीं है. असल मुद्दा ये है कि अगर कांग्रेस में इस तरह के आइडिया पर काम चल रहा है तो उसके पीछे कौन हो सकता है - और इस आइडिया बैंक में और ऐसी कौन कौन सी नायाब चीजें हैं जो धीरे धीरे सामने आने वाली हैं?

2019 में कांग्रेस का एजेंडा

अगले आम चुनाव की तैयारी कांग्रेस अपने हिसाब से तो कर ही रही है, उसकी रणनीति में फेरबदल इस आधार पर होनी है कि बीजेपी किस एजेंडे के साथ आगे बढ़ रही है. अब तक तो यही लगता है कि बीजेपी के एजेंडे में हिंदुत्व ही सबसे ऊपर होगा - और हिंदुत्व का एजेंडा अयोध्या में राम मंदिर के इर्द गिर्द ही घूमता है. योगी आदित्यनाथ को यूपी की कमान सौंपे जाने की पीछे भी यही सोच मानी जाती है.

varun gandhiकमजोरी को ताकत बनाने की तैयारी

अब तो ये भी देखा जा चुका है कि कैसे कांग्रेस बीजेपी के कट्टर हिंदुत्व के मुकाबले के लिए सॉफ्ट हिंदुत्व लेकर मैदान में उतर सकती है. राहुल गांधी के गुजरात एक्सपेरिमेंट से ये भी साबित हो चुका है कि बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस को ये कारगर हथियार मिल गया है. हालांकि, कर्नाटक में राहुल गांधी ने इसका दायरा भी बढ़ाया और इसके मूल स्वरूप में थोड़ी तब्दीली भी की है. कर्नाटक में राहुल गांधी गुजरात की तरह सिर्फ मंदिर तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि दूसरे धर्मों के साथ भी मेलजोल वाला भाव दिखाया.

जाहिर है यूपी में राहुल गांधी कर्नाटक नहीं बल्कि गुजरात वाले अंदाज में नजर आएंगे - लेकिन क्या ये सब राहुल गांधी अकेले कर पाएंगे? अगर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने चुनौती पेश करनी है तो यूपी में योगी आदित्यनाथ को चुनौती कौन देगा?

खबरों को खंगालने पर ऐसा लगता है कि कांग्रेस ने इस सवाल का जवाब ढूंढ लिया है - और जिस शख्सियत ने ये जवाब खोजा है इंडिया गेट पर कैंडल मार्च भी उसी के दिमाग की उपज मानी जा रही है.

priyanka, rahulकैंडल मार्च का आइडिया किसका?

इंडिया गेट पर कैंडल मार्च तो राहुल गांधी के नाम रहा लेकिन उनसे भी ज्यादा किसी ने हर किसी का ध्यान खींचा वो रहीं - प्रियंका गांधी वाड्रा. प्रियंका गांधी वाड्रा को कांग्रेस महाधिवेशन के दौरान भी सबसे ज्यादा सक्रिय देखा गया था. चर्चा रही कि एक एक चीज प्रियंका गांधी ही तय कर रही थीं. हर डीटेल पर उनकी नजर बनी हुई थी. स्टेज पर जो कुछ भी दिखायी दे रहा था उसका कंट्रोल प्रियंका गांधी के हाथ में रहा - फर्क बस ये था कि सब कुछ पर्दे के पीछे रहा. पर्दे का आगे देखिये आगे आगे होता है क्या?

कांग्रेस में आगे कौन बढ़ाएगा हिंदुत्व का एजेंडा?

2017 में कांग्रेस को एक चेहरे की जरूरत थी. तब कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर ने राहुल गांधी से लेकर प्रियंका गांधी तक के नाम सुझा डाले थे - और आखिरकार कांग्रेस को जब तक जरूरत रही शीला दीक्षित का नाम आगे करना पड़ा था. जरूरत रहने से मतलब ये कि समाजवादी पार्टी से गठबंधन के बाद शीला के नाम की भी आवश्यकता नहीं रही. समाजवादी पार्टी से गठबंधन में भी बताया गया कि सबसे बड़ी भूमिका प्रियंका गांधी की ही रही - और यही वजह है कि 2019 को लेकर कांग्रेस की स्ट्रैटेजी में भी उनका रोल बेहद अहम माना जा रहा है. 2019 में प्रियंका गांधी की कांग्रेस में क्या भूमिका होगी, अभी ये कयासों के इर्द गिर्द चक्कर काट रहा है. प्रियंका की क्या और कितनी भूमिका होगी, इस बारे में भी बताया जा चुका है कि फैसला खुद प्रियंका ही करेंगी. जब भी पूछा जाता है सोनिया गांधी का यही जवाब होता है.

2019 या उससे पहले जब भी आम चुनाव हो, कांग्रेस के सामने यूपी में ऐसे एक चेहरे की जरूरत तो है ही जो बीजेपी के हिंदुत्व और हिंदुत्व के पोस्टर बॉय योगी आदित्यनाथ को चैलेंज कर सके. अंदरखाने की बातों पर आधारित मीडिया रिपोर्ट को देखें तो इस खांचे में एक ही नाम उभर कर आ रहा है - वरुण गांधी.

मौजूदा दौर और जरूरत के हिसाब से देखें तो वरुण गांधी और कांग्रेस दोनों को एक दूसरे की महती जरूरत है. वरुण गांधी हर तरीके से फिट होने के बावजूद बीजेपी में हाशिये पर हैं. वरुण की इस हालत के पीछे उनका अमित शाह की गुड बुक में न होना है. वैसे जरूरी नहीं कि अमित शाह की गुड बुक में होना ही बीजेपी में मजबूती से खड़े होने की शर्त है, लेकिन इस सिलसिले में जो दूसरी कंडीशन है वरुण वहां भी फिट नहीं होते - संघ का वरद हस्त होना. अगर ऐसा होता तो वरुण शुरू से ही योगी आदित्यनाथ पर भारी पड़ते. वैसे भी वरुण गांधी के पुराने भाषण सुनें तो योगी को डटे रहने के लिए संघर्ष भी करना पड़ सकता है.

varun gandhiताकत को भुनाने की तैयारी...

वरुण गांधी की यही वो खासियत है जो कांग्रेस के लिए बीजेपी का बड़ा हथियार साबित हो सकती है. इसे अमली जामा पहनाने में वरुण गांधी और प्रियंका गांधी की केमिस्ट्री अहम भूमिका निभा रही है. प्रियंका को राहुल और वरुण का साथ बेहद पसंद है, खासकर यूपी को लेकर. हालांकि, ये साथ मेनका गांधी को नहीं पसंद आ रहा था, लेकिन अब उनकी भी आपत्ति नहीं के बराबर रह गयी है.

वरुण के नाम में गांधी जुड़ा होना ही उनकी ताकत है और सबसे बड़ी कमजोरी भी. फिलहाल इसी कमजोरी को ताकत में बदलने की कांग्रेस में तैयारी चल रही है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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