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Updated: 06 अगस्त, 2015 07:21 PM
श्रीजीत पनिक्कर
श्रीजीत पनिक्कर
  @sreejith.panickar
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भारत सीमापार और देश के अंदर के आतंकवाद को लकर नरम रवैया अपनाता रहा है. हमें इस बात को स्वीकार करना होगा. हम आतंकवाद के मुद्दे पर हमेशा से नरम रहे हैं और किसी आतंकी हमले के बाद भी हमारी प्रतिक्रिया एक्शन में तब्दील नहीं होकर शब्दों तक ही सीमित रहती है. यहां तक कि नवंबर-2008 में मुबंई हमले के बाद भी आतंकी धमकियों को लेकर हम लापरवाह रवैया अपनाते रहे हैं. हमारी सुस्ती के कारण आतंकी हमें एक आसान टार्गेट के रूप में देखने लगे हैं.

आतंकवादियों ने हाल ही में पंजाब के गुरदासपुर में हमला किया और उनसे लोहा लेते हमारे पुलिसकर्मियों की बेबस तस्वीर सामने आई. इससे यह बात भी सामने आई कि हमारी सुरक्षा को और पुख्ता कैसे किया जा सकता है. इधर एक और घटना में आतंकवादियों ने जम्मू और कश्मीर के उधमपुर में सैनिकों पर हमले किए. केवल जम्मू और कश्मीर सेक्टर से ही अशोक चक्र सम्मान हासिल करने वालों की संख्या से हमारे सरकार की नींद खुल जानी चाहिए. वैसे, इस बार जरूर हम एक आतंकी को स्थानीय लोगों की मदद से जिंदा पकड़ने में कामयाब रहे.

अंदाजा इस बात का भी लगाया जा सकता है कि आतंकी को पकड़े जाने के बाद आगे की कहानी कैसे-कैसे आगे बढ़ेगी. सबसे पहले तो पकड़े गए मोहम्मद नावेद उर्फ उस्मान के खिलाफ चार्ज शीट दाखिल करने में ही कई महीने लगेंगे. पाकिस्तान इस बीच उस आतंकी के बारे में अपनी जानकारी से इंकार करता रहेगा. फिर देश के कई शीर्ष वकील उस आतंकवादी के पीछे खड़े हो जाएंगे और नावेद बनाम भारत माता केस की बहस में उलझेंगे. यह कई वर्षों तक चलेगा. नावेद इस बीच कई बार हैदराबादी दम बिरयानी के मजे ले चुका होगा और सलमान खान से ज्यादा स्मार्ट नजर आने लगेगा. इन सब प्रक्रियाओं के बीच हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट उसे फांसी की सजा सुना देगी.

उसके बाद दया याचिका दी जाएगी और फिर मानव अधिकारों की बात करने वाले एक्टिविस्ट इस मामले से जुड़ जाएंगे. उधमपुर के उन गरीब गांव वालों के खिलाफ भी आरोप दायर किए जाएंगे जिन्होंने इस आतंकवादी को पकड़वाने में बड़ी भूमिका निभाई. वे एक्टिविस्ट इस बात की जिरह करेंगे नावेद ने तो सरेंडर किया था. उसने हमले के मास्टरमाइंड की पहचान करने में सुरक्षा एजेंसियों की मदद की. आतंकी के वकील इस बात की अपील करेंगे कि उसकी मौत की सजा में कमी की जाए. कई सालों के बाद, सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले पर रोक लगाएगा. इसके बाद वह आतंकवादी अपने रिश्तेदारों की मदद से एक के बाद एक कई दया याचिकाओं को राष्ट्रपति के पास भेजेगा. अब चूंकी संविधान के अनुसार राष्ट्रपति ज्यादातर मौकों पर मंत्रिमंडल की सिफरिशों के अनुसार ही अपना फैसला देते हैं, विपक्ष और 'सेकुलर' मुस्लिम संगठन यह आरोप लगाने लगेंगे कि ऐसा फैसला आतंकी के धर्म को देखते हुए लिया गया. भले ही नावेद ने ऐसा कहा कि वह यहां हिंदूओं को मारने आया है, उसके बयान की वैधता पर सवाल देर रात होने वाली सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर उठाए जाएंगे.

