New

होम -> सियासत

 |  6-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 23 जुलाई, 2015 07:35 PM
शशि थरूर
शशि थरूर
  @ShashiTharoor
  • Total Shares

लोकसभा सांसद और कांग्रेस नेता शशि थरूर ने ऑक्सफोर्ड यूनियन सोसाइटी में 'भारत में ब्रिटिश राज' विषय पर एक भाषणा दिया है. यह कितना खास है, इसका अंदाज आप इसी से लगा सकते हैं कि सप्ताहभर में इसे सिर्फ यूट्यूब पर 12 लाख बार देखा जा चुका है.

देवियों और सज्जनों,

मैं यहां आपके सामने खड़ा हूं और मुझे आठ मिनट का समय दिया गया है. अब मैं आपको यह अहसास दिलाने की कोशिश करूंगा कि मैं हेनरी आठवें के स्कूल ऑफ पब्लिक स्पीकिंग से ताल्लुक रखता हूं. वे हमेशा अपनी पत्नी से कहा करते थे कि मैं आपका ज्यादा समय नहीं लूंगा. मैं यहां आठ में से सातवां स्पीकर हूं. मुझे पता है कि आप मुझसे क्या उम्मीद कर रहे हैं लेकिन नहीं पता कि अपनी बात को अलग तरीके से कैसे रखूं.

दुनिया की इकोनॉमी में हम 23 से 4 फीसदी रह गए

कई लोग इस बात से इंकार कर रहे हैं कि ब्रिटिश उपनिवेशवाद से उन देशों की आर्थिक तरक्की में बाधा पहुंची जो इसका शिकार हुए. मैं इस बारे में आपकी गलतफहमी भारत के बारे में एक उदाहरण देकर दूर करूंगा. जब भारत में ब्रिटिश शासन शुरू हुआ, तब दुनिया की इकोनॉमी में भारत का हिस्सा 23 प्रतिशत था. पर जब उन्होंने भारत छोड़ा, तब यह आंकड़ा महज चार फीसदी रह गया. ऐसा क्यों? क्योंकि ब्रिटेन ने अपने फायदे के लिए भारत पर शासन किया. यहां तक कि ब्रिटेन में औद्योगिक क्रांति भारत की औद्योगिक क्रांति को दबा कर लाई गई. उदाहण के तौर पर भारत की हैंडलूम इंडस्ट्री दुनियाभर में अपने शानदार कपड़ों के लिए जानी जाती थी. लेकिन अंग्रेजी हुकूमत के दौरान उनकी हालत भिखारियों जैसी हो गई. ब्रिटिश शासकों ने भारत में कपड़ा बनाने वालों पर कई टैक्स लगाए. उन्हें दबाया गया और फिर कच्चा माल भारत से इंग्लैंड ले जाने की शुरुआत हुई. ब्रिटेन भारत के कच्चे माल का इस्तेमाल अपने यहां कपड़ा बनाने में करता रहा और दुनिया के बाजार में छा गया. दुनियाभर में क्वॉलिटी कपड़े एक्सपोर्ट करने वाला भारत इंपोर्ट करने वाला देश बनकर रह गया. जिस उद्योग में भारत विश्व का 27 फीसदी योगदान करता था वह घटकर 2 प्रतिशत से नीचे पहुंच गया.

ब्रिटिश शासकों ने हिंदी के शब्द 'लूट' को अपने अंग्रेजी शब्दकोश में शामिल किया और इसे अपनी आदत भी बना ली. सच्चाई यह है 19वीं शताब्दी के आखिर तक भारत ब्रिटेन के लिए बेहद फायदेमंद साबित होने लगा था. दरअसल, ब्रिटेन में बनने वाले सामानों के लिए भारत दुनिया का तब सबसे बड़ा बाजार बन चुका था.

अकाल को नजरअंदाज करते हुए चर्चिल ने लिखा था- तो गांधी क्यों नहीं मर रहे

ब्रिटेन के शाही परिवार ने स्लेव इकॉनोमी से पैसे बनाए. ब्रिटिश राज में भारत में 1.5 से 2.9 करोड़ लोगों की मौत भुखमरी से हुई. इसका एक उदाहरण दूसरे विश्व युद्ध के दौरान पश्चिम बंगाल में पड़ा अकाल है जिसमें 40 लाख लोगों की मौत हुई. क्योंकि तब विंस्टन चर्चिल ने बंगाल के लोगों की मदद के लिए जरूरी सामान पहुंचाने की जगह ब्रिटिश सेनाओं के लिए उन सामानों को सुरक्षित रख लिया. उन्होंने तब साफ कहा था कि बंगाल में अकाल उनके लिए बड़ा मुद्दा नहीं है. बाद में जब कुछ जिम्मेदार ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें लिखा कि इस फैसले के कारण बंगाल में बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो रही है तो चर्चिल ने उस फाइल की साइड में लिख दिया "तो गांधी क्यों नहीं मर रहे".

यह साबित करने की कोशिश होती रही है कि ब्रिटेन तब अपने शासन के तहत आने वाले देशों की हितों के लिए काम कर रहा था. चर्चिल से जुड़ा यह उदाहरण इस गलतफहमी को खत्म कर देता है.

