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Updated: 03 जनवरी, 2023 03:58 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के भारत जोड़ो यात्रा की शिवपाल यादव ने तारीफ की है. समाजवादी पार्टी में लौट चुके शिवपाल यादव का कहना है कि राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा निकाल कर अच्छा काम किया है. कहने को तो समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी भावनात्मक रूप से भारत जोड़ो यात्रा के साथ होने की बात की थी, लेकिन शामिल होने को राजी नहीं हुए.

और अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके आरएलडी नेता जयंत चौधरी को भी मना कर दिया, कांग्रेस खेमे में ऐसा ही माना जा रहा है. कांग्रेस को एक तरह से यकीन हो चुका था कि जयंत चौधरी यात्रा में शामिल जरूर होंगे - और रूट भी उसी हिसाब से प्लान किया गया लगता है. यूपी में यात्रा जिन इलाकों से गुजरने वाली है, जयंत चौधरी का वहां ज्यादा प्रभाव माना जाता है.

अखिलेश यादव ने ये कह कर भारत जोड़ो यात्रा पर सवाल उठा दिया था कि बीजेपी को हटाएगा कौन? मतलब, ये कि वास्तव में आगे बढ़ कर 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) से टक्कर कौन लेगा?

अपनी प्रेस कांफ्रेंस में राहुल गांधी का समाजवादी पार्टी और उसकी आइ़डियोलॉजी के असर का खास तौर पर जिक्र करना, ये साफ कर रहा है कि राहुल गांधी ने अखिलेश यादव की बातों को सीधे दिल पर ले लिया है - हालांकि, प्रधानमंत्री पद को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बयान से थोड़ी राहत जरूर मिली होगी, ये बात अलग है कि नीतीश कुमार का बयान राजनीतिक हिसाब से काफी उलझा हुआ ही लगता है.

राहुल गांधी ने बीजेपी को हराने के लिए न सिर्फ अल्टरनेटिव विजन का प्रस्ताव रखा है, बल्कि अखिलेश यादव को उनकी राजनीतिक हदों का एहसास कराने की भी भरपूर कोशिश की है. राहुल गांधी की बातों को समझे तो लगता है, जैसे कह रहे हों - बीजेपी को 2024 में हटाएगी तो कांग्रेस ही, और समाजवादी पार्टी जैसे क्षेत्रीय दलों के बूते की ये बात तो बिलकुल नहीं है.

राहुल गांधी ने खास तौर पर समाजवादी पार्टी का नाम लेकर मीडिया के जरिये कहा है कि उनकी आइडियोलॉजी केरल, कर्नाटक या बिहार में नहीं चलने वाली है. राहुल गांधी ने अखिलेश यादव को फिर से याद दिलाने की कोशिश की कि कांग्रेस के पास नेशनल आइडियोलॉजी है, और सभी क्षेत्रीय दलों को ये बात गांठ बांध कर कबूल कर लेनी चाहिये.

राहुल गांधी ने पहली बार ये बात कांग्रेस के उदयपुर चिंतन शिविर के वक्त कही थी - और बाद में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को भी देखा गया कि वो भी यही समझाने की कोशिश कर रहे थे कि सारी क्षेत्रीय पार्टियां खत्म हो जाएंगी, अगर कोई बचेगा तो वो सिर्फ बीजेपी ही है. ये भी समझ लेना चाहिये कि कांग्रेस को तो पहले से ही भारत से मुक्त मान कर चल रहे होंगे.

बीजेपी को हटाने का प्लान तैयार हो गया

बड़े दिनों बाद ऐसा लग रहा है जैसे राहुल गांधी ने राजनीति को लेकर जोरदार मंथन किया है. ऐसे भी समझ सकते हैं कि इतने लंबे समय तक पहली बार वो लगातार राजनीतिक माहौल को महसूस किये हैं. लगातार लोगों के बीच रहे हैं. लगातार सवालों को फेस किया है - और राजनीति से घोर अरुचि के बावजूद यथाशक्ति हजम करने की पूरी कोशिश की है. हो सकता है ऐसा होने की असली वजह उनके सलाहकारों की मौजूदा टीम हो. दिग्विजय सिंह से लेकर जयराम रमेश तक. बाकी केसी वेणुगोपाल, रणदीप सिंह सुरजेवाला और श्रीनिवास बीवी तो आगे पीछे पहले भी लगे रहते थे.

