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Updated: 24 सितम्बर, 2015 11:07 AM
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मुख्‍यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के जवाबी खत पर ये पत्र लिखा है वरिष्‍ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने-

प्रिय देवेंद्रजी,

पहले तो मैं आपको मेरे खुले खत का जवाब देने और एक सार्वजनिक बहस का मौका देने के लिए धन्यवाद देता हूं. यह एक स्वस्थ लोकतंत्र का प्रतीक है और यह आज के जमाने में किसी पॉलिटिशियन के लिए दुर्लभ है. मैं सच में इस बात की प्रशंसा करता हूं कि एक बड़े पॉलिटिशियन ने मुझ जैसे एक स्तंभकार के खत का जवाब दिया. यह उस युग में बहुत कम होता है जहां मीडिया सॉफ्ट टारगेट है. हालांकि, मैं नहीं चाहता कि यह तू-तू, मैं-मैं में बदले, लेकिन मेरे पास जवाब देने का अधिकार होना चाहिए.

श्रीमान, चार बुनियादी मुद्दे है जिन्हें मैंने अपने पहले खत में उठाया था और जिनका आपने जवाब दिया था. सबसे पहला, महाराष्ट्र में मीट और बीफ बैन. बीफ बैन के बारे में तथ्य यह है कि आपकी सरकार ने संबंधित पक्षों से बातचीत किए बिना ही पूरे राज्य में एकतरफा बैन लगा दिया. इसका नतीजा सबके सामने है. जानवरों के व्यापार से जुड़े हजारों लोग रातोंरात बेरोजगार हो गए. ये सभी इस देश के नागरिक हैं, जिनमें से कइयों ने पिछले चुनाव में आपको वोट दिया था. मैंने उनकी दुर्दशा के बारे में एक भी सहानुभूति भरा शब्द नहीं सुना है. (उनमें से ज्यादातर लोग अल्पसंख्यक समुदाय के हैं) क्या एक पत्रकार के तौर पर मैं यह नहीं पूछ सकता कि इस बैन से कौन से उपयोगी सार्वजनिक उद्देश्य की पूर्ति की गई? या फिर सवाल पूछने भर से मैं अपना एजेंडा चलाने वाला बन जाता हूं?

मीट बैन के मुद्दे का इतिहास बहुत उतार-चढ़ाव वाला रहा है. हां, कांग्रेस-एनसीपी की पिछली सरकार ने, जैन त्योहार के दौरान मीट की बिक्री पर बैन लगाने का प्रस्ताव किया था, चाहे वह राज्य के स्तर पर रहा हो या नगरपालिका के स्तर पर. जैन समुदाय के दबाव के कारण 1994, 2003-04 और 2014 में आपकी पूर्ववर्ती सरकार ने सरकारी प्रस्तावों द्वारा ऐसी कोशिशें की थीं (और अपने लेख में मैंने बिना तारीखों का हवाला दिए इसका जिक्र भी किया है) लेकिन इन्हें कभी भी व्यापक रूप से लागू नहीं किया गया (उदाहरण के तौर पर 94 के आदेश को कभी लागू नहीं किया गया), ज्यादातर इसे स्वैच्छिक भावना के साथ किया गया (मीट की दुकानों को बंद करने की एक 'अपील' की गई थी) और शुरुआत में यह दो दिन से ज्यादा नहीं चला (हालांकि अगस्त 2014 में इसे चार दिन करने के लिए सरकारी प्रस्ताव लाया गया था). सिर्फ इस साल बीजेपी के बहुमत वाले मीरा-भाएंदर नगरपालिका ने मीट की बिक्री पर आठ दिनों का अभूतपूर्व बैन लगा दिया और इसे सख्ती से लागू भी किया. इस बात से प्रेरणा लेते हुए बीजेपी विधायकों, पार्षदों और जैन समुदाय के लोग नगरपालिका कमिश्नर से मिले और मुंबई सहित पूरे शहर में मीट की बिक्री पर आठ दिनों का बैन लगाने की मांग की. लेकिन शिवसेना और एमएनएस द्वारा विरोध किए जाने के बाद ही आपके स्थानीय नेताओं को इससे पीछे हटना पड़ा क्योंकि वे बहुमत नहीं जुटा सके.

संदेश स्पष्ट है और यही मुद्दा मैं उठा रहा थाः राज्य बीजेपी बैन को लागू करना चाहती थी, वास्तव में अतीत के मुकाबले ज्यादा बड़े दायरे में बैन लगाने पर जोर दे रही थी और अगर मैंने इससे जुड़ा सवाल पूछा तो क्या मैं एक एजेंडा चलाने वाला या छद्म-सेक्युलर हूं या सीधे तौर पर समाज के उस बड़े तबके की चिंता को व्यक्त कर रहा हूं जो बैन की संस्कृति को पसंद नहीं करता है, फिर चाहे वह बीजेपी सरकार हो या कांग्रेस की सरकार.

