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Updated: 11 अप्रिल, 2020 11:55 AM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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तब्लीगी जमात (Tablighi Jamaat) को लेकर जिस तरीके से दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग (Delhi Minority Commission) एक्टिव हुआ है, उसमें लोगों की फिक्र कम और राजनीति ज्यादा लगती है. आयोग को लोगों की फिक्र तब समझी जा सकती थी जब वो दिल्ली सरकार से पहले तब्लीगी जमात के बीच पहुंचा होता. तब्लीगी जमात के लोगों को कोरोना वायरस के खतरे को समझाता और एहतियाती उपायों की अहमियत से उन्हें वक्त रहते वाकिफ कराता - लेकिन आयोग ने ऐसा कुछ भी नहीं किया.

दिल्ली की अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) सरकार को राज्य अल्पसंख्यक आयोग का पत्र लिख कर चिंता जताना तो ऐसा ही लगता है, जैसे आयोग के लोग सोये हुए हों और टीवी पर खबर देख कर सोचा हो कुछ तो रस्मअदायगी होनी चाहिये, वरना लोग क्या कहेंगे?

असल बात तो ये है कि अगर आयोग के लोग वक्त रहते सक्रिय हुए होते तो तब्लीगी जमात के लोगों को तो कोरोना वायरस के शिकार होने से बचाते ही - देश भर में संक्रमित लोगों की संख्या भी इतनी तेजी से नहीं बढ़ी होती.

तब्लीगी जमात की किसी को फिक्र है भी क्या

दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग (DMC) के प्रमुख जफरूल इस्लाम खान ने दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग के सचिव को एक पत्र लिख कर कोरोना बुलेटिन के तरीके पर आपत्ति जतायी है. जफरूल इस्लाम खान की सलाह है कि रोजाना के बुलेटिन में निजामुद्दीन मरकज का जिक्र न किया जाये - क्‍योंकि ऐसा करने से 'इस्लामोफोबिया के एजेंडे को बढ़ावा मिलता है.

बेशक जफरूल इस्लाम खान सही बोल रहे हैं. धर्म के आधार पर कहीं भी किसी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिये. जफरूल इस्लाम खान ने इसके लिए WHO के इमरजेंसी प्रोग्राम के अधिकारी का हवाला देते हुए कहा है कि कोरोना वायरस महामारी को धर्म के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिये.

जफरूल इस्लाम खान को मालूम होना चाहिये कि देश का संविधान ही ऐसी चीजों की इजाजत नहीं देता. सभी को बराबरी का हक मिला हुआ है और इसके लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन से नसीहत लेने की कोई जरूरत भी नहीं है. मालूम नहीं जफरूल इस्लाम खान ने स्वास्थ्य मंत्रालय की एडवायजरी पर गौर किया है कि नहीं - उसमें में ऐसे भेदभाव नहीं करने की सलाहियत है.

DMC प्रमुख जफरूल इस्लाम खान ने पत्र में लिखा है, 'विभिन्न इलाकों में मुसलमानों पर हमले किये जा रहे हैं, उनके सामाजिक बहिष्कार की अपील की जा रही है और उत्तर पश्चिम दिल्ली में एक लड़के की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई.'

डीएमसी प्रमुख की ये चिंता बिलकुल वाजिब है - लेकिन ये नौबत क्यों आई है क्या जफरूल इस्लाम खान ने कभी इस बात पर गौर से सोचा है?

Zafarul-Islam Khan, tablighi jamaatदिल्ली अल्पसंख्यक आयोग चाहे तो अब भी तब्लीगी जमात के लोगों की जिंदगी को खतरे से बाहर निकाला जा सकता है

क्या डीएमसी प्रमुख ने ये समझने की कोशिश की है कि दिल्ली सरकार को क्यों तब्लीगी जमात के संक्रमित लोगों की अलग से देनी पड़ रही है?

अब भी हालत ये है कि अकेले दिल्ली में कुल कोरोना संक्रमित लोगों में आधे से ज्यादा संख्या तब्लीगी जमात के लोगों की है जो निजामुद्दीन मरकज के आयोजन में शामिल हो चुके हैं. सिर्फ इतना ही नहीं, पूरे भारत में जितने भी कोरोना संक्रमित लोग हैं, उनमें तब्लीगी जमात के लोगों की संख्या करीब करीब एक तिहाई है.

क्या डीएमसी प्रमुक को ये मालूम है कि तब्लीगी जमात के लोगों ने किस तरह खुद ही अपनी जिंदगी को खतरे में डाल रखा है?

क्या डीएमसी प्रमुख को ये मालूम है कि निजामुद्दीन मरकज से निकलने के बाद तब्लीगी जमात के लोगों ने पूरे देश में जगह जगह कैसा व्यवहार किया है?

क्या डीएमसी प्रमुख को मालूम है कि तब्लीगी जमात के लोगों ने उनका इलाज करने वाले डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के साथ कैसा सलूक किया है?

क्या डीएमसी प्रमुख को मालूम है कि जहां कहीं भी तब्लीगी जमात के लोगों को क्वारंटीन में रहने को कहा गया है वे कहीं खिड़की से कूद कर भाग जा रहे हैं तो कहीं किसी और बहाने से?

