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Updated: 25 मई, 2016 03:15 PM
पीयूष द्विवेदी
पीयूष द्विवेदी
  @piyush.dwiwedi
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कांग्रेस नीत संप्रग के दस सालों के सुस्त, भ्रष्टाचार और अहंकार से पूर्ण तथा सुदृढ़ नेतृत्व से हीन शासन के विरुद्ध आक्रोशित जनता ने लोकसभा चुनाव 2014 में अपना जनादेश सुनाते हुए उसे सत्ता से बेदखल कर एक नई आशा और उम्मीद के साथ नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही भाजपा को पूर्ण बहुमत दिया था. आज भाजपा नीत राजग सरकार को सत्ता संभाले दो वर्ष पूरे होने वाले हैं. ऐसे में, इस बात का मूल्यांकन करना अनुचित नहीं होगा कि इन दो वर्षों में सरकार की दशा और दिशा क्या रही है? यह भी देखना समीचीन होगा कि भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में जनता से जो वादे किए थे, इन दो सालों में उनमें से कितने वादे पूरे हुए या उनको पूरा करने की दिशा में कदम उठाए गए? गौर करें तो मोदी सरकार ने अपने घोषणापत्र में बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार खत्म करने, काला धन वापस लाने, बिजली आदि उपलब्ध करवाने जैसे जनता से जुड़े अनेक वादों को प्रमुखता से स्थान दिया था. इसके अलावा घोषणापत्र के अंत में राम मंदिर, धारा 370, समान नागरिक संहिता जैसे भाजपा के पारंपरिक एजेंडों का भी जिक्र है.

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दो सालों में एक अच्छी बुनियाद स्थापित हुई है

अब अगर गौर करें कि इन वादों पर सरकार कितना सफल रही है तो केन्द्रीय भ्रष्टाचार जो संप्रग सरकार के दौरान सबसे ज्यादा चर्चित विषय रहा था और केंद्र सरकार के मंत्रियों के एक के बाद एक भ्रष्टाचार के मामले सामने आए थे, के बिंदु पर मौजूदा भाजपा सरकार इन दो वर्षों में एकदम पाक साफ रही है. इन दो सालों में मोदी सरकार के किसी भी मंत्री या विभाग पर किसी भी तरह के भ्रष्टाचार का कोई मामला सामने नहीं आया है. हां, ललितगेट और विजय माल्या जैसे मामलों ने सरकार को परेशान जरूर किया है, पर सरकार की तरफ से संसद में इन सबका जिस तरह तर्क और तथ्य से पूर्ण उत्तर दिया गया, उससे ये मामले सरकार की छवि नहीं खराब कर सके और विपक्ष इनका अनावश्यक लाभ नहीं ले पाया. कुल मिलाकर भ्रष्टाचार के स्तर पर यह सरकार पूरी तरह से बेदाग रही है, यानि कह सकते हैं कि इस वादे पर मोदी सरकार जनता की उम्मीदों पर अबतक खरी उतरी है.

बेरोजगारी खत्म करने के बिंदु पर मोदी सरकार कामयाब रही या नाकामयाब, इसका पूर्णतः मूल्यांकन करने के लिए सिर्फ दो साल पर्याप्त समय नहीं हो सकता. लेकिन इन दो वर्षों में इस सम्बन्ध में इतना अवश्य स्पष्ट है कि सरकार न केवल खुद लोगों के लिए निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में अधिकाधिक नौकरियां पैदा करने का प्रयास कर रही है, बल्कि स्टार्ट अप और स्टैंड अप पहलों के जरिये देश के युवाओं को स्वयं नौकरिया पैदा करने की क्षमता से समृद्ध करने का प्रयास भी कर रही है. हालांकि ये सब दूरगामी कदम हैं, जिनका प्रभाव अगले कुछेक वर्षों में सामने आएगा और फिलहाल सरकार की इच्छाशक्ति देखते हुए तो यही आशा की जा सकती है कि उसके ये कदम कामयाब होंगे और देश के युवाओं को बेरोजगारी से मुक्ति मिलेगी.

