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Updated: 21 मार्च, 2020 10:54 AM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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बरसों सत्ता में रहने और महीनों के वनवास के बाद शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) फिर से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी के करीब पहुंच गये हैं. ऐसा भी नहीं कि चर्चाओं में दावेदारों की कोई कमी है लेकिन रेस में आगे वही हैं - और महाराज की मदद से मामा का सत्ता की बागडोर फिर से संभालना (BJP Government in Madhya Pradesh) तय माना जा रहा है. मध्य प्रदेश में लोग प्यार से शिवराज सिंह को मामा और सम्मान से ज्योतिरादित्य सिंधिया को महाराज बुलाते हैं.

शिवराज सिंह चौहान के रास्ते की बहुत सारी चीजें भले ही आसान हो चुकी हों, लेकिन बाद की राह काफी मुश्किल प्रतीत हो रही है, खास कर तब जब वो फिर से कुर्सी पर बैठ जाते हैं. शिवराज सिंह के सामने कमलनाथ (Kamal Nath) जैसी चुनौती तो नहीं खड़ी वाली है - लेकिन ऐसा लगता है खुद कमलनाथ ही चुनौती बन कर खड़े होने वाले हैं. दरअसल, राजनीति में अब एक दूसरे से बदला लेने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है. हालांकि, ये सब इस बात पर भी निर्भर करता है कि जिसने बदला लेने का फैसला किया है उसकी हैसियत कैसी है और वो कहां तक जा सकता है. अपने इस्तीफे के ऐलान से पहले कमलनाथ ने सरकार गिराने का पूरा दोष बीजेपी नेताओं पर मढ़ डाला. कमलनाथ जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम लेने से पूरी तरह बचते रहे, वहीं दिग्विजय सिंह को भी लगा संदेह का लाभ देने की कोशिश कर रहे हैं. ऊपरी तौर पर ही सही. शिवराज सिंह चौहान ने भी कांग्रेस सरकार के पतन का सारा दोष दिग्विजय सिंह पर मढ़ कर ज्योतिरादित्य सिंधिया को बचाते हुए कमलनाथ को संदेह का लाभ देने की कोशिश की है - लेकिन मामला इतना भर ही नहीं है.

कमलनाथ मन मसोस कर रह गये हैं. बदले की आग में धधक रहे हैं और इस बात की झलक उनके बयान में ही मिलती है जिसके बाद कमलनाथ ने अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी.

बीजेपी में कोई नहीं शिवराज की टक्कर में

सुप्रीम कोर्ट से फ्लोर टेस्ट का आदेश आ जाने के बाद मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सीहोर के हनुमान मंदिर दर्शन करने गये. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से थोड़ा अलग शिवराज सिंह का भी ये शुक्रिया कहने का ही तरीका रहा होगा.

लेकिन फ्लोर टेस्ट के लिए तय वक्त से पहले ही कमलनाथ ने राज्यपाल को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा सौंप दिया तो उसके तत्काल बाद बीजेपी नेताओं और विधायकों के साथ शिवराज सिंह चौहान विधानसभा पहुंचे. स्पीकर ने बताया कि चूंकि मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दे दिया है इसलिए फ्लोर टेस्ट की जरूरत नहीं है - 7 मिनट की औपचारिक कार्यवाही के बाद विधानसभा अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गयी.

विधानसभा के बाद शिवराज सिंह चौहान सीधे बीजेपी दफ्तर पहुंचे और तब तक जश्न शुरू हो चुका था. मीटिंग हुई लड्डू भी बांटे गये, लेकिन शिवराज सिंह चौहान के बंगले पर होने वाला डिनर रद्द हो गया. विधायकों के लिए ये डिनर शाम को साढ़े सात बजे रखा गया था. शिवराज सिंह चौहान ने खुद ट्वीट कर इसकी औपचारिक जानकारी भी दी.