क्या डीएमसी प्रमुख को मालूम है कि जो पुलिसकर्मी और एजेंसियां महामारी के समय इमरजेंसी सेवाओं में लगते वे सारे कामकाज छोड़ कर तब्लीगी जमात के लोगों की तलाश में दर दर भटक रहे हैं. महाराष्ट्र में 50-60 लोग क्वारंटीन से गायब हैं और उनके फोन भी बंद पाये गये हैं. उत्तर प्रदेश में आजमगढ़ के पुलिस अधीक्षक ने तब्लीगी जमात के लोगों की जानकारी देने पर 5 हजार रुपये का इनाम देने की घोषणा की है.

ये तो मालूम होगा ही कि देश भर में तब्लीगी जमात के लोगों के खिलाफ पुलिस थानों में केस भी दर्ज कराये गये हैं. कहीं डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों पर थूकने का इल्जाम है, तो कहीं नर्सों के सामने अश्लील हरकत करने का या सामने ही कपड़े बदलने का.

आखिर पुलिस को दूसरे जरूरी काम छोड़ कर तब्लीगी जमात के लोगों को क्वारंटीन में रखने, उनकी स्क्रीनिंग कराने या अस्पताल में भर्ती कराने के लिए दिन रात क्यों जूझना पड़ रहा है? अगर वास्तव में डीएमसी प्रमुख जफरूल इस्लाम खान को तब्लीगी समाज के लोगों की फिक्र होती तो सबसे पहले वो ऐसी कोशिशें करते कि कैसे उनकी जिंदगी बचायी जाये - और उनकी भी जिनकी जिंदगी को वे खतरे में डाल रहे हैं.

देखा जाये तो अब भी बहुत कुछ बिगड़ा नहीं है - अगर अल्पसंख्यक आयोग वाकई गंभीर है और उसकी अपील का कोई असर हो सकता है तो पत्र लिखने या बयानबाजी छोड़ कर तब्लीगी जमात के लोगों के बीच पहुंचे. अब तो ऐसी भी घटनाएं सामने आ रही हैं जिनसे लगता है कि तब्लीगी जमात के लोगों को मदद की ज्यादा जरूरत है.

अक्ल तो आयी लेकिन काफी देर से

उत्तर प्रदेश के कानपुर से जो खबर मिली है उससे तो यही पता चलता है कि तब्लीगी जमात के लोग अब तक तो बीमारी को हल्के में ले रहे थे, लेकिन उन्हें भी खतरे का एहसास होने लगा है. कानपुर के अस्पताल में तब्लीगी जमात से जुड़े तीन लोगों को आइसोलेशन वार्ड में रखा गया है.

ताजा खबर ये है कि ये लोग मेडिकल स्टाफ के सामने आते ही रोने लग रहे हैं. जैसे ही स्वास्थ्यकर्मी उनके पास पहुंचते हैं ये गिड़गिड़ाने लगते हैं - और कहते हैं वे उनकी जान जैसे भी हो बचा लें. मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है कि ये वही लोग हैं जो दवा देने पर भी नहीं लेते थे. डॉक्टरों और दूसरे स्वास्थ्यकर्मियों का इलाज में सहयोग करना तो दूर उनके साथ अक्सर दुर्व्यवहार कर रहे थे. तब्लीगी जमात के इन लोगों पर भी डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ पर थूकने का आरोप है.

मगर, रिपोर्ट बताती है, इन लोगों को अपनी भूल का एहसास हो चुका है. अब ये समझ चुके हैं कि कोरोना वायरस कितना खतरनाक है. अब ये डरने लगे हैं कि कोरोना वायरस जानलेवा भी हो सकता है - और इधर उधर भागने से अपनी ही जान को खतरा हो सकता है.

बेहतर तो यही होगा DMC प्रमुख तब्लीगी जमात के लोगों को कोरोना वायरस के खतरे के बारे में जागरुक करें. कोरोना वायरस से बचाव को लेकर क्वारंटीन और आइसोलेशन की अहमियत समझायें. तब्लीगी जमात के लोग अगर अब डर के मारे परेशान होने लगे हों तो उन्हें ढाढ़स बधायें - और यकीन दिलायें कि एहतियाती उपायों पर भरोसा रखें डॉक्टरों का सहयोग करें और विश्वास रखें जैसे धीरे धीरे देश में लोग कोरोना संक्रमण के बाद भी ठीक हो रहे हैं - वे भी स्वस्थ हो सकते हैं.

अगर लगता है कि दिल्ली अल्प संख्यक आयोग की अपील का कोई असर नहीं होने वाला तो ऐसे लोगों की मदद लेनी चाहिये जिनकी बातों का असर होता हो. दिल्ली आयोग के प्रमुख जफरूल इस्लाम खान चाहें तो तब्लीगी जमात के मौलाना साद को भी एक सार्वजनिक अपील की सलाह दे सकते हैं - कोरोना वायरस से जिंदगी को बचाने का यही वक्त है, चिट्ठी लिखने और राजनीति के लिए पूरी उम्र पड़ी है. अगर डीएमसी प्रमुख केजरीवाल सरकार को चिट्ठी लिखने से पहले ये सब कर लिये होते तो कोरोना वॉरियर्स के बीच हीरो बन चुके होते.

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#तब्लीगी जमात, #दिल्ली, #अल्पसंख्यक, Tablighi Jamaat, Delhi Minority Commission, Arvind Kejriwal

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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