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Updated: 01 जून, 2018 08:04 PM
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अरविंद केजरीवाल राजनीति में नये ट्रेंड सेट करने के लिए जाने जाते हैं. ये केजरीवाल ही है जिन्होंने लोगों में राजनीति को लेकर नयी उम्मीद जगायी. साफ सुथरी राजनीति का चस्का लगाया. देश की राजनीति में उनका क्या योगदान रहा और निजी उपलब्धियां क्या रहीं, ये अलग से बहस का मुद्दा है.

केजरीवाल ने अब एक नयी बहस छेड़ी है - 'प्रधानमंत्री को तो पढ़ा लिखा ही होना चाहिये'. केजरीवाल ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बहाने प्रधानमंत्री मोदी पर कटाक्ष किया है. मगर, क्या वाकई केजरीवाल के निशाने पर प्रधानमंत्री मोदी ही हैं? या केजरीवाल का निशाना कहीं और है? या फिर एक ही तीर से केजरीवाल ने कई निशाने साधे हैं?

मनमोहन सिंह भी क्या माफी ही समझें?

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का नजरिया बदल रहा है. कई नेताओं से माफी मांग कर केजरीवाल खुद ही मैसेज देने की कोशिश कर रहे हैं कि नेताओं के बारे में उनकी राय बदल रही है, वरना - पहले तो उन्हें संसद में सारे के सारे हत्यारे, बलात्कारी और डकैत दिखायी देते रहे. केजरीवाल की ताजा राय पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बारे में आयी है. फिर तो मनमोहन सिंह को भी केजरीवाल को माफ कर देना चाहिये, अगर उनके मन में ऐसी कोई बात हो तो.

narendra modi, manmohan singhमनमोहन को लेकर तो केजरीवाल की राय बदली, मोदी के बारे में कब तक?

31 मई को उपचुनावों के वोटों की गिनती शुरू होने से करीब डेढ़ घंटे पहले अरविंद केजरीवाल ने एक ट्वीट किया था. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हमेशा सीधा हमला बोलनेवाले केजरीवाल ने ट्वीट में लिखा - लोग मनमोहन सिंह जैसे प्रधानमंत्री को मिस कर रहे हैं. ट्वीट में ही केजरीवाल ने इसकी वजह भी बता दी - प्रधानमंत्री को पढ़ा लिखा होना चाहिेये.

तब तक किसी को ये नहीं मालूम था कि कैराना और दूसरे उपचुनावों के नतीजे क्या होंगे? केजरीवाल के मुंह से मनमोहन के बारे में ऐसी बातें सुन कर हैरान होना लाजिमी है.

ये केजरीवाल ही हैं जो मनमोहन को कभी महाभारत का 'धृतराष्ट्र' बताया करते रहे - ऐसा शख्स जिसके सामने सब कुछ गलत होता रहता है पर लेकिन चुप्पी साधे रहता है. प्रधानमंत्री मोदी ने भी मनमोहन सिंह में ऐसी खूबी देखी और बाथरूम में रेनकोट पहन कर नहाने की बात कही. दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार के वक्त तो केजरीवाल ने किरण बेदी को भी मनमोहन सिंह की संज्ञा दे डाली थी.

प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री पर केजरीवाल अरसे से सवाल उठाते रहे हैं. टीम केजरीवाल ने पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी से और फिर आरटीआई के जरिये मोदी की डिग्री हासिल करने की कोशिश भी की. जब ज्यादा बवाल मचा तो 2016 में अमित शाह और अरुण जेटली ने प्रेस कांफ्रेंस कर डिग्री की कॉपी दिखानी पड़ी. जो कॉपी दिखाते हुए शाह और जेटली ने असली डिग्री का दावा किया केजरीवाल ने उसे भी फर्जी करार दिया था.

अब सवाल ये है कि क्या केजरीवाल मनमोहन का नाम लेकर मोदी को ही टारगेट किया है या फिर निशाने पर कोई और भी है?

कहां पे निगाहें, कहां पे निशाना?

केजरीवाल के इस ट्वीट में दो बातें समझने वाली लग रही हैं. पहली बात, केजरीवाल विपक्षी खेमे में अब अछूत नहीं रहे. ये कर्नाटक का कमाल है. इससे पहले सोनिया गांधी ने दो-दो बार दावत दी, लेकिन केजरीवाल को न्योता नहीं मिला. केजरीवाल को भी विपक्षी खेमे में शामिल करने की बात ममता बनर्जी ने बड़े जोर शोर से उठायी लेकिन कांग्रेस नेतृत्व राजी नहीं हुआ. कर्नाटक में कांग्रेस जीत गयी होती तो भी शायद ये मौका नहीं आता. वैसे केजरीवाल को बेंगलुरू का बुलावा भी तो कांग्रेस नहीं बल्कि जेडीएस नेता और कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी की ओर से ही गया होगा. केजरीवाल के इस ट्वीट से ये तो साफ है कि केजरीवाल को भी कांग्रेस से अब वैसा परहेज नहीं रहा. वैसे पहली पारी में केजरीवाल ने दिल्ली में कांग्रेस के सपोर्ट से ही सरकार बनायी थी जो महज 49 दिन ही चल पायी.

rahul gandhiप्रधानमंत्री पढ़ा लिखा तो होना चाहिये, मगर कितना?

सिर्फ कांग्रेस ही नहीं बल्कि विपक्षी एकता के दो इवेंट - लालू प्रसाद की पटना रैली और चेन्नई में एम. करुणानिधि के बर्थ डे में भी केजरीवाल को लेकर कोई चर्चा नहीं रही. नीतीश कुमार के शपथग्रहण के मौके पर केजरीवाल और लालू प्रसाद का गले मिलते फोटो जब वायरल हो गया तो केजरीवाल ने सफाई भी दे डाली - मैं गले नहीं मिला बल्कि वो ही गले पड़ गये. एक कार्यक्रम केजरीवाल ने विस्तार से समझाया कि किस तरह लालू ने उनका हाथ पकड़ कर गले लगा लिया. भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर लालू प्रसाद पर केजरीवाल तीखे हमले करते रहे हैं.

अब वो दौर नहीं रहा. नये मिजाज की विपक्षी एकजुटता का असर ये है कि वही केजरीवाल अब लालू के बेटे तेजस्वी के ट्वीट को रीट्वीट करने लगे हैं.

ajay makenकांग्रेस की ओर से ऐसी टिप्पणी क्यों आयी?

केजरीवाल के ट्वीट में दूसरी बात जो समझा आ रही है वो ज्यादा गंभीर है. ऐसा लगता है केजरीवाल ये मैसेज देना चाहते हैं कि वो विपक्षी एकजुटता के पक्षधर हैं और कांग्रेस अगर नेतृत्व चाहती है तो भी उन्हें कोई दिक्कत नहीं - शर्त तो बस इतनी है कि प्रधानमंत्री पढ़ा लिखा होना चाहिये. केजरीवाल के नजरिये से राहुल गांधी भी वैसी योग्यता नहीं रखते. केजरीवाल की पैरोकार ममता बनर्जी भी राहुल गांधी को रिजेक्ट कर चुकी हैं और कांग्रेस ममता को. केजरीवाल भी मन ही मन प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं, लेकिन फिलहाल तो संकेत ये है कि ममता के नाम पर सभी राजी हों तो उन्हें भी ऐतराज नहीं होगा.

केजरीवाल के निशाने पर राहुल गांधी हैं इस बात का सबूत है अजय माकन का ट्वीट. अपने ट्वीट में माकन ने मोदी के सत्ता में आने के पीछे केजरीवाल को ही जिम्मेदार बता रहे हैं.

अगर केजरीवाल के निशाने पर मोदी ही होते तो क्या माकन इतनी सख्त टिप्पणी करते? वो भी तब जब विपक्षी एकता की इतनी जोरदार कोशिशें हो रही हों - और उसके नतीजे भी साक्षात नजर आ रहे हों. अगर माकन को भी लगता कि मनमोहन के नाम पर केजरीवाल ने मोदी को ही निशाना बनाया है तो वो भी खामोश ही रहते. है कि नहीं?

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