बीजेपी ने क्यों मनाया कामराज का जन्मदिन?
एक नई बात भारतीय राजनीति में नजर आ रही है जिसे बीजेपी ने शुरू किया है. यह है भारत की राजनीति के कुछ लोकप्रिय चेहरों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश. बीजेपी ने एक मिशन के तहत इस कार्यक्रम को शुरू किया है.
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कहते हैं, राजनीति में कोई दोस्त या दुश्मन नहीं होता. विभिन्न पार्टियों के बीच रोज बदलते समीकरण कई बार इसको साबित भी कर चुके हैं. जो आज विरोधी है, वह कल आपके साथ होगा. जो साथ है वह शायद कल आपके खिलाफ होगा. यह बात नई नहीं है. लेकिन अब एक नई बात भारतीय राजनीति में नजर आ रही है जिसे बीजेपी ने शुरू किया है. यह है भारत की राजनीति के कुछ लोकप्रिय चेहरों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश. ऐसी कोशिश जिससे लगे कि अमुक व्यक्तित्व का फलां पार्टी से कोई पुराना रिश्ता रहा है. हालांकि इसे भी पूरी तरह से नया प्रचलन नहीं कह सकते, कुछ पार्टियां पूर्व में भी ऐसा करती रही हैं. इसके उदाहरण हैं. लेकिन ऐसा लगता है कि बीजेपी ने एक मिशन के तहत इस कार्यक्रम को शुरू किया है.
बीजेपी और के. कामराज!
दक्षिण के अधिकांश राज्यों में बीजेपी की पकड़ अच्छी नहीं है. शायह इसलिए तमिलनाडु में अपने पैर पसारने की कोशिश कर रही बीजेपी ने 15 जुलाई को कामराज को उनके 113 जन्मदिन पर याद किया. इस मौके पर विशेष कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया. अमित शाह के भी इसमें हिस्सा लेने की संभावना जताई जा रही थी लेकिन वे व्यस्तता के कारण नहीं आ सके. केंद्रीय मंत्री वैंकया नायडू इस कार्यक्रम में पहुंचे. यही नहीं, इंदिरा गांधी के आपातकाल लगाने के फैसले से कामराज की नाराजगी का उल्लेख कर नायडू ने इशारों में ही साफ कर दिया कि बीजेपी की नजर कामराज की विरासत पर है. नायडू ने यहां तक कह दिया इंदिरा के फैसले से ही कामराज इतने निराश हुए कि उसी साल 1975 में अक्टूबर में उनका निधन हो गया.
क्यों बीजेपी को आई कामराज की याद
अपने जीवन में कामराज कांग्रेस के सबसे कद्दावर और प्रतिष्ठित नेताओं में शामिल रहे. उन्हें 'किंगमेकर' के तौर पर जाना जाता था. ऐसा कहा जाता है कि जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री और फिर इंदिरा गांधी को सत्ता के शीर्ष पर पहुंचाने में उनकी भूमिका अहम रही. कामराज तमिलनाडु के मुख्यमंत्री भी रहे और अपनी सादगी के लिए खासे लोकप्रिय भी. अब जबकि कांग्रेस अपने ज्यादातर महान नेताओं भूल कुछ चेहरों के सहारे अपनी गाड़ी आगे बढ़ाने की कोशिश में है. बीजेपी ने मौका देखकर यह बड़ा दांव खेला है.
बीजेपी का आरोप है कि कांग्रेस ने दिल्ली से बाहर कामराज को सम्मान देने की कोई कोशिश नहीं की. इस लिहाज से कांग्रेस को कामराज को अपनी संपत्ति के तौर पर नहीं देखना चाहिए. लेकिन सवाल यह भी है कि आखिर बीजेपी को रातों-रात क्या हुआ? क्या इसे राज्य में अगले साल होने वाले विधान सभा चुनावों से जोड़ कर देखा जा सकता है? क्या यह एक और चुनाव की तैयारी है?
पहले भी होती रही है विरासत को हथियाने की कोशिश
कई उदाहरण हैं. बी आर अंबेडकर से लेकर जयप्रकाश नारायण और सरदार पटेल से महात्मा गांधी तक का राजनैतिक इस्तेमाल किया जाता रहा है. सरदार पटेल की मूर्ति बनाने की कवायद को इसी के उदाहरण के तौर पर देखा जा सकता है.तकरीबन, हर पार्टी ऐसा करती रही है. लेकिन बीजेपी इस रणनीति को लेकर हाल के दिनों में ज्यादा आक्रामक नजर आई है. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कामराज की याद बीजेपी की इसी रणनीति की अगली कड़ी है.

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