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Updated: 03 मई, 2019 10:44 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
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हिंदू आतंकवाद का मुद्दा एक बार फिर से गर्मा गया है जिसपर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीति स्पष्ट है. यदि पीएम मोदी की बीते कुछ दिनों की सभाओं का अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि अपने अलग अलग मंचों से प्रधानमंत्री ने हिंदू आतंकवाद को कांग्रेस द्वारा रची एक ऐसी साजिश बताया है जिसका उद्देश्य बरसों पुरानी सनातन परंपरा को बदनाम करना है.  सीपीआई (एम) के स्तंभों में शुमार सीताराम येचुरी  सांस्कृतिक मोर्चा, सीटू, जनवादी महिला समिति की ओर से आयोजित परिचर्चा में शामिल होने के लिए भोपाल में थे और कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के साथ मंच साझा कर रहे थे.

मजेदार बात ये है कि भोपाल ही वो जगह है जहां पर कांग्रेस को मुंह तोड़ जवाब देने के लिए भाजपा ने मालेगांव बम धमाकों में मुख्य आरोपी साध्वी प्रज्ञा को टिकट दिया है. साध्वी का मुकाबला कांग्रेस के दिग्विजय सिंह से है जिन्होंने हिंदू आतंकवाद के मुद्दे पर खूब राजनीति की है और आलोचना के पात्र हुए हैं.

सीताराम येचुरी, लोकसभा चुनाव 2019, हिंदुत्व, भाजपायेचुरी ने हिंदू धर्म के बारे में जो बातें कहीं हैं उससे आलोचना का दौर शुरू हो गया है

कार्यक्रम में येचुरी ने हिन्दुओं और हिन्दू धर्म को लेकर ऐसी बहुत सी अनर्गल बातें कह दी हैं जिनसे विवाद गहरा गया है. येचुरी ने कहा है कि रामायण और महाभारत भी लड़ाई और हिंसा से भरी हुई थीं, लेकिन एक प्रचारक के तौर आप सिर्फ महाकाव्य के तौर पर उसे बताते हैं, उसके बाद भी दावा करते हैं कि हिंदू हिंसक नहीं है. इसके अलावा येचुरी ने ये भी कहा है कि "किसी एक धर्म को हिंसा से जोड़ने का क्या तर्क है और हम हिंदुओं को नहीं."

कार्यक्रम के दौरान 2019 के इस चुनाव को विचारधारा की लड़ाई बताने वाले येचुरी ने हिन्दू आतंकवाद समेत कई मुद्दों पर बात की. साथ ही उन्होंने भोपाल से भाजपा प्रत्याशी और मालेगांव बम ब्लास्ट मामले की आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर पर भी तेखा हमला किया. येचुरी ने कहा कि भाजपा ने प्रज्ञा को लाकर चुनाव में असल मुद्दों की दिशा बदलने की कोशिश की है.

जाहिर सी बात है जब बयान इतना बड़ा होगा तो प्रतिक्रियाएं भी आएंगी. येचुरी के बयान पर कुमार विश्वास ने कड़ा ऐतराज जताया है और उन्हें 'कुपढ़'  कहा है. मामले का गंभीरता से संज्ञान लेते हुए कुमार विश्वास ने माइक्रो-ब्लॉगिंग वेबसाइट ट्विटर पर लिखा है कि, "अपनी वैचारिकी की तरह, हे प्रचुर-कुपढ़ येचुरी जी, 23 मई के बाद अपने पराजय-कुल के अन्य रुदाली-साथियों के साथ जब रो-पीट कर निबट लें, तो मेरे पास पधारें, रामकथा सुनने...! पुण्य नहीं, तो कम से कम दृष्टि का पूर्वाग्रह-शापित मोतियाबिंद तो दूर होगा...! कभी यही शंका किसी और धर्म के ग्रंथ पर की...?"

