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Updated: 17 अप्रिल, 2020 12:04 PM
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कोरोना वायरस (Coronavirus) से बचाव के लिए देश में लागू संपूर्ण लॉकडाउन (Lockdown 2.0) पर राजनीति शुरू तो काफी पहले हो चुकी थी - अब धीरे धीरे तेज होने लगी है. जब तक लॉकडाउन की घोषणा नहीं हुई थी, इसे लागू किये जाने की लगातार मांग हो रही थी. जब लॉकडाउन लागू हो गया तो शोर मचा कि बगैर तैयारी के लागू कर दिया गया - और जब से 21 दिन पूरा होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन 2.0 की घोषणा की है - लॉकडाउन की जरूरत पर ही सवाल उठाये जाने लगे हैं. अब तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) भी मैदान में कूद पड़े हैं.

ऐसा लगता है जैसे CAA विरोध की तरह ही एक खास रणनीति के तहत लॉकडाउन पर मोदी सरकार (Narendra Modi) को घेरने की राजनीति चल पड़ी है - और समझने वाली बात तो ये है कि CAA विरोध की तरह इस बार भी सूत्रधार चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ही नजर आ रहे हैं.

सवाल है कि जब पूरी दुनिया लॉकडाउन के रास्ते ही कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी से लड़ाई लड़ रही है और काफी हद तक फतह भी हासिल कर रही है - भारत में लॉकडाउन पर सवाल क्यों उठाये जा रहे हैं?

लॉकडाउन को लेकर ऐसी आशंका क्यों?

लॉकडाउन 2.0 की शुरुआत के 24 घंटे के भीतर ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी विरोध का बीड़ा उठाये मैदान में कूद पड़े हैं. राहुल गांधी की नजर में लॉकडाउन कोरोना वायरस से जंग में अपर्याप्त, अप्रभावी और अस्थायी उपाय है. मोटे तौर पर समझना चाहें तो राहुल गांधी साफ तौर पर यही समझा रहे हैं कि लॉकडाउन छोड़कर सरकार को रैंडम-टेस्टिंग पर फोकस करना चाहिये.

लॉकडाउन के राजनीतिक विरोध को समझने के लिए थोड़ा इसके पैटर्न पर गौर करना होगा. एक खास बात ये भी है कि लॉकडाउन को लेकर विपक्ष ने अपनी रणनीति बदल ली है. लॉकडाउन 2.0 पर मोदी सरकार को घेरने की वो रणनीति पीछे छूट चुकी है जो लॉकडाउन के पहले चरण में अपनायी जा रही थी. पहले गैर-बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री आगे बढ़ कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐलान से पहले या तो लॉकडाउन लागू कर रहे थे या फिर 21 दिन पूरा होने से पहले ही दो हफ्ते के लिए बढ़ाने की घोषणा कर चुके थे. अब विरोध का नया तरीका सामने आ रहा है.

rahul gandhi, narendra modiकांग्रेस की अगुवाई में लॉकडाउन पर मोदी सरकार को घेरने में जुटा विपक्ष

लॉकडाउन 2.0 को लेकर विपक्षी खेमे से कांग्रेस नेताओं की जो प्रतिक्रिया आयी थी उसमें विरोध नहीं बल्कि निराशा का भाव दिखा. सवाल ऐसे उठाये जा रहे थे जैसे गरीबों के लिए कुछ नहीं बोला - मजदूरों के लिए कोई उपाय नहीं बताया. जैसे बजट कभी विपक्ष की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरता, लॉकडाउन 2.0 पर भी वैसी ही टिप्पणियां सुनने को मिली थीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्र के नाम संबोधन के करीब तीन घंटे बाद जेडीयू से हटाये गये चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का ट्वीट आया. प्रशांत किशोर का सवाल रहा - सरकार तब क्या करेगी अगर लॉकडाउन 2.0 फेल हो गया!

