New

होम -> सियासत

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 12 दिसम्बर, 2019 04:29 PM
आईचौक
आईचौक
  @iChowk
  • Total Shares

नागरिकता संशोधन बिल (Citizenship Ammendment Bill) पर राज्य सभा में शिवसेना का स्टैंड कांग्रेस नेतृत्व को अच्छा नहीं लगा है. कांग्रेस के एक सीनियर नेता ने सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) का संदेश उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) तक पहुंचा भी दिया है - लेकिन शिवसेना ने जो रिटर्न मैसेज दिया है वो भी काफी दमदार है.

शिवसेना ने कांग्रेस नेतृत्व को साफ कर दिया है कि गठबंधन तोड़ देने का मतलब हमेशा के लिए सेक्युलर हो जाना नहीं है - और गठबंधन सरकार की गरज सिर्फ शिवसेना की नहीं, कांग्रेस और एनसीपी दोनों की है.

नागरिकता बिल को शिवसेना का सपोर्ट

शिवसेना का चुनाव निशान तीर-धनुष है - और यही वजह लगती है कि उद्धव ठाकरे कोई भी तीर बर्बाद न होने दे रहे हैं. बल्कि, हर तीर का ज्यादा से ज्यादा निशाना साधने की कोशिश होती है.

मुहावरा तो एक तीर से दो निशाने साधने की बात कहता है, लेकिन नागरिकता बिल को लेकर उद्धव ठाकरे ने एक तीर से तीन निशाने कर डाले हैं. ये तो जरूरी नहीं कि हर बार ऐसा ही हो लेकिन महत्वपूर्ण ये है कि कोई मौका चूकना नहीं चाहिये.

पहला, नागरिकता संशोधन बिल के समर्थन को लेकर बीजेपी को नाराज नहीं किया है. दो, अपने वोटर को भी संदेश दिया है कि शिवसेना ने हिंदुत्व की लाइन नहीं छोड़ी है - और तीन, कांग्रेस नेतृत्व को कड़ा संदेश दिया है कि वो किसी मुगालते में न रहे.

शिवसेना ने नागरिकता संशोधन विधेयक को केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिलते ही अपना स्टैंड साफ कर दिया था. केंद्र में सरकार किसी भी पार्टी को हो, जिन मुद्दों पर वो जरूरी समझती है सपोर्ट में खड़ी रहेगी. ऐसा शिवसेना ने पहली बार नहीं किया है, NDA में रहते हुए भी UPA का सपोर्ट किया है. ठीक वैसे ही शिवसेना ने महाविकास अघाड़ी का हिस्सा होते हुए भी लोक सभा में नागरिकता संशोधन बिल के समर्थन में वोट किया. फिर राहुल गांधी ने एक ट्वीट कर कह दिया कि जो बिल के सपोर्ट में हैं वे देश के बुनियादी ढांचे के खिलाफ हैं. साथ ही, सोनिया गांधी की नाराजगी से भी उद्धव ठाकरे को अपडेट किया गया. उद्धव ठाकरे ने नया स्टैंड लिया कि बिल पर बगैर पूरी तस्वीर साफ हुए शिवसेना राज्य सभा में समर्थन नहीं करेगी.

sonia gandhi, uddhav thackeray, amit shahउद्धव ठाकरे ने एक तीर से तीन निशाने साध लिया है!

कांग्रेस के संदेशवाहक से किया गया वादा शिवसेना ने निभाया जरूर लेकिन बीच का रास्ता अख्तियार करते हुए. शिवसेना ने राज्य सभा में नागरिकता बिल पर वोटिंग का बहिष्कार किया. संदेश साफ था, शिवसेना ने कांग्रेस की बात तो मान ली, लेकिन बीजेपी को भी नाराज नहीं किया. फिक्र तो शिवसेना को अपने वोटर की ही होगी ही. आखिर तभी तो उद्धव ठाकरे को सफाई भी देनी पड़ी थी कि सेक्युलर सरकार का मुख्यमंत्री होने के बावजूद वो हिंदुत्व को लेकर अब भी उतने ही गंभीर हैं.

