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Updated: 05 जून, 2022 05:14 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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संगरूर लोक सभा उपचुनाव (Sangrur Bypoll) भी अरविंद केजरीवाल के सामने खड़ी चौतरफा चुनौतियों में से एक है - और भगवंत मान (Bhagwant Mann) के लिए पंजाब में आप के लिए जीत का हैट्रिक सुनिश्चित करना काफी मुश्किल लगने लगा है.

पंजाब की जीत के तत्काल बाद ही अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) अपने अखिल भारतीय चुनाव कैंपेन में जुट गये थे. गुजरात और कर्नाटक के साथ साथ हिमाचल प्रदेश तक रोड शो और रैलियां कर लोगों से एक मौका देने की मांग कर रहे थे, लेकिन तभी प्रवर्तन निदेशालय ने आप की दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन को गिरफ्तार कर नयी मुसीबत खड़ी कर दी.

अपने मंत्री की गिरफ्तारी के बाद से ही लगातार अरविंद केजरीवाल को सत्येंद्र जैन को बेकसूर साबित करने के लिए हर तरीके के पापड़ बेलने पड़ रहे हैं. केंद्र की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार पर हमेशा ही हमलावर रुख रखने वाले अरविंद केजरीवाल अब अपने डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी की भी आशंका जताने लगे हैं.

असल में अरविंद केजरीवाल पहले से ही सत्येंद्र जैन की गिरफ्तारी की आशंका जताते रहे - और वास्तव में गिरफ्तारी हो जाने के बाद तो कहने का मौका भी मिल गया है. मनीष सिसोदिया के साथ भी वैसा ही होने का शक वो अपने सूत्रों की जानकारी के आधार पर कर रहे हैं. सत्येंद्र जैन को अरविंद केजरीवाल बेकसूर बता रहे हैं और कह रहे हैं कि एजेंसी ने राजनीतिक दबाव में उनके मंत्री के ऊपर फर्जी केस दर्ज किया है.

और अब काउंटर अटैक में मनीष सिसोदिया ने बीजेपी के असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है. बीजेपी के मुख्यमंत्री पर सिसोदिया ने पीपीई किट का ठेका अपनी पत्नी और बेटे की कंपनी को देने और मार्केट रेट से ज्यादा कीमत पर खरीदने का आरोप लगाया है.

ठीक वैसे ही केजरीवाल को पंजाब में अपने मुख्यमंत्री भगवंत मान का बचाव करना पड़ रहा है. सिद्धू मूसेवाला के नाम से लोकप्रिय पंजाबी सिंगर शुभदीप सिंह की हत्या की वजह से मुख्यमंत्री भगवंत मान सबके निशाने पर आ गये हैं. लोगों के गुस्से की एक बड़ी वजह हत्या से ठीक पहले पंजाब सरकार की तरफ से उनकी सिक्योरिटी वापल ले लिया जाना है. हालांकि, बाद में सरकार ने उन सभी लोगों की सुरक्षा फिर से बहाल कर दी है जिसे खुफिया रिपोर्ट के आधार पर वापस लेने का दावा किया गया था.

अरविंद केजरीवाल का कहना है कि मूसेवाला की हत्या पर राजनीति नहीं होनी चाहिये. ऐसा इसलिए भी क्योंकि मूसेवाला के पिता को संगरूर से चुनाव लड़ाने का एक अर्थशास्त्री की तरफ से प्रस्ताव दिया गया - और कांग्रेस ने उसका समर्थन किया था. मूसेवाला के पिता बलकौर सिंह ने ये कहते हुए चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है कि अभी तो उनके बेटे के चिता की आग भी नहीं बुझी है. हालांकि, ये घोषणा बलकौर सिंह ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के मिलने आने के बाद की है.

AAP के लिए संगरूर की अहमियत

संगरूर लोक सभा सीट की भगवंत मान और अरविंद केजरीवाल के लिए अहमियत ऐसे समझी जा सकती है 2014 की मोदी लहर में तो भगवंत मान ने कब्जा जमाया ही, 2019 में दोबारा वैसी ही लहर में भी बचाये रखा - और 2019 के चुनावों में तो भगवंत मान आम आदमी पार्टी के इकलौते नेता रहे जो लोक सभा पहुंच पाये थे.

arvind kejriwal, bhagwant mannउपचुनावों के नतीजे प्रायः उसी पार्टी के पक्ष में जाते हैं जिसकी सरकार होती है - पंजाब में क्या होने वाला है?