इस्तीफा देने से पहले कमलनाथ ने बीजेपी पर सत्ता संभालने के दिन से ही साजिश रचने का आरोप लगाया था, लेकिन शिवराज ने ऐसे आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया. शिवराज सिंह चौहान ने सरकार गिरने की वजह कांग्रेस की अंदरूनी किचकिच और दिग्विजय सिंह की भूमिका बतायी.

वैसे तो भोपाल में शिवराज सिंह चौहान के अलावा भी कुछ नेताओं को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बताया जा रहा है, लेकिन शिवराज सिंह चौहान के कद के आगे कोई बीजेपी में कोई और नेता उनके आस पास टिक नहीं पा रहा है. राजनीति और राजनीतिक विरोध अपनी जगह है लेकिन काफी लोग मानते हैं कि शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता में कोई खास कमी नहीं आयी है. सत्ता जरूर चली गयी लेकिन मामा का दरबार पहले की ही तरह लगता रहा. लोग उनके घर पर इंतजार कर रहे होते और वो आते ही लोगों के बीच बैठ जाते और लोग अपनी समस्याएं सुनाने लगते - लोगों की शिकायतें सुनने के बाद शिवराज सिंह चौहान पॉकेट से मोबाइल निकालते और अधिकारियों को उनकी शिकायतों के निवारण के लिए बात भी कर लिया करते. बीजेपी के एक सूत्र ने न्यूज एंजेंसी पीटीआई से कहा है, 'चौहान एक लोकप्रिय चेहरा हैं, शांत मिजाज शख्स हैं और संघ से उनके रिश्ते मजबूत हैं. ये सब देखते हुए शिवराज सबसे मजबूत दावेदार हैं और पार्टी में उन्हें किसी से चुनौती मिलना मुश्किल है.'

shivraj chauhan kamal nathशिवराज सिंह चौहान के जन्मदिन पर कमलनाथ ने 5 मार्च को ट्विटर पर इसी तस्वीर के साथ बधाई दी थी

दिल्ली चुनाव के नतीजे आने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरफ से सलाह भी आयी थी कि राज्यों में संगठन को मजबूत किया जाये क्योंकि मोदी-शाह हमेशा जीत नहीं दिला सकते. ये बीजेपी के भीतर बन रही उस समझ की ही पुष्टि करती है कि लोकप्रिय क्षेत्रीय नेताओें को बढ़ावा मिले ताकि पार्टी को सिर्फ ब्रांड मोदी और शाह के चुनावी हुनर पर ही निर्भर न रहना पड़े. बाकी सब तो ठीक है लेकिन जाते जाते कमलनाथ ने दार्शनिक अंदाज में एक ऐसी बात कह दी है जिसके निहितार्थ बेहद गंभीर लगते हैं - 'आज के बाद कल और कल के बाद...'

लेकिन परसों क्या होगा?

राज भवन जाकर अपना इस्तीफा सौंपने के बाद कमलनाथ वापस मुख्यमंत्री आवास लौटे और कहा कि वो आगे भी लड़ते रहेंगे. बोले, 'जीत हमेशा सत्य की ही होती है. सत्य थोड़ी देर के लिए डगमगा तो सकता है लेकिन हार नहीं सकता. गलत इरादों की हमेशा हार ही होती है - मैं पूरी शक्ति के साथ मध्य प्रदेश की सेवा करता रहूंगा.' कमलनाथ ने अपनी 15 महीने की सरकार को बीजेपी की पिछली 15 साल की सरकार से बेहतर बताने की कोशिश की और बोले कि उसमें भी करीब ढाई महीने आचार संहिता निभाने में निकल गये. फिर भी, कमलनाथ ने दावा किया, पांच साल के लिए बने वचन पत्र के काफी काम कराने की पूरी कोशिश किये.