मेरी समझ कहती है, इस सर्कस के बाद नावेद अपनी जिंदगी हासिल कर लेगा. हमने देखा कि कैसे कुछ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी बात मनवाने का प्रयास किया और यह सोचा कि अदालत 257 लोगों की मौत से ऊपर याकूब मेमन की जिंदगी को तरजीह देगी. अपने दोस्तों की मदद से नावेद 255 कम लोगों को मार सका. इसलिए केस उसके पक्ष में ज्यादा मजबूत होगा. आज से पांच साल बाद दो लोगों की मौत कहां बड़ी नजर आएगी. इसलिए इसे रेयरेस्ट ऑफ रेयर भी नहीं माना जाएगा. और फिर रमन, लक्ष्मण या विभीषण की लिखी चिट्ठियों की मदद से कथित सेकुलरवादी लोग यह दलील देते फिरेंगे कि नावेद को फांसी के तख्ते पर नहीं लटकाना चाहिए बल्कि पदम पुरस्कार देना चाहिए. वे यह दलील भी देंगे कि मौत की सजा के बारे में तो नियू, टिमर-लेस्टे और वानूअतु जैसे देशों में तो सुना भी नहीं गया है.

इस तरह गांव वालों और भारतीय फौज के सामने सरेंडर कर नावेद ने अपनी जिंदगी बचाने के लिए सही दाव फेंका है. उसे भारत में शांति से जीवन बिताने के लिए और आधी सदी के बाद बूढ़ा होकर मरने के लिए किसी प्रधानमंत्री जन-धन योजना, पब्लिक प्रोविडेंट फंड या फिर किसी राष्ट्रीय पेनशन स्कीम की जरूरत नहीं होगी. उस समय तक नावेद-2 और कसाब-3 तक भारत में घुसपैठ कर चुके होंगे और हमारी जेलों में होंगे. लेकिन हम कठोर कदम उठाते रहेंगे. हम पाकिस्तान के साथ अगले तीन सालों तक क्रिकेट नहीं खेलेंगे और विराट कोहली को उनके खिलाफ अपशब्द कहने के लिए चेतावनी देते रहेंगे. यह सर्कस ऐसे ही चलता रहेगा.

क्या यह सब कुछ वैसा ही नहीं है जैसे हम एक ही फिल्म बार-बार देख रहे हैं. एक गंभीर बात, हम सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों में रह रहे लोगों को कैसी सुरक्षा मुहैया करा रहे हैं? राजनेता इस बारे में कोई चिंता नहीं करना चाहते क्योंकि उनके लिए सबसे उम्दा सुरक्षा व्यवस्था मौजूद है. सीमा के उस पार से गैरकानूनी रूप से आ रहे नावेद जैसे लोग इंसान नहीं है बल्कि इंसान की शक्ल में एक ऐसा प्रोगाम हैं जो केवल अपराध करना जानता है. ऐसे लोगों को सुधारा नहीं जा सकता. ऐसे लोग एक दिन भारतीयों पर हमला करते हैं और फिर अगले दिन अपने ही लोगों पर. इन्हें ठीक करने का प्रयास बेकार है क्योंकि हमारा पड़ोसी मुल्क रोज ऐसे तत्वों को पैदा करने में व्यस्त है. वैसे लोग जो देश में मौत की सजा खत्म करने की पैरवी कर रहे हैं, उन्हें ध्यान देना चाहिए कि ऐसे कई देश हैं जहां इस सजा को हटाया गया है. लेकिन आतंक के मामले में उन देशों में भी आतंकियों को मौत की सजा देने का प्रावधान है.

हमें भी आतंक से जुड़े सभी मामलों के लिए कठोरतम सजा का प्रावधान रखना चाहिए. पुलिस, फौज और इंटेलिजेंस के साझा प्रयास और नेटवर्क के बिना हम ऐसे हमलों को नहीं रोक सकते. बावजूद इसके कि हमें ऐसी घटनाओं का अलर्ट पहले मिल जाता है. नावेद ने कहा कि सीमा के इस पार वह लोगों को मारने और मजे लेने आया था. यह ऐसे लोग नहीं कि जिनसे थप्पड़ खाने के बाद आप अपना दूसरा गाल भी इनकी ओर बढ़ा दें. इसलिए यह बहुत जरूरी है कि हम बॉर्डर पर अपनी सुरक्षा और मजबूत करें.

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लेखक

श्रीजीत पनिक्कर श्रीजीत पनिक्कर @sreejith.panickar

लेखक 'मिशन नेताजी' के संस्थापक सदस्य हैं.

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