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Updated: 19 अप्रिल, 2020 09:57 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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महाराष्ट्र में कोरोना वायरस (Coronavirus) कहर बरपा रहा है. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) की तमाम कोशिशों को बावजूद संक्रमण और मौतों के मामले में महाराष्ट्र देश में नंबर वन बना हुआ है. उद्धव ठाकरे ने अपने संबोधन में शेयर भी किया है कि मौजूदा हालात को लेकर उनके मन में क्या चल रहा है - 'जो युद्ध चल रहा है, उसका इंतजार कर रहा हूं कब खत्म होगा? अगर ये शत्रु दिखता तो उसका हम कब का खात्मा कर चुके होते - लेकिन ये दिखता नहीं है... शत्रु दिख नहीं रहा है, युद्ध कब तक खत्म होगा ये सवाल मेरे मन में भी है.'

लेकिन दूसरा सवाल जो उनके मन में है उसे साझा करना उनके लिए काफी मुश्किल भरा है - दरअसल, 28 मई को उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बने छह महीने पूरे हो जाएंगे, लेकिन अभी तक वो महाराष्ट्र के दोनों सदनों में से किसी के सदस्य नहीं बन पाये हैं. महाराष्ट्र कैबिनेट ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से उद्धव ठाकरे को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत करने की सिफारिश की तो है, लेकिन 10 दिन से ज्यादा वक्त बीत जाने के बाद भी राज भवन की तरफ से कोई साफ संकेत नहीं मिलने से उद्धव ठाकरे के आगे भी कुर्सी पर बने रहने को लेकर असमंजस का दौर भी शुरू हो चुका है.

वित्त वर्ष को तो केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने तीन महीने का एक्सटेंशन दे दिया है - लेकिन उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बने रहने की छह महीने की शर्त यूं ही तो बढ़ायी नहीं जा सकती. ऐसा तो नहीं लगता कि महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी सरकार गिर जाएगी, लेकिन ये तो तय है कि छह महीने बाद भी राजनीतिक लड़ाई उसी जगह पहुंचने जा रही है जहां से शुरू हुई थी - और हिसाब बराबर करने का मौका अमित शाह (Amit Shah) को मिलने वाला है!

शिवसेना ने राज्यपाल का इशारा समझ लिया है क्या

संविधान की धारा 164 (4) के मुताबिक उद्धव ठाकरे को महाराष्ट्र विधानसभा या विधान परिषद किसी का भी अनिवार्य रूप से सदस्य बनना जरूरी है. ये मियाद 27 मई को खत्म हो जाएगी. उद्धव ठाकरे ने 28 नवंबर, 2019 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी.

शिवसेना ने विधायकों के कोटे से विधान परिषद की सीट पर होने वाले द्विवार्षिक चुनाव के जरिये उद्धव ठाकरे को MLC बनाने की सोच रखी थी, लेकिन कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी के लिए लॉकडाउन के चलते चुनाव आयोग ने सारे चुनाव अनिश्चित काल तक के लिए टाल दिये हैं. अब कोरोना की वजह से संवैधानिक नियम तो बदलेंगे नहीं. बदल सकते थे, बशर्ते केंद्र में भी उद्धव ठाकरे के मनमाफिक सरकार होती.

फिर तो सबसे आसान यही होता कि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी उनको विधान परिषद का सदस्य मनोनीत कर देते. महाराष्ट्र मंत्रिमंडल ने 6 अप्रैल को इस आशय का प्रस्ताव भेज भी दिया था, लेकिन राज्यपाल ने अब तक कोई फैसला लिया ही नहीं है. सूत्रों के हवाले से खबर आ रही है कि राज्यपाल कोश्यारी मनोनयन के मुद्दे पर कानूनी राय ले रहे हैं.

uddhav thackerayकोरोना वायरस के चलते उद्धव ठाकरे की कुर्सी पर बन आयी है

राज्यपाल की तरफ से हो रही देर पर शिवसेना नेता संजय राउत आक्रामक हो गये हैं. एक ट्वीट में संजय राउत ने राजभवन को साजिश का केंद्र बता डाला है. संजय राउत ने ट्विटर पर लिखा है, 'राजभवन, राज्यपाल का आवास राजनीतिक साजिश का केंद्र नहीं बनना चाहिए - याद रखें, इतिहास उन लोगों को नहीं छोड़ता जो असंवैधानिक व्यवहार करते हैं.'

अव्वल तो राज्यपाल उन नामों को ही मनोनीत करते हैं जिनकी सिफारिश राज्य सरकार करती है, लेकिन उस पर फैसला राज्यपाल के विवेकाधिकार का हिस्सा होता है. राज्यपाल के मनोनयन वाले कोटे की सीटें विशिष्ट व्यक्तियों के लिए बनायी गयी हैं जो कला, साहित्य, शिक्षा, विज्ञान, खेल या समाजसेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दे चुके हों.

