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Updated: 13 नवम्बर, 2019 10:10 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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राम मंदिर बाबरी मस्जिद (Ram Mandir Babri Masjid) मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) अपना ऐतिहासिक फैसला सुना चुकी है. अयोध्या मामले पर फैसले के बाद देश एक अन्य मामले, सबरीमाला मामले (Sabarimala Issue) पर टकटकी लगाए देख रहा है और जानना चाहता है कि सबरीमाला और सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश (Women Entry in Sabarimala) को लेकर कोर्ट क्या मत रखता है. सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई (CJI Ranjan Gogoi) की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय बेंच, जिसमें जस्टिस आर एफ नरीमन, एएम खनविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदू मल्होत्रा शामिल हैं, मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर फैसला (Sabarimala Verdict) सुनाएगी. फैसला इस बात पर होगा कि महिलाएं मंदिर में प्रवेश करेंगी या नहीं. ज्ञात हो कि केरल के सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की इजाजत देने के आदेश पर पुनर्विचार करने को लेकर 64 याचिकाएं दाखिल की गई हैं. इनमें से करीब 56 पुनर्विचार याचिकाएं हैं. आपको बताते चलें कि बीते फरवरी में मामले को लेकर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. 28 सितंबर 2018 को 4:1 के तहत सुप्रीम कोर्ट ने एकमत होकर बहुमत से फैसला किया था कि 10 से 50 साल की महिलाएं सबरीमाला मंदिर में जा सकेंगी. उन पर मंदिर में जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा.

सबरीमाला, मंदिर, सुप्रीम कोर्ट, रंजन गोगोई, Sabarimala Temple   पूरा देश जानने को आतुर है कि अयोध्या के बाद चीफ जस्टिस सबरीमाला को लेकर क्या फैसला देते हैं

सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला इसलिए भी अहम है क्योंकि वहां पास करने वाले लोगों के बीच सबरीमाला को लेकर अटूट आस्था है. दक्षिण विशेषकर केरल में लोगों की भावनाएं सबरीमाला के प्रति ठीक वैसी हैं जैसी किसी उत्तर भारतीय की राम जन्मभूमि और अयोध्या के प्रति. अब जबकि जल्द ही अदालत इस गंभीर मसले को लेकर अपना फैसला सुना रही है तो हमारे लिए भी ये समझना बहुत जरूरी हो जाता है कि आखिर क्यों पूरा देश इस फैसले की प्रतीक्षा में है.

Sabarimala case review petition क्‍या है?

आपको बता दें कि सबरीमाला मंदिर में भगवान का स्वरूप नैश्तिका ब्रह्मचारी का है. यह भगवान का वह स्वरूप है जो परंपराओं और पुराणों में है. इसी को आधार बनाकर  मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगाई गई थी. बाद में इस प्रथा का विरोध हुआ और मांग की गई कि मंदिर में जाने की इजाजत सभी आयु वर्ग की महिलाओं को दी जाए. मामला कोर्ट पहुंचा. तब कोर्ट ने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के समर्थन में अपना फैसला दिया. फैसले के बाद एक वर्ग वो भी सामने आया जिसने शीर्ष अदालत के इस फैसले का विरोध किया और धर्म को आधार बनाकर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की.

ध्यान रहे कि ये पुनर्विचार याचिका नेशनल अयप्पा डिवोटी एसोसिएशन की तरफ से दाखिल की गई है. याचिका में कहा गया है कि जो महिलाएं आयु पर प्रतिबंध लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट आईं थीं वे अयप्पा भक्त नहीं हैं. ये फैसला लाखों अयप्पा भक्तों के मौलिक अधिकारों को प्रभावित करता है. याचिका में यह भी कहा गया है, "याचिकाकर्ताओं का मानना ​​है कि कोई भी कानूनी विद्वान यहां तक ​​कि सबसे बड़ा न्यायवादी या न्यायाधीश भी जनता के सामान्य ज्ञान और ज्ञान का एक मैच नहीं हो सकता. इस देश में उच्चतम न्यायिक न्यायाधिकरण की कोई न्यायिक घोषणा नहीं है.

मामले में सबसे दिलचस्प बात यह है कि केवल याचिकाकर्ता और पक्षकार ही पुनर्विचार याचिका दायर करते हैं. यहां नेशनल अयप्पा डिवोटी एसोसिएशन सुप्रीम कोर्ट के सितंबर के फैसले में पक्षकार नहीं हैं. वहीं दूसरी तरफ नैयर सर्विस सोसाइटी नाम की संस्था ने भी सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है. इस याचिका में कहा गया है कि सबरीमला पर संविधान पीठ के फैसले पर फिर से विचार हो. ये फैसला धार्मिक अधिकार का उल्लंघन है.

ज्ञात हो कि सितम्बर में दिए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने  केरल के सबरीमला मंदिर में अब सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश को हरी झंडी दे दी थी. सुप्रीम कोर्ट  ने अपने फैसले में सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक को हटा दिया और इस प्रथा को असंवैधानिक करार दिया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब सबरीमाला मंदिर के दरवाजे सभी महिलाओं के लिए खोल दिये गये.

Sabarimala case review verdict क्‍या हो सकता है?

अयोध्या के बाद देश के इस दूसरे सबसे पेचीदा मामले पर फैसला कोर्ट ने सुरक्षित रखा है इसलिए अभी इसपर कुछ बात करना जल्दबाजी है. मगर इस फैसले को लेकर जो कयास लग रहे हैं वो ये कि मामले में मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर दो स्थितियां बनती दिखाई दे रही हैं. पहली स्थिति ये है कि कोर्ट सभी याचिकाओं को सुनवाई में शामिल करे और इसे 7 जजों वाली बड़ी बेंच में भेज दे.

यदि ऐसा होता है तो सुप्रीम कोर्ट का वो फैसला होल्ड पर चला जाएगा जो उसने सितंबर माह में दिया था, यदि स्थिति ऐसी बंटी है तब तय उम्र सीमा की महिलाएं ही मंदिर में जा सकेंगी. बात बात दूसरी स्थिति की. फैसले के मद्देनजर दूसरी स्थिति ये बनती है कि मामले को लेकर कोर्ट में जो भी याचिकाएं आई हैं उन्हें खारिज कर दिया जाए और पूरी तारह उसी फैसले को लागू किया जाए जो शीर्ष अदालत ने सितम्बर में सुनाया था.

दूसरी स्थिति यह बनती है कि सभी याचिकाएं खारिज कर दी जाएं. इससे 28 सितंबर वाला फैसला लागू रहेगा. एडवोकेट श्याम देवराज ने यह माना कि दूसरी स्थिति की संभावना ज्यादा है. क्योंकि पिछला फैसला संविधान के कई धाराओं के आधार पर दिया गया था. इस मामले को हमें अयोध्या केस से जुड़े फैसले से जोड़कर नहीं देखना चाहिए.

Sabarimala case क्‍यों है अयोध्‍या जैसा पेंचीदा?

मामले पर अपनी समझ रखने वाले कई वकील इस बात पर एकमत हैं कि इसे अयोध्या फैसले से जोड़कर नहीं देखना चाहिए मगर इसे अयोध्या से इसलिए भी जोड़ा जा अरह है क्योंकि पूरा मामला साफ़ तौर पर लोगों की आस्था, विश्वास और श्रद्धा से जुड़ा है. जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं सबरीमाला और भगवान अयप्पा पर दक्षिण के लोगों की अटूट आस्था है इसलिए इसके प्रति लोग भावनात्मक रूप से जुड़े हैं. सबरीमाला के प्रति लोगों का विश्वास ठीक वैसा ही है जैसा किसी उत्तर भारतीय का अयोध्या के प्रति.

ध्यान रहे कि अयोध्या भूमि विवाद में अदालत को ये फैसला करना था कि राम जन्भूमि स्थल का स्वामित्व हिंदुओं के पास है या मुसलमानों के पास. जबकि सबरीमाला मामले में भगवान अयप्पा के भक्तों की आस्था का सवाल है, जिनका मत है कि उनके भगवान के ब्रह्मचारी होने के कारण रजस्वला आयु वर्ग की महिलाओं को उनसे दूर रखा जाना चाहिए.

कह सकते हैं कि जिस तरह अयोध्या मामले में आस्था विश्वास एक अहम वजह था वैसा ही कुछ मामला सबरीमाला का भी है.  भले ही अयोध्या मामले पर फैसला सुनाने वाली संविधान पीठ इस बात को कह चुकी हो कि,'आस्था और विश्वास आस्थावानों की नितांत व्यक्तिगत मान्यता होती है. यहां सबरीमाला मामले में भी पूर्व में आए फैसले पर विरोध का कारण लोगों की आस्था का प्रभावित होना है.

Sabarimala dispute देख चुका है आंदोलन और हिंसा

फैसले को लेकर लोग इसलिए भी प्रतीक्षारत है क्योंकि  बीते उच्च समय से चर्चा में आया सबरीमाला विवाद कोई हलकी चीज नहीं है. एक वर्ग द्वारा धर्म के साथ हुई छेड़छाड़ पर लोगों की भावना इस हद तक आहात हुई थी कि बात उग्र प्रदर्शन और हिंसा तक आ गई थी. मामले पर लोगों का आक्रोश कैसा था ? इसे हम उस घटना से भी समझ सकते हैं जब पूर्व सीजेआई दीपक मिश्रा अपने पद से रिटायर हुए थे.

बात 2 अक्टूबर 2018 की है. जस्टिस दीपक मिश्रा के विरोध में केरल की वो महिलाएं आ गयीं थीं जो सबरीमाला को लेकर उनके फैसले से सहमत नहीं थीं. कई मामले ऐसे भी आए थे जब महिलाओं ने दीपक मिश्रा के फैसले के विरोध में न केवल जमकर उधम काटा बल्कि कइयों ने खुद को आग लगाने का प्रयास किया.

मामला क्योंकि लोगों की आस्था, विश्वास और श्रद्धा से जुड़ा था तो पूरे दक्षिण में तांडव होता रहा और शासन प्रशासन मूक बधिर बना तमाशा देखता रहा. मामले को लेकर केरल के अलावा कर्नाटक में भी कई जगहों पर कर्फ्यू जैसे हालात थे और स्थिति संभालने के लिए कई बार पुलिस तक को बल का इस्तेमाल करना पड़ा.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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