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इसी क्रम में काला धन एक ऐसा मुद्दा है, जिसपर मोदी सरकार विपक्ष के निशाने पर रही है. चुनावी रैली के दौरान मोदी द्वारा काले धन के सम्बन्ध में दिए गए एक पंद्रह लाख के वक्तव्य को आधार बनाकर विपक्ष अक्सर सरकार को घेरता और काले धन के बिंदु पर विफल बताता रहा है. लेकिन अगर गौर करें तो विपक्ष की इस बात में न तो कोई ठोस आधार है और न ही विपक्ष के पास सरकार पर इस तरह के सवाल उठाने का नैतिक अधिकार ही है. क्योंकि सत्ता में रहते हुए यही विपक्षी दल कांग्रेस काले धन पर सर्वोच्च न्यायालय के बार-बार कहने के बावजूद एक एसआईटी तक गठित नहीं की थी, जबकि मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद पहली कैबिनेट बैठक में ही काले धन पर एसआईटी गठित करने का काम किया. इसके अलावा अन्य देशों जहां काला धन जमा होने की संभावना है, से बातचीत और समझौते आदि के जरिये सरकार काला धन धारकों के नाम बाहर लाने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है, जिसमे कि वो आंशिक रूप से सफल भी रही है. कुल मिलाकर इस बिंदु पर भी सरकार की मंशा स्पष्ट और प्रयास करने वाली दिखती है, जिसका देर-सवेर सकारात्मक परिणाम भी आएगा.

हां, महंगाई एकलौता वो मुख्य मुद्दा और वादा है, जिसको निभाने में ये सरकार काफी हद तक विफल नजर आती है. थोक महंगाई दर अपने सर्वाधिक न्यूनतम स्तर पर और खुदरा महंगाई दर में भी कमी के बावजूद बाजार में खाने-पीने आदि की चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं. दाल की महंगाई लोगों के लिए एक अलग ही सिर दर्द बन चुकी है.

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 महंगाई मे किया जनता को परेशान

हालांकि महंगाई रोकने के लिए भी सरकार कदम उठाने की बात कह रही है, लेकिन उन कदमों का फिलहाल तो कोई असर होता नहीं दिख रहा और जनता पर महंगाई की भारी मार पड़ रही है, जो कि सरकार के लिए ठीक नहीं कहा जा सकता. दूसरी चीज कि इस सरकार के आने के बाद अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में लगातार गिरावट आई है, मगर उसका बड़ा लाभ सरकार ने अपनी जेब में रखने का काम किया है और जनता तक सीधे-सीधे उसका काफी कम लाभ पहुंचा है. राजकोषीय घाटे को कम करने की दृष्टि से सरकार का यह कदम बहुत गलत नहीं है, लेकिन इसपर एक समुचित नीति रखकर बढ़ने की जरूरत है, जिससे जनता सुर सरकार दोनों को इसका संतुलित रूप से लाभ मिल सके.

इन सब बातों को देखते हुए कुल मिलाकर कह सकते हैं कि सरकार की दिशा और मंशा ठीक है, जिससे इन दो सालों में एक अच्छी बुनियाद स्थापित हुई है. लेकिन आने वाला समय सरकार के लिए इस दृष्टि से बेहद चुनौतीपूर्ण रहने वाला है कि उसे अपने वादों को पूरी तरह से अमली जामा पहनाना होगा. तभी उसके सभी प्रयासों का कोई अर्थ होगा. क्योंकि, यह बात सरकार भी अच्छे से जानती होगी कि जनता प्रयासों में नहीं परिणाम में विश्वास करती है और अभी वो सरकार के प्रयासों को देख रही है तो आगे सकारात्मक परिणाम भी चाहेगी. सरकार का मूल मन्त्र यह हो कि विपक्ष के अनावश्यक अवरोधों, फिजूल के मुद्दों और देश में आए दिन फैलने वाले बिना बात के वितंडों पर ध्यान न देते हुए अपने वादों को पूरा करने की दिशा में प्रयास करना है तो निश्चित ही भविष्य में उसे सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे.

लेखक

पीयूष द्विवेदी पीयूष द्विवेदी @piyush.dwiwedi

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं

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