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Updated: 28 अगस्त, 2015 05:57 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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आखिरी पल तक किसी को यकीन नहीं था. होता अमूमन वही है जिसका किसी को यकीन नहीं होता. लेकिन अनंत सिंह गिरफ्तार कर लिए गए - ये यकीन करना पड़ा - खुद अनंत को भी.

बाहुबली विधायक अनंत सिंह की गिरफ्तारी टीम वर्क थी. क्रेडिट अलग अलग तरीके से कइयों को मिली. सिर्फ उसे छोड़कर जिसने पूरा डॉजियर तैयार किया था.

फिर विकास वैभव ने क्या किया?

विकास वैभव ने एक नक्सल ऑपरेशन जैसा प्लान बनाकर सरकारी बंगले पर रेड डाली - और अनंत सिंह को गिरफ्तार कर लेते गए. जमाना देखता रहा. अनंत के समर्थक बवाल करते रहे. मजबूरी ऐसी कि वे भी देखते रहे जिनके बूते बरसों से अनंत सारा उत्पात करते चले आ रहे थे.

बतौर एसएसपी पटना विकास वैभव की एंट्री धमाकेदार रही. चार्ज लेने के बाद अनंत सिंह की गिरफ्तारी उनके पटना अराइवल की जोरदार दस्तक थी. हालांकि, अनंत की गिरफ्तारी में उनकी भूमिका रस्म अदायगी भर ही नजर आई. दरअसल, उनके पहले वाले एसएसपी जितेंद्र राणा ने पूरा डॉजियर तैयार कर दिया था - और जो बाकी बचा वो कसर जाते जाते पूरी कर दी.

और फिर? सामने आकर लालू प्रसाद ने गिरफ्तारी की पूरी क्रेडिट खुद ले ली.

तो क्या विकास वैभव ने बस इतना ही किया? नहीं. विकास ने जो किया उससे कम से कम पटना के पुलिसवालों को दो-महीने-चार-दिन तक ऐसा जरूर लगा कि वे वाकई पुलिस की नौकरी कर रहे हैं.

घटना 22 जुलाई की थी. पटना में तोड़ फोड़ को लेकर कुछ एनएसयूआई कार्यकर्ताओं पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही थी. लेकिन पैरवी के लिए जब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चौधरी ने फोन किया तो लेने के देने पड़ गए. विकास वैभव ने छह जुलाई को जांच में दखल देने को लेकर पैरवी करने वाले दो लोगों के खिलाफ केस दर्ज करा दिया.

उसके बाद तो पुलिस का खौफ इस कदर बढ़ गया कि एक पूर्व विधायक भी अपने बेटे के खिलाफ केस के मामले में फोन पर बात करने की जगह सीधे दफ्तर पहुंचना मुनासिब समझा.

नतीजा ये हुआ कि थानों पर भी पैरवी के आने बंद हो गए. और पुलिस वाले ड्यूटी करने लगे.

लालू का कितना दखल

- अनंत सिंह की गिरफ्तारी और अफसरों के तबादलों के पीछे भी क्या कोई राजनीति है?

- क्या गिरफ्तारी में वाकई लालू का कोई रोल था या बस क्रेडिट लेने के लिए वो आगे आ गए?

- या फिर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इंकार के बावजूद शासन और सत्ता में लालू के दखल का कोई संकेत है?

अनंत सिंह की गिरफ्तारी का क्रेडिट तो लालू ने इसीलिए लिया क्योंकि जिसकी हत्या हुई थी वो यादव जाति से था. उस मामले में पप्पू यादव ने भी क्रेडिट लेने की कोशिश की थी, लेकिन प्रशासन ने बाढ़ में उनकी रैली पर ही रोक लगा दी. भला पार्टी से निकालने के बाद लालू यादव, पप्पू को अपनी ही राजनीति में हिस्सेदारी कैसे लेने देते.

जब लालू यादव मीडिया के सामने आकर खुद कह रहे हैं कि अनंत सिंह की गिरफ्तारी उन्होंने कराई तो इसका क्या मतलब है?

क्या ये मतलब नहीं कि प्रशासनिक कार्यों में भी लालू का अब सीधा दखल होने लगा है?

वैसे देखा जाए तो विकास वैभव ने तो वही किया था जो लालू चाहते थे. अनंत की गिरफ्तारी. फिर विकास को ऐसी सजा क्यों मिली.

पटना के एसएसपी को पूर्णियां जैसे छोटे और दूरदराज के इलाके में एसपी बनाकर भेजा जाना भला पनिशमेंट पोस्टिंग नहीं तो और क्या है?

या, विकास वैभव के साथ साथ 10 दिन पहले पटना की डीएम बनी प्रतिमा एस वर्मा को मदरसा शिक्षकों पर लाठीचार्ज के चलते हटना पड़ा? या कोई और भी वजह थी?

वैसे ये वजह भी नाकाफी नहीं है, जिस माय फैक्टर के भरोसे लालू दहाड़ते रहते हैं उनके खिलाफ चुनाव से पहले एक तिनका खिसकाया जाना भी भारी पड़ सकता है. नीतीश ने भी तो घोषित तौर पर बीजेपी से इसीलिए नाता तोड़ लिया क्योंकि अचानक उन्हें वो सांप्रदायिक नजर आने लगी थी.

आज तक संवाददाता कुमार अभिषेक की रिपोर्ट कहती है, "नीतीश कुमार चुपचाप ये सहते रहे लेकिन विकास वैभव ने जब 30 अगस्त के स्वाभिमान रैली की तैयारियों में जब झुकने से मना किया तो नीतीश कुमार ने उन्हें हटाने का फैसला कर लिया. दरअसल, पिछले एक हफ्ते में रैली के लिए लग रहे अवैध पोस्टर बैनर पर एसएसपी ने न सिर्फ रोक लगा दी बल्कि कई नेताओं पर केस भी दर्ज कर डाला.

आलम ये है कि लालू और नीतीश की रैली में अब सिर्फ थोड़ा वक्त बचा है और पटना शहर में रैली के नामोनिशान नहीं दिख रहे, बताया जा रहा है कि लालू इससे खासे खफा थे और रैली के फ्लॉप होने तक की चेतावनी दे डाली थी."

तबादले के बाद विकास वैभव ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा है, "पिछले दो महीनों में कभी चैन की नींद नहीं सो सका. मुझे यकीन है पटना को कुछ फर्क जरूर महसूस हुआ होगा."

ऊपरी तौर पर वजह जो भी नजर आए. या बहाना जो भी दिखे. चुनाव पूर्व ऐसे तबादले सत्ता की बागडोर थामे नेताओं की सियासी रणनीति का हिस्सा होते हैं जिसके तहत पसंदीदा अफसरों को जगह जगह तैनात किया जाता रहा है. ये तैनाती तब तक कायम रहती है जब तक कि चुनाव आयोग चाबुक न चला दे.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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