rahul gandhi, narendra modiअभी प्रधानमंत्री बनने के लिए तो नहीं, लेकिन राहुल गांधी 2024 में मोदी के खिलाफ विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं - बशर्ते, विपक्ष को भी ये सब मंजूर हो

बड़ी बात ये है कि राहुल गांधी ने सारे विपक्षी दलों (Oppostion Parties) को भरोसा दिलाने की कोशिश की है - कांग्रेस ये सुनिश्चित करेगी कि सब के सब सहज महसूस करें और सभी का सम्मान बरकरार रहे. हालांकि, राहुल गांधी ने ये बात अखिलेश यादव को खूब खरी खोटी सुनाने के साथ ही कही है.

और मन से बीजेपी के खिलाफ राजनीति कर रहे देश के सभी विपक्षी दलों के नेताओं से एक खास अपील भी की है - बीजेपी के खिलाफ एक वैकल्पिक विजन के साथ सब लोग मिल कर साथ आयें, और कांग्रेस सबका पूरा ख्याल रखेगी.

राहुल गांधी का दावा है कि सिर्फ कांग्रेस ही बीजेपी के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर वैचारिक मंच मुहैया करा पाने में सक्षम है, और हां - क्षेत्रीय दलों का अपने अपने इलाके में में ही प्रभाव है. अपनी यही बात समझाने के लिए राहुल गांधी समाजवादी पार्टी को लेकर कहा कि कैसे उत्तर प्रदेश से बाहर उसका कोई प्रभाव नहीं है.

कांग्रेस नेता का दावा है कि बीजेपी के खिलाफ जबरदस्त अंडर करंट है, लेकिन लोगों के पास जाकर वोट मांगना काफी नहीं होगा. राहुल गांधी ये समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि वैकल्पिक नजरिये में सिर्फ जीडीपी से संतोष कर लेने भर का नहीं है - बल्कि, जीडीपी के साथ रोजगार, एक्सपोर्ट और प्रोडक्शन और बच्चों की शिक्षा में भी नयी सोच के विकास पर जोर देना होगा. राहुल गांधी ने ऐसे ही आर्थिक से लेकर तमाम क्षेत्रों में नये नजरिये की तरफ इशारा किया है.

अब तक जो चीज समझ में आयी है, ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस विपक्षी दलों के साथ राष्ट्रीय स्तर पर सशर्त चुनावी गठबंधन का मन बना चुकी है - और शर्त ये है कि विपक्ष का नेतृत्व कांग्रेस की करेगी. मतलब, न तो ममता बनर्जी, न अरविंद केजरीवाल, न केसीआर और न ही नीतीश कुमार में से किसी की पार्टी.

लेकिन पेंच अब भी फंसा हुआ लगता है, जाहिर है आखिर तक ऐसे ही फंसा रह सकता है. विपक्ष की विचारधारा को लेकर राहुल गांधी की पिछली टिप्पणी पर कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने बड़ा ही कड़ा रिएक्शन दिया था - और आरजेडी नेता मनोज झा ने बड़ी ही संजीदगी के साथ सलाह दी थी कि कांग्रेस सिर्फ सहयात्री की भूमिका में रहे - और क्षेत्रीय दलों को ड्राइविंग सीट पर रहने दे.

आरजेडी की तरफ से जो सलाह दी गयी थी, वो असल में 2019 के आम चुनाव के पहले चर्चा में आयी थी. तब बीजेपी में ही हाशिये पर भेज दिये गये नेताओं ने ऐसी सलाह दी थी. ममता बनर्जी को तो आइडिया पर इतना यकीन हो गया था कि मोदी को एक्सपाइरी डेट पीएम कह कर बुलाने लगी थीं - लेकिन गठबंधन को लेकर राहुल गांधी तैयार नहीं हुए और फिर बात वहीं रुक गयी.

