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Updated: 13 जनवरी, 2019 12:21 PM
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हरियाणा की मनोहरलाल खट्टर सरकार के कार्यकाल में सिर्फ नौ महीने बचे हैं. आम चुनाव के छह महीने के भीतर हरियाणा में भी विधानसभा के लिए चुनाव होने हैं. हो सकता है कि जिस तरह जम्मू-कश्मीर की चर्चा है, हरियाणा में भी साथ ही चुनाव करा लिये जायें. हरियाणा के जींद उपचुनाव के इतने महत्वपूर्ण हो जाने की ये एक बड़ी वजह है.

रणदीप सिंह सुरजेवाला को जींद उपचुनाव में उतार कर कांग्रेस ने इरादे साफ कर दिये हैं कि हर हाल में वो जीत सुनिश्चित करना चाहती है. ऊपरी तौर पर भले लगता हो कि जींद की लड़ाई सिर्फ बीजेपी और कांग्रेस के बीच है, असल बात तो ये है कि ये लड़ाई अब सुरजेवाला और चौटाला परिवार के बीच होती जा रही है - और कुल मिलाकर ये मुकाबला त्रिकोणीय होता लग रहा है.

यूं ही नहीं उम्मीदवार बने सुरजेवाला

जींद उपचुनाव जीतना हरियाणा में सत्ताधारी बीजेपी के लिए जितना महत्वपूर्ण है, उससे कहीं ज्यादा कांग्रेस ने इसे खुद अपने लिए बना लिया है. हरियाणा के स्थानीय निकाय चुनावों में मिली जीत को बीजेपी ये कह कर प्रचारित कर रही है कि उसके खिलाफ सत्ता विरोधी फैक्टर लागू नहीं होता. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस बात को खास अहमियत देते हुए जिक्र कर चुके हैं.

2014 की मोदी लहर में भी जींद सीट इंडियन नेशनल लोकदल के हाथ लग गयी थी. INLD विधायक हरिचंद मिड‌्ढा का अगस्त, 2017 में निधन हो गया और इसी कारण ये उपचुनाव हो रहा है. कुछ ही दिन पहले हरिचंद मिड्ढा के बेटे कृष्ण मिड्ढा ने बीजेपी ज्वाइन किया था - और अब वही अधिकृति उम्मीदवार भी हैं. आईएनएलडी ने इस बार उमेद सिंह रेढू को उम्मीदवार बनाया है.

जींद उपचुनाव के लिए वोटिंग 28 जनवरी को होने जा रही है - और वोटों की गिनती के साथ नतीजे 31 जनवरी को आ जाएंगे.

सुरजेवाला के सामने पिता की सीट के दावेदार लेकिन बीजेपी उम्मीदवार के रूप में कृष्ण मिड्ढा तो हैं ही, असली चुनौती तो दिग्विजय चौटाला देने वाले हैं. 2005 में रणदीप सुरजेवाला ने ओमप्रकाश चौटाला को मुख्यमंत्री रहते हराया था, अब चौटाला के पौत्र दिग्विजय चौटाला बड़ी चुनौती के रूप में खड़े हैं. दिग्विजय चौटाला उम्मीदवार तो जननायक जनता पार्टी के हैं लेकिन औपचारिकताएं पूरी न होने के कारण वो निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में होंगे. दो महीने पहले ही आईएनएलडी में विभाजन के बाद जननायक जनता पार्टी का गठन किया गया है.

दिग्विजय और सुरजेवाला को लेकर इलाके में एक चर्चा खूब हो रही है. दिग्विजय चौटाला कैथल में एक कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे थे और वहीं उन्होंने कहा वो कि रणदीप सुरजेवाला को चैलेंज करेंगे. ये पिछले साल अगस्त की बात है. कैथल तो नहीं लेकिन जींद में वो सुरजेवाला को चैलेंज तो कर रही रहे हैं - और वो भी इतनी जल्दी.

randeep surjewala nominationरणदीप सुरजेवाला के जरिये कांग्रेसी चली है लंबी चाल

कहते हैं आखिरी वक्त तक सुरजेवाला को भी नहीं मालूम था कि वो खुद चुनाव लड़ने वाले हैं. दरअसल, सुरजेवाला खुद भी एक विधायक के बेटे को टिकट देने के पक्ष में थे. जींद उपचुनाव में हर हाल में जीत सुनिश्चित करने के लिए कांग्रेस नेतृत्व को किसी मजबूत उम्मीदवार की दरकार थी. बताते हैं कि भूपिंदर सिंह हुड्डा के सामने भी चुनाव लड़ने की पेशकश की गयी थी, लेकिन न तो वो दिलचस्पी दिखाये और न ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर कोई ऐसा नाम बता पाये - आखिरकार खुद राहुल गांधी की पहल पर रणदीप सुरजेवाला को मैदान में उतारा गया.

बहुत पुरानी है परिवारों की ये लड़ाई

हरियाणा की राजनीति में जाट बिरादरी में सबसे गहरी पैठ तो ओमप्रकाश चौटाला परिवार की ही है. जहां तक हरियाणा कांग्रेस की बात है तो पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा का जाटों में खासा दबदबा है. हुड्डा अकेले नहीं हैं बल्कि कांग्रेस में दो और बड़े जाट नेता हैं - रणदीप सुरजेवाला और किरण चौधरी. तीनों में खुद को श्रेष्ठ साबित करने की लड़ाई बारहों महीने चलती रहती है कि कौन सबसे बड़ा जाट नेता है. वैसे जब रणदीप सुरजेवाला नामांकन दाखिल करने पहुंचे तो उनके साथ हुड्डा और किरण चौधरी के साथ साथ पीसीसी अध्यक्ष अशोक तंवर, कैप्टन अजय यादव और कुलदीप बिश्नोई सहित कांग्रेस के कई दिग्गज नजर आये.

