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Updated: 19 अक्टूबर, 2016 01:24 PM
राकेश उपाध्याय
राकेश उपाध्याय
  @rakesh.upadhyay.1840
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पुराने वक्त के बजरंगी बीजेपी सांसद विनय कटियार 2014 में केंद्र परिवर्तन के बाद ज्यादातर वक्त या तो खामोश रहे हैं या फिर यदा-कदा इक्का-दुक्का बयान देकर इतना ही जाहिर करते रहे हैं कि राजनीति के रण में अभी वो बाकी हैं. राजनीतिक समीक्षकों ने उनकी चुप्पी का मतलब हमेशा यही लगाया है कि शायद उन्हें उम्मीद है कि केंद्र सरकार में आज नहीं तो कल कोई जगह बन ही जाएगी.

किंतु अयोध्या में जैसे ही केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री डॉ. महेश शर्मा ने चुनावी वक्त में रामायण संग्रहालय के लिए जमीन निश्चित करना शुरु किया और लखनऊ में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एलान कर दिया कि अयोध्या में यादव सरकार रामायण पार्क विकसित करेगी तो विनय कटियार के भीतर से तीखे तेवरों वाला बजरंग-बाण जाग उठा. झट बोल पड़े कि रामायण संग्रहालय और पार्क के लॉलीपॉप से बात नहीं बनेगी, जनता को इस बात की प्रतीक्षा है कि अयोध्या के विवादित भूखंड पर कब राम मंदिर का निर्माण प्रारंभ होता है.

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राम जन्म भूमि मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने लंबित है

विनय कटियार अपनी ही सरकार को राम मंदिर के मुद्दे पर सवाल दर सवाल घेर रहे हैं लेकिन विश्व हिंदू परिषद के खेमे में खामोशी पसरी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर वीएचपी में डॉ. प्रवीण तोगड़िया को छोड़कर हर नेता को भरोसा है कि वह आज नहीं तो कल वचन पूरा करेंगे, उन्हें काम करने का अवसर मिलना चाहिए और अयोध्या के मामले में भी वीएचपी से जुड़े सभी नेताओं को पूरी गंभीरता से पेश आना चाहिए. वीएचपी महासचिव चंपत राय के अनुसार, ‘हमने हर सरकार और हर प्रधानमंत्री को समय दिया है. और इस बार भी हम समय दे रहे हैं. इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला हमारे साथ खड़ा है, इसलिए हमें विश्वास है कि केंद्र सरकार न्यायालय के निर्णय के अनुसार अयोध्या में मंदिर निर्माण के मार्ग की शेष बाधाएं दूर करने में कदम आगे बढ़ाएगी.’

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लेकिन सवाल है कि आखिर कब सरकार मंदिर निर्माण की बाधाएं दूर करेगी जबकि मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने लंबित है. प्रश्न ये भी है कि क्या सरकार सर्वोच्च न्यायालय से दिन-प्रतिदिन के आधार पर सुनवाई का आग्रह कर मामले के निर्णय को शीघ्र आर-पार करने का आग्रह भी कर सकती है? ये सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि बीजेपी के वरिष्ठ नेता और सांसद डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने ये मांग संसद के मॉनसून सत्र के दौरान राज्यसभा में उठाई थी. डॉ. स्वामी इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय के सामने भी याचिका प्रस्तुत कर चुके हैं. याचिका की बाबत डॉ. स्वामी का कहना है कि ‘अगर कोर्ट दिन-प्रतिदिन सुनवाई करे तो रामजन्मभूमि केस का निपटारा कुछ ही महीनों में हो जाएगा. मेरी याचिका में सर्वोच्च न्यायालय के सामने ये मांग भी रखी गई है कि सुप्रीम कोर्ट 1994 में अदालत में केंद्र सरकार की ओर से प्रस्तुत शपथपत्र का तुरंत संज्ञान ले. इस शपथपत्र में तत्कालीन नरसिंम्हाराव सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से विवादित स्थल के बारे में राय मांगी थी जिस पर अदालत ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को जांच कर रिपोर्ट देने को कहा था. अदालत के सामने तब सरकार ने कहा था कि अगर विवादित जगह पर मंदिर के प्रमाण मिलते हैं तो केंद्र सरकार जमीन हिंदुओं के हवाले कर देगी.’

डॉ. स्वामी का इस नई परिस्थिति में कहना है कि ‘ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में साफ है कि विवादित स्थान पर ही राम का जन्म हुआ था. इलाहाबाद हाईकोर्ट की मॉनिटरिंग में ये रिपोर्ट तैयार की गई थी, लिहाजा अब कोई विवाद शेष नहीं बचता है और सर्वोच्च अदालत को चाहिए कि वह केंद्र को फौरन उस हलफनामे की याद दिलाए और निर्देशित करे कि विवादित जगह हिंदुओं के हवाले कर दी जाए.’

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 ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार विवादित स्थान पर ही राम का जन्म हुआ था

अयोध्या में राममंदिर के सवाल पर जो लड़ाई दिल्ली और कोर्ट में डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी लड़ रहे हैं, उसी को लेकर लखनऊ में विनय कटियार दहाड़ रहे हैं. जाहिर तौर पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या बीजेपी और भगवा परिवार से जुड़े संगठनों में भितरखाने कुछ चल रहा है या फिर ये नेता अपनी मर्जी के हिसाब से ही अयोध्या की लड़ाई लड़ने निकले हैं. सूत्रों का कहना है कि विनय कटियार की चिंता मंदिर से ज्यादा लखनऊ के घमासान को लेकर है. यूपी में चुनावी बिगुल बज चुका है और बीजेपी के मुख्यमंत्री उम्मीदवारों की सूची में विनय कटियार का नाम किसी कोने-कतरे से कोई उठाने को भी तैयार नहीं दिख रहा है. जाहिर तौर पर सरकार और संगठन में उपेक्षा की पीड़ा उनके जुबां से झलक रही है. किंतु क्या डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी को भी किसी बात की पीड़ा है? बीजेपी के एक बड़े नेता के मुताबिक, 'सुब्रमण्यम स्वामी वन मैन आर्मी की तरह काम करते हैं, भावनाओं या राजनीतिक बातों से ज्यादा तर्कसम्मत कानूनी पहलुओं से वो मामले में दखल देते हैं और ज्यादातर होता यही है कि उनकी कोशिश संगठन और सरकार को फायदा दे जाती है. भ्रष्टाचार से जुड़े कई मामलों में उनके केस ने बीजेपी को ताकत दी तो मौजूदा सरकार को उनकी ओर से अनेक मसलों में जो इनपुट मिले हैं, उनमें ज्यादातर बातें सही दिखाई देती हैं, सरकार ने भी उस पर कदम उठाए हैं.'

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तो केंद्र सरकार और बीजेपी संगठन दोनों को इंतजार है कि डॉ. स्वामी ने जो याचिका और मांग सर्वोच्च अदालत के सामने प्रस्तुत की है, उसका परिणाम क्या निकलता है. इसी सवाल के जवाब से तय होगा कि मंदिर निर्माण की तारीख 2019 से पहले अयोध्या में कब तय होगी और क्या अगला लोकसभा चुनाव भी मंदिर की बुनियाद के साथ लड़ा जाएगा?

फिलहाल यूपी चुनाव की बिसात पर अयोध्या का मामला डॉ. महेश शर्मा की वजह से सुर्खियों में है तो वजह दशहरा में पीएम मोदी का वो जय जय श्रीराम का नारा भी है जिसने अचानक इन कयासों को यूपी की सियासत में जन्म दे दिया कि प्रधानमंत्री अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए भी कोई ना कोई ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ जैसा फॉर्मूला खोजने में जुटे हैं. तो क्या केंद्र की ओर से  रामायण संग्रहालय का एलान और डॉ. स्वामी के जरिए अदालत में 1994 के हलफनामे पर कोहराम मचाना इसी रणनीति का हिस्सा है जिसमें परखा जा रहा है कि सरयू के पानी में अभी कितना भावनात्मक उबाल बाकी है और क्या सचमुच सुप्रीम कोर्ट में केंद्र की ओर से दिया गया 1994 का हलफनामा मंदिर निर्माण की सर्जिकल स्ट्राइक के लिए लॉन्चिंग पैड का काम कर सकता है?

लेखक

राकेश उपाध्याय राकेश उपाध्याय @rakesh.upadhyay.1840

लेखक भारत अध्ययन केंद्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं

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