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Updated: 23 अगस्त, 2018 03:36 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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राहुल गांधी इस वक्त 4 दिन के जर्मनी और इंग्लैंड के दौरे पर चले गए हैं. अभी पांच दिन पहले ही केरल की बाढ़ को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग करने वाले राहुल गांधी शायद विदेशी दौरे पर केरल की भलाई के लिए ही गए हैं. खैर, ज्यादा भटकते न हुए मुद्दे पर आते हैं. राहुल गांधी ने जो स्पीच जर्मनी के हैमबर्ग में दी है और जिस तरह मोदी सरकार को घेरा है वो महज 2019 की तैयारी ही लग रही है.

राहुल गांधी, जर्मनी, नरेंद्र मोदी, जीएसटी, नोटबंदीहैमबर्ग, जर्मनी में स्पीच देते राहुल गांधी

राहुल गांधी का जर्मनी में निमंत्रण पर जाना और वहां भाषण देना यकीनन भारत के लिए गर्व की बात है, लेकिन वहां जाकर भारत की बुराई करना, सरकार की नीतियों के बारे में विदेश में उपहास बनाना कितना सही है? दो साल पुरानी नोटबंदी के बारे में जर्मनी में स्कूल के बच्चों को भाषण देना और उसे लिंचिंग का कारण बताना ऐसा लग रहा है जैसे कांग्रेस अध्यक्ष अभी भी नोटबंदी से उबर नहीं पाए हैं.

इतने तक तो फिर भी ठीक पर राहुल गांधी ने ISIS के बनने के पीछे की एक कहानी बना दी. उन्होंने अमेरिका की ईराक पर हमले और ISIS के संगठन बनने के पीछे दिलचस्प तथ्य दिया. खुद ही सुन लीजिए...

राहुल गांधी की ये स्पीच सुनकर ऐसा लग रहा है जैसे वो ISIS संगठन को सही ठहरा रहे हों. जैसे आतंकी बने लोगों के पास ISIS के अलावा और कोई चारा ही नहीं रह गया. राहुल गांधी कह रहे हैं कि लोगों को विजन देना जरूरी है. ये बिलकुल सही है कि लोगों को विजन देना जरूरी है, लेकिन ये कहना कि ऐसा न होने पर ही ISIS जैसा संगठन बन जाता है ये सही नहीं है. राहुल गांधी ने विजन की अहमियत बताने के लिए जिस तरह से ISIS का उदाहरण दिया है वो यकीनन इस ओर इशारा कर रहा है कि किसी भी देश में अगर नौकरियां नहीं दी जाएंगी तो वहां आईएसआईएस जैसा खतरनाक संगठन बन सकता है. ये तो सही नहीं. उस देश की असल राजनीतिक और आर्थिक परिस्थिती भी मायने रखती है. भारत में नौकरियों को लेकर पिछले कुछ दिनों से बहस चल रही है ऐसे में राहुल अपने इस बयान की अहमियत शायद खुद ही नहीं समझ पाए हैं. राहुल बताने की कोशिश क्या कर रहे हैं कि भारत में भी ऐसा संगठन इसलिए बन जाएगा क्योंकि लोगों को नौकरी नहीं दी जा रही? कम से कम इस बयान को भारत से जोड़ने पर तो यही समझ आता है. 

लिंचिंग की भी बहुत खास वजह बताई राहुल गांधी ने..

राहुल गांधी ने भारत में हो रही लिंचिंग की भी बहुत खास वजह बताई है. राहुल का कहना है कि क्योंकि भारत में नोटबंदी से बेरोजगारी बढ़ी और छोटे बिजनेसमैन और कर्मचारी जिन्हें इसकी वजह से काम से हाथ धोना पड़ा वो लोग ही लिंचिंग कर रहे हैं. नोटबंदी और जीएसटी बेहद गलत तरह से लागू किया गया है.

राहुल गांधी ने कहा कि दलितों और कमजोर वर्ग के लिए जो सपोर्ट सिस्टम सरकार ने बनाया है वो कमजोर ही हुआ है. लिंचिंग के लिए नोटबंदी और जीएसटी कहीं न कहीं जिम्मेदार हैं. ISIS का उदाहरण देते हुए राहुल गांधी ये बता रहे थे कि भाजपा सरकार ने दलित, आदिवासी और अन्य अल्पसंख्यकों को अपने विकास से अलग रहखा है इसलिए भारत में भी इसका परिणाम गलत हो सकता है. 21वीं सदी के लोगों को पीछे छोड़ना गलत है.

