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Updated: 28 जनवरी, 2022 06:25 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पहले ही पंजाब में कांग्रेस का चुनाव कैंपेन शुरू करना था. 3 जनवरी को पंजाब के मोगा में राहुल गांधी की रैली होनी थी, लेकिन दो दिन पहले ही वो विदेश दौरे पर चले गये.

अच्छा ही हुआ. वरना, दो दिन बाद ही 5 जनवरी को प्रधानमंत्री मोदी की सुरक्षा में जो सेंध लगी - राहुल गांधी की रैली की बातें तो लोग भूल ही चुके होते. राहुल गांधी रैली को यादगार बनाने का जो भी प्लान सोच कर पंजाब पहुंचे हों. अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में मत्था टेकने के बाद जहां कहीं भी राहुल गांधी नजर आ रहे थे, अगल बगल मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और पंजाब कांग्रेस कमेटी के चीफ नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) मौजूद नजर आये. राहुल गांधी भी समझ ही रहे होंगे कि ये मौजदगी तो असल में वर्चस्व के लिए चल रही प्रतियोगिता का हिस्सा ही है.

चन्नी और सिद्धू की मौजूदगी के बावजूद, कांग्रेस सांसदों की गैरमौजूदगी को लेकर लोगों के मन में शंका होने लगी. कहीं बागियों के G-23 नेता मनीष तिवारी और पटियाला सांसद परनीत कौर ने राहुल गांधी के दौरे का बहिष्कार तो नहीं किया. कैप्टन के कांग्रेस छोड़ देने के बाद तो वैसे भी परनीत कौर के वहां होने का कोई मतलब नहीं था. बहरहाल, डैमेज कंट्रोल करते हुए बताया गया कि सांसदों नहीं, बल्कि के विधानसभा उम्मीदवारों को ही मिलने के लिए बुलाया गया था.

ये सब तो कुछ भी नहीं, बड़ी मुसीबत तो राहुल गांधी का अलग ही इंतजार कर रही थी. हो सकता है, अपनी शायरी की तरह ही सिद्धू ने मौके की नजाकत को समझते हुए फटाफट कांग्रेस के मुख्यमंत्री चेहरे का मुद्दा उठाने का फैसला किया हो. अब तो ऐसा लगने लगा है जैसे सिद्धू भी राहुल गांधी को अब वैसे ही घेरने लगे हैं जैसे पिछली बार कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt Amrinder Singh) ने किया था.

राहुल गांधी ने भी थोड़ी चतुराई से काम लिया और बच गये क्योंकि सिद्धू ने तो अपने कैप्टन को घेर ही लिया था, चन्नी ने भी अपना हाथ सेंक ही लिया. अब तो राहुल गांधी के सामने आगे कुआं और पीछे खाई वाली स्थिति पैदा हो गयी है - मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करें तो भी मुसीबत और न करें तो भी!

5 साल बाद भी पंजाब में गांधी परिवार की मुसीबत वही

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को पंजाब कांग्रेस प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू ने पंजाब के पहले चुनावी ही दौरे में घेर लिया - मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने को लेकर.

navjot singh sidhu, rahul gandhi, capt amrinder singhराहुल गांधी के लिए तो जैसे पहले कैप्टन थे - अब सिद्धू भी वही राह पकड़ चुके हैं.

ठीक पांच साल पहले भी राहुल गांधी के साथ ऐसा ही हुआ था, लेकिन राहुल गांधी पहले की तरह इस बार नवजोत सिंह सिद्धू के दबाव में टूटे नहीं. राहुल गांधी ने भी सिद्धू की स्टाइल में ही जवाब दिया और बड़े आराम ने निकल लिये.

सिद्धू के सवाल, राहुल का जवाब: जैसे सिद्धू ने कहा कि लोग पूछ रहे हैं, राहुल गांधी ने भी उसी लहजे में बोल दिया - ठीक है लोगों से ही पूछ लेते हैं. सिद्धू इससे ज्यादा कर भी क्या सकते थे. फिर भी पैंतरेबाजी में कोई कमी नहीं रखी.

