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Updated: 31 अक्टूबर, 2019 11:46 AM
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शरद पवार ने अब साफ साफ कह दिया है कि एनसीपी को विपक्ष में बैठने का जनादेश मिला है - और उससे इतर उनका कोई इरादा नहीं है. ये कहने के बाद से शरद पवार खामोश हैं.

शरद पवार संकेत तो यही दे रहे हैं कि एनसीपी सिर्फ विपक्ष की राजनीति करने जा रही है - सवाल ये है कि शरद पवार की इस खामोशी में कोई छुपी हुई रणनीति भी है क्या?

जनादेश के खिलाफ नहीं जाएगी NCP

महाराष्ट्र चुनाव के नतीजे अभी पूरे आये भी नहीं थे. जैसे जैसे रुझानों में तस्वीर साफ होने लगी कयास लगाये जाने लगे - और उसी के हिसाब से समीकरण भी बनने बिगड़ने लगे थे.

एनसीपी नेता शरद पवार ने रुझानों के बीच ही प्रेस कांफ्रेंस बुला कर जनादेश को विनम्रता के साथ स्वीकार करते हुए उस पर कायम रहने की बात कही. नतीजे शरद पवार की उम्मीदों के मुताबिक नहीं रहे क्योंकि एनसीपी नेता ने स्थिति प्रतिकूल होने के बावजूद पार्टी के खाते में कुछ ज्यादा ही आने की सोच रखी थी. उनके बयान में इस बात की झलक भी मिली.

शरद पवार ने कहा भी - 'इससे भी आगे जाने की हमारी कोशिश थी, लेकिन विपरीत परिस्थितियों में भी यहां तक पहुंचने की हमें खुशी है.' बाद में जब कुछ एनसीपी नेता ही शिवसेना को सपोर्ट करने की बात करने लगे तो शरद पवार को लगा कि मैसेज गलत जा रहा है. लिहाजा शरद पवार को फिर से स्थिति स्पष्ट करनी पड़ी.

चुनाव नतीजों के बाद एनसीपी के सीनियर नेता छगन भुजबल ने शिवसेना का सपोर्ट करते हुए आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनने का ऑफर दे डाला था. छगन भुजबल के बाद महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष बालासाहेब थोराट ने भी शिवसेना को आगे बढ़ने की सलाह दी. पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने भी नयी संभावनाओं की तरफ इशारा कर दिया था. ये सब होने पर शरद पवार को लगने लगा कि मैसेज गलत दिशा की ओर जा रहा है.

शरद पवार से मीडिया ने सवाल भी पूछ लिया - एनसीपी के शिवसेना को समर्थन देने की क्या संभावना है?

पवार को तो जैसे ऐसे सवाल का पहले से ही इंतजार रहा, 'ये हमारे सामने कोई विकल्प नहीं है. लोगों ने हमें विपक्ष में बैठने को कहा है. हमने उस जनादेश को स्वीकार किया है.'

sharad pawar for limited power politicsशरद पवार सत्ता की राजनीति से कितनी दूरी बनाने जा रहे हैं?

शरद पवार के बयान में एनसीपी नेताओं को भी कड़ा मैसेज था - भ्रम फैलाने की जरूरत नहीं है. मीडिया से बातचीत में शरद पवार ने ये भी स्पष्ट किया कि एनसीपी और कांग्रेस जनता के फैसले के साथ रहेंगे और विपक्ष में रहते हुए लोगों की मुश्किलें सुलझाने की कोशिश करेंगे.

क्या वास्तव में ये संदेश सिर्फ एनसीपी नेताओं के लिए रहा?

क्या शिवसेना के लिए भी शरद पवार की ओर से कोई खास संदेश था? या ये संदेश बीजेपी के लिए खासतौर पर था - और उसके पीछे भी कोई खास वजह रही?

पवार का विपक्ष की राजनीति पर जोर क्यों?

क्लाइड क्रैस्टो महाराष्ट्र एनसीपी के प्रवक्ता हैं - और सोशल मीडिया हेड भी हैं. ट्विटर पर क्लाइड क्रैस्टो ने एक कार्टून पोस्ट किया है. क्लाइड क्रैस्टो के ट्विटर पर जारी कार्टून में शिवसेना के चुनाव चिह्न 'धनुष और तीर' को भाजपा के 'कमल' के ऊपर लटका हुआ दिखाया गया है.

कार्टून के साथ क्लाइड क्रैस्टो ने मराठी में एक कैप्शन भी लिखा है - 'एक कहावत है, सिर पर लटकी हुई... '

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के सरकारी बंगले का नाम है - वर्षा. वर्षा यानी बारिश का महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में खासा प्रभाव माना जा रहा है. काफी हद तक बीजेपी का भी यही ख्याल है - और जैसे ही मौका मिलता है देवेंद्र फडणवीस खुद को रोक नहीं पाते.

वर्षा में पत्रकारों से बात करते हुए देवेंद्र फडणवीस ने बारिश के बहाने शरद पवार पर व्यंग्य कसा था. हो सकता है क्लाइड क्रैस्टो का कार्टून उसी बात पर जवाबी टिप्पणी हो.

देवेंद्र फडणवीस ने कहा था कि चुनाव प्रचार के दौरान बारिश में भीगना पड़ता है, लेकिन बीजेपी को इस मामले में कोई अनुभव नहीं था. देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि चुनाव प्रचार के दौरान भीगने वे पीछे रह गये.