अब सवाल ये है कि उद्धव ठाकरे का मनोनयन किस आधार पर हो सकता है?

उद्धव ठाकरे तो राजनीतिज्ञ हैं फिर भला राज्यपाल उनका मनोनयन क्यों करें? उद्धव ठाकरे शौकिया फोटोग्राफर हैं और उनकी फोटो प्रदर्शनी भी लग चुकी है जिससे होने वाली आय वो राज्य के सूखा प्रभावित किसानों और जरूरतमंदों को देते आये हैं. उद्धव ठाकरे की ली हुई तस्वीरों की कॉफी टेबल बुक महाराष्ट्र देशा भी आ चुकी है - लेकिन क्या ये सब राज्यपाल को मनोनयन के लिए राजी कर लेने के लिए काफी हैं?

संजय राउत चाहें आक्रामक हों या हमलावर, जो राज्यपाल लोगों की आंख खुलते खुलते देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री और अजीत पवार को डिप्टी सीएम पद की शपथ दिला चुके हों, उनसे शिवसेना को इतनी अपेक्षा क्यों हो रही है?

ये तो ऐसा भी मामला नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट भी चले जाने से कुछ हासिल हो पाये - आधी रात तो छोड़िये दिन में भी सुनवाई हो तो कुछ नहीं होने वाला. संजय राउत के रिएक्शन से तो यही लग रहा है कि वो आस छोड़ चुके हैं कि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी किसी भी सूरत में उद्धव ठाकरे को अपने कोटे से मनोनीत नहीं करने वाले. उनके ट्वीट का तेवर, भाषा और अंदाज तो यही बता रहा है.

आगे क्या क्या संभव है?

उद्धव ठाकरे की सरकार तभी तक खैर मना सकती है जब तक कि महाविकास आघाड़ी में आपसी हिस्सेदारी बढ़ाने की होड़ न मच जाये. जब तक ऐसा नहीं होता सत्ता की ताक में बैठे बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस के हाथ कुछ नहीं लगने वाला है. अगर उद्धव ठाकरे को महाविकास आघाड़ी का विश्वास हासिल है तो बड़े आराम से बीजेपी को एक बार चकमा देकर गठबंधन सरकार बचा सकते हैं.

अगर उद्धव ठाकरे को राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी विधान परिषद के लिए मनोनीत नहीं करते हैं तो छह महीना बीतते ही उनकी कुर्सी अपनेआप चली जाएगी, लिहाजा इस्तीफा देना उनकी मजबूरी होगी. अब अगर मुख्यमंत्री का इस्तीफा होता है तो उसे पूरे मंत्रिमंडल का इस्तीफा माना जाएगा - लेकिन खेल भी खत्म हो जाएगा, ऐसा बिलकुल नहीं है.

अगर महाविकास आघाड़ी में कोई खटपट नहीं होती तो उद्धव ठाकरे इस्तीफा देने के बाद फिर से गठबंधन के नेता चुने जा सकते हैं - और नये सिरे से सरकार बनाने का दावा पेश कर शपथ लेकर अगले छह महीने के लिए फिर से मुख्यमंत्री बन सकते हैं.

मुश्किल तब जरूर हो सकती है जब किस्मत उद्धव ठाकरे का साथ न दे और ऐसा हुआ तो महाराष्ट्र की राजनीति ठीक उसी मोड़ पर पहुंचने वाली है जहां छह महीने पहले थी. एक बार फिर नये सिरे से सत्ता संघर्ष आसन्न है. ये संघर्ष महाविकास आघाड़ी के भीतर भी हो सकता है और बाहर बीजेपी के साथ भी. बीजेपी तो वैसे भी मौके की ताक में बैठी हुई है.

देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार को हर मौके पर घेर रहे हैं. हाल ही में ऐसी दो घटनाएं हुईं जिसमें उद्धव ठाकरे की काफी फजीहत हुई. एक महाबलेश्वर में वधावन भाइयों का लॉकडाउन का उल्लंघन और दूसरी घटना बांद्रा में मजदूरों का जमावड़ा. ये दोनों ही घटनाएं उद्धव ठाकरे को बचाव की मुद्रा में ला दीं - और विपक्षी बीजेपी भी हमलावर रही.

महज देवेंद्र फडणवीस क्या अमित शाह को भी तो ऐसे मौके का बेसब्री से इंतजार होगा जब कर्नाटक और मध्य प्रदेश की तरह राजनीतिक उठापटक हो और बीजेपी के हाथ में सत्ता की बागडोर पहुंच जाये. अगर ऐसा होता है तो मान कर चलना होगा कि अमित शाह को उद्धव ठाकरे के साथ हिसाब बराबर करने का मौका हाथ लग चुका है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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