नवजोत सिंह सिद्धू ने मुख्यमंत्री के चेहरे पर राहुल गांधी को बयान देने के लिए कोई कोशिश बाकी न रखी. सिद्धू या तो पंजाब के लोगों की दुहाई देते रहे हैं, या फिर कांग्रेस कार्यकर्ताओं की. पंजाब के लोगों का नाम लेकर ही सिद्धू ने पूछ लिया, कर्ज के दलदल से लोगों को कौन निकालेगा? ऐसा करने के लिए उसके पास एजेंडा क्या होगा - और एजेंडे को लागू कौन करेगा? मतलब, ये सब करेगा तो वही जो मुख्यमंत्री बनेगा. बनेगा भी वही जिसका चेहरा घोषित किया जाएगा.

अपनी खास स्टाइल में सिद्धू बोले, 'पंजाब के लोग पूछ रहे हैं, 'बंदा कौन होगा... चेहरा कौन दोगे? मैं कहता हूं सर आप किसी को भी बनाओ... आप समझ लो लेकिन मैं गारंटी देता हूं कि अगर आप ये बता दोगे... 70 सीट के साथ कांग्रेस की सरकार बनेगी. वचन है राहुल जी को कि आपका फैसला पूरी कांग्रेस पार्टी मानेगी. अनुशासन पालेगा वही शासन पालेगा, हम अगली जनरेशन के लिए लड़ रहे हैं.'

लगता है राहुल गांधी भी अब सिद्धू की पैंतरेबाजी समझने लगे हैं. सिद्धू के सवाल के जवाब में राहुल गांधी ने भी साफ साफ बोल दिया है कि कार्यकर्ताओं और नेताओं के राय-मशविरे के बाद पार्टी मुख्यमंत्री के चेहरे पर फैसला लेगी.

सिद्धू भी कैप्टन की राह पर: जब पांच साल पहले पंजाब विधानसभा के चुनाव होने थे, तब भी कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी ही हुआ करती थीं - और राहुल गांधी तब वाइस प्रेसिडेंट थे, लेकिन राहुल गांधी की तब भी उतनी ही चलती थी जितनी आज बतौर CWC सदस्य और वायनाड के सांसद के रूप में दबदबा है.

राहुल गांधी पहले से ही राज्यों में अपनी पसंद के लोगों को कमान सौंपते आ रहे थे. पंजाब में प्रताप सिंह बाजवा उनके फेवरेट हुआ करते थे. चुनावों से ऐन पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने ऐसी रणनीति तैयार की कि गांधी परिवार तक मैसेज पहुंचा कि अगर कैप्टन की बात नहीं मानी गयी तो वो अपनी पार्टी बना कर कांग्रेस को तोड़ देंगे.

थक हार कर, राहुल गांधी को किनारे करते हुए, सोनिया गांधी ने तत्कालीन राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल के कहने पर कैप्टन अमरिंदर सिंह को कमान सौंप दी - और बाकी तो सबको पता ही है.

नवजोत सिंह सिद्धू भी तकरीबन वैसी ही रणनीति पर काम करते रहे - और फिर कैप्टन के साथ भी गांधी परिवार को वैसा ही करने को मजबूर किया जैसा बाजवा के साथ सलूक हुआ था. हालांकि, कैप्टन बेहतर स्थिति में रहे बनिस्बत बाजवा के क्योंकि वो मुख्यमंत्री भी थे.

सोनिया गांधी ने जैसे बाजवा से इस्तीफा मांगा था, इस बार कैप्टन से मांग लिया - और सिद्धू को पंजाब कांग्रेस की कमान सौंप दी गयी. पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष भले ही बना दिया गया, लेकिन सिद्धू भी तो कैप्टन की ही तरह मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं. फर्क ये रहा कि पिछली बार सोनिया ने मजबूर होकर अपने मन से जो काम किया था, इस पार दोनों बच्चों राहुल और प्रियंका गांधी वाड्रा की सिफारिश पर करने के लिए मजबूर होना पड़ा. हुआ तो बिलकुल वैसा ही जैसा पिछले चुनाव से पहले हुआ था.

