New

होम -> सियासत

बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 28 जुलाई, 2016 07:18 PM
अभिमन्यु शर्मा
अभिमन्यु शर्मा
  @abhimanyu.d.sharma
  • Total Shares

अक्सर राहुल की चुप्पी सवालों के घेरे में आई, लेकिन इस बार राहुल का बयान भी. गांधी जी की हत्या पर दिए गए उनके विवादित बयान को कोर्ट में चुनौती दी गयी है. कोर्ट ने भी अपनी सुनवाई में ये कहते हुए राहुल एंड कंपनी को चौका दिया है. या तो माफ़ी मांगे या फिर कोर्ट में ट्रायल का सामना करें. एक बार फिर कांग्रेसी नेताओं को साधुवाद, जिन्होंने पार्टी उपाध्यक्ष राहुल और अध्यक्ष उनकी मां सोनिया जी को निराश नहीं किया. कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा- 'राहुल गांधी के माफ़ी मांगने का सवाल ही नहीं उठता. इस तरह का सुझाव पहले भी दिया गया था लेकिन इसे राहुल गांधी ने मंज़ूर नहीं किया था. राहुल गांधी परिपक्व राजनेता हैं. उन्हें इतिहास से जुड़े तथ्यों की जानकारी है. कांग्रेस और राहुल गांधी इन टिप्पणियों का उचित मंच पर बचाव करेंगे.'

ये भी पढ़ें- क्या कांग्रेस पर गांधी परिवार की पकड़ ढीली हो रही है?

राहुल के गैरजिम्मेदाराना बयान कोई नई बात नहीं है, वो बहुत कुछ पहले भी बोलते आए हैं. इस पुरे घटनाक्रम में जो सबसे ज्यादा दुखद बात है, वो ये कि उनके गलत और तर्कविहीन बातों को, बयानों को सही साबित करने के लिए कांग्रेसजन हाथ बांधे और मुंह सिए उनके पीछे खड़े हो जाते हैं. गांधी जी की हत्या और संघ वाले बयान के साथ भी कांग्रेस नेताओं ने वैसा ही किया. यकीनन भविष्य इसकी समीक्षा अपने ढंग से करेगा. दरअसल गांधी जी की हत्या और संघ की भूमिका पर सन् 1948 के बाद से ही कई नेताओं ने सवाल खड़े किये हैं और राहुल जैसे बयान पहले के कांग्रेसी भी देते आए हैं. वामपंथी बुद्धिजीवियों और नेताओं का एक वर्ग 1948 से ही आरएसएस को साधने के लिए इस मुद्दे को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करता आया है और सरदार पटेल का पत्र जो कि उन्होंने महात्मा गांधी के हत्या के बाद लिखा था हर बार एक औजार के रूप में आजमाता रहा है.  

गांधी हत्या, पंडित नेहरू और सरदार पटेल, संघ पर प्रतिबंध

30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की गोली मार कर हत्या कर दी. इस घटना ने भारत के वामपंथी बुद्धिजीवियों को इतिहास को और अधिक विकृत करने मौका उपलब्ध करा दिया, क्योंकि एक ये सत्ता के करीबी थे. और इन दोनों विचारधाराओं को सबसे ज्यादा खतरा आरएसएस के राष्ट्रीवाद से रहा और, इसलिए आरएसएस निशाने पर रही. उस वक्त आरएसएस के सरसंघचालक गोलवलकर उर्फ गुरूजी थे. गांधी हत्या के बाद गुरुजी पर धारा-302 के तहत हत्या के षडयंत्र में शामिल होने का मुकदमा दर्ज किया गया था और उन्हें 1 फरवरी 1948 को गिरफतार कर जेल में डाल दिया गया. इसके बाद 4 फरवरी 1948 को संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया और देश भर में हजारों संघ कार्यकर्ताओं को घर से उठा-उठा कर जेल में बंद किया गया. पर इससे भी पंडित नेहरू संतुष्ट नहीं हुए और उन्हों ने सरदार पटेल से अपना आक्रोश व्यक्त किया और कहा कि गृह मंत्रालय और पुलिस ठीक से काम नहीं कर रही है. 26 फरवरी 1948 को जवाहरलाल नेहरू ने जांच से अपना विरोध जताते हुए गृहमंत्री सरदार पटेल को एक पत्र लिखा, जिसमें कहा गया था कि- ‘दिल्ली की पुलिस व अधिकारियों की संघ के प्रति सहानुभूति है. इसी कारण संघ के लोग पकड़े नहीं जा रहे हैं. उसके कई प्रमुख नेता खुलेआम घूम रहे हैं. देशभर से जानकारियां मिल रही हैं कि गांधी जी की हत्या संघ के व्यापक षडयंत्र के कारण हुई है, परंतु उन सूचनाओं की ठीक प्रकार से जांच नहीं हो रही है. जबकि यह पक्की बात है कि षडयंत्र संघ ने ही रचा था.'