अब राहुल गांधी क्षेत्रीय दलों का ख्याल रखने का जो भरोसा दिलाने की कोशिश कर रहे हैं, क्या दूसरों को भी मंजूर होगा? क्षेत्रीय दलों के साथ विपक्षी गठबंधन खड़ा करने का जो फॉर्मूला है उसके मुताबिक, जो पार्टी जहां यानी जिस राज्य में मजबूत है, वहां कांग्रेस को उसकी लीडरशिफ स्वीकार करनी होगी.

अभी की जो स्थिति है, उसमें तो कांग्रेस ऐसी दावेदारी सिर्फ उन राज्यों में ही कर सकती है जहां उसकी सरकारें हैं या मध्य प्रदेश जैसे राज्य में जहां अब भी वो सबसे मजबूत विपक्षी दल के रूप में है. कांग्रेस जहां भी लीडरशिप अपने पास रख सकती है, ऐसे कम ही राज्य हैं. कांग्रेस धीरे धीरे ऐसी स्थिति में पहुंच चुकी है कि देश के ज्यादातर राज्यों में क्षेत्रीय दलों का ही बोलबाला है.

अब ये कांग्रेस को ही तय करना होगा कि वो ड्राइविंग सीट छोड़ने को तैयार है या नहीं - और क्या उसे क्षेत्रीय दलों के साथ सहयात्री बनना मंजूर है? मंजूर हो न हो, कोई चारा भी तो नहीं बचा है.

प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार कौन बनेगा

भारत जोड़ो यात्रा के तहत राहुल गांधी की प्रेस कांफ्रेंस से पहले कांग्रेस नेता कमलनाथ ने ये बोल कर नये सिरे से चर्चा छेड़ दी कि विपक्ष के नेतृत्व और प्रधानमंत्री पद दोनों पर दावेदारी तो कांग्रेस की ही रहेगी - कमलनाथ का कहना रहा कि 2024 में राहुल गांधी ही प्रधानमंत्री पद के भी उम्मीदवार होंगे और विपक्ष का नेतृत्व भी करेंगे.

जब राहुल गांधी से प्रधानमंत्री पद को लेकर पूछा गया तो वो ये कह कर टाल गये कि मीडिया को भी ऐसी चीजों में ज्यादा इंटरेस्ट है - और ये बात मुद्दे से ध्यान भटकाने वाली है.

कमलनाथ के बयान पर राहुल गांधी की बातों को समझने की कोशिश करें तो ऐसा लगता है जैसे राहुल गांधी अभी प्रधानमंत्री पद को लेकर विपक्ष से टकराव नहीं मोल लेना चाहते. लेकिन राहुल गांधी विपक्ष के नेतृत्व का दावा तो कर ही रहे हैं - मतलब, कमलनाथ की बातों को यूं ही खारिज नहीं किया जाना चाहिये. भले ही कमलनाथ ने अपने मन से ही ये बात क्यों न कह दी हो.

प्रधानमंत्री पद पर राहुल गांधी को लेकर कांग्रेस की दावेदारी पर नीतीश कुमार का भी बयान आ गया है - नीतीश कुमार का कहना है कि उनको इस बात से कोई दिक्कत नहीं है. वैसे भी हाल ही की बात है, महागठबंधन के विधायकों की मीटिंग में नीतीश कुमार ने साफ साफ कहा था, अपने नेतृत्व को संदेश दे दीजिये कि प्रधानमंत्री पद का न तो मैं दावेदार हूं, न ही उसमें कोई दिलचस्पी है.

ये ठीक है कि नीतीश कुमार कह रहे हैं कि राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने से उनको कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन ऐन उसी वक्त जो कुछ वो बोल रहे हैं उसके भी गहरे मायने हैं. नीतीश कुमार ने राजनीतिक तौर पर अपनी तरफ से दुरूस्त बयान दिया है - ऐसी बात कही है जिससे राहुल गांधी भी थोड़ी देर के लिए खुश हो जायें, लेकिन विपक्ष में कन्फ्यूजन बना रहे.

