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Updated: 28 नवम्बर, 2015 03:43 PM
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यह सच है कि प्रधानमंत्री बनने से पूर्व नरेंद्र मोदी का कई विवादों से नाता रहा है. लेकिन एक सच तो यह भी है कि पिछले पांच-छह वर्षों में मोदी ने न केवल उन तमाम विवादों को पीछे छोड़ा बल्कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में किसी नायक की भांति उभरने में कामयाब रहे. यह और बात है कि गाहे-बगाहे पुराने विवाद उनके साथ जा खड़े होते हैं और हमेशा होंगे भी. उसके अपने कारण और अपना इतिहास है. जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी में मोदी को आमंत्रित किए जाने पर मचे बवाल का कारण भी पुराना है.

जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी ने इसी महीने की शुरुआत में दीक्षांत समारोह के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया. पीएमओ की ओर से फिलहाल इसका जवाब तो नहीं आया है लेकिन यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्रों ने ही मोदी को आमंत्रित किए जाने का विरोध शुरू कर दिया है. हालांकि इन विरोधों के बीच यूनिवर्सिटी की ओर से जरूर कहा जा चुका है कि भेजा गया न्योता वापस नहीं लिया जाएगा.

पूर्व छात्र क्यों कर रहे हैं मोदी का विरोध

गुजरात में मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी ने कभी जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी पर तंज कसा था, अब उसी का जिन्न बाहर आया है. दरअसल 2008 के सितंबर में दिल्ली में हुए बाटला हाउस इनकाउंटर के बाद तब के जामिया के वाइस चांसलर मुशिरुल हसन ने बयान दिया था आतंकी कार्यों में संलग्न होने के आरोप में धरे गए अपने दो छात्रों को यूनिवर्सिटी कानूनी मदद मुहैया कराएगा.

इसके बाद मोदी ने तब वोटों की राजनीति किए जाने का हवाला देते हुए जामिया पर जम कर निशाना साधा. मोदी ने कहा था, 'दिल्ली में जामिया मिलिया इस्लामिया नाम की एक यूनिवर्सिटी है. इसने खुल कर कहा है कि आतंकियों की रक्षा के लिए वह कानूनी लड़ाई लड़ेगी. पूरा खर्च यूनिवर्सिटी करेगी. अरे डूब मरो, डूब मरो. हिंदु्स्तान की जनता के पैसे से जामिया यूनिवर्सिटी चल रही है और उस यूनिवर्सिटी की ये हिम्मत कि वे वकील करेंगे. वोट बैंक की राजनीति कहां तक होगी.'

देखें मोदी का 2008 का वो बयान-

इन छात्रों ने जताया विरोध

मोदी को न्योता दिए जाने के विरोध की शुरुआत दो पूर्व छात्र असद अशरफ और मेहताब आलम ने की है. असद 2007-10 बैच के छात्र रहे हैं, जब बाटला इनकाउंटर मामला खूब गर्माया था. जबकि महताब 2001-03 के बीच जामिया के छात्र रहे. इन्होंने 50 और पूर्व छात्रों का साइन किया हुआ पत्र यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर को भेजा है. इनकी मांग है कि या तो न्योता वापस लिया जाए या मोदी अपने उस बयान के लिए माफी मांगें. पत्र में पिछले साल लोक सभा चुनाव से पूर्व बीजेपी नेता वी.के. मल्होत्रा के उस बयान का भी जिक्र है, जिसमें उन्होंने कहा था कि जामिया और बाटला आतंकवादियों के लिए सुरक्षित घर की तरह हैं.

मोदी को जाना चाहिए जामिया यूनिवर्सिटी

जब विरोध की बात दूर-दूर तक नहीं थी तब मोदी अगर इस निमंत्रण को स्वीकार न भी करते तो बात आई-गई हो जाती. लेकिन अब यह जरूरी है कि मोदी निमंत्रण को स्वीकार करें. दरअसल, मोदी जिस दिशा में आगे बढ़ने की बात करते रहते हैं, इस निमंत्रण को स्वीकार करना उसकी अगली सीढ़ी साबित होगी. वैसे भी, जो पूरा विवाद है, वह प्रायोजित और गड़े मुर्दे उखाड़ने की कोशिश भर लगती है. 50 या 100 लोग अगर विरोध करते हैं, तो ये उनका हक है. लेकिन विरोध के बीच रास्ता बनाने का हुनर भी तो मोदी जानते ही हैं.

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