गरीबों को बराबर अवसर नहीं मिल रहे हैं और यही कारण है कि लोगों का गुस्सा लिंचिंग के रूप में बाहर आ रहा है. भाजपा को लगता है कि गरीबों को, किसानों को, या आदिवासियों को वैसी सुविधाएं नहीं मिलनी चाहिए जैसी बाकी लोगों को मिलती हैं. ये गलत बात है और भाजपा ने सिर्फ इतनी ही गलती नहीं की है.

राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री को गले लगाने वाली बात का जिक्र भी जर्मनी के स्कूल में भाषण देते हुए किया. उन्होंने कहा कि अविश्वास प्रस्ताव के समय ऐसा करने पर खुद उनकी पार्टी के कुछ सदस्यों को ये पसंद नहीं आया था.

राहुल ने आगे ये भी कहा कि भारत के अहिंसा वाला देश है और हमारे देश का ये नियम है और इतिहास भी कहता है कि हम नफरत का जवाब नफरत से नहीं देते. हिंसा का जवाब सिर्फ अहिंसा से दिया जा सकता है.

महिला सुरक्षा और महिला आरक्षण बिल पर भी बोले राहुल..

महिला सुरक्षा पर भी राहुल ने कटाक्ष किया. उन्होंने कहा कि भारत में महिलाओं को एक समान दर्जा नहीं दिया जा रहा है. वहां पुरुष महिलाओं को इज्जत नहीं देते. महिलाओं के खिलाफ भारत में हिंसा हो रही है. इसे सबसे असुरक्षित देश तो मैं नहीं कहूंगा, लेकिन ये जरूर कहूंगा कि महिलाओं के खिलाफ बहुत हिंसा हो रही है. अधिकतर देश की सड़कों पर दिख रही है, लेकिन ज्यादातर हिंसा देखी भी नहीं जा सकती है. भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा बढ़ रही है. राहुल ने महिला आरक्षण बिल की भी बात जर्मनी के उस स्कूल में की.

साथ ही राहुल गांधी ने LTTE चीफ प्रभाकरण की मृत्यु पर भी बात की और कहा कि उन्हें और प्रियंका गांधी वाड्रा को ये पसंद नहीं आया क्योंकि उन्होंने अपनी जिंदगी में हिंसा झेली है और वो नहीं चाहते कि किसी को भी हिंसा देखनी पड़े.

स्पीच तो ठीक, लेकिन क्या ये सब बोलना सही था?

राहुल गांधी की स्पीच कुछ हद तक वैसी ही थी जैसी कांग्रेस के प्रेसिडेंट को बोलनी चाहिए, लेकिन क्या राहुल गांधी ये भूल गए कि वो कहां बोल रहे हैं? और भी नेता विदेशों में जाकर स्पीच देते हैं, लेकिन क्या इस तरह विदेशी मंच पर इस तरह भारत की बेइज्जती करना सही है? एक बात सोचिए कि अगर दूसरे देशों का कोई विपक्षी नेता भारत आता तो अपनी स्पीच में इस तरह अपने देश की कमियों को उजागर करता? राहुल गांधी की स्पीच सुनकर तो ऐसा लग रहा था कि वो जर्मनी से ही 2019 के चुनाव की तैयारी कर रहे हैं.

जर्मनी में बच्चों को भाषण देने गए थे राहुल ऐसे में देश की नीतियां और उसकी कमियां बताना कितना सही है? देश की बुराई करना विदेशी बच्चों के सामने किस हद वाजिब ठहराया जा सकता है? यकीनन विपक्ष ने नोटबंदी और जीएसटी को आड़े हाथों लिया था, लेकिन नोटबंदी को अब लगभग दो साल हो गए हैं और राहुल गांधी के भाषण को देखकर लगता है कि उन्हें अभी भी नोटबंदी के मसले से उबरने में वक्त लगेगा. बहरहाल विदेश में जाकर इस तरह की स्पीच कम से कम मेरे गले तो नहीं उतरी.

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श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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