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Updated: 13 अगस्त, 2017 03:37 PM
केवल कृष्ण तिवारी
केवल कृष्ण तिवारी
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चीन ने उत्तर कोरिया और अमरीका के बीच टकराव टालने के लिए समझौते का एक फार्मुला दिया है. वह यह कि अमरीका उत्तर कोरिया के इलाकों में सैन्य अभ्यास रोक दे और उत्तर कोरिया अपने परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम स्थगित कर दे. ये वही चीन है जो डोकलाम मुद्दे पर किसी भी बातचीत को तैयार नहीं है और भारत को लगातार युद्ध की धमकी दे रहा है.

तो यह चीन एक मोर्चे पर शांति का हिमायती, और दूसरे मोर्चे पर युद्ध का भूखा नजर आ रहा है. लेकिन असल में दो अलग-अलग दिखने वाली उसकी ये नीतियां, मूल-रूप से एक ही हैं. चीन का कहना है कि यदि उत्तर कोरिया ने पहले हमला किया तो वह तटस्थ भूमिका में रहेगा, और यदि अमरीका ने पहले हमला किया तो वह उत्तर कोरिया के सक्रिय सहयोगी के रूप में मैदान पर उतरेगा.

xi jinping, chinaचीन एक मोर्चे पर शांति और दूसरे मोर्चे पर युद्ध चाहता है

अमरीका और उत्तर कोरिया के बीच युद्ध होगा, यह तय है. उत्तर कोरिया कह चुका है कि वह अमरीका के गुआम द्वीप पर हमला करेगा. अमरीका ने अपने इस द्वीप के लोगों को अलर्ट कर दिया है और कह दिया है कि यदि आसमान में आग का कोई गोला नजर आए तो उसकी ओर देखे नहीं, बल्कि जमीन पर लेट जाएं.

जाहिर है अमरीका इस बात को लेकर आशंकित है कि उत्तर कोरिया जैसा कह रहा है, वैसा ही वह करेगा. उसके इस हमले को रोकने के लिए अमरीका के सामने एक विकल्प है कि उत्तर कोरिया पर पहले ही बड़ा हमला कर दे. लेकिन चीन अपनी शर्तों की धमकी देकर अमरीका को इस पहले हमले से रोकना चाहता है.

इसे दूसरी तरह से देखें तो चीन, उत्तर कोरिया के कंधे पर बंदूक रखकर अमरीका पर इस तरह चलाना चाहता है कि उसे जो जख्म मिले उससे वह उबर ही न पाए. जापान बेचैन है और वह कह चुका है कि यदि उत्तर कोरिया से गुआम की ओर से मिसाइलें दागी गईं तो वह उन्हें रोकेगा. उसका यह भी कहना है कि यह केवल रक्षात्मक कार्रवाई होगी. लेकिन उत्तर कोरिया इसे जापान की केवल रक्षात्मक कार्रवाई ही मानेगा, ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता. ऐसे में चीन के दुश्मन, जापान का भी इस युद्ध में घसीटा जाना स्वाभाविक है.

चीन जानता है कि उसने जो फार्मूला दिया है, उसे अमरीका स्वीकार नहीं करेगा. अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप कह चुके हैं कि अमरीका हमेशा विश्व का सबसे शक्तिशाली देश रहेगा. ऐसे में यदि वे चीन के फार्मुले पर अमल करते हैं, तो यह एक तरह से चीन के आगे झुकना भी होगा. दूसरी तरह से उत्तर कोरिया के साथ चीन के सहयोग से घबरा जाना भी.

china army

कुल मिलाकर चीन ने जो फंदा फेंका है उसमें न केवल जापान, बल्कि उत्तर कोरिया का परंपरागत दुश्मन दक्षिण कोरिया भी फंस चुका है. उधर रूस भी अपनी रक्षात्मक मिसाइल प्रणाली के साथ अलर्ट पर है और वह अमरीका को चेताने के अंदाज में उम्मीद जता रहा है कि वह ऐसी कोई कार्रवाई नहीं करेगा, जो उत्तर कोरिया को भड़का दे. लेकिन अमरीका को उत्तर कोरिया के सनकी तानाशाह की धमकियों पर भरोसा न करते हुए क्यों चुप बैठे रहना चाहिए इस बारे में वह चुप है.

इन्हीं सबके बीच डोकलाम में भारत और चीन के सैन्य अधिकारियों के बीच बातचीत बेनतीजा रही. भारत द्वारा अपनी सरहद पर सैनिकों की संख्या बढ़ाई जा रही है. इधर भी टकराव टलता हुआ नजर नहीं आ रहा है. टकराव की सूरत में भारत भी सहयोग के लिए अमरीका और रूस जैसे मित्र देशों की ओर ही देखेगा. चीन के खिलाफ संभावित युद्ध में अमरीका का साथ मिलना इसलिए तय है क्योंकि जिस तरह चीन उत्तर कोरिया के जरिये अमरीका को क्षति पहुंचाना चाहता है, वैसे ही अमरीका भी भारत के जरिये चीन को नुकसान पहुंचाना जरूर चाहेगा. अमरीका के साथ उसके मित्र देशों के सहयोग की भी उम्मीद की जा सकती है. लेकिन देखना यह होगा कि अब तक के सबसे प्रगाढ़ मित्र रूस की भूमिका चीन के खिलाफ क्या होती है. क्योंकि वह एक अन्य मोर्चे पर अमरीका के खिलाफ खड़ा है, जिस मोर्चे पर चीन और उत्तर कोरिया भी उसी अमरीका खिलाफ खड़े हैं.

इन भयंकर हालात में उम्मीद की जानी चाहिए कि कहीं भी युद्ध नहीं होगा, विश्व-बिरादरी इन जटिलताओं को सुलझा लेगी. यदि युद्ध हुआ तो यह न तो भारत के, न तो चीन के, न अमरीका के, न ही उत्तर कोरिया के, न रूस के, न पाकिस्तान के, न दक्षिण कोरिया के, न वियतनाम के, न ताइवान के और न ही पूरी दुनिया के हित में होगा. परमाणु हमले न भी हुए तो भी वैश्विक अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमरा जाएगी, जिसका परिणाम पीढ़ियों तक भोगना होगा.

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लेखक

केवल कृष्ण तिवारी केवल कृष्ण तिवारी @kewal.krishna1

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं

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