ब्रिटेन के लिए लड़ते हुए मारे गए 54 हजार भारतीय

हिंसा और रंगभेद ब्रिटिश उपनिवेशवाद की सच्चाई है. लोग ठीक कहते हैं कि ब्रिटिश काल में सूरज नहीं डूबता था क्योंकि भगवान को भी भरोसा नहीं था कि अंधेरे में अंग्रेज क्या कर देंगे. मैं आपको पहले विश्व युद्ध से जुड़े कुछ उदाहरण देता हूं. यहां मौजूद कुछ वक्ताओं ने अपने देश की बात कही. मैं इसे भारतीय परिपेक्ष्य में आपके सामने रखता हूं. विश्व युद्ध में लड़ने वाली ब्रिटेन की आर्मी का छठवां हिस्सा भारतीय सैनिक थे. उस युद्ध में 54,000 भारतीय सैनिकों की मौत हुई. 65,000 घायल हुए और 4000 लोग या तो बंदी बनाए गए या लापता हो गए.

भारत से तब 70 मिलियन हथियार युद्ध में इस्तमाल किए गए. इसमें 600 हजार राइफल और मशीन गन थे. करीब 42 लाख कपड़े भारत से भेजे गए. करीब 13 लाख भारतीयों ने इस युद्ध में अपनी सेवा दी.

भारत तब गरीबी और आर्थिक मंदी से जूझ रहा था. भारत की ओर से पहले विश्व युद्ध में खर्च हुई कुल राशि को देखें तो यह आज के हिसाब से आठ बिलियन पाउंड बैठता है. ऐसे ही दूसरे विश्व युद्ध में 25 लाख भारतीय सैनिकों ने हिस्सा लिया. 1945 में ब्रिटेन द्वारा युद्ध में खर्च किए तीन बिलियन पाउंड में से 1.25 बिलियन पाउंड भारत से गए.

भारत नहीं, बल्कि‍ ब्रिटेन के फायदे के लिए डाली गई रेल लाइन

कुछ लोगों ने रेलवे का उदाहरण दिया. लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि रेलवे और रोड का निर्माण स्थानीय लोगों के लिए नहीं बल्कि ब्रिटेन के फायदे के लिए हुआ. कई देश हैं जो कभी किसी शासन के अंदर नहीं रहे और वहां भी रेलवे और रोड हैं. दरअसल, रेलवे और रोड आदि को सामानों को बंदरगाहों तक पहुंचाने के लिए विकसित किया गया ताकि इसके बाद उन्हें इंग्लैंड ले जाया जा सके. लोगों के ट्रांसपोर्ट की समस्या कभी इस दौरान ब्रिटिश शासकों के ध्यान में नहीं रही.ब्रिटेन ने रेलवे का फायदा उठाया और तकनीक को भी अपने नियंत्रण में रखा.

यहां किसी ने ब्रिटेन द्वारा तब दी जाने वाली आर्थिक मदद का जिक्र किया. मैं बताना चाहता हूं कि जिस मदद की बात कही जा रही है, वह भारत की जीडीपी का केवल 0.4 फीसदी था. भारत सरकार आज उससे ज्यादा फर्टिनलाइजर्स सब्सिडी पर खर्च कर देती है. मुझे लगता है कि 'आर्थिक मदद' का दावा करने वालों के लिए यह बेहतर जवाब है.

यह कहना जायज होगा कि उपनिवेशवाद के शिकार देशों में जातिगत तनाव, भेदभाव आदि कुछ समस्याओं का दोष ब्रिटिश साम्राज्य को जाता है. जहां तक ब्रिटेन द्वारा मुआवजा देने की बात है तो इटली ने लीबिया को, जापान ने कोरिया को और यहां तक ब्रिटेन ने भी न्यूजीलैंड के माओरी लोगों को हर्जाना दिया है. इसलिए ऐसा नहीं है कि पहली बार इसके बारे में बात हो रही है. आपने जिस देश को 200 सालों तक लूटा, जहां के लोगों को मारा, दास बनाया, उसके लोकतांत्रिक होने का आप श्रेय नहीं ले सकते. भारत को यह लोकतंत्र ब्रिटेन से छिनना पड़ा केवल वे इसे देने के लिए तैयार नहीं थे.

मुआवजा नहीं ब्रिटेन से माफी की दरकार

यहां कुछ स्पीकरों का कहना हैं कि मुआवजे का अब कोई मतलब नहीं है, इसका कोई फायदा नहीं होगा. असल में हम मुआवजे की बात किसी को शक्तिशाली बनाने के लिए नहीं कर रहे हैं. यह आपके लिए है, ताकि आप स्वीकार कर सकें कि गलती हुई है. मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि उपनिवेशवाद के समय किसी का कितना नुकसान हुआ, इसकी गिनती आप सही-सही नहीं कर सकते. कितना भी मुआवजा मिल जाए, नुकसान की भरपाई नहीं हो सकती.

यहां किसी ने कहा कि उपनिवेशवाद के समय दोनों देशों का नुकसान हुआ. यह कहना गलत है. कोई चोर आपके घर में घुस आता है, आपको लूटता है और आप फिर कहें कि नुकसान तो दोनों का हुआ, यह सही नहीं है.

मूल बात यह है कि हम किसी पैसे की बात नहीं कर रहे हैं. दरअसल बात यहां अपनी गलती मानने पर है. क्या ब्रिटेन अपनी गलती मानने के लिए तैयार है. ब्रिटेन के लिए माफी मांगना अपने आप में बड़ी बात होगी. मुआवजे से यह ज्यादा अच्छी बात होगी.

 

#शशि थरूर, #ब्रिटिश राज, #ब्रिटिश, शशि थरूर, ब्रिटेन, ब्रिटिश सम्राज्य

लेखक

शशि थरूर शशि थरूर @shashitharoor

लेखक कांग्रेस से लोकसभा सदस्य और पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय