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Updated: 10 फरवरी, 2021 04:55 PM
मेजर सरस त्रिपाठी
मेजर सरस त्रिपाठी
  @saras.tripathi
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07 फरवरी 2021 को जो कुछ भी चमेली में हुआ वह अप्रत्याशित ही नहीं आश्चर्यजनक भी है. लेकिन क्या किसी ने सोचा कि यह चीन द्वारा कृत्रिम रूप से किया हुआ विध्वंस यानि सैबोटाज हो सकता है? नहीं ना? लेकिन संसार के बड़े-बड़े बुद्धिजीवी इस विषय पर विचार कर रहे हैं? भारत सरकार भी इस विषय में सशंकित है परंतु अपने विचार व्यक्त नहीं कर रही है? वाडिया हिमालय-भूगर्भीय संस्थान (Wadia Institute of Himalyan Geology) के निदेशक कलाचन्द सांई ने इस दुर्घटना पर आश्चर्य व्यक्त किया है कि यह फरवरी में कैसे हो सकती है. केन्द्रीय जल आयोग के निर्देशक शरद चन्द्र ने भी इस दुर्घटना के समय पर आश्चर्य व्यक्त किया है. उन्होंने एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय दैनिक में प्रकाशित एक लेख में उन्हें उद्धृत करते हुए कहा गया है कि एकाएक ऐसा होना आश्चर्यजनक है क्योंकि हर 24 घंटे सेटेलाइट इमेज की समीक्षा होती है और एक दिन पूर्व ऐसे कोई लक्षण दिखाई नहीं देता. कनाडा के कालगेरी विश्वविद्यालय के जिओमारफोलाजिस्ट डाक्टर डैन शुगर भी इसे काफी रहस्यमय मानते हैं.

ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही है कि यह चीन ने भारत के 'काली' जैसे किसी लेज़र बीम से ग्लेशियर को काटकर विध्वंस किया है. कुछ समय पूर्व तक यह माना जाता था कि 'काली' सिर्फ भारत और अमेरिका के पास है. किंतु चीन इस विषय पर बहुत गंभीरता से रिसर्च कर रहा था. चूंकि चीन के पास संसार की अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी है, ऐसी संभावना है कि उसने 'काली' जैसा कोई हथियार बना लिया है. 'काली' यानी किलो एंपियर लीनियर इंजेक्टर. यह अत्यंत शक्तिशाली लेजर बीम है जो ग्लेशियर को बिना किसी आवाज या विस्फोटक को लगाए सर्जिकल सूक्ष्मता (surgical precision) से काट सकती हैं.

Uttarakhand news, Uttarakhand Flood, Uttarakhand Glacier Burst, Uttarakhand latest news, Disaster, Natural Disasterसवाल ये है कि उत्तराखंड में जो विध्वंस देखने को मिला कहीं उसकी वजह चीन तो नहीं है

लेज़र बीम को उत्पन्न करने वाली मशीन और उपकरणों को लड़ाकू और मालवाहक वायुयान पर स्थापित कर यह कार्य किया जा सकता है. इस विषय पर गंभीरता से विचार करना होगा कि ग्लेशियर क्या कभी सर्दियों में भी खिसक सकते हैं? ग्लेशियर और हिमालयन स्टडीज के विशेषज्ञों को यह बात समझ में नहीं आ रही है कि फरवरी के महीने में, जब बर्फ चट्टान की तरह एक दूसरे से चिपकी रहती है, उस समय ग्लेशियर कैसे टूट सकता है? आमतौर पर ग्लेशियर के खिसकने की घटनाएं अप्रैल-मई के बाद होती हैं जब उत्तरी गोलार्ध में गर्मी काफी बढ़ जाती है.

फ़रवरी में तो लगभग प्रतिदिन यहां घनघोर हिमपात होता रहता है तो ऐसे समय में ग्लेशियर कैसे टूट सकता है. ग्लेशियर का तापक्रम -50 से -70 (माइनस 50 से 70) डिग्री सेल्सियस होता है. इतनी बृहत चट्टानें, जो एक दूसरे से इतनी सघनता से जुड़ी हुई है, कैसे टूट सकते हैं?

तो क्या इसमें चीन का हाथ है?

हां इसकी बहुत प्रबल संभावना है. उसके कारण नीचे दिए जा रहे हैं:

1- भारत ने 2018 'काली' का प्रयोग करके सियाचिन ग्लेशियर के उस हिस्से को काट दिया था जिसके नीचे पाकिस्तान सेना का एक बटालियन हेडक्वार्टर था. परिणामस्वरूप पूरा का पूरा बटालियन हेड क्वार्टर, जिसमें लगभग 135 सैन्यकर्मी थे, ग्लेशियर के नीचे दब कर मर गए थे. यह ग्लेशियर इतना विशाल था कि उनके शव भी नहीं निकाले जा सके थे. उन्हें यह भी समझ में नहीं आया था कि यह सब कैसे हुआ हो सकता है. विदेशी विशेषज्ञों ने इसे दुर्घटना न मानकर भारत द्वारा किया सेबोटाज बताया था.

उनका मानना था कि भारत ने काली का प्रयोग कर ग्लेशियर को काट दिया जिससे वह टूटकर नीचे खिसक गए और पूरे के पूरे बटालियन हेड क्वार्टर को नष्ट कर दिया. शंका है कि चीन ने इसी तकनीक का प्रयोग कर उत्तराखंड में इस त्रासदी का षड्यंत्र किया है.