आइए राकेश मारिया और पुलिस कमिश्नर ऑफिस के साथ खेले गए म्यूजिकल चेयर की बात करें. आपने दावा किया कि यह अचानक ट्रांसफर जल्द आने वाले त्योहारों को ध्यान में रखकर किया गयाः एक नए आदमी को त्योहारों की तैयारियों को समझने की जरूरत थी. सच यह है कि कोई भी सीनियर पुलिस ऑफिसर जिससे मैंने बात की आपकी इस थ्योरी से सहमत नहीं था. जो रिटायर हो चुके हैं उन्होंने खुले तौर पर इस बात की आलोचना की और जो अफसर ड्यूटी में हैं वे स्वाभाविक तौर पर इस मुद्दे पर बोलने से हिचकते रहे. सवाल यह है कि मिस्टर मारिया के ट्रांसफर का शीना बोर मर्डर केस की जांच से कुछ लेना देना है या व्यक्तिगत विरोध. आपका कहना है कि इस मर्डर केस की जांच में एक कमिश्नर के तौर पर उनकी भूमिका पूर्णतया एक पर्यवेक्षी की थी. हो सकता है ऐसा हो, या ऐसा होना चाहिए. लेकिन तथ्य तो यह है कि आपकी सरकार ने सुबह डीजी होम गार्ड्स के पद पर उनका ट्रांसफर करने के बाद उसी दिन शाम को दावा किया था कि वह बोरा मर्डर की जांच जारी रखेंगे. वह भी तब जबकि एक नए पुलिस कमिश्नर और एक और बेहतरीन ऑफिसर अहमद जावेद अपना पद संभाल चुके थे. क्या इससे ज्यादा भ्रामक कुछ हो सकता है? अब आपकी सरकार ने अचानक ही बोरा केस को सीबीआई को सौंप दिया है. मुंबई पुलिस ने कोर्ट में आरोपी की रिमांड मांगते वक्त दावा किया था कि उसके पास ठोस सबूत हैं, तो क्यों केस को ट्रांसफर किया जा रहा है? क्या मुंबई पुलिस अक्षम है, क्या कुछ छिपाया जा रहा है, या इस केस में ऐसी नई बातें सामने आई हैं जिनकी शायद नए सिरे से जांच किए जाने की जरूरत है? क्या बिना उसकी मंशा पर सवाल उठाए कोई पत्रकार ऐसे सवाल नहीं पूछ सकता?

आइए अब राजद्रोह और सरकारी सर्कुलर की बात करें. आपने दावा किया कि यह सर्कुलर पिछली सरकार द्वारा पास किए गए आदेश का रूटीन मराठी अनुवाद था. आपके जवाब से ऐसा लगता है कि आपकी सरकार की भूमिका क्लर्क की तरह है जिसे किसी गंभीर मुद्दे पर अपना दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है. लेकिन मैं इतना ही कहा सकता हूं कि मंगलवार को मुंबई हाईकोर्ट ने इस मुद्दे में नया मोड़ ला दिया हैः कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी द्वारा दायर की गई याचिका पर हाईकोर्ट ने आपकी सरकार को इस सर्कुलर को अभी लागू न करने और 20 अक्टूबर तक जवाब देने को कहा है. अब जबकि मामला माननीय कोर्ट के पास है तो हमें इंतजार करना चाहिए कि वह सरकारी सर्कुलर की कैसे व्याख्या करती है: निश्चित तौर पर यह उन लोगों की जीत है जो इस बात से चिंतित हैं कि सर्कुलर का पुलिस द्वारा गलत इस्तेमाल किया जा सकता है. यदि आपकी सरकार का राजद्रोह के सर्कुलर के साथ कोई संबंध नहीं था तो क्यों आपकी सरकार ने इसे वापस नहीं लिया?

राजद्रोह लोकतांत्रिक सरकार द्वारा एक हथियार के तौर पर मुश्किल से ही इस्तेमाल किया जाता है, जिस पर बहस और असहमति का स्वागत किया जाना चाहिए. क्यों आपकी सरकार ने इस सर्कुलर को फिर से जारी किया? और अगर मैं इसके गलत इस्तेमाल का मुद्दा उठाऊं तो क्या मैं एजेंडा चलाने वाला हूं या सिर्फ एक पत्रकार के तौर पर अपना कर्तव्य निभा रहा हूं?