राज्य की राजनीति में जाट एक अहम फैक्टर है और जींद की लड़ाई तो चौटाला और सुरजेवाला परिवारों की पुरानी जंग का ही अगला पड़ाव लग रही है. दोनों परिवारों के बीच वर्चस्व की लड़ाई करीब ढाई दशक पुरानी है. ये जंग शुरू होती है नरवाना विधानसभा से जहां इन्हीं दोनों में परिवारों में से कोई न कोई चुनाव जीतता रहा. 1991 तक सुरजेवाला के पिता शमशेर सिंह सुरजेवाला नरवाना से तीन बार विधायक चुने गये, सिर्फ 1987 में उन्हें हार का मुहं देखना पड़ा.

surjewala, rahul gandhiजींद पर निशाना, नजर पूरे हरियाणा पर

जब 1993 में शमशेर सिंह सुरजेवाला लोक सभा चले गये तो पिता की सीट से उपचुनाव में रणदीप सिंह सुरजेवाला मैदान में उतरे, लेकिन ओम प्रकाश चौटाला ने शिकस्त दे दी. तब सुरजेवाला की उम्र महज 26 साल थी. रणदीप सुरजेवाला ने ज्यादा देर नहीं लगायी और 1996 में हुए अगले ही चुनाव में चौटाला से न सिर्फ हार का बदला ले लिया, बल्कि उन्हें तीसरे नंबर पर धकेल दिया. चौटाला भी कहां मानने वाले थे, 2000 के चुनाव में सुरजेवाला को फिर से शिकस्त दे डाली.

2009 में नरवाना को सुरक्षित सीट घोषित किये जाने के बाद रणदीप सुरजेवाला अपने पिता की पुरानी सीट कैथल की ओर रूख कर लिये. 2005 में रणदीप सुरजेवाला के पिता शमशेर सुरजेवाला ने कैथल सीट का प्रतिनिधित्व किया था. 2009 के बाद 2014 की मोदी लहर में भी रणदीप सुरजेवाला ने अपनी सीट कायम रखी - और अभी कैथल से भी वो मौजूदा विधायक हैं. फिलहाल सुरजेवाला कांग्रेस के मीडिया प्रभारी हैं और हरियाणा में हुड्डा कैबिनेट में सबसे कम उम्र के मंत्री रह चुके हैं.

जींद उपचुनाव में पूरा हरियाणा देख रही है कांग्रेस

देखा जाये तो जींद उपचुनाव के जरिये कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पूरे सूबे में नेताओं और कार्यकर्ताओं की ताकत आजमाना चाहते हैं. आखिर राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी तो उपचुनावों में कांग्रेस को मिली जीत ही भरोसा का आधार बनी थी.

गुटबाजी की समस्या तो दूसरे राज्यों में भी है, लेकिन हरियाणा की मुश्किल कम होने का नाम ही नहीं ले रही. हाल के स्थानीय निकाय चुनावों में भी हार की सबसे बड़ी वजह यही थी. चुनाव मैदान में सारे बड़े नेताओं के समर्थक उतरे हुए थे, लेकिन एक-दूसरे की मदद किसी ने इसलिए नहीं की क्योंकि जीत का क्रेडिट दूसरे को मिल जाएगा.

सुरजेवाला कैथल से विधायक होने के चलते हरियाणा के मामलों में सक्रिय रहते तो हैं लेकिन दिल्ली में उनकी व्यस्तता कहीं ज्यादा होती है. सुरजेवाला को अलग रख कर देखा जाये तो हरियाणा कांग्रेस दो गुटों में साफ साफ बंटी है. दिल्ली में होने वाली रैलियों में भी हुड्डा और अशोक तंवर के समर्थकों को एक दूसरे के खिलाफ फुफकारते अक्सर देखा गया है.

सुरजेवाला के रूप में कांग्रेस के पास एक ऐसा चेहरा है जो सिर्फ जाट बिरादरी तक ही सीमित नहीं है. अगर कोई स्थिति ऐसी बनती है कि बीजेपी आम चुनाव या विधानसभा चुनाव में जाट बनाम बाकी जातियों की लड़ाई बनाने की कोशिश करे तो सुरजेवाला को कम ही मुश्किल होगी. सुना जा रहा है कि अलग-थलग पड़ते देख हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर भी सुरजेवाला के साथ हो लिये हैं.

कांग्रेस नेतृत्व इस बात को भी टेस्ट करना चाहता है कि सुरजेवाला के चुनाव में दूसरे नेताओं का क्या रवैया रहता है. जींद चुनाव में कांग्रेस नेतृत्व गुटबाजी का भी आकलन कर लेना चाहता है ताकि गड़बड़ियों का पता चलने पर आम चुनाव से पहले दूर करने की कोशिश की जा सके.

और सबसे बड़ी बात. राहुल गांधी को हरियाणा के लिए एक ऐसे चेहरे की शिद्दत से तलाश है जो आगे चल कर मुख्यमंत्री का चेहरा बन सके. जो जाट के साथ साथ गैर जाट वोट बैंक को भी अच्छी तरह साध सके. अपनी साफ सुथरी छवि के चलते रणदीप सुरजेवाला ऐसी हर अपेक्षित भूमिका में फिट बैठते हैं. फिर तो मान कर चलना चाहिये कि रणदीप सुरजेवाला ने जींद में नामांकन के साथ ही हरियाणा में कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारी की राह भी आसान बना ली है.

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