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Updated: 31 जनवरी, 2021 03:01 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) के आंसू ने विपक्षी खेमे के नेताओं के चेहरे पर खुशी बिखेर दी है - और इनमें राहुल गांधी सहित वे तमाम नेता शामिल हैं जो केंद्र और यूपी में सत्ताधारी बीजेपी के खिलाफ बंदूक चलाने के लिए एक मजबूत कंधे की तलाश में मारे मारे फिर रहे थे.

मुजफ्फरनगर में किसानों की महापंचायत जहां किसान आंदोलन के लिए संजीवनी और राकेश टिकैत के लिए पेन किलर बना, वहीं विपक्षी दलों के लिए मल्टीपर्पज बाम जैसी राहत दे रहा था - गाजीपुर बॉर्डर के बाद आरएलडी नेता जयंत चौधरी की ही तरह आप नेता संजय सिंह भी सीधे महापंचायत में ही पहुंचे थे. खास बात ये रही कि महापंचायत का मजबूत आधार भी टीवी पर राकेश टिकैत की सिसकियां ही बनीं.

अभी जबकि किसान आंदोलन यूपी तक ही सिमटा हुआ लग रहा है, ऐसे में ये मोदी-शाह (Modi-Shah) के मुकाबले यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के लिए बड़ा चैलेंज हो सकता है.

चौधरी अजीत सिंह मौके का कितना फायदा उठा पाएंगे?

मुजफ्फरनगर में हुई किसानों की महापंचायत में कोई बड़ा फैसला नहीं हुआ. न कोई प्रस्ताव पारित हुआ और न ही किसान किसी नतीजे पर पहुंचते देखे गये, लेकिन जो सबसे बड़ी बात निकल कर आयी, वो है - बीजेपी के खिलाफ किसानों का गुस्सा.

ये बीजेपी की सरकारों के खिलाफ किसानों का गुस्सा ही रहा जो आरएलडी नेता अजीत सिंह के पक्ष में जा रहा है. बहुत ज्यादा भले न हो, लेकिन सही मौके पर सटीक बल्लेबाजी ने अजीत सिंह को अपने पक्ष में किसानों की सहानुभूति जगाने का अवसर तो दे ही दिया है. अजीत सिंह की राकेश टिकैत और नरेश टिकैत से फोन पर हुई बातचीत और उसके बाद उनके बेटे जयंत चौधरी का सीधे गाजीपुर बॉर्डर पहुंच कर सपोर्ट करना और फिर महापंचायत में भी हाजिरी लगाना, जाटों के दिल में आरएलडी नेताओं के जगह बनाने के काम तो आया ही है.

महापंचायत के दौरान भारतीय किसान यूनियन के नेता नरेश टिकैत का भरी सभा में स्वीकार करना कि चौधरी अजीत सिंह को हराना किसानों की सबसे बड़ी गलती है, कोई मामूली बात नहीं समझी जानी चाहिये. खास कर ऐसे माहौल में जब किसान नेता राकेश टिकैत को मुसीबत में देख इलाके की महिलाओं का गुस्सा भी उबल रहा हो.

नरेश टिकैत ने किसानों से अपनी गलती सुधारने का वादा किया है - और आने वाले चुनावों में बीजेपी को सबक सिखाने की बात भी कही है. ऐसे नाजुक दौर में नरेश टिकैत की बातें भले ही विपक्षी दलों के लिए बहुत फायदेमंद न हों, भले ही अजीत सिंह और जयंत चौधरी को मुख्यधारा में लौटाने में अभी मददगार साबित न हों, लेकिन ये तो तय मान कर चलना चाहिये कि बीजेपी के लिए नुकसानदेह तो साबित होने की आशंका तो बढ़ ही गयी है.