प्रशांत किशोर ने ट्विटर पर लिखा - लॉकडाउन 2 के तर्कसंगत होने और तौर-तरीकों पर अंतहीन बहस बेकार है. असल सवाल तो ये है कि अगर 3 मई तक इस रास्ते पर चल कर भी नतीजे नहीं मिल पाते तो क्या होगा? क्या हमारे पास कोई वैकल्पिक योजना है या जो है वो सब ठीक भी कर पाएगी?

मुख्यधारा की राजनीति में तो प्रशांत किशोर को अभी कुछ कर दिखाने का मौका भी नहीं मिला है, लेकिन चुनावी रणनीति में वो खुद को साबित कर चुके हैं कि वो बेस्ट हैं. जेडीयू से निष्कासन के बाद प्रशांत किशोर 'बात बिहार की' अभियान शुरू किये थे और थोड़ी दूर ही आगे बढ़ पाये थे कि कोरोना संकट धमका.

जहां तक पब्लिक हेल्थ की बात है तो प्रशांत किशोर विश्व स्वास्थ्य संगठन के लिये काम कर चुके हैं - और जाहिर है वो ऐसी समस्याओं को करीब से देखे, समझे और काम भी किये होंगे. लेकिन कोरोना ने तो पूरी दुनिया को सकते में डाल दिया है, इसलिए ये प्रशांत किशोर के लिए भी नया ही मुद्दा होगा.

फिर भी जिस लॉकडाउन के भरोसे पूरी दुनिया के देश अपने लोगों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. चीन जहां से कोरोना वायरस संकट की शुरुआत हुई, उसने भी वुहान में 76 दिन तक लॉकडाउन सख्ती से लागू किये रखा - और जब नये मामले आने बंद हुए तभी हटाया - प्रशांत किशोर का सवाल बिलकुल अजीब लगता है.

अगर वो कोरोना के खिलाफ प्लान-बी का सवाल उठाते और उसके लिए मोदी सरकार को घेरते तो भी कोई बात नहीं होती - लेकिन लॉकडाउन को सिरे से खारिज कर देना, लॉकडाउन को लेकर गहरी आशंका जताना बहुत अजीब लग रहा है.

सरकार पर सवाल तो स्वराज इंडिया के नेता योगेंद्र यादव ने भी उठाया है लेकिन लॉकडाउन लागू किये जाने के तरीके पर. द प्रिंट में लिखे अपने एक लेख में योगेंद्र यादव कहते हैं - 'लॉकडाऊन-1 का फैसला जिस तरह लोगों को अंधेरे में रखकर, बिना किसी पूर्व-तैयारी और सख्ती के साथ किया गया. उसकी जिम्मेवारी से प्रधानमंत्री अपना दामन नहीं बचा सकते. लेकिन, लॉकडाऊन-2 के फैसले के वक्त वैसी कोई स्थिति मौजूद नहीं जो लॉकडाऊन-1 के वक्त थी. फिर भी लॉकडाऊन-2 को तीन हफ्ते के लिए लागू किया गया है और वो भी लोगों को हासिल सामाजिक-सुरक्षा कवच में बिना कोई विस्तार किये.'

योगेंद्र यादव लॉकडाउन के महत्व पर नहीं बल्कि उसे लागू किये जाते वक्त के हालात और सरकार की तरफ से किये गये उपायों पर सवाल उठा रहे हैं. कहने को तो योगेंद्र यादव यहां तक कहते हैं, 'आप जिस कोण से हिसाब लगायें, आपको नजर आयेगा कि लॉकडाऊन के कारण जितने लोगों की जिंदगी बचायी जा सकती है, उससे ज्यादा नहीं तो भी लगभग उतनी ही तादाद में लोगों की जिंदगी जा भी सकती है. हो सकता है, जो जिंदगियां बचायी जा सकीं वो आर्थिक रुप से बेहतर दशा में हो, ऐसे लोग उम्रदराज हों और उनका बच जाना हमें स्पष्ट नजर भी आ रहा हो. लेकिन, जीविका के संकट में फंसकर जो लोग जान गंवायेंगे वो निश्चित रुप से गरीब होंगे.'

लेकिन प्रशांत किशोर के ट्वीट के बाद जिस तरीके से राहुल गांधी ने मोर्चा खोला है - ऐसा लगता है जैसे CAA के खिलाफ तैयार की गयी राजनीतिक लामबंदी दोहराये जाने की तैयारी परदे के पीछे हो चुकी है.