चौथा मुद्दा जो मेरे और आपके दिल के करीब हैः किसानों का पलायन, खासकर मराठवाड़ा में. आप विदर्भ से आने वाले राजनीतिज्ञ हैं, मै जानता हूं कि आप किसानों से जुड़े मुद्दों के प्रति सहानुभूति रखते हैं. मुझे पता है कि जब आप विपक्ष में थे तो सिंचाई घोटाले को उजागर करने में आपने अग्रणी भूमिका निभाई थी. और साथ ही मैं जल युक्त शिविर योजना द्वारा जमीनी स्थिति सुधारने के लिए किए गए आपके प्रयासों से भी अवगत हूं. फिर भी तथ्य यह है कि अकेले मराठवाड़ा में जनवरी से 729 किसानों ने आत्महत्या की है, जो देश के किसी भी हिस्से से ज्यादा है, और टैंकर माफिया और जबर्दस्त ब्याज वसूलने वाले सूदखोर यहां राज कर रहे हैं. हां, यह एक मिली हुई विरासत है (और सिंचाई की असफलता और पिछली सरकार के मंत्रियों द्वारा की गई टिप्पणियों के लिए मेरा मूल खत देखें), लेकिन जमीनी स्तर पर शायद ही कोई ऐसा सबूत है जो कोई उल्लेखनीय सुधार दिखाता हो. हो सकता है कि अगर आपकी सूक्ष्म सिंचाई योजनाएं काम करें तो लंबे समय में कुछ बदलाव होगा. लेकिन अभी के लिए संकट गहरा रहा है. क्या इसलिए मुझे आपसे इस वक्त किसानों के राहत के काम को प्राथमिकता देने के लिए नहीं कहना चाहिए? और क्या मुझे यह भी नहीं पूछना चाहिए कि उस चुनाव पूर्व वादे का क्या हुआ जिसमें आपने सिंचाई घोटाले के दोषियों को सजा दिलाने की बात कही थी? या चीयरलीडर्स और बेलगाम भक्ति के जमाने में कड़े सवाल पूछा जाना स्वीकार्य नहीं है?

मेरा अंतिम मुद्दा है श्रीमानः अपनी प्रतिक्रिया में आपने कई जगह मुझे वामपंथी, छद्म सेक्युलर और पक्षपाती कहा. साथ ही आपने वरिष्ठ पत्रकार, को इनवर्टेड कॉमा के साथ प्रयोग करके वरिष्ठ शब्द को उपहासपूर्ण तरीके से प्रयोग किया. निजी हमले आजकल बहुत आम हैं, 27 साल की पत्रकारिता के कॅरियर ने मेरी खाल मोटी करने में मदद की है. इन वर्षों में मुझ पर कई लोगों ने हमला किया हैः वर्ष 1992-93 में महाराष्ट्र के ही पूर्व सीएम शरद पवार ने मुंबई दंगों के बारे में सवाल पूछने के लिए मुझे प्रेस कॉन्फ्रेंस से निकाल दिया था. 10 साल बाद 2002 के दंगों की कवरेज लिए मुझ पर फिर से हमला किया गया. मैं सभी तरह के अतिवाद के खिलाफ खड़ा हुआ, हिंदू और मुस्लिम, और मैं हर तरह के रूढ़िवादी सिद्धांतों के प्रति सशंकित रहा हूं, फिर चाहे वह वामपंथ हो या दक्षिणपंथ. मैंने कांग्रेस के भ्रष्टाचार को उजागर किया (एक चैनल के एडिटर के तौर पर मैंने क्वात्रोच्चि के खातों को खोले जाने की जांच से जुड़ी बड़ी खबर का पर्यवक्षेण किया), संघ परिवार की घृणा की राजनीति, मुलायम की गुंडागर्दी (जिसके लिए मुझे यूपी विधानसभा की ओर से समन जारी हुआ था) मायावती की आय से अधिक संपत्ति (जिसके लिए हमारी ओबी बैन को जला दिया गया था) कृपया, मेरे पिछले दो दशक के कॉलमों को पढ़ें, खासतौर पर महाराष्ट्र की राजनीति पर, एक ऐसा राज्य जिसकी राजनीतिक और सामाजिक गिरावट को मैंने निराशा के साथ देखा है.

मैं आत्मनिरीक्षण करने और सही किए जाने के लिए खुश हूं लेकिन किसी भी तरीके से किसी वर्ग में बांट दिए जाने को नापसंद करता हूं, सिवाय यह कहने के कि मैं उदार और बहुसंख्यक भारत की भावना में विश्वास करता हूं जो अपने सभी नागरिकों को समान अवसर प्रदान करने का प्रयास है. क्या इससे मैं वामपंथी बन जाता हूं? आप सभी सवाल पूछनेवालों से असंतुष्ट प्रतीत होते हैं? अगर मैं किसी भी तरह की कट्टरता के बारे में सवाल पूछता हूं तो क्या मैं छद्म-सेक्युलर हो जाता हूं? मेरे विचार में, यह बात मुझे एक गौरवान्वित और दयालु भारतीय बनाती है.

पोस्ट स्क्रिप्टः मैं आपके सभी फॉलोअर्स का शुक्रिया अदा करना चाहता हूं जिन्होंने मंगलवार को मुझे पूरे दिन ट्विटर पर ट्रेंड कराया. उनकी लगातार आलोचना मुझे शक्ति देती है. उम्मीद है जल्द मुलाकात होगी! जय महाराष्ट्र, जय हिंद!

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