ये भी पढ़ें- ‘कश्मीर’ पर नेहरू की वो बात न मोदी दोहरा पाएंगे न राहुल!

patel650_072816040918.jpg
 

पंडित नेहरू के इस पत्र से सरदार पटेल बेहद विचलित हो गए और उन्होंने इसके अगले ही दिन 27 फरवरी 1948 को नेहरू को एक पत्र लिखा. उन्होंने लिखा कि- 'गांधी जी की हत्या के संबंध में चल रही कार्रवाई से मैं पूरी तरह से अवगत रहता हूं. सभी अभियुक्त पकड़े गए हैं तथा उन्होंने अपनी गतिविधियों के संबंध में लंबे बयान भी दिए हैं. उनके बयानों से स्पष्ट‍ है कि यह षडयंत्र दिल्ली में नहीं रचा गया. वहां का कोई भी व्यक्ति इस षडयंत्र में शामिल नहीं है. षडयंत्र के केंद्र बम्बई, पूना, अहमदनगर तथा ग्वालियर रहे हैं. यह बात भी असंदिग्ध रूप से उभर कर सामने आई है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इससे कतई संबद्ध नहीं है. यह षडयंत्र हिंदूसभा के एक कट्टरपंथी समूह ने रचा था. यह भी स्पष्ट हो गया है कि मात्र 10 लोगों द्वारा रचा गया यह षड्यंत्र था और उन्होंने इसे पूरा किया था. इनमें से दो को छोड़कर सभी पकड़े जा चुके हैं.'

गांधी हत्या, पटेल के दो पत्र

आरएसएस को कठघरे में खड़ा करने वाले हमेशा सरदार पटेल के उस ख़त का जिक्र जरूर करते है जो उन्होंने डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को लिखा था. जिस में उन्होंने लिखा- 'राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा हिंदू महासभा के बारे में मैं इतना ही कहूंगा कि गांधीजी की हत्या का मुकदमा विचाराधीन है, इसलिए मुझे उसमें इन दो संस्थाओं के हाथ के बारे में कुछ नहीं कहना चाहिए, परंतु हमारी रिपोर्टें जरूर इस बात की पुष्टि करती हैं कि इन दो संस्थाओं की- खास तौर पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की- प्रवृत्तियों के परिणामस्वरूप देश में ऐसा वातावरण पैदा हो गया था, जिसमें ऐसी भीषण करुण घटना संभव हो सकी'. लेकिन आरएसएस पर पटेल के खत के ज़रिए निशाना साधने वाले लोग पटेल के ही एक और खत का ज़िक्र कभी नहीं करते जो जो संघ से प्रतिबंध हटने के बाद सरदार पटेल ने 12 जुलाई 1949 को गोलवलकर को लिखा था. जिसमें पटेल लिखते हैं- ‘जो लोग इस वक्त मेरे पास हैं सिर्फ वो ही जान सकते है कि संघ से प्रतिबंध हटने से मैं कितना खुश हूं, मेरी शुभकामना आप के साथ हैं’.

ये भी पढ़ें- सरदार पटेल भी मानते थे आरएसएस को गांधीजी का हत्यारा!

सरदार पटेल ने संघ के कई कार्यों को सराहा भी था. दरअसल इस पूरे घटनाक्रम के पीछे वो लोग ज़िम्मेदार हैं जिन्होंने इतिहास को अपने हिसाब से इकतरफा लिखवाया और परोसा. इस बात का एक और सबूत तब मिला जब लाल किले में गांधी जी की हत्या का ट्रायल खत्म हो गया और सावरकर भी निर्दोष साबित हुए. पूना लौटने के बाद उनके वकील भोपत्कार ने अपने एक साथी से कहा- जिस वक़्त गांधी जी के हत्या का ट्रायल चल रहा था, अचानक एक शाम एक फ़ोन कॉल आया. दूसरी तरफ से डॉ आंबेडकर खुद बात कर रहे थे. उन्होंने मुझसे मिलने की इच्छा ज़ाहिर की. उस शाम दोनों की मुलाक़ात हुई, आंबेडकर ने मुझे अपनी गाड़ी में बैठने का इशारा किया. आंबेडकर अब मुख़ातिब होते हुए बोले आप के मुवक्किल के खिलाफ़ कोई सबूत नहीं है और न कोई चार्ज है. वो छूट जायेंगे. सरदार पटेल और बहुत से कैबिनेट के मंत्री भी इस फैसले के खिलाफ थे, मगर कोई भी उन्हें रोक नहीं पाया ऐसा करने से. भोपत्कार ने पूछा कौन... नेहरू... मगर क्यों?

