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Updated: 25 जनवरी, 2022 08:54 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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कांग्रेस के दिग्गज नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री कुंवर रतनजीत प्रताप नारायण सिंह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो चुके हैं. यूपी में बीजेपी के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान ने कांग्रेस के 'स्टार प्रचारक' आरपीएन सिंह को पार्टी ज्वाइन कराई है. पिछले कई महीने से सियासी गलियारे में उनके बीजेपी में शामिल होने की खबरें चल रही थीं, लेकिन वो लगातार इनकार करते रहे. इसी बीच पडरौना विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी विधायक और कैबिनेट मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्या के समाजवादी पार्टी में चले जाने के बाद राजनीतिक परिस्थितियां इस तरह की बनी कि उनको भारतीय जनता पार्टी शामिल होना फायदे का सौदा लगा. मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे आरपीएन सिंह केंद्र में बीजेपी की सरकार आने के बाद लगभग नेपथ्य में चले गए थे. यहां तक कि उनको अपनी परंपरागत लोकसभा सीट से भी हार का सामना करना पड़ा था.

rpn-singh-650_012522074325.jpgपूर्व केंद्रीय मंत्री 'स्टार प्रचारक' आरपीएन सिंह का बीजेपी में शामिल होना कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है.

इतना ही नहीं वो पडरौना की जिस विधानसभा सीट से लगातार 14 साल तक (1996-2009) विधायक रहे उस पर भी बाहर से आकर स्वामी प्रसाद मौर्या ने कब्जा जमा लिया था. दरअसल, साल 2009 में आरपीएन सिंह के सांसद बन जाने के बाद हुए उप चुनाव में मौर्या आए और जीत गए. इस तरह बीजेपी में शामिल होने के बाद पडरौना के राजा साहेब यानी आरपीएऩ सिंह को अपना किला ही नहीं गढ़ बचाने का एक बार फिर मौका मिल गया है. वो अचानक सुर्खियों में आ गए हैं. अपने संसदीय और विधानसभा क्षेत्र में उनकी लोकप्रियता कम नहीं है. उन्होंने काम भी खूब किया है. लेकिन साल 2014 के बाद बने राजनीतिक हालत की वजह से वो सत्ता के साथ ही लाइमलाइट से दूर हो गए थे. वैसे आरपीएन सिंह को पार्टी में शामिल करके बीजेपी ने भी एक तीर से कई निशाने साधे हैं. आइए इनके बारे में जानते हैं.

1. बड़े कद के जमीनी नेता

आरपीएन सिंह और उनका परिवार पिछले 50 वर्षों से पडरौना क्षेत्र में राजनीति कर रहा है. राज परिवार से ताल्लुक रखने वाले उनके पिता कुंवर सीपीएन सिंह पहली बार 1969 में यहां से विधायक बने थे. बाद में यहीं से सांसद और केंद्रीय मंत्री रहे. आरपीएन सिंह भी पिछले 32 वर्षों से यहीं से राजनीति कर रहे हैं. वो पडरौना विधानसभा क्षेत्र से साल 1996 से लेकर 2009 तक लगातार विधायक रहे हैं. उसके बाद साल 2009 से 2014 तक सांसद रहे. इतना ही नहीं साल 2009-2011 तक केंद्रीय सड़क, परिवहन और राजमार्ग राज्य मंत्री और साल 2011-2013 तक केंद्रीय पेट्रोलियम और कॉर्पोरेट मामले के राज्य मंत्री रहे. इतने बड़े राजनीतिक कद के होने के बावजूद उनको जमीनी नेता माना जाता है. आज भी अपने विधानसभा के हर गांव के प्रमुख लोगों और अपने कार्यकर्ताओं को वो उनके नाम से जानते हैं.

कहा जाता है कि जब वो केंद्रीय मंत्री थे, तो उनके मंत्रालय में जाने के लिए लोगों को केवल इतना बताना होता था कि वे पडरौना से आए हैं. उन्होंने अपने अधिकारियों को सख्त निर्देश दे रखा था कि उनके क्षेत्र से आने वाले हर शख्स को ससम्मान बुलाया जाए और उनकी समस्याएं सुनी जाए. अपने क्षेत्र में उन्होंने विकास के कार्य भी कराए हैं. वो बड़े कद कद के जमीनी नेता हैं. स्वामी प्रसाद मौर्या के पार्टी से जाने के बाद पडरौना विधानसभा क्षेत्र में उनके कद का कोई कैंडिडेट बीजेपी के पास नहीं था. आरपीएन सिंह ऊर्फ राजा साहब जैसे जमीनी नेता को अपनी पार्टी में शामिल करने के बाद उनके रूप में एक मजबूत कैंडिडेट बीजेपी को मिल गया है. यदि बीजेपी उनको वहां से टिकट देती है, तो स्वामी प्रसाद मौर्या के सामने एक मजबूत चुनौती होगी. इस सीट पर पूरे प्रदेश की नजरें टिकी रहेंगी.

