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Updated: 07 जुलाई, 2016 11:01 AM
बालकृष्ण
बालकृष्ण
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मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नए चेहरों को अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया. लेकिन सबसे ज्यादा सुर्खिंया बटोरी उस मंत्री ने जिसका सिर्फ विभाग भर बदला गया.

'डिग्री' से लेकर 'डियर 'तक - खबरों में बने रहने में 'आंटी नेशनल ' का कोई मुकाबला नहीं . जी हां, बात स्मृति ईरानी की ही हो रही है. मानव संधासन विकास मंत्रालय से हटाकर उन्हें कपड़ा मंत्रालय भेजे जाने के पीछे क्या आखिर राज क्या है - इसको लेकर अटकलों का बाजार गर्म हो गया. ये चर्चा चल ही रही थी कि क्या लगातार विवादों में फंसे रहने की वजह से उनका पर कतरा गया, कि तभी एक खबर ऐसी आयी जिससे सबके कान खडे हो गए. बीजीपी ही नहीं, दूसरी पार्टियों के खेमे में इस खबर को लेकर खुसफुसाहट शुरू हो गयी है.

खबर है कि स्मृति ईरानी को कपडा मंत्रालय इसलिए भेजा जा रहा है कि वो उत्तर प्रदेश के चुनाव में भगवा झंडा फहराने का ताना बाना बुन सकें. क्या स्मृति ईरानी यूपी में बीजेपी का चेहरा बनने जा रही हैं? न तो बीजीपी ने अभी इस बात का ऐलान किया है और न ही स्मृति ईरानी ने बुधवार को कपडा मंत्रालय की कुर्सी संभालते हुए ऐसा कोई इशारा किया. लेकिन, बात यूं ही नहीं हो रही है.

स्मृति ईरानी को यूपी में बीजेपी का चेहरा बनाया जा सकता है - ये चर्चा तो पहले से थी. लेकिन जब से ये खबरें आने लगीं कि यूपी में कांग्रेस के हाथ को प्रियंका गांधी का साथ मिलेगा, तब से स्मृति ईरानी की पार्टी में पूछ बढ गयी. तमाम विवादों में रहने के बावजूद, मोदी और अमित शाह ये भूले नहीं हैं कि लोकसभा चुनाव में स्मृति ईरानी ने अमेठी जाकर कांग्रेस के युवराज को किस तरह घेरा था. भाई को घिरा देखकर प्रियंका ने भी अमेठी में जाकर खूब चुनाव प्रचार किया था. आखिरकार राहुल गांधी चार लाख वोट लेकर जीत तो गए, लेकिन उनके के गढ में घुसकर स्मृति ईरनी ने जिस तरह तीन लाख से ज्यादा वोट झपट लिए वो बीजेपी के किसी भी नेता के लिए एक सपना था.

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प्रियंका और स्मृति

उत्तर प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक कहते हैं कि स्म़ृति ईरानी के भीतर कार्यकर्ताओं में जोश भरने की ताकत है और उन्होंने अमेठी- रायबरेली में राहुल-सोनिया की ऐसी हालत कर दी थी कि उन्हें जीतने के लिए समाजवादी पार्टी की मदद लेनी पडी. समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी और सोनिया गांधी के खिलाफ उम्मीदवार खडा नहीं किया था.

चुनाव हार जाने के बावजूद स्मृति ईरानी ने यूपी से नाता नहीं तोडा. वो बराबर अमेठी जाती रहीं और वहां के वोटरों को ये हमेशा कहती रहीं कि वो चुनाव भले ही हार गयीं हो, वहां के लोगों से उनका रिश्ता खत्म नहीं हुआ है. बीजेपी के नेता भी मानते हैं कि यूपी की नहीं होने के बावजूद, गांधी परिवार के गढ में घुसकर उन्हें चुनौती देने की जैसी हिम्मत स्मृति ईरानी ने दिखाई वैसा कर पाना खुद मोदी को छोडकर शायद किसी के लिए भी मुमकिन नहीं था. ऐसे में प्रिंयका के मिशन यूपी को रोकने के लिए स्मृति ईरानी एक कारगर हथियार हो सकती हैं.

लेकिन यूपी का चेहरा बनाने के लिए कपडा मंत्रालय भेजने की भला क्या जरूरत ?