लंबी जांच पड़ताल के बाद जब संघ के खिलाफ कुछ नहीं मिला तो 11 जुलाई 1949 को करीब 19 महीने बाद प्रतिबंध हटा लिया गया. लेकिन तब कांग्रेसियों और वामपंथियों ने यह प्रचारित करना शुरू कर दिया कि संघ ने लिखित में माफी मांगी है और लिखित रूप में सरकार को आश्वासन दिया है कि संघ हिंसा आदि में लिप्त नहीं होगा, उसके बाद ही संघ पर से यह प्रतिबंध उठाया गया है. यह झूठ आज तक प्रचारित किया जाता है. दरअसल जानकारी न होने के कारण संघ व भाजपा के नेता और कार्यकर्ता भी इस झूठ को बढ़ावा देने में उतना ही शामिल हैं, जितना कि कांग्रेसी और वामपंथी विचारधारा के पत्रकार व बुद्धिजीवी. 14 अक्टूबर 1949 को तत्कालीन बंबई विधानसभा की कार्यवाही में सरकार की ओर से ही इस सच्चाई से पर्दा उठा दिया गया. बंबई विधानसभा में लिखित प्रश्न पूछा गया कि संघ पर प्रतिबंध हटाने की वजह क्या है? क्या संघ के नेता ने सरकार को कोई लिखित आश्वासन दिया है? इस प्रश्न के जवाब में तत्कालीन गृह मंत्री मोरारजी देसाई ने कहा- ‘अनावश्यक प्रतीत होने के कारण ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर से बिना शर्त प्रतिबंध उठाया गया है. सरसंघचालक ने किसी प्रकार का अभिवचन या आश्‍वासन नहीं दिया है.’ (बंबई विधानसभा कार्यवाही, 14 अक्टूबर 1949, पी- 2126)

ये भी पढ़ें- गूगल से नहीं मिलते 'देशभक्त', दस्तावेज तो खंगालिए!!

कांग्रेस प्रवक्ता कहते हैं राहुल गांधी को इतिहास से जुड़े तथ्यों की जानकारी है, मगर लगता नहीं कि उन्होंने कांग्रेस और उसका इतिहास भी ठीक से पढ़ा होगा. संघ पर दो बार प्रतिबंध कांग्रेस के समय में लगा, एक नेहरू जी के वक़्त दूसरा इंदिरा गांधी ने लगाया. इंदिरा ने भी एक जांच आयोग बनाया. जस्टिस कपूर के नाम पर इस आयोग का नाम पड़ा कपूर आयोग. जस्टिस कपूर ने भी संघ को क्लीन चिट दी, फिर भी कांग्रेस को लगता है राहुल सुप्रीम कोर्ट में कुछ नया रख पाएंगे इस मामले में, गांधी जी की हत्या और संघ की भूमिका पर बहुत कुछ कहा जा चुका है सन 1949 से बस इस बार ये मसला मोहल्लों की बहस सभा से उठ कर कोर्ट तक पहुंच गया है.

कोई भी दल किसी भी परिस्थिति के लिए या किसी परिस्थिति के विरोध में खड़ा होता है, आगे बढ़ता है. कांग्रेस आज़ादी के मुहिम की लिए बनी थी. इसे लक्ष्य प्राप्त के साथ ही खत्म हो जाना चाहिए था, मगर ऐसा नहीं हुआ. नेहरू नहीं चाहते थे ऐसा हो. वहीं से धीरे धीरे नेहरू की आभा बढ़ी और बड़ी होती गयी. और कांग्रेस और गांधी जी के सिद्धांत छोटे. और धीर-धीरे कांग्रेस सिर्फ और सिर्फ नेहरू-गांधी परिवार की संपत्ति बन कर रह गई.

लेकिन जो अतीत में हुआ उसकी समीक्षा वर्तमान कर रहा है और भविष्य हर साजि़श और षड़यंत्र को बेनकाब करेगा.

लेखक

अभिमन्यु शर्मा अभिमन्यु शर्मा @abhimanyu.d.sharma

लेखक आजतक चैनल में प्रोड्यूसर हैं

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय