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Updated: 10 अगस्त, 2016 11:22 PM
राकेश उपाध्याय
राकेश उपाध्याय
  @rakesh.upadhyay.1840
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गोरक्षा और गोरक्षकों पर पीएम ने जो सवाल उठाए हैं, उसकी तपिश मोदी सरकार के लिए आगे मुश्किलों का नया दौर लाने जा रही है. वीएचपी में एक खेमा पीएम के बयान पर गोरक्षकों में भड़की गुस्से की आग को बुझाने में लगा है तो दूसरे खेमे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हिसाब मांगने की तैयारी कर ली है. इस रस्साकशी में सवाल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सामने भी खड़ा है जिसने ऊपरी तौर पर पीएम के बयान के समर्थन में बयान जारी कर मामले को ठंडा करने की पहल की. लेकिन क्या संघ के सरकार्यवाह के बयान भर से ही मामला शांत हो जाएगा?

दरअसल आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद के समर्थन से गठित राष्ट्रीय गोधन महासंघ ने प्रधानमंत्री के ताजा बयान के बाद अब केंद्र सरकार के सामने गोरक्षा से जुड़े सवालों की धार तीखी करने का फैसला लिया है. गोधन महासंघ के बैनर तले देश भर के 100 से ज्यादा गोरक्षा संगठनों ने गोरक्षा के केंद्रीय कानून की मांग उठा दी है. राष्ट्रीय गोधन महासंघ ने 7 नवंबर 2016 को दिल्ली के जवाहर लाल नेहरु स्टेडियम में देश भर के हजारों गोरक्षकों का सम्मेलन बुलाया है जिसमें सरकार के सामने नए सिरे से गोवध निषेध के लिए संसद में कानून पास करने की मांग उठाई जाएगी.

राष्ट्रीय गोधन महासंघ के संयोजक विजय खुराना का कहना है कि गोवध निषेध के केंद्रीय कानून की मांग बहुत पुरानी है, जनसंघ के जमाने से इस मामले को बीजेपी से जुड़े नेता सबसे ज्यादा उठाते रहे. खुराना गोरक्षा को लेकर देश में हुए आंदोलनों की याद दिलाते हुए कहते हैं कि 7 नवंबर 1966 में गोरक्षा के केंद्रीय कानून की मांग को लेकर दिल्ली में वोट क्लब पर हुई रैली में लाखों लोग उमड़े थे, तब सरकार ने गोली साधू-संतों पर गोली चला दी थी, उस रैली की अगुवाई जनसंघ के नेता कर रहे थे और उसमें गोभक्तों का जमकर सरकार ने दमन किया था. हमारा कहना है कि अब जबकि गोभक्तों की सरकार केंद्र में है तो वो केंद्रीय कानून क्यों पारित नहीं करती. लिहाजा इस बार 7 नवंबर को आयोजित सम्मेलन में हम उस बर्बर गोली कांड की स्मृति में शांति पाठ के साथ सरकार के सामने तीन बिंदुओं पर फैसला लेने के लिए जल्द कार्रवाई की मांग करेंगे.

पहला, गोरक्षा का केंद्रीय कानून संसद से पास हो. दूसरा-बंगलादेश की सरहद जल्द से जल्द सील हो. और तीसरा-सरकार मीट एक्सपोर्ट पॉलिसी की नए सिरे से समीक्षा करे. विजय खुराना का कहना है कि ‘हम प्रधानमंत्री के ताजा बयान पर भी गोरक्षकों के साथ चर्चा विचार करेंगे. हमारा मानना है कि असामाजिक तत्वों का गोरक्षा या गोसेवा के काम से कोई लेना-देना नहीं है. जहां कानून का राज नहीं है, वहां असामाजिक तत्व अगर गोरक्षकों का खोल ओढ़कर किसी का उत्पीड़न करते हैं तो इस काम से साधारण गोसेवकों का क्या लेना-देना. गोतस्करी में तो स्थानीय पुलिस और प्रशासन का रोल ही ज्यादा रहता है. सरकार और प्रशासन अपने कर्तव्य को पूरा करें तो किसी अनहोनी की जरुरत ही क्या है?’

एक ओर गोधन महासंघ ने सरकार के सामने केंद्रीय कानून को लेकर अल्टीमेटम का घंटा बजाना शुरु कर दिया है तो दूसरी ओर प्रधानमंत्री के बयान के समर्थन में भी ठोस तर्क सामने आने लगे हैं.

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 गोरक्षा के लिए सघन प्रयास की जरूरत

मंगलवार को दिल्ली में बीजेपी सांसद योगी आदित्यनाथ ने इस मामले में एक प्रतिनिधिमंडल से बातचीत में पीएम के बयान पर रुख साफ करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री ने सच्चाई बयान की है. गोरक्षकों के नाम पर कई जगहों पर धांधली और गोतस्करों के लिए काम करने वाले रैकेट भी काम करते पकड़े गए हैं. योगी ने साल 2013 में गोंडा में पकड़े गए रैकेट का हवाला दिया है जिसमें गोरक्षकों के नाम पर बड़ी तादाद में असामाजिक तत्व शामिल थे, जो एक तरफ ट्रकों से वसूली करते थे तो दूसरी गोतस्करी करने वाले ट्रकों को रास्ता देने के लिए पुलिस के साथ रिश्वत की सौदेबाजी भी करते थे. योगी आदित्यनाथ के खुलासे के मुताबिक, यूपी में शामली से गोंडा-बस्ती और बलिया तक गोतस्करों की मिलीभगत से असामाजिक तत्वों ने गोरक्षकों का चोला पहनकर गोसेवा के काम में लगे लोगों को बदनाम किया. लिहाजा हिंसा फैलाने वाले और गोरक्षा के नाम पर सड़कों पर गुंडागर्दी और वसूली करने वालों के साथ सख्ती बरतने में कोई बुराई नहीं है. योगी आदित्यनाथ ने गोरक्षकों से अपील भी की है कि ‘वो कानून अपने हाथ में लेकर कोई काम न करें. प्रधानमंत्री के दिल की भावना को समझें और गोरक्षा के काम में गोवध निषेध अधिनियम और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के जरिए पुलिस-प्रशासन को ही सूचित कर मजबूर करें जिससे गोवंश की अवैध आवाजाही पर रोकथाम लगाई जा सके.’

संघ परिवार से जुड़े गोरक्षा संगठनों के भी अपने तर्क हैं. सवाल सिर्फ गोवंश की अवैध आवाजाही रोकने का नहीं है, मुद्दा ये भी है कि बुजुर्ग और बीमार गोवंश की सही देखभाल कैसे हो? गोवंश को उसकी अंतिम सांस तक आर्थिक और कृषि तंत्र का अनिवार्य हिस्सा कैसे बनाकर रखा जाए? यूपी में कानपुर की भौती गोशाला भी ऐसी ही गोशाला है जहां संघ परिवार के मार्गदर्शन में गोआधारित वैकल्पिक आर्थिक व्यवस्था के नए प्रयोग चल रहे हैं. इसमें बड़ा प्रयोग इस बात को लेकर है कि कैसे गोबर गैस को सिलिंडर में भरकर उसका कॉमर्शियल इस्तेमाल बढ़ाया जाए. बैलों से चलने वाले जेनरेटर से बिजली कैसे बनाई जाए और कैसे उस बिजली से पंपिंग सेट समेत सभी छोटे-मोटे खेती के काम पूरे किए जाएं. गाय के गोबर से दफ्ती बनाने, मोबाइल रेडिएशन से बचाने वाला मोबाइल कवर बनाने, गोबर से प्लाइवुड बनाने, दीवारों पर रेडिएशन से बचाने वाली परत विकसित करने के साथ गोमूत्र से फिनाइल, मच्छर भगाने वाली क्वायल और सेहतमंद दवाएं बनाने का काम तेजी से चल रहा है.

भौती गोशाला से जुड़े आरएसएस के समाजसेवी पुरुषोत्तम तोषनीवाल कहते हैं कि गाय कटेगी तो बचेगा कौन, गाय बचेगी तो मरेगा कौन? तोषनीवाल का दावा है कि अगर भारत ने सही तरीके से अपने गोवंश के आर्थिक इस्तेमाल पर ही ध्यान दे दिया तो देश में बढ़ती बेरोजगारी और जहरीले रसायनों से हो रही नुकसानदेह फसलों की पैदावार की समस्या से देश को मुक्ति मिल सकती है. लेकिन इस काम के लिए सरकार को सीधा दखल देना होगा. पहली चुनौती है कि गोवंश की देसी नस्लों को बचाना आवश्यक है. गोसेवा से जुड़े कृषि विशेषज्ञ डॉ. राजेश दूबे का कहना है कि ‘रोज 2 से 5 लीटर तक दूध देने वाली गंगातीरी नस्ल की गाय के दूध की रोग प्रतिरोधक शक्ति का मुकाबला 20 लीटर दूध देने वाली भैंस या जर्सी गाय कभी नहीं कर सकती. भारतीय गाय की नस्लों को आप सिर्फ दूध देने की क्षमता से मत आंकिए, वैज्ञानिक रिपोर्ट बताती है कि भारतीय नस्ल की गायों के दूध में सोने और चांदी जैसी तीक्ष्ण गुणवत्ता पाई जाती है. दूध की मात्रा की ही अगर बात हो तो थारपारकर, साहीवाल, गिर नस्ल समेत दर्जनों भारतीय नस्ल की गायों का कोई जवाब नहीं. गंगातीरी गाय भी अगर सही तरीके से पोषण मिलता है तो 10 से 15 लीटर दूध आराम से दे सकती हैं.’

गोसेवा से जुड़े आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक श्रीओमप्रकाश का कहना है कि ‘केवल समाज के भरोसे गोरक्षा का काम नहीं छोड़ा जा सकता. पग पग पर सरकार की नीतियों से मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं. बात अगर चारे की ही करें तो आज देश भर में गोवंश समेत पशुओं के चारे की बड़ी किल्लत है. हरा चारा और अनाज की खली-भूसी छोड़िए, गाय को खिलाने के लिए भूसे का दाम भी आम पशुपालकों की पहुंच से बाहर होने लगा है. और गांव-गांव में सदियों से जो चारागाह थे, वो सब समाप्त हो गए. सरकार इस बारे में जिम्मेदारी से पल्ला कैसे झाड़ सकती है. बगैर सरकार के दखल के गोरक्षा का काम सिर्फ समाज के भरोसे किया जाना आज कठिन हो गया है.’

पीएम ने माईगाव के भाषण में ज्यादातर गायों की मौत के पीछे प्लास्टिक कचरा खाने को वजह बताया था. ये सवाल भी हिंदू संगठनों में चर्चा का मुद्दा बन गया है. दिल्ली में कई सामाजिक संगठनों ने प्लास्टिक और पॉलिथीन बैग्स पर पूर्ण प्रतिबंध की आवाज उठा दी है.

गोधन महासंघ के नेताओं के बीच चर्चा में ये सवाल भी उठे हैं कि ‘सड़कों पर भटकती गाय अगर प्लास्टिक कचरा खाने को मजबूर है तो दोष किसका? प्लास्टिक पर पूर्ण पाबंदी की बात को लेकर सरकारी मशीनरी कभी तेज होती है तो फिर अचानक ही शांत हो जाती है तो इसकी वजह क्या है? प्लास्टिक की थैलियां बाजार में किसके आदेश से बिकती और बंटती हैं? सबसे महत्वपूर्ण बात है कि वो पहले चारागाहों की जमीन को कब्जा मुक्त कराए, बड़े शहरों में गोशालाओं की जमीन पर अतिक्रमण रोके. नए विकसित हो रहे शहरों में गोवंश समेत पशुओं की आबादी का ठोस प्रबंधन करे. नदियों के हरे-भरे किनारों पर बूढे गोवंश के रहने का इंतजाम करे. और सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि गोबर और गोमूत्र आधारित कृषि अर्थव्यस्था और कारोबार को बढ़ावा दे तो क्या गोवंश को सड़कों पर भटकने और गोतस्करों के हाथ बेच देने के लिए देश के पशुपालक उसे बेसहारा कभी छोड़ेंगे?’

लेखक

राकेश उपाध्याय राकेश उपाध्याय @rakesh.upadhyay.1840

लेखक भारत अध्ययन केंद्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं

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