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Updated: 23 जुलाई, 2015 09:09 PM
कौशिक डेका
कौशिक डेका
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सुषमा स्वराज कोयला घोटाले के एक अभियुक्त को डि‍प्लोमेट वीजा देने के लिए उन पर दबाव डाल रहे कांग्रेस नेता के नाम का खुलासा पता नहीं कब करेंगी, लेकिन सुबह उनके एक ट्वीट से यह बात उजागर हो गई कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भारत की सबसे पुरानी पार्टी की जिम्मेदारी लेने के लिए अभी तक तैयार नहीं हैं. इस साल के शुरू में 56 दिन के अज्ञातवास के बाद उनकी पदयात्रा से यह उम्मीद जगी थी कि अब वह सामने आकर पार्टी का नेतृत्व करने के लिए तैयार थे. किसानों के अधिकारों से लेकर नेट न्यूट्रलिटी तक अलग-अलग मुद्दों पर मोदी सरकार के खिलाफ उनके मजाकिया और भावुक भाषण ने मीडिया को दिखा दिया था कि यह एक नई पैकिंग और पैकेज वाले राहुल गांधी की एंट्री है.

फिर भी इस मिथक को तोड़ने के लिए विदेश मंत्री का सिर्फ एक ट्वीट ही काफी था. कांग्रेसी नेता बिल्कुल नहीं जानते कि वे स्वराज के ट्वीट पर कैसे प्रतिक्रिया दें और वे दिशा निर्देशों के लिए पार्टी उपाध्यक्ष की तरफ देख रहे हैं. लेकिन अपने अनुभव से उन्हें पता होना चाहिए कि जब पार्टी में संकट हो तो राहुल गांधी वैसे मुस्कुराते हैं जैसा उन्होंने लोकसभा चुनाव में अपमानजनक हार के बाद किया था या फिर वे चुप्पी अख्तियार कर लेते हैं.

पार्टी की एकल बिंदु रणनीति है कि ब्रिटेन में आईपीएल के दागी ललित मोदी को यात्रा दस्तावेज उपलब्ध कराने और उनकी मदद करने वाली सुषमा स्वराज के मामले में मोदी सरकार को घेरा जाए. राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का ललित मोदी के साथ गठजोड़ और व्यापम घोटाले में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की भूमिका के चलते स्वराज का जवाबी हमला नाकामयाब रहा. लेकिन पार्टी के उपाध्यक्ष और अघोषित प्रमुख ने अपने घात लगाकर हमला करने वाले सैनिकों का मनोबल बढ़ाने का काम भी नहीं किया.

पिछले सप्ताह वे जयपुर में गरजे थे कि वह मोदी के 56 इंच के सीने को 5.6 इंच का कर देंगे, लेकिन उनके शब्दों के मुताबिक कार्रवाई होना अभी तक बाकी है. यहां तक कि राहुल गांधी की अनिच्छा उस वक्त साफ हो गई थी जब 13 जुलाई को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के इफ्तार कार्यक्रम में एक पत्रकार से उन्होंने कहा था कि भ्रष्टाचार के आरोपों पर संसद में बात करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मजबूर करना उनका काम नहीं है.

राहुल ने हैरान पत्रकारों से कहा "मैं उन्हें बोलने के लिए कहने वाला कौन होता हूं? यह उनका विशेषाधिकार है." अब उन्हें कौन याद दिलाएगा कि वह देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के अघोषित प्रमुख हैं?

इसलिए जब स्वराज ने ट्विटर से हमला किया तो, लगभग 70 वर्षीय सोनिया गांधी को एक बार फिर से अपनी पार्टी का बचाव करने के लिए आगे आना पड़ा. कांग्रेस अध्यक्ष ने सुषमा की धमकी का जवाब देते हुए कहा कि वे संसद में उनकी पार्टी के एक नेता का पर्दाफाश करेंगी, उन्होंने कहा कि वे जो चाहें करने के लिए स्वतंत्र हैं. जुझारू सोनिया ने मानसून सत्र के दूसरे दिन सदन में उनके सांसदों का नेतृत्व करते हुए कहा "उन्हें वो कहने दीजिए जो वो कहना चाहते हैं, हम भी वही बोलेंगे जो हम चाहते हैं."

इसी साल फरवरी की बात है जब सोनिया ने भूमि अधिग्रहण विधेयक के विरोध में राष्ट्रपति भवन तक पूरे विपक्ष का नेतृत्व किया था. उस मार्च और तीन राज्यों में उनके तूफानी दौरों ने किसानों और पार्टी को न सिर्फ एक नई ताजगी दी बल्कि नए और रिलोडेड राहुल गांधी को पुनः लॉन्च करने के लिए मंच भी प्रदान किया था.

सिर्फ वही जानती थीं कि बुलबुला इतनी जल्दी फट जाएगा.

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लेखक

कौशिक डेका कौशिक डेका @deka.kaushik

लेखक इंडिया टुडे में सीनियर एसोसिएट एडिटर हैं.

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