बातों बातों में भी कमलनाथ ने एक बहुत बड़ी बात बड़े ही सहज तरीके से कह डाली - "आज के बाद कल आता है - और कल के बाद परसों आता है." ये बात कमलनाथ ने यूं ही कह डाली हो ऐसा तो बिलकुल नहीं लगता. लगता तो ऐसा है कि जैसे काफी सोच समझ कर ये बात कही हो. जैसे वो गीता-सार सुना रहे हों - परिवर्तन संसार का नियम है. ऐसा नहीं कि अभी ही परिवर्तन हो रहा है. परिवर्तन के बाद भी परिवर्तन होता है - और परिवर्तन का ये सिलसिला चलता रहता है.

ये सुन कर तो ऐसा लगता है जैसे - अगर शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बनते हैं तो मान कर चलना होगा कमलनाथ चैन से नहीं रहने देने वाले. शिवराज सिंह चाहे जो दावा करें, लेकिन कमलनाथ कतई उससे इत्तेफाक नहीं रखते. वो मानते हैं कि सरकार बीजेपी ने गिरायी है तो वो भी ऐसा ही करने वाले हैं - 'शठे शाठ्यम् समाचरेत्' क्योंकि सत्ता गंवाकर कमलनाथ ने यही सीखा है. ऐसा उनको लग रहा है - और यही वो कहने की कोशिश कर रहे हैं.

शिवराज सिंह चौहान लंबी पारी खेलने वाले मुख्यमंत्रियों में से हैं. अगर येदियुरप्पा से तुलना की जाये तो लगभग उनके डबल शासन कर चुके होंगे, लेकिन दोनों की आक्रामक राजनीति में कई बुनियादी अंतर है - ये ठीक है कि जिस तरह येदियुरप्पा ने सवा साल में ही कांग्रेस-जेडीएस की सरकार के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी को कुर्सी से बेदखल कर दिया, शिवराज सिंह चौहान को भी करीब करीब वैसा ही श्रेय हासिल हुआ है - लेकिन येदियुरप्पा के ऑपरेशन लोटस से तुलना करें तो लगता ही नहीं कि शिवराज सिंह ने कुछ किया भी है. कुछ भी नहीं. ये तो ज्योतिरादित्य सिंधिया की जरूरत और मजबूरी रही कि शिवराज को फिर से मैदान में खड़ा कर दिये, वरना बीजेपी नेतृत्व तो उनको दिल्ली अटैच कर ही लिया था. चूंकि बीजेपी के पास शिवराज सिंह जैसे कद का कोई नेता नहीं है, इसलिए वो आसानी से फिट हो जा रहे हैं.

ये तो साफ है कि शिवराज सिंह के सामने कमलनाथ ऐसी चुनौतियां पेश करने की तैयारी कर रहे हैं जिनसे छोटी चुनौतियों में वो खुद सत्ता गंवा बैठे. अगर कमलनाथ को सिंधिया से दुश्मनी निभाने की जिद नहीं होती तो शिवराज सिंह का ऐसा भी भाग्य नहीं था कि छींका टूट कर उनके कदमों में आ गिरेगा. अगर शिवराज सिंह की जगह कैलाश विजयवर्गीय भी होते तो कमलनाथ को कड़ी टक्कर देते, लेकिन शिवराज सिंह न तो येदियुरप्पा बन सकते हैं और न ही कैलाश विजयवर्गीय.

कमलनाथ के करीबी मंत्री पीसी शर्मा ने कांग्रेस विधायकों की बैठक में भी दावा किया था कि बीजेपी के दो विधायक उनके संपर्क में हैं और कुछ अन्य भी हो सकते हैं. बीजेपी विधायक शरद कौल से इस्तीफा दिलवाकर कमलनाथ की टीम ने नमूना भी पेश कर दिया है. शर्मा ने विधायकों की खरीद-फरोख्त को लेकर चली चर्चा पर टिप्पणी की थी - वो 'हॉर्स ट्रेडिंग' नहीं बल्कि 'एलिफेंट ट्रेडिंग' कर रहे हैं. क्या कमलनाथ का बदला कुछ ऐसा ही होने वाला है?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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