ऐसे में उद्धव ठाकरे के लिए जरूरी था कि हिंदुत्व के हितों की बात करने वाले नागरिकता संशोधन बिल का समर्थन करें. जब कांग्रेस ने पेंच फंसाया तो बीच का रास्ता निकाला - लेकिन कांग्रेस की नाराजगी कम होने या खत्म होने की जगह बढ़ ही गयी है.

कांग्रेस की शिवसेना से अपेक्षा रही कि वो नागरिकता बिल का विरोध कर रही पार्टियों की तरह ही राज्य सभा में मौजूद रह कर विरोध में वोट करती. बहिष्कार करके तो शिवसेना ने एक तरीके से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की मदद ही कर दी है. भला कांग्रेस को ये सब कैसे मंजूर हो.

खबर है कि कांग्रेस के एक सीनियर नेता ने उद्धव ठाकरे से बात की है - और आलाकमान का मैसेज दिया है कि नागरिकता बिल जैसे मुद्दों पर शिवसेना का ऐसा रवैया भविष्य में महाविकास अघाड़ी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है. लोक सभा में बिल के सपोर्ट को लेकर राहुल गांधी ने भी ट्वीट के जरिये शिवसेना नेतृत्व को यही समझाने की कोशिश की थी - लेकिन शिवसेना ने राज्य सभा में बिल पर बीच का रास्ता अपना कर ये भी साफ कर दिया है कि सब कुछ ठीक है लेकिन एक लक्ष्मण रेखा भी है.

कांग्रेस को शिवसेना का सख्त संदेश

शिवसेना को ये भी मालूम है कि अगर महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी सरकार जाती है तो सभी पैदल होंगे, सिर्फ शिवसेना नहीं - कांग्रेस भी और एनसीपी भी. कांग्रेस और एनसीपी तभी तक सत्ता में होने का अहसास कर पाएंगे जब तक शिवसेना उनके साथ है, जाहिर है ये कांग्रेस और एनसीपी को भी बखूबी मालूम होगा ही.

शिवसेना तो कभी भी पाला बदल कर बीजेपी के साथ चली जाएगी - ये ठीक है कि उद्धव ठाकरे तब मुख्यमंत्री नहीं रह पाएंगे, लेकिन सत्ता में हिस्सेदार तो रहेंगे ही. मगर, कांग्रेस और एनसीपी को कौन पूछेगा. अस्तित्व का संकट शिवसेना के सामने नहीं एनसीपी और कांग्रेस दोनों के सामने बराबर मात्रा में है.

कांग्रेस और एनसीपी की पूछ भी तो इसीलिए बढ़ी है क्योंकि शिवसेना को अपना मुख्यमंत्री चाहिये था - वरना, शिवसेना या बीजेपी में से कोई एक भी समझौते के लिए तैयार हो गया होता तो भला कांग्रेस और एनसीपी ऐसे सीना तान कर चल भी पाते क्या? चुनावों के दौरान बीजेपी-शिवसेना गठबंधन ने तो दोनों ही दलों को खाली ही कर दिया था. बीजेपी और शिवसेना दोनों ही ने स्थानीय मुद्दों की जगह राष्ट्रीय मसलों को तरजीह दी, बस यही चूक रही और उसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा है.

कुल मिला कर ये मान कर चलना होगा कि उद्धव ठाकरे ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी को सोफियाने ढंग से बहुत ही सख्त संदेश दे दिया है - और यही बात एनसीपी पर भी लागू होती है. कांग्रेस नेतृत्व को दिया गया मैसज शरद पवार के लिए भी है - भले ही तिपहिया सरकार हो लेकिन जरूरत सबकी है, नहीं तो सड़क पर आते देर भी नहीं लगेगी.

इन्हें भी पढ़ें :

नागरिकता बिल पर JDU-शिवसेना जो भी स्टैंड लें - फायदा BJP को ही होगा

उद्धव की सेक्युलर सरकार के लिए पहली मुसीबत नागरिकता बिल ही है

अजित पवार अभी तो महाराष्ट्र की राजनीतिक के सबसे बड़े लाभार्थी हैं

लेखक

आईचौक आईचौक @ichowk

इंडिया टुडे ग्रुप का ऑनलाइन ओपिनियन प्लेटफॉर्म.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय