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Updated: 04 जुलाई, 2018 06:33 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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दिल्ली सरकार बनाम उप राज्यपाल की जंग में सुप्रीम कोर्ट ने बहुत सारी बातें साफ कर दी हैं. फिर भी कुछ चीजें ऐसी हैं जो असलियत में अमल कैसे होंगी कहना कठिन हो रहा है. अगर सुप्रीम कोर्ट की हिदायतों पर अमल हो रहा है फिर इससे अच्छी बात क्या हो सकती है. फर्ज कीजिए जिस मंशा से सुप्रीम कोर्ट ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उप राज्यपाल अनिल बैजल के लिए हिदायतें जारी की हैं, उन पर अमल नहीं होता. फिर क्या होगा? क्या सुप्रीम कोर्ट खुद किसी एजेंसी द्वारा ऐसी चीजों की निगरानी करेगा या फिर जब कभी भी ये झगड़ा बढ़ने पर मामला देश की सबसे बड़ी अदालत तक पहुंचेगा तब कोई एक्शन लिया जाएगा?

आखिर चेक प्वाइंट क्या है?

सुप्रीम कोर्ट का फैसला अपने आप में कानून होता है. किसी मामले में सुप्रीम कोर्ट की रूलींग तब तक जस की तस लागू होती है जब तक कि संसद में उसके खिलाफ अध्यादेश न लाया जाये या फिर कानून विशेष में संशोधन पर राष्ट्रपति के दस्तखत न हो जायें.

anil baijal, arvind kejriwal'अराजकता' पर लगाम...

मगर, कानून तो कानून होता है. कानून बेइमान नहीं होता, लेकिन बेइमानों के पास ऐसे तमाम हथकंडे होते हैं जो किसी भी कानून की खामियों का फायदा उठाने से नहीं चूकते.

कानून-व्यवस्था लागू कराना स्टेट, प्रशासन और पुलिस का काम है. जांच पड़ताल के मामलों में तो सुप्रीम कोर्ट खुद निगरानी करता है या फिर सक्षम एजेंसियों को एक नियमित अंतराल पर प्रोग्रेस रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहता है. दिल्ली के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो व्यवस्था दी है उस पर वास्तव में अमल न होने पर क्या इंतजाम हो पाएगा?

सुप्रीम कोर्ट ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 'अराजक' न होने और मिल जुल कर काम करने को कहा है. तकरीबन यही बात सुप्रीम कोर्ट ने एलजी अनिल बैजल के लिए भी कहा है. आखिर वो कौन सा चेक प्वाइंट होगा जो हंस की भूमिका निभाते हुए दूध का दूध और पानी का पानी करेगा?

अराजकता का दायरा कहां तक?

आम आदमी पार्टी नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल डंके की चोट पर कहा करते हैं - 'हां, मैं अराजक हूं - और ऐसे ही रहूंगा.' सवाल ये है कि अराजकता को कैसे परिभाषित किया जाएगा. अगर अराजकता की कोई तय परिभाषा भी है तो अरविंद केजरीवाल वाली स्टाइल में उसका दायरा क्या है?

आखिर वो कौन से पहलू होंगे जिनसे पता चलेगा कि अरविंद केजरीवाल अराजकता कर रहे हैं या नहीं? केजरीवाल अराजकता वास्तव में कर रहे हैं या नहीं ये कौन बताएगा?

anil baijal, arvind kejriwalविशेष परिस्थिति तो विवेकाधिकार के तहत होगी, फिर...

क्या किसी मुख्यमंत्री को अराजकता के दायरे में रखा जा सकता है. एक राजनीतिक दल का नेता और चुनी हुई सरकार का नेतृत्व करने वाला खुद कहे कि वो अराजक है और आम अवाम के हक की लड़ाई के लिए ऐसे ही अराजक बना रहेगा तो उसके खिलाफ ऐसा क्या उपाय होगा कि कोर्ट के आदेशों पर सही तरीके से अमल हो पाये.

मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे बैठे अरविंद केजरीवाल दिल्ली में दो बार धरना दे चुके हैं. एक बार तो दिल्ली की सड़कों पर रात भर जमे रहे और वहीं से सरकारी कामकाज भी निपटाते रहे. दूसरी बार नौ दिन तक अपने कैबिनेट साथियों के साथ दिल्ली के उपराज्यपाल के दफ्तर में धरना देकर जमे रहे.

धरना के दौरान जो कामकाज प्रभावित हुआ वो तो हुआ ही, उसके बाद 10 दिन के लिए छुट्टी पर चले गये. छुट्टी पर जाना उनका हक है, लेकिन जिस तरीके से दिल्ली के लोग परेशान रहे, उसमें वो अपनी बात कहां तक जायज ठहरा पाएंगे?

गारंटी क्या है अब उप राज्यपाल रोड़े नहीं अटकाएंगे

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली का प्रशासक बताया तो उप राज्यपाल को ही है, लेकिन ये भी कह दिया है कि वो कैबिनेट की सलाह से काम करेंगे. कोर्ट ने बात बात पर दिल्ली सरकार के कामकाज के लिए किसी तरह के अप्रूवल देने से उप राज्यपाल को मुक्त कर दिया है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया है कि अपवाद जैसी परिस्थितियों में जब मुख्यमंत्री के साथ गंभीर वैचारिक विरोध की स्थिति हो तो उसे राष्ट्रपति को रेफर किया जा सकता है.

क्या ऐसी विशेष परिस्थिति या अपवाद जैसी स्थिति की संख्या की कोई सीमा भी होगी? ऐसा तो है नहीं कि यूपीएससी के इम्तिहान की तरह तीन-चार अटेम्प्ट निश्चित कर दिये गये हों. फिर क्या होगा जब उप राज्यपाल जब भी ख्याल आया कि किसी मामले को लटकाना है वो उसे राष्ट्रपति को रेफर नहीं करेंगे?

कोई मामला राष्ट्रपति को रेफर करने के लायक है या नहीं ये तो उप राज्यपाल के विवेक पर भी निर्भर होगा. कहने को तो अब तक वो जो भी कर रहे थे, उन्हें संविधान से मिले अधिकारों के तहत ही कर रहे थे. अब सुप्रीम कोर्ट की हिदायत के अनुसार काम करेंगे.

मुश्किल तो तब होगी जब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के दायरे में काम करते हुए उप राज्यपाल दिल्ली सरकार के कामों में अड़ंगा लगा देंगे. बड़ा सवाल यही है कि क्या मुख्यमंत्री और उप राज्यपाल में 'जंग' खत्म हो जाएगी? अभी लगता तो नहीं है.

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मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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