याद कीजिए 2012 में विधानसभा चुनाव के वक्त राहुल गांधी ने क्या किया था. चुनाव के महज चार महीने पहले, यूपीए की सरकार ने उत्तर प्रदेश के बुनकरों के लिए 6,234 करोड के पैकेज की घोषणा की थी. उस वक्त कपडा मंत्री गांधी परिवार के विश्वासपात्र आनन्द शर्मा थे जिन्होंने बनारस के कोटवा गांव में इस पैकैज का धूमधाम से ऐलान किया था. आनन फानन में तैयार किए गए इस पैकेज के जरिए कांग्रेस ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में रहने वाले करीब पांच लाख बुनकरों और इस कारोबार से जुडे लोगों का दिल जीतने की कोशिश की थी. ऐलान किया गया था कि 3,884 करोड रूपए बुनकरों के कर्ज माफी के लिए खर्च किए जाएंगे और बाकी रूपयों से उन्हें दूसरी मदद दी जाएगी.

उत्तर प्रदेश के कई जिलों जैसे बनारस, भदोही, मऊ, आजमगढ, मिर्जापुर, टांडा और मुजफ्फरनगर में बुनकरों की बडी आबादी है. बनारसी साडियों और भदोही के कालीन भले ही दुनिया भर में मशहूप हों, बुनरकों की हालत खराब है और वो घनघोर गरीबी के शिकार हैं. पिछले विधानसभा चुनावों में, बुनकरों को लुभाने के लिए कांग्रेस सरकार का पैकेज बुरी तरह नाकाम रहा क्योंकि जैसै तैसे जल्दबाजी में तैयार किए गए इस पैकेज को कांग्रेस सरकार लागू ही नहीं कर पायी.

लेकिन 2012 से लेकर 2016 के बीच उत्तर प्रदेश में कई चीजें बदल गयी हैं. बनारस अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का हाईप्राफाइल संसदीय क्षेत्र है जहां बीजेपी सबकुछ एकदम दुरूस्त करना चाहती है. ये महज इत्तफाक नहीं है कि दो हफ्ते पहले ही मोदी कैबिनेट ने कपडा मंत्रालय के लिए 6000 करोड के विशेष पैकेज को मंजूरी दी है. और मंगवार को कपडा मंत्रालय, स्मृति ईरानी को दिए जाने को आप इन सबसे जोडकर देखें तो कहानी बहुत कुछ साफ हो जाती है.

उधर कांग्रेस में भी इस खबर को लेकर चर्चा है कि यूपी जीतने के लिए स्मृति ईरानी को योद्धा बनाया जा सकता है. लेकिन वहां कोई ये मानने के तैयार ही नहीं है कि स्म़ृति ईरानी, प्रियंका के जादू को कम कर सकती हैं. कांग्रेस की वरिष्ठ नेता रीता बहुगुणा जोशी कहती हैं कि स्मृति ईरानी का डिमोशन किया गया है क्योंकि मानव संसाधन विकास मंत्री के तौर पर वो फेल हो गयीं थी.

लेकिन अमेठी के अनुभव के बाद कांग्रेस, स्म़ृति ईरानी को हल्के में लेने की गलती नहीं कर सकती. राजनैतिक रूप से उनता कद भले ही बहुत बडा न हो, लेकिन वो आक्रामक और शानदार वक्ता हैं, खबरों में रहना जानती हैं और बेहद मशहूर सीरियल की अभिनेत्री होने के कारण घर घर पहचानी जाती हैं.

प्रियंका का पूरे यूपी में चुनाव प्रचार करना अब लगभग तय है. अब फैसला सिर्फ ये होना है कि वो कहां कहां और कितना प्रचार करें. यूपी के विधानसभा चुनावों ने गांधी परिवार को बहुत दर्द दिए हैं. 2012 के विधानसभा चुनावों में राहुल गांधी ने रात दिन एक करके 200 से ज्यादा सभाएं की और गली गली घूमे. लेकिन सीट मिली सिर्फ 28.

प्रियंका गांधी का अनुभव तो और भी बुरा रहा है. उन्होंने तो सिर्फ अमेठी रायबरेली में ही, भाई राहुल और और मां सोनिया के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. लेकिन नतीजे आए तो पता चला कि दस में से आठ सीटें कांग्रेस हार गई. जो दो विधायक जीते, उनमें से भी एक कांग्रेस को छोडकर चला गया.

लेकिन 2017 के यूपी चुनाव की बात ही कुछ और है. इसे 2019 के पहले का सेमीफाइनल कहा जा रहा है और मोदी की लोकप्रियता की सबसे बडी परीक्षा भी. बिहार हारने के बाद बीजेपी, यूपी जीतने में जी जान लगा रही है. ऐसे में अगर मायावती, प्रियंका गांधी और स्मृति ईरानी जैसी महिलाएं और उनके बीच में घिरे अखिलेश यादव के बीच में मुकाबला हुआ तो ये सचमुच देखने लायक एक यादगार मुकाबला होगा.

लेखक

बालकृष्ण बालकृष्ण @bala200

लेखक आज तक में पत्रकार हैं.

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