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2. जातीय समीकरण में फिट

पडरौना विधानसभा के जातीय समीकरण के हिसाब से भी देखा जाए तो बीजेपी ने स्वामी प्रसाद मौर्या के ओबीसी के किले में भी सेंध लगा दी है. सभी जानते हैं कि आरपीएन सिंह पिछड़ा वर्ग से आते हैं. उनकी सैंथवार जाति का वोट भी इस क्षेत्र में अच्छी संख्या में है. यदि जातीय गणित पर नजर डालें तो पडरौना विधानसभा में करीब 3.48 लाख मतदाता हैं. यहां सबसे ज्यादा 84 हजार मुस्लिम, 76 हजार दलित, 52 हजार ब्राह्मण, 48 हजार यादव, 46 हजार सैंथवार, 44 हजार कुशवाहा जाति के वोटर हैं. पिछले चुनावों में स्वामी प्रसाद मौर्या बीजेपी के वोट बैंक के साथ कुशवाहा जाति का वोट पाकर चुनाव जीते हैं. अब बीजेपी का वोट बैंक आरपीएऩ सिंह के पास आ जाएगा. इसके बाद यदि सैंथवार के साथ दलित वोट का कुछ फीसदी हिस्सा मिल गया, तो उनकी सीट निकलनी तय है, क्योंकि यहां ब्राह्मण बीजेपी का परंपरागत वोटर रहा है. इस तरह बीजेपी को आरपीएन सिंह के रूप में जातीय समीकरण में पूरी तरह से फिट बैठने वाला एक लोकप्रिय जमीनी कैंडिडेट मिल गया है.

3. मौर्या के लिए बड़ी मुश्किल

स्वामी प्रसाद मौर्या ने भारतीय जनता पार्टी छोड़कर समाजवादी पार्टी का दामन थामने के बाद जिस तरह से हमला बोला है, वो कहीं न कहीं भगवा पार्टी को जरूर असहज करती रही है. मौर्या अपने साथ बीजेपी सरकार में कैबिनेट मंत्री और विधायक रहे कई नेताओं को ले गए. ऐसे में बीजेपी चुनाव में उनके सामने हर संभव मुश्किल खड़े करना चाहेगी. यदि बीजेपी आरपीएन सिंह को टिकट देती है, तो मौर्या के सामने बड़ी मुश्किल खड़ी हो जाएगी. क्योंकि अभी तक के राजनीतिक हालात में वो इकतरफा चुनाव जीतते नजर आ रहे थे. लेकिन अब उनको मेहनत बहुत ज्यादा करनी पड़ेगी. मान लीजिए यदि वो चुनाव हार गए, तो ये उनके राजनीतिक करियर के लिए भी बहुत मुश्किल पैदा कर सकता है. क्योंकि जिस सियासी हैसियत के साथ वो इस वक्त सपा में हैं, वो चुनाव हारने के बाद शायद ही रह पाएगा.

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4. गांधी परिवार के सिपाहसालार

आरपीएन सिंह का गांधी परिवार के साथ पारिवारिक रिश्ता रहा है. उनके पिता कुंवर सीपीएन सिंह को इंदिरा गांधी राजनीति में लेकर आई थी. वो पडरौना से सांसद और साल 1980 में इंदिरा गांधी सरकार में रक्षा राज्यमंत्री भी रहे थे. उनके राजनीतिक कद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इमरजेंसी के बाद 1980 के लोकसभा चुनाव का प्रचार इंदिरा गांधी ने पडरौना से ही शुरू किया था. इस रैली का आयोजन सीपीएन सिंह ने ही करवाया था. उनके बाद आरपीएन सिंह भी गांधी परिवार के बहुत खास रहे. राहुल गांधी की कोर टीम के सदस्य रहे. गांधी परिवार उन पर बहुत भरोसा भी करता रहा है. यही वजह है कि उनको झारखंड का प्रभारी बनाकर रांची भेजा गया था. यूपी चुनाव में स्टार प्रचारक भी बनाए गए थे. लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया और जतिन प्रसाद के बाद आरपीएन सिंह को पार्टी में शामिल कर बीजेपी ने गांधी परिवार को कमजोर करने का काम किया है. इसका संदेश भी बड़ा है. इसका असर आने वाले लोकसभा चुनावों में भी देखने को मिल सकता है.

5. प्रखर प्रवक्ता, कुशल संगठक

आरपीएन सिंह दिग्गज नेता के साथ प्रखर प्रवक्ता और एक कुशल संगठक भी हैं. वो लंबे समय से टेलीविजन पर कांग्रेस का पक्ष रखते रहे हैं. उनकी हिंदी और अंग्रेजी भाषा पर पकड़ बहुत अच्छी है. इतना ही नहीं बोलने की कला में भी माहिर हैं. वो 1997 से 1999 तक युवा कांग्रेस उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष थे. इस दौरान सूबे पार्टी के विस्तार में अहम योगदान दिया था. इसके बाद साल 2003 से 2006 तक ऑल इंडिया कांग्रेस के सचिव रहे. केंद्र में बीजेपी की सरकार आने के बाद भी वो लगातार पार्टी के लिए काम करते रहे हैं. झारखंड में जब विधानसभा के चुनाव हुए तो राहुल गांधी ने उनको वहां का प्रभारी बनाकर भेजा था. उन्होंने राहुल गांधी के भरोसे को कायम रखते हुए न सिर्फ पार्टी का प्रदर्शन ठीक किया, बल्कि हेमंत सोरेन सरकार में कांग्रेस की मजबूत भागीदारी भी सुनिश्चित की थी. इस तरह बीजेपी को पार्टी के लिए एक अच्छा प्रवक्ता मिल गया है, जिसका अपना असरदार चेहरा है और जो खासकर योगी आदित्यनाथ के पूर्वांचल से ताल्लुक भी रखता है.

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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