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Updated: 17 मई, 2016 09:41 PM
बालकृष्ण
बालकृष्ण
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देश भर के मेडिकल कालेजों में एडमिशन के लिए इस साल NEET (National Eligibility cum Entrance Test) का क्या होगा इसको लेकर फिलहाल सरकार ने अपने फैसले का ऐलान नहीं किया है. लेकिन ये बात अब लगभग तय मानी जा रही है कि केन्द्र सरकार इस साल NEET को टालने की कोशिश करेगी. सुप्रीम कोर्ट ने 28 अप्रैल के अपने फैसले में कहा है कि पूरे देशभर के मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए सिर्फ NEET की परीक्षा हो और इसको इसी साल से लागू किया जाए.

सोमवार को इस मामले पर हुई सर्वदलिय बैठक में ज्यादातर पार्टियों ने सरकार पर इस बात का दबाव बनाया कि वो इस साल NEET से किसी तरह छुटकारा दिलाए. इसी मामले पर स्वास्थय मंत्री जे पी नड्डा ने तमाम राज्यों के स्वास्थ मंत्रियों के साथ जब बैठक की तो ज्यादातर राज्यों ने NEET को लेकर दिक्कतें गिनायीं. सिर्फ दिल्ली सरकार ने NEET की जोरदार तरफदारी की और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को तत्काल लागू करने की मांग की. NEET लागू हो जाने के बाद स्टूडेंट्स को तमाम मेडिकल क़ालेज में एडमिशने के लिए अलग अलग परीक्षा नहीं देनी होगी. एक ही परीक्षा में रैंक के आधार पर उन्हें पता चल जाएगा कि उन्हें किस मेडिकल कालेज में एडमिशन मिल सकता है. लेकिन आखिर क्या वजह है कि तमाम राज्य सरकारें और पार्टियां इस कदर NEET का विरोध कर रहीं है? क्या सचमुच NEET लागू होने से क्षेत्रिय भाषाओं वाले स्टूडेंट्स के साथ भेदभाव होगा और वे पीछे छूट जाएंगें? या फिर नेता NEET अपने फायदे के लिए स्टूडेंट्स के कंधे पर बंदूक रखकर चला रहे हैं?

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 नीट से मेडिकल प्रवेश में बंद हो जाएगी कैपिटेशन की दुकान

जानकारों का मानना है कि NEET से स्टूडेंट्स को होने वाली दिककतों को बढ़ा चढ़ा कर बताया जा रहा है. दरअसल सारा खेल ये है कि प्राइवेट मेडिकल कालेज के मालिक और जिन नेताओं का पैसा इन कालेजों में लगा है वे लोग मेडिकल सीटों पर कैपिटेशन फीस और मैनेजमेंट कोटे से होने वाली कमाई को छोडने के लिए तैयार नहीं हैं. ये बात किसी से छिपी नहीं है कि तमाम मेडिकल कालेज या तो सीधे प्रभावशाली नेता और उनके परिवार से जुड़े हैं या फिर नेताओं का पैसा वहां लगा हुआ है. खासतौर पर महाराष्ट्र, कनार्टक, आंध्रप्रदेश, तेलांगाना और तमिलनाडु में प्राइवेट मेडिकल कालेजों में मोटी तगडी कैपिटेशन फीस के बदले एडमिशन आम बात है.

देश भर में 381 मेडिकल कालेज हैं जिसमें हर साल करीब 50,000 डाक्टर डिग्री लेकर बाहर निकलते हैं. संख्या के हिसाब से भारत दुनिया में सबसे ज्यादा डाक्टर पैदा करने वाला देश है. करीब आधे मेडिकल कॉलेज प्राइवेट हैं. लेकिन इन प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों का स्तर क्या है इसका अंजादा आप इस बात से लगा सकते हैं कि पिछले ही साल मेडिकल कांउसिल ने 45 मेडिकल कालेजों में 3830 सीटों की मान्यता रद्द कर दी. ये सिलसिला हर साल चलता है. घटिया स्तर के बावजूद, प्राइवेट मेडिकल कालेज हर सीट पर एडमिशन के लिए 25 लाख से लेकर 75 लाख रूपए तक वसूलते हैं. मेडिकल कांउसिल ऑफ इंडिया के पूर्व एडिशनल सेकेट्ररी डाक्टर प्रेम कुमार बताते हैं कि तमाम प्राइवेट मेडिकल कालेज में एडमिशन के लिए पैसा ही सबसे बडी योग्यता है. आम तौर पर ये प्राइवेट मेडिकल कालेज अपनी एक एसोशिएशन बनाकर प्रवेश परीक्षा तो कराते हैं लेकिन सिर्फ दिखावे के लिए. जिन स्टूडेंट्स से कैपिटेशन फीस ली जा चुकी होती है, रिजल्ट में उन्ही का नाम घोषित कर दिया जाता है. कैपिटेशन फीस का कहर हमारे देश में ऐसा है कि भारत के करीब 9000 बच्चे चीन में जाकर मेडिकल की पढाई करने को मजबूर हैं. जानकारों का मानना है कि NEET लागू होने के बाद प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों के इस धंधे पर नकेल कस जाएगी.

डा आर एल सलहन मेडिकल कांउसिल आफ इंडिया के बोर्ड ऑफ गवर्नर में रह चुके हैं और उन लोगों में शामिल हैं जिन्होंने सबसे पहले 2010 में NEET की रूप रेखा तैयार की थी. उनका कहना है कि क्षेत्रिय भाषाओं के स्टूडेंटस् को लेकर अब जो हाय तौबा मचायी जा रही है वो हैरान करनी वाली है. क्योंकि राज्य सरकारों के मेडिकल कॉलेजों में 15 फीसदी सीट कई सालों से CBSE परीक्षा के जरिए ही भरी जाती है. 15 फीसदी का कोटा सालों से लागू है लेकिन अब तब किसी राज्य सरकार ने इसका विरोध नहीं किया. इसी तरह, इस तर्क में भी कोई दम नहीं है कि क्षेत्रीय भाषाओं के बच्चे पीछे छूट जाएंगें क्योंकि मेडिकल की पढाई कहीं भी क्षेत्रिय भाषा में नहीं बल्कि सिर्फ अंग्रेजी में होती है. लिहाजा NEET से असली दिक्कत स्टूडेंट्स को नहीं, उन रसूखदार लोगों को है जिन्होंने मेडिकल की पढाई को मोटी कमाई का धंधा बना रखा है.

लेखक

बालकृष्ण बालकृष्ण @bala200

लेखक आज तक में पत्रकार हैं.

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