ध्यान रहे कि ये कोई पहली बार नहीं है जब येचुरी ने इस तरह का बयान दिया है. इससे पहले भी ऐसे तमाम मौके आए हैं जब येचुरी ऐसा बहुत कुछ कह चुके हैं जिसके लिए उनके आलोचकों ने न सिर्फ उन्हें कड़ी फटकार लगाई बल्कि ये तक कहा कि येचुरी अपनी बातों से देश के आम हिन्दुओं को बरगलाने का काम कर रहे हैं.

मगर बड़ा सवाल ये है कि एक ऐसे वक़्त में जब देश ने वाम की विचारधारा को खारिज कर दिया है और वामदल अपनी बची कुची इज्जत बचाने के लिए जी जान एक कर रहे हों. आखिर येचुरी को ऐसी बातें कहने की जरूरत क्या थी? जवाब शीशे की तरह साफ है. येचुरी अपनी बातों से मुसलमानों को आकर्षित करने का काम कर रहे थे.

गौरतलब है कि पूर्व की अपेक्षा इस बार राजनीति दल मुस्लिम मतों के लिए ज्यादा गंभीर हैं. नेतागण लगातार इसीप्रयास में हैं कि कैसे वो मुसलामानों का ध्यान आकर्षित कर उनके मत अपने पाले में डाल लें. इस चुनाव में मुस्लिम मत किसी भी राजनीतिक दल के लिए कितने जरूरी है इसे हम बीते दिनों की एक घटना से भी समझ सकते हैं.

उत्तरप्रदेश के देवबंद मेंआयोजित एक रैली में बसपा सुप्रीमो मायावती ने देवबंद की एक रैली में मुस्लिम मतदाताओं से अपील की थी कि वह एकजुट होकर महागठबंधन के लिए मतदान करें. मायावती के इस बयान पर चुनाव आयोग भी सख्त हुआ था और उसने इसे आचार संहिता का उल्लंघन मानते हुए मायावती के चुनाव प्रचार पर 48 घंटे की रोक लगा दी थी.

बहरहाल, अब सवाल फिर खड़ा होता है कि क्या येचुरी को इसका फायदा मिलेगा तो जवाब है नहीं. चाहे बंगाल हो या फिर त्रिपुरा और केरल. जिस तरह लोगों ने वाम दलों की राजनीति और उनकी विचारधारा को खारिज किया है साफ पता चलता है कि अब मुसलमानों को भी लग गया है कि देश में वाम की दाल ज्यादा दिनों तक नहीं गलने वाली.

बात की शुरुआत येचुरी के महाभारत और रामायण के युद्ध को हिंसा बताने से हुई थी तो उन्हें हम बताना चाहेंगे कि महाभारत के मामले में कौरव और पांडव एक दूसरे के रिश्तेदार थे और एक दूसरे को भली प्रकार जानते थे इनके बीच जो युद्ध हुआ वो सत्ता संघर्ष का युद्ध था. इसी तरह रामायण में भी राम आर रावण दोनों को ही इस बात का अंदाजा था कि वो एक दूसरे के दुश्मन हैं. अब जब बात आतंकवाद के रूप में हिंसा की होती है तो वहां उद्देश्य केवल और केवल डर फैलाना रहता है.

इस जानकारी के बाद हमारे लिए ये कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि यदि सीताराम येचुरी को आतंकवाद को मुद्दा बनाकर हिंसा पर बात करनी ही थी तो उन्हें एक ऐसा उदाहरण देना चाहिए था जो न केवल निष्पक्ष होता बल्कि तुष्टिकरण भी नहीं होता.

खैर अब जबकि येचुरी ने पड़ी लकड़ी उठाई है और एक बेवजह का विवाद मोल लिया है तो हमारे लिए भी देखना दिलचस्प रहेगा कि जनता उनके इस बयान को कैसे लेती है और उनका ये बयान उनकी पार्टी की परफॉरमेंस और भोपाल में दिग्विजय सिंह के परिणाम को किस तरह प्रभावित करता है.कुल मिलाकर कहा यही जा सकता है कि हिंदू आतंकवाद के नाम पर येचुरी और दिग्विजय सिंह का एक साथ आना है मन की बातें करना 17 वें लोकसभा चुनाव को और भी दिलचस्प बनाएगा.

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लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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