मोदी और बीजेपी पर हमलावर क्यों नहीं हुए गुरु 'सिद्धू'
कांग्रेस में शामिल होने के बाद सिद्धूवाणी अभी भी बीजेपी के लिए नरम है, ना ही स्द्धू के पास ये जवाब है कि वो आखिर राहुल में क्या खूबियां देख रहे हैं और ना ही इस बात का की मोदी में क्या कमियां थीं. आखिर चक्कर क्या है बीजेपी के लिए ऐसी नरमी का.
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कांग्रेस में शामिल होने पर सबको उम्मीद थी कि सिद्धूवाणी अब बीजेपी और मोदी को निशाने पर लेगी. ठीक वैसे ही जैसे कभी सिद्धू ने कांग्रेस, सोनिया, राहुल और मनमोहन पर हमलों और जुमलों की झड़ी लगा दी थी.
कांग्रेस और सोनिया को मुन्नी और शीला की तरह बदनाम बताया था, राहुल को पप्पू कहा था, जबकि मनमोहन सिंह को अर्थशास्त्री के बजाय व्यर्थशास्त्री का तमगा देने वाले सिद्धू ही थे. आज जब सिद्धू मीडिया से मुखातिब हुए तो उनके निशाने पर सिर्फ और सिर्फ बादल परिवार ही रहा. सिद्धू पंजाब की भलाई की दुहाई देते हुए कांग्रेस में शामिल होने की वकालत करते रहे. ये बताना नहीं भूले कि वो जन्मजात कांग्रेसी हैं और ये उनकी घर वापसी है.
सिद्धू जिस प्रकार बीजेपी में रहते हुए कांग्रेस के लिए आक्रामक हुआ करते थे वो बात अब नहीं दिखी |
प्रधानमंत्री मोदी पर हमला करने की बात तो दूर, सिद्धू उनसे जुड़े सवालों से भी बचते नज़र आए. सिद्धू को जब कांग्रेस और उसके नेताओं पर उन्हीं के दिए जुमले याद दिलाए गए और पूछा गया कि क्या उसका आपको पछतावा है तो बोलने में माहिर सिद्धू इसका जवाब देने में लड़खड़ाते नज़र आए. बस बोला कि आपके कहने से पश्चाताप करूंगा क्या? ऐसे तो पहले लालू नीतीश ने भी एक-दूसरे के खिलाफ काफी कुछ बोला और बाद में साथ आए राजनीति में ये हो जाता है.
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हाँ, बीजेपी को माँ बोलने वाले सवाल पर सिद्धू अपना जवाब पहले से तैयार करके आए थे. बीजेपी की कैकई और कांग्रेस की कौशल्या से तुलना कर सिद्धू ने एक बार फिर अरुण जेटली का नाम लिए बगैर उनको मंथरा करार दिया. बीजेपी पर सीधा हमला करने में भी सिद्धू हिचकिचाते रहे. बस इतना बोले कि बीजेपी और पीएम ने चूंकि अकाली के साथ गठजोड़ को चुना, तो मैंने पंजाब को चुना.
पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष अमरिंदर सिंह से मतभेदों को लेकर भी सिद्धू ने इंकार नहीं किया. इस सवाल के जवाब में सिद्धू बोले कि लालू नितीश एक हो सकते हैं, तो वो क्यों नहीं. टेबल पर बैठने से तमाम मसले सुलझ जाते हैं. वैसे, ये सवाल अनसुलझे ही रह गए कि राहुल से मुलाकात कर कांग्रेस ज्वाइनिंग तक और उसके बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में सिद्धू के साथ कैप्टन अमरिंदर कहीं नहीं दिखे. खुद सिद्धू ने ये शर्त रखी थी कि वो राहुल की सरपरस्ती में ही पार्टी ज्वाइन करेंगे, न की कैप्टन अमरिंदर की. तो आज भी सिद्धू बोले कि पार्टी आलाकमान जो कहेगा वो करेंगे, लेकिन सीधे तौर पर अमरिंदर के नीचे काम करने के सवाल को वो टाल गए. दरअसल, सिद्धू पंजाब में अपना क़द कैप्टन से कम नहीं रखना चाहते.
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पीएम मोदी के काम-काज से जुड़े सवाल पर बैकफुट पर आए सिद्धू ने कहा कि जनता तय करेगी तो वहीं, सिद्धू के पास इसका कोई जवाब नहीं था कि उन्होंने राहुल में क्या खूबियां देखीं, जो मोदी को छोड़ आए या मोदी में क्या कमियां हैं. बस गरजने वाले सिद्धू बेबस होकर एक ही रटा रटाया जवाब देते रहे कि उन्होंने पंजाब में गठजोड़ को चुना और मैंने पंजाब को. हाँ, राहुल को राहुल भाई कहकर संबोधित करते हुए सिद्धू ने कहा कि उनके पास पंजाब का रोड मैप है, जिससे मैं सहमत हूँ.
सिद्धू की पहली पसंद आम आदमी पार्टी थी, लेकिन वहां उनकी दाल नहीं गली |
वैसे सब जानते हैं कि बीजेपी छोड़ने के बाद सिद्धू की पहली पसंद आम आदमी पार्टी थी, लेकिन वहां जब दाल गली नहीं, तब ही सिद्धू ने कांग्रेस का रुख किया. आम आदमी पार्टी में नहीं जाने का कारण सिद्धू ने बताया कि उनको चुनाव लड़ने को कहा गया वर्ना खुद केजरीवाल ने मुझे आइकॉन कहा. मैं चुनाव लड़कर पंजाब को बेहतरी देना चाहता था, इसलिए कांग्रेस में आया.
कुल मिलाकर कांग्रेस में आकर सिद्धू ने सिर्फ अकालियों को निशाने पर रखा. बाकी उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस शेरो-शायरी, ठोको ताली, खटैक जैसे शब्दों और लच्छेदार भाषणों तक सीमित नज़र आई. जिसमें उन्होंने तमाम सवालों से बचने के साथ ही मोदी और बीजेपी पर नरम रहना ही ठीक समझा, यहाँ तक कि सीधे अरुण जेटली तक का भी नाम नहीं लिया.
तो आगे पंजाब में कांग्रेस इंतज़ार कर रही है कि सिद्धू सियासी पिच पर धमाकेदार बल्लेबाज़ी करें, लेकिन ठीक उसी अंदाज़ में जैसे वो बीजेपी की तरफ से कांग्रेस के खिलाफ करते थे.
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