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मौके की नजाकत को पहले ही भांप चुके जयंत चौधरी ने कहा कि किसानों का साथ न देने वाले लोग गद्दार हैं. जयंत चौधरी का ये बयान भी प्रियंका गांधी जैसा ही है, जिसमें कांग्रेस महासचिव ने ऐसे लोगों को ही देशद्रोही बताया है. लगे हाथ जयंत चौधरी ने ऐसे गद्दारों के सामाजिक बहिष्कार की भी सलाह दे डाली.

जिस बलियान खाप के नरेश टिकैत प्रमुख हैं, पश्चिम यूपी में वही जाटों की सबसे बड़ी खाप पंचायत भी है. माना जाता है कि 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद से जाट वोट बैंक अजीत सिंह से नाराज होकर बीजेपी की तरफ शिफ्ट हो गया - और वो अभी तक बना हुआ है. पश्चिम यूपी में जाटों की आबादी 17 फीसदी है जो मेरठ, सहारनपुर और अलीगढ़ की 35-40 सीटों के नतीजे में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं और इनमें से आधी सीटों पर तो सीधे सीधे हार और जीत का फैसला भी सुनाते रहे हैं.

योगी आदित्यनाथ की मुश्किलें बढ़ सकती हैं

बीबीसी ने एक किसान के हवाले से राकेश टिकैत के इलाके का आंखों देखा हाल पेश किया है - "जो लोग भी पिछले दो दिन में अपने गांव वापस गये हैं और अपना ट्रैक्टर वहां खड़ा किया है - गांव की महिलाओं ने उनके सामने चूड़ियां फेंक दी हैं.'

गांव के हालात की जानकारी देने वाला किसान किसी जरूरी काम से अपने घर गया हुआ था, लेकिन राकेश टिकैत का वायरल वीडियो मोबाइल पर देखने के बाद गाजीपुर बॉर्डर के धरने में लौट कर फिर से शामिल हो गया.

रोने-बिलखने से ऐन पहले तक राकेश टिकैत पर बाबा टिकैत के नाम से जाने जाने वाले अपने जमाने के दिग्गज किसान नेता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत की विरासत संभाल न पाने को लेकर राहुल गांधी की तरह ही मजाक उड़ाने जैसी चर्चाएं हो रही थीं. साथ ही, राकेश टिकैत के भाई नरेश टिकैत, जो बड़ा बेटा होने की बदौलत बलियान खाप और भारतीय किसान यूनियन के नेता बने, को लेकर भी वैसी ही चर्चा हो रही था, लेकिन अब कहा जाने लगा है कि सिर्फ एक वाकये ने दोनों भाइयों को एक झटके में करीब ला दिया है. नरेश टिकैत ने कहा है, मेरे भाई के आंसू बेकार नहीं जाएंगे. वैसे ये तात्कालिक बातें ही लगती हैं क्योंकि दोनों भाइयों के मतभेद पुराने और चर्चित रहे हैं.

अब तक ये तो मालूम हो चुका है कि किसान आंदोलन फिर से खड़ा होने की कोशिश कर रहा है. आंदोलन से हट चुके एक किसान संगठन के भी लौटने की बात सुनी जा रही है - मौके की ताक में बैठे विपक्षी दलों के नेता अपनी राजनीति चमकाने में जुट गये हैं.

अब सवाल ये है कि क्या किसान आंदोलन फिर से केंद्र की सत्ता की बागडोर संभाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के लिए चुनौती बनने जा रहा है?

सवाल का जवाब हां में समझना थोड़ी जल्दबाजी हो सकती है - क्योंकि किसान आंदोलन की वापसी अभी सिर्फ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के एक्टिव होने से समझी जा रही है, पंजाब और हरियाणा के किसानों का क्या रुख होता है ये जरूर देखना होगा.

भारतीय किसान यूनियन, संयुक्त किसान मोर्चा में पहले तो नहीं लेकिन बाद में शामिल हो गया था, लेकिन मोर्चे का एक हिस्सा भर है - असली ताकत मोर्चे की अंगड़ाई देखने के बाद ही समझ में आएगी.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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