दरअसल, सतारा की बारिश वाली रैली को ही एनसीपी के पक्ष में हवा का रूख बदल देने वाला वाकया माना जा रहा है. उस दिन शरद पवार जैसे ही सतारा में रैली करने पहुंचे तेज बारिश आ गयी. शरद पवार मंच पर चढ़े और खुले आसमान में भीगते हुए भाषण दिया जिसकी तस्वीर और वीडियो खूब वायरल हुए. लोगों में शरद पवार के जुझारूपन की फिर से चर्चा होने लगी और नतीजों को उससे काफी हद तक जोड़ कर देखा जा रहा है.

वैसे तो शरद पवार चुनावों की तैयारी कर रहे थे, लेकिन पारिवारिक चुनौतियों से जूझते हुए उतने ही एक्टिव रहे जितने से काम चल सके. हालांकि, वो लोगों के रिएक्शन को महसूस कर रहे थे. शरद पवार को लगने लगा था कि लोहा गर्म तो है, अगर सही चोट की जाये तो उसका फायदा भी मिल सकता है.

जैसे ही ED की FIR अजीत पवार और बाकी लोगों के साथ शरद पवार का नाम आया वो राजनीतिक तौर पर हद से ज्यादा एक्टिव हो गये. शरद पवार ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर घोषणा कर दी कि वो खुद चल कर प्रवर्तन निदेशालय के ऑफिस जाएंगे. शरद पवार की इस घोषणा से महाराष्ट्र की राजनीति में हड़कंप मच गया. एनसीपी कार्यकर्ता सड़क पर उतर आये और मुंबई के पुलिस कमिश्नर को शरद पवार से ईडी दफ्तर न जाने की अपील करनी पड़ी. प्रवर्तन निदेशालय ने भी ईमेल भेज कर मैसेज किया कि शरद पवार को एजेंसी के दफ्तर पहुंचने की जरूरत नहीं है.

शरद पवार ईडी दफ्तर न जाने के लिए तो राजी हो गये लेकिन राजनीतिक तेवर आक्रामक हो गया. वो महाराष्ट्र का तेजी से दौरा करने लगे. देखते देखते ताबड़तोड़ 66 रैलियां कर डाली - और नतीजों में असर भी दिखा.

ऐसे में जब शरद पवार के सारे करीबी और सीनियर पार्टी नेता साथ छोड़ कर बीजेपी या शिवसेना में जा चुके थे, जब भतीजे अजीत पवार महीनों से बातचीत बंद कर चुके थे - शरद पवार ने अपने दम पर पार्टी की झोली 54 विधानसभा सीटें भर दीं.

शरद पवार ने विपक्ष वाली रस्में भी शुरू कर दी है. एक कार्यक्रम के दौरान शरद पवार ने कहा कि सीबीआई और ईडी का इस्तेमाल उन जगहों के लिए होता था, जहां अपराध होता था.

एनसीपी नेता ने कहा, 'देश में आर्थिक मंदी छाई है, पर केंद्र सरकार जानबूझकर लोगों का ध्यान कहीं दूसरी जगह ले जा रही है.' शरद पवार ने पुलवामा अटैक और धारा 370 के राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल को लेकर भी केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी पर हमला बोला है. बीजेपी ने महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव भी आम चुनाव की तरह राष्ट्रवाद के ही मुद्दे पर लड़ा.

शरद पवार ने एनसीपी को शिवसेना से एक लाख ज्यादा वोट तो दिला दिया - लेकिन एनसीपी लाख कोशिश करके भी दो सीटें कम पर ही ठहर गयी. शरद पवार की कोशिश है कि कांग्रेस भी उनके स्टैंड से अलग कोई राय न बनाये, जिसकी संभावना भी बहुत ही कम है. जब भी शरद पवार बात कर रहे हैं एनसीपी के साथ विपक्ष में कांग्रेस की बात भी जरूर कर रहे हैं. एकता में ही शक्ति है.

ED वाले मामले तो शरद पवार ने बीजेपी को तात्कालिक तौर पर राजनीतिक पटखनी दे दी, लेकिन वो इतना भी जोरदार नहीं कि लंबे वक्त तक उसका असर कायम रहे.

तब शरद पवार ने दावा किया था कि वो किसी भी सहकारी बैंक के कभी भी संचालक नहीं रहे - और चुनाव के वक्त उन पर दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन वो इससे डरेंगे भी नहीं.

अगर शरद पवार संचालक नहीं रहे फिर तो उन्हें वाकई डरने की कोई जरूरत नहीं है - और अगर जानबूझ ईडी ने उनका नाम एफआईआर में डाल दिया है तो कोर्ट में केस खारिज होते देर कहां लगने वाली है. फिर भी लगता है शरद पवार सेफ साइड से खेलना चाहते हैं, न कि फ्रंटफुट पर आगे बढ़ कर.

क्या विपक्ष की राजनीति करने का संदेश ये हुआ कि वो बीजेपी की सरकार बनने में या उसके रास्ते में रोड़ा नहीं बनने जा रहे हैं - और बदले में चाहते हैं कि बीजेपी भी सम्मानजनक दूरी के साथ एनसीपी को जीने खाने दे. मालूम नहीं, बीजेपी शरद पवार के इस इरादे को समझेगी भी या नहीं क्योंकि बीजेपी नेतृत्व तो विपक्ष मुक्त राजनीति में यकीन रखता है. शरद पवार अगर किसी और रणनीति पर काम कर रहे हों तो अभी तो कोई संकेत नहीं मिला है.

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