लॉकडाउन का CAA जैसा विरोध क्यों?

नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के मुद्दे पर प्रशांत किशोर ने गैर-बीजेपी मुख्यमंत्रियों को विरोध के लिए आगे आने की अपील की थी. फिर कांग्रेस नेतृत्व को ललकारते हुए विरोध की आवाज बुलंत करने की चुनौती दी थी. उसके बाद देखने को मिला कि सोनिया गांधी ने राजघाट पर पहुंच कर संविधान की प्रस्तावना का पाठ किया - और राहुल गांथी और प्रियंका गांधी वाड्रा भी साथी कांग्रेस नेताओं के साथ डटे रहे. तभी गैर-बीजेपी शासित राज्य सरकारों ने सीएए के विरोध में प्रस्ताव भी पास किये - जिसमें कैप्टन अमरिंदर सिंह की नेतृत्व वाली पंजाब सरकार भी शामिल रही.

फिर प्रियंका गांधी वाड्रा यूपी के तूफानी दौरे पर निकल पड़ीं. जगह जगह जाकर उन परिवारों से मिलने लगीं जो सीएए विरोध के दौरान पुलिस एक्शन के शिकार हुए थे. लखनऊ पुलिस पर तो प्रियंका वाड्रा ने धक्कामुक्की के दौरान गले पर हाथ डालने का भी आरोप लगाया, लेकिन कुछ ही देर में भूल सुधार भी सामने आया और वो सिर्फ दुर्व्यवहार की बात करने लगीं. जब शाहीन बाग के साथ साथ देश भर में सड़कों पर सीएए के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे थे तो प्रशांत किशोर ट्विटर पर आये और कांग्रेस नेतृत्व विशेषकर राहुल गांधी का नाम लेकर शुक्रिया अदा किया. तब दिल्ली में विधानसभा के चुनाव चल रहे थे - और माना गया कि प्रशांत किशोर अपने क्लाइंट अरविंद केजरीवाल की जीत सुनिश्चित करने के लिए ऐसा कर रहे थे. बहरहाल, प्रशांत किशोर और अरविंद केजरीवाल दोनों ही कामयाब रहे.

लॉकडाउन पर विपक्ष की अभी वैसी लामबंदी तो नहीं नजर आ रही है, लेकिन प्रशांत किशोर के ट्वीट के बाद राहुल गांधी का प्रेस कांफ्रेंस कर मोदी सरकार के फैसले पर सवाल उठाना और लॉकडाउन के मुद्दे पर दोनों का एक राय होना - एक राजनीतिक रणनीति की तरफ इशारा तो कर ही रहा है.

प्रशांत किशोर और राहुल गांधी जो बातें कर रहे हैं, वही मुद्दा कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल सुप्रीम कोर्ट में उठा रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट में कपिल सिब्बल का कहना रहा कि डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट, 2005 के तहत सरकार ने कोविड 19 के खिलाफ कोई राष्ट्रीय प्लान तैयार या एक्टिव किया है या नहीं पता ही नहीं चल रहा है - ऐसे में कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप करने की गुजारिश की है ताकि सरकार बताये कि वो क्या उपाय कर रही है.

साफ है जो मुद्दे राहुल गांधी उठा रहे हैं या जिसे लेकर प्रशांत किशोर ट्वीट कर रहे हैं - सुप्रीम कोर्ट पहुंच कर कपिल सिब्बल भी वही मसला उठा रहे हैं.

अब तो राहुल गांधी समझाने लगे हैं कि लॉकडाउन कोरोना का इलाज नहीं सिर्फ पॉज बटन है!

प्रशांत किशोर लॉकडाउन की सफलता पर आशंका जता रहे हैं तो राहुल गांधी कह रहे हैं कि लॉकडाउन की वजह से कोरोना खत्म नहीं हो रहा है - यह केवल रूका है, जैसे ही लॉकडाउन हटेगा, कोरोना के मामले बढ़ेंगे.

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