भगवंत मान 2014 के आम चुनाव में पंजाब के चार लोगों में से एक हैं जिनकी बदौलत आम आदमी पार्टी को लोक सभा में एंट्री मिल सकी थी. वो भी तब जबकि खुद अरविंद केजरीवाल भी ऐसा नहीं कर पाये थे - 2014 में अरविंद केजरीवाल बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी सीट से चुनाव लड़े थे. हार गये.

और ठीक वैसे ही आम आदमी पार्टी के संगरूर उपचुनाव के लिए उम्मीदवार गुरमेल सिंह भी हैं, जो 2018 में घराचों गांव के सरपंच बने थे - गुरमेल सिंह आम आदमी पार्टी के एकमात्र सरपंच रहे जो कांग्रेस शासन के दौरान चुने गये थे.

अरविंद केजरीवाल ने संगरूर उपचुनाव के लिए भी वैसे ही उम्मीदवार सेलेक्ट किया है जैसे पंजाब विधानसभा चुनाव में कर रहे थे. 39 साल के गुरमेल सिंह को आप के संस्थापक सदस्यों में से एक बताया जा रहा है. गुरमेल सिंह ने मैथ्स में एमएससी किया है - और एमबीए की डिग्री भी उनके पास है.

गुरमेल सिंह को संगरूर से कैंडिडेट घोषित किये जाने के बाद लोग सोशल मीडिया पर टिप्पणियों में लिख रहे थे कि अच्छा हुआ भगवंत मान ने अपनी बहन को टिकट नहीं दिया. असल में मान की बहन मनप्रीत कौर भी संगरूर सीट पर टिकट के लिए दावेदारी जता रही थीं. वैसे भगवंत मान चाहते तब भी अरविंद केजरीवाल शायद ही इसकी मंजूरी देते.

बहन मनप्रीत के अलावा मान के कॉमेडियन दोस्त कर्मजीत अनमोल और एक आईपीएस अफसर के नाम की भी संभावित उम्मीदवारों के तौर पर चर्चा रही, लेकिन बाजी गुरमेल सिंह के नाम रही.

कैसा होने वाला है संगरूर सीट पर मुकाबला

संगरूर सीट पर पहला दावा तो आम आदमी पार्टी का ही बनता है, लिहाजा अरविंद केजरीवाल ने बगैर किसी और का इंतजार किये सबसे पहले अपना ही उम्मीदवार पेश किया है. बीजेपी तो नहीं लेकिन कांग्रेस और अकाली दल संगरूर उपचुनाव के जरिये लोगों की भावनाओं का राजनीति इस्तेमाल की कोशिश करते नजर आये हैं, लेकिन उनके हाथ निराशा ही लगी है.

मूसेवाला केपिता का चुनाव लड़ने से इनकार: कांग्रेस अपनी तरफ से किसी नेता को उतारने के बजाये चक्कर में रही कि सिंगर सिद्धू मूसेवाला के पिता बलकौर सिंह को उम्मीदवार बनाया जाये और सारे दल सपोर्ट करें. बलकौर सिंह को उम्मीदवार बनाने का प्रस्ताव कांग्रेस का नहीं बल्कि नहीं कृषि अर्थशास्त्री डॉक्टर सरदारा सिंह जौहल की तरफ से आया था. जौहल ने अपने प्रस्ताव के साथ कहा था कि सिद्धू मूसेवाला की मौत सांस्कृतिक नुकसान है और उनके माता-पिता के दुख की भरपाई नहीं की जा सकती... फिर भी संगरूर सीट से उनको निर्विरोध उपचुनाव जिताकर दुख बांटा जा सकता है.

पंजाब कांग्रेस प्रमुख अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग ने बयान जारी कर कहा था कि वो डॉक्टर जौहल के प्रस्ताव का समर्थन करते हैं और उम्मीद है कि दूसरी पार्टियां भी इसके लिए तैयार होंगी. कांग्रेस नेता प्रताप सिंह बाजवा ने भी प्रस्ताव का ये कहते हुए समर्थन किया था कि मूसेवाला पंजाबी कल्चर के आइकॉन होते हुए दुनिया भर में लाखों पंजाबियों को प्रेरित किया है.

इसी बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का दौरा हुआ और बलकौर सिंह ने चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर मुलाकात की. मुलाकात के दौरान बलकौर सिंह गृह मंत्री के सामने रोते हुए सीबीआई से जांच कराने की मांग की. बलकौर सिंह को शक है कि मूसेवाला के हत्यारों का कनेक्शन पंजाब के साथ साथ राजस्थान और हरियाणा से भी हो सकता है - ऐसे में सही जांच कोई केंद्रीय एजेंसी ही कर सकती है.

मुलाकात के बाद सोशल मीडिया के जरिये ही बलकौर ने संगरूर से चुनाव लड़ने का प्रस्ताव ठुकरा देने की घोषणा की. बलकौर सिंह का कहना रहा कि अभी तो उनके बेटे की चिता की आग भी नहीं ठंडी हुई है और चुनाव लड़ने का उनका कोई मन भी नहीं है. बलकौर सिंह ने लोगों से अपील की कि सोशल मीडिया पर चल रहे अफवाहों पर भरोसा करने की जरूरत नहीं है.

राजोआना की बहन भी नहीं लड़ेंगी उपचुनाव: पूर्व सांसद सिमरनजीत सिंह मान ने संगरूर उपचुनाव के लिए खुद को उम्मीदवार घोषित कर रखा है. शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के अध्यक्ष सिमरनजीत सिंह मान से अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल ने गुजारिश की थी कि वो अपनी उम्मीदवारी वापस ले लें - और संगरूर उपचुनाव में सिख कैदियों के परिवार से किसी को उम्मीवार बनाया जाये.

अकाली दल नेताओं ने सिमरनजीत सिंह मान से इस सिलसिले में मुलाकात भी की थी, लेकिन बलवंत सिंह राओआना की बहन कमलदीप कौर राजोआना ने ये पेशकश ठुकरा दी है. बलवंत सिंह राजोआना पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह का हत्यारा है और फिलहाल वो पटियाला जेल में है.

असल में बंदी सिंह रिहाई मोर्चा और दमदमी टकसाल ने कमलदीप कौर राजोआना को संगरूर उपचुनाव के लिए उम्मीदवार घोषित कर दिया था. कमलदीप के इनकार के बावजूद उनको मनाने की कोशिशें जारी हैं. बताते हैं कि अकाली दल का एक प्रतिनिधिमंडल लुधियाना में उनके घर जाकर मुलाकात करेगा और फैसले पर फिर से विचार करने के लिए समझाने बुझाने की कोशिश की जाएगी.

कौन होगा संगरूर से बीजेपी का चेहरा?

बीजेपी से टिकट के एक दावेदार पर सुनील जाखड़ भी लगते हैं. निश्चित तौर पर कांग्रेस में वो घुट रहे थे, लेकिन किसी बड़ी उम्मीद के साथ तो बीजेपी में आये ही होंगे. माना भी जा रहा है कि बीजेपी में टिकट के दावेदारों में से एक नाम सुनील जाखड़ का तो है ही.

एक और दावेदार सुखदेव सिंह ढींढसा भी लगते हैं. पंजाब विधानसभा चुनाव में सुखदेव सिंह ढींढसा और कैप्टन अमरिंदर सिंह की नयी पार्टी के साथ बीजेपी ने गठबंधन किया था. संगरूर सीट वैसे भी अकाली दल का गढ़ मानी जाती रही है - और 2014 में भगवंत मान सुखदेव सिंह ढींढसा को ही हरा कर लोक सभा पहुंचे थे. ढींढसा परिवार का अब भी इलाके में अच्छा खासा दबदबा है.

वैसे चर्चा ये है कि बीजेपी सुखदेव सिंह ढींढसा के बेटे परमिंदर ढींढसा को चुनाव लड़ाने का फैसला कर सकती है - लेकिन शर्त वही होगी, ढींढसा के बेटे को बीजेपी के ही सिंबल पर उपचुनाव के मैदान में उतरना होगा.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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