नीतीश कुमार ने विपक्ष को भी निराश न होने का मैसेज दे दिया है. कहते हैं, अभी अपना अपना कार्यक्रम चल रहा है और पार्टी का कार्यक्रम बनाना सबका अपना काम है.

वो ये तो कहते हैं, कि खुद प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं, लेकिन तभी मिल बैठ कर अंतिम फैसला लेने की बात कर वो अपनी ही बात वापस लेते भी लगते हैं. मतलब, राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने से उनको कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन ये तभी मुमकिन है जब सभी को मंजूर हो - और ये भी समझ लेना चाहिये कि अगर सबको मंजूर हो तो वो अपन लिए भी गुंजाइश बनाये हुए हैं.

देश भर में खोलेंगे - 'मोहब्बत की दुकान'

नये साल की शुभकामनाओं के साथ साथ राहुल गांधी ने ट्विटर पर लिखा है, 'उम्मीद है, 2023 में हर गली, हर गांव, हर शहर में खुलेगी - मोहब्बत की दुकान.'

भारत जोड़ो यात्रा के जरिये राहुल गांधी संघ और बीजेपी पर नफरत फैलाने का आरोप लगाते रहे हैं - और ये मोहब्बत की दुकान का आइडिया भी राहुल गांधी की तरफ से ऐलान-ए-जंग ही लग रहा है.

एक खबर ये भी आयी है कि राहुल गांधी ब्रेक के बाद भारत जोड़ो यात्रा दिल्ली के यमुना बाजार से 3 जनवरी, 2023 से शुरू करने जा रहे हैं, और ये यात्रा दिल्ली के उन सभी इलाकों से गुजरने वाली है जो 2020 में हुए दंगों से प्रभावित रहे हैं - मौजपुर, सीलमपुर और गोकुलपुरी जैसे इलाके.

वरुण गांधी पर सस्पेंस खत्म नहीं हो रहा है वरुण गांधी के भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने को लेकर राहुल गांधी ने सस्पेंस बढ़ा दिया है. गुलाम नबी आजाद की वापसी के सवाल पर राहुल गांधी का कहना रहा कि कांग्रेस में तो सभी का स्वागत है, लेकिन ये बात तो कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ही बताएंगे.

जाहिर है, वरुण गांधी पर भी ये बात लागू होती है. हालांकि, राहुल गांधी ने अपनी तरफ से कहा कि चूंकि वो बीजेपी में हैं, इसलिए उनको यात्रा में शामिल होने पर दिक्कत हो सकती है. ध्यान देने वाली बात ये है कि वरुण गांधी के भाषण का एक वीडियो वायरल हो रखा है, जिसमें वो कह रहे हैं, 'मैं न कांग्रेस के खिलाफ हूं, न पंडित नेहरू के खिलाफ... हमारे देश की राजनीति देश को जोड़ने की होनी चाहिये न कि गृहयुद्ध पैदा करने की... आज जो लोग केवल धर्म और जाति के नाम पर वोट ले रहे हैं उनसे हम रोजगार, शिक्षा, चिकित्सा का सवाल तो पूछें... हमको वो राजनीति नहीं करनी जो लोगों को दबाये.'

ये वही वरुण गांधी हैं जिनका पुराना भाषण लोगों को कभी भूलता नहीं है, 'अगर कोई हिंदुओं की ओर हाथ बढ़ाता है या फिर ये सोचता हो कि हिंदू नेतृत्वविहीन हैं... तो मैं गीता की कसम खाकर कहता हूं कि मैं उस हाथ को काट डालूंगा.'

बीजेपी में हाशिये पर पहुंच चुके वरुण गांधी अब पुरानी बातों से यू टर्न ले चुके हैं और करीब करीब वैसी ही बातें करने लगे हैं जो बीजेपी विरोधी किसी भी राजनीतिक दल के लिए सूट करती हो. कुछ हद तक तो वरुण गांधी की ताजा जबान राहुल गांधी जैसी भी लगती है - क्या गली गली मोहब्बत की दुकान मिल कर खोलने की वास्तव में तैयारी चल रही है?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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