चूंकि परस्थितियां अलग थीं और बीती बातों से सबक लेते हुए सोनिया गांधी ने सिद्धू को कांग्रेस की कमान तो सौंप दी, लेकिन उनके मुख्यमंत्री बनने में बाधाएं खड़ी कर दी और फिर चन्नी का अवतार हुआ - पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री के रूप में.

सिद्धू बनाम चन्नी बनाम गांधी परिवार

मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर पार्टी यानी गांधी परिवार क्या फैसला लेता है, देखना होगा. हालांकि, अब ये तो महसूस किया जाने ही लगा है कि गांधी परिवार ने सिद्धू पर पहले की तरह आंख मूंद कर भरोसा करना खत्म तो नहीं, लेकिन कम जरूर कर दिया है - सिद्धू के अपने कैप्टन के दरबार में भी सुनवाई अब फास्ट ट्रैक कोर्ट की तरह नहीं हो रही है और चन्नी भी अब समझदारी से चाल चलने लगे हैं.

साथ ही स्थानीय मीडिया में आई खबरों से मालूम होता है कि सिद्धू को घेरने की तैयारियां भी भीतर ही भीतर चल रही हैं. बेशक सिद्धू भी ऐसी चीजों से वाकिफ तो होंगे ही. ये गांधी परिवार को फंसाने की तरकीब नहीं तो क्या है: सिद्धू की सक्रियता से तो लगने लगा है कि पंजाब को पहला दलित सीएम देने का क्रेडिट लेने का कांग्रेस नेतृत्व का दांव उलटा पड़ने वाला है. सिद्धू की रणनीति पर गौर करें तो लगता है जैसे गांधी परिवार को कठघरे में खड़ा कर दिया गया हो.

नवजोत सिंह सिद्धू ने मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के साथ भी कैप्टन जैसा व्यवहार करना बहुत पहले ही शुरू कर दिया था - और चन्नी के हर फैसले पर सवाल उठाते रहे. नियुक्तियों को लेकर तो कुछ फैसले बदलने को मजबूर भी कर दिये. मुख्यमंत्री चेहरा घोषित करने के नाम पर सिद्धू बार बार पंजाब के लोगों को एक खास मैसेज देने की कोशिश कर रहे हैं.

सिद्धू के पैंतरे को देखें तो वो पंजाब के लोगों को समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि गांधी परिवार ने दलित नेता को मुख्यमंत्री नहीं बल्कि सिर्फ नाइट वॉचमैन बनाया है - वरना, राहुल गांधी को ये नहीं कहना चाहिये के जो मुख्यमंत्री है वही तो चेहरा है!

जब तक पंजाब में मुख्यमंत्री का चेहरा कांग्रेस की तरफ से घोषित नहीं किया जाता, सिद्धू ऐसे ही 'ईंट से ईंट खड़काते' रहेंगे - और आलाकमान को सब कुछ खामोशी से बर्दाश्त करने को मजबूर होना पड़ेगा.

चन्नी भी अपनी चाल चलने लगे: सिद्धू की मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की मांग पर चन्नी भी अपने तरीके से रिएक्ट कर चुके हैं. चन्नी ने कई मौकों पर ये भी जताने की कोशिश की है कि वो मुख्यमंत्री पद के सबसे योग्य उम्मीदवार हैं.

समझने वाली बात ये है कि चन्नी ने भी अपने दलित वोट बैंक को अलर्ट भेजना शुरू कर दिया है. पंजाब को पहला दलित मुख्यमंत्री देने को राहुल गांधी की दूरगामी और साहसिक सोच का नतीजा बताते हुए चन्नी समझाते हैं पार्टी ने तो पहले ही मुझ जैसे छोटे से नेता को इतना दे डाला है कि इंसान सराबोर हो जाये.

चन्नी जो कहते हैं उनकी बातों पर ध्यान दिया जाना जरूरी है, 'मैं गरीब परिवार से हूं और मेरे पास कोई राजनीतिक पृष्ठमूमि भी नहीं थी. फिर भी, मुझे इतनी बड़ी जिम्मेदारी के लिए चुना गया और इसके लिए मैं आभारी हूं. मुझे बहुत कुछ मिल चुका है. मुझे कोई पद नहीं चाहिये. हम सभी पंजाब के लिए और पार्टी के लिए साथ हैं - और मैं कोई भी कुर्बानी देने के लिए तैयार हूं.'