2- दूसरा चीन से अधिक पानी की शक्ति को दुनिया में कोई भी देश पहचान नहीं पाया है. जानकर आश्चर्य होगा कि चीन के पास दुनिया में सबसे अधिक बांध (Dam) हैं. चीन के पास लगभग 22000 बड़े बांध है और लगभग 58000 छोटे बांध है. दूसरे नंबर पर बांधों की संख्या में अमेरिका आता है जिसके पास लगभग 75,000 बांध है. चीन पानी की शक्ति से भारत के बड़े हिस्से को डुबाने की स्थिति में है क्योंकि उत्तर भारत में बहने वाली अधिकतर नदियों का उद्गम तिब्बत में है जो इस समय चीन के कब्जे में है. अकेले ब्रह्मपुत्र पर उसने इतने बड़े-बड़े बांध बनाए हैं कि अगर वह इस जल को छोड़ दें तो संभवतः संपूर्ण उत्तर पूर्व और पूर्वी भारत डूब सकता है.

दुनिया के सबसे बड़े और खतरनाक बांध जैसे three gorges dam जो कि यांगत्सी नदी पर बना हुआ है, चीन में ही है. इसके अतिरिक्त चीन ने नदियों के जोड़ने (interlinking of rivers) का काम भी बड़े पैमाने पर किया है. वह एक नदी का पानी दूसरी नदी में प्रवाहित करने की क्षमता रखता है.

3- चीन के दो राष्ट्रपति हाइड्रोलॉजिस्ट रहे हैं, और अधिकतर इंजिनियर. चीन के यह दोनों राष्ट्रपति हैं: वेन जिआबाओ और हुन जिंताओ. इन्होंने जलशक्ति को समझा और जलशक्ति के विकास पर बहुत अधिक ध्यान दिया. यही कारण है कि चीन आज संसार की सबसे बड़ी जल शक्ति है चाहे वह बांधों का निर्माण हो, हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर का उत्पादन हो या जल को नियंत्रित कर नदियों के डाउनस्ट्रीम में उनका एक रणनीतिक उपयोग करने की विद्या हो. चीन से अधिक निपुणता और निहित शक्ति (skill and potential) किसी देश में नहीं है.

4- चौथा कारण यह है कि जहां पर यह ग्लेशियर टूटा है वह चीन की सीमा के बिल्कुल निकट है. रक्षा विशेषज्ञों ने पहले ही इस बात की संभावना व्यक्त की थी कि यदि चीन तिब्बत/लद्दाख क्षेत्र में भारत के साथ कुछ अधिक नहीं कर पाता तो वह अरुणाचल या किसी अन्य क्षेत्र में नए मोर्चे खोल सकता है. यह चीन के नए मोर्चा खोलने का एक हिस्सा लगता है. बिना एक भी सैनिक के उसने भारत के अरबों-खरबों रुपए का नुकसान किया है. तपोवन में बन रहा हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट पूरी तरह से तबाह हो गया है. पहले से ही निर्मित एक बांध पूरी तरह से बह गया है.

200 से अधिक लोगों के मर जाने की संभावना है. चीन की गणना में यह एक बहुत बड़ी तबाही हो सकती थी लेकिन डाउन स्ट्रीम के रिजर्वायर खाली होने के कारण उसने इस जल प्रवाह को अपने में समाहित कर लिया. परिणामस्वरूप जो त्रासदी ऋषिकेश, हरिद्वार और उसके आगे मैदानी इलाकों में हो सकती थी वह कम हो गई है.

चीन ने ऐसा करके अपने बहुत सारे उद्देश्यों को पूरा किया है. एक, उसने भारत को बहुत ही अनपेक्षित नुकसान पहुंचाया है.  दो, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चार धाम सड़क परियोजना के ऊपर प्रश्नचिन्ह लगाने के लिए पर्यावरणविद लोगों को काफी मसाला प्रदान कर दिया है. चीन का उद्देश्य है कि भारत के अंदर ही सरकार का अधिक से अधिक विरोध हो. चीन नहीं चाहता कि चारधाम परियोजना के अंतर्गत सड़के बने क्योंकि यह हमारे लिए रणनीतिक महत्व की भी है.

ये सड़कें बन तो पर्यटन के नाम पर रही है परन्तु इनका सर्वाधिक उपयोग सुरक्षा बल करेंगे. तीसरा, उसने यह दिखा दिया है कि वह युद्ध मात्र सेना, नौसेना और वायुसेना (गोला-बारूद, हथियार, मिसाइल, हवाई जहाज और पनडुब्बियों इत्यादि) से ही नहीं, जल से भी लड़ सकता है.

लेकिन सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि हमारे देश के अधिकतर लोग इन बातों को नहीं समझते. देश में रणनीतिक चिन्तक सीमित है और चीन जैसी दूरदृष्टि नहीं है. बहुत से लोग तो अति उत्साह में बस चिल्लाना शुरू कर चुके हैं कि यह सब वातावरण से छेड़छाड़ के कारण, पेड़ काटने से, बांध बनाने इत्यादि से हुआ है. बांध की सारी परियोजनाएं रोक देनी चाहिए.

यही चीन का उद्देश्य भी था. ऐसे लोग अनजाने ही चीन को सहयोग प्रदान कर रहे हैं. पर्यावरण संरक्षण भी महत्वपूर्ण है और संभव है कि यह घटना प्राकृतिक हो. परंतु यह चीन की जल रणनीति का यह एक हिस्सा भी हो सकता है. इस पर गंभीर गवेषणा और अन्वेषण होना चाहिए.

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मेजर सरस त्रिपाठी मेजर सरस त्रिपाठी @saras.tripathi

लेखक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी हैं, और सुरक्षा और रणनीतिक मामलों पर टिप्पणी करते हैं.

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