ये कुर्बानी की बात ही वो मैसेज है जो चरणजीत सिंह चन्नी पंजाब में अपने समर्थकों तक भेजना चाहते हैं. मतलब, कांग्रेस नेतृत्व ने चन्नी को मुख्यमंत्री तो बनाया, लेकिन कब कुर्बानी देनी पड़े नहीं मालूम. मतलब, लोग मान कर चलें कि चरणजीत सिंह चन्नी को कुर्बानी देने के लिए ही कुर्सी पर बिठाया गया भी हो सकता है.

अब अगर राहुल गांधी अगली बार पंजाब जाकर या दिल्ली से ही चन्नी की जगह किसी और को पंजाब का मुख्यमंत्री चेहरा घोषित करते हैं तो बैकफायर के लिए भी तैयार रहना होगा - और वो नाम सिद्धू नहीं होता है तब वो क्या कर सकते हैं, पहले ही कई बार बता ही चुके हैं.

iChowk.in ने ट्विटर पर यही सवाल पूछा है - और पोल अभी जारी है. आप भी चाहें तो पोल में हिस्सा ले सकते हैं. वैसे अब तक लोगों की राय समझें तो 65 फीसदी लोग चन्नी को भी कांग्रेस का मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाये रखने के पक्ष में नजर आते हैं, जबकि सिद्धू के पक्ष में सिर्फ 22.5 फीसदी लोग ही खड़े हैं. हां, 12.5 फीसदी लोग दोनों में से किसी और नाम पर विचार करने की बात कर रहे हैं.

कैप्टन के खिलाफ कौन लड़ेगा चुनाव: कैप्टन अमरिंदर सिंह तो शुरू से ही सिद्धू के खिलाफ अपना उम्मीदवार उतारने की बात करते रहे हैं. कैप्टन कहते रहे हैं कि वो सिद्धू को चुनाव नहीं जीतने देंगे क्योंकि वो देश के लिए खतरा है.

कैप्टन अमरिंदर सिंह ये भी साफ कर चुके हैं कि वो पटियाला से ही चुनाव लड़ेंगे, लिहाजा अब कांग्रेस में भी कैप्टन को शिकस्त देने की रणनीति पर काम चल रहा है.

कैप्टन अमरिंदर के खिलाफ कुछ स्थानीय नेताओं के साथ साथ नवजोत सिंह सिद्धू का भी नाम चर्चा में है. सुनने में आया है कि अमृतसर के साथ साथ सिद्धू को पटियाला विधानसभा सीट से भी चुनाव लड़ने के लिए मनाया जा रहा है.

पटियाला से अमर उजाला अखबार की रिपोर्ट के अनुसार जिला कांग्रेस कमेटी ने एक प्रस्ताव पास कर कांग्रेस हाईकमान को भेजा है - प्रस्ताव में नवजोत सिंह सिद्धू को पटियाला से कांग्रेस का उम्मीदनार बनाये जाने की मांग की गयी है.

ये भी हो सकता है कि पटियाला कांग्रेस कमेटी ने अपने मन से प्रस्ताव भेजा हो. ये भी हो सकता है कि स्थानीय नेताओं को ऐसा करने के लिए दिल्ली से ही संदेश भेजा गया हो - सिद्धू लाख शेर की तरह दहाड़ते फिरते हों, लेकिन पटियाला के किले में कैप्टन को चैलेंज करने की हिम्मत जुटाना आसान बात नहीं ही है.

अमृतसर से सिद्धू अपनी सीट तो बचा ही लेंगे, लेकिन पटियाला से चुनाव नहीं जीत पाये तो? फिर तो आलाकमान का फैसला मानना ही पड़ेगा. ये भी तो हो सकता है ये सिद्धू पर लगाम कसने की कोई चाल हो - ताकि उनके अलावा किसी को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया जाये तो वो चुपचाप मान जायें.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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