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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 04 दिसम्बर, 2022 08:11 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) संसद के शीतकालीन सत्र में हिस्सा नहीं लेंगे - ये खबर करीब करीब पक्की लग रही है. हालांकि, कांग्रेस की तरफ से आधिकारिक तौर पर ये जानकारी नहीं दी गयी है. हां, मीडिया रिपोर्ट के लिए सूत्रों ने कंफर्म जरूर कर दिया है.

मतलब, ये मान कर चलना होगा कि राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा से ब्रेक लेकर संसद की कार्यवाही में हिस्सा नहीं लेने जा रहे हैं. फिर भी एक संभावना तो बनी ही रहेगी. गुजरात चुनाव को लेकर भी ऐसा ही बताया जा रहा था, लेकिन एक दिन के लिए गुजरात जाकर राहुल गांधी ने कांग्रेस के कैंपेन में हाजिरी तो लगा ही दी थी.

ऐसा भी माना जा रहा है कि राहुल गांधी की ही तरह सोनिया गांधी भी संसद की कार्यवाही में हिस्सा न लें. सबसे सीनियर कांग्रेस नेता की सेहत को देखते हुए ऐसी संभावना तो बनती ही है - ये भी हो सकता है कि ऐसे कदम के पीछे कोई राजनीतिक रणनीति भी हो. कांग्रेस अध्यक्ष बन जाने के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे का प्रदर्शन कैसा होता है, ये देखने का एक मौका तो है ही.

राहुल और सोनिया गांधी के साथ साथ कुछ और कांग्रेस नेता भी शीतकालीन सत्र में नहीं देखे जा सकते हैं. मसलन, दिग्विजय सिंह और जयराम रमेश और ऐसे वे सांसद जो भारत जोड़ो यात्रा के कर्ताधर्ता हैं - कांग्रेस नेतृत्व का अगर ये फाइनल फैसला है तो भी बहुत फर्क नहीं पड़ने वाला है.

लाइव का जमाना है. आंखों के सामने न सही, टीवी पर ही सही. कांग्रेस नेताओं को रिएक्ट करने के लिए सदन में तो स्पीकर और सभापति की अनुमति की दरकार होती, लेकिन बाहर तो उससे कहीं ज्यादा ही सुविधा है. ट्विटर, फेसबुक और यूट्यूब हैं ना. और वहां तो कुछ भी बोला जा सकता है, आपत्तिजनक बातों को कार्यवाही से हटाये जाने की फिक्र भी नहीं है.

पहले की बात और थी. ट्विटर ने राहुल गांधी का अकाउंट सस्पेंड कर दिया था. अब एलॉन मस्क का जमाना है. अगर डोनॉल्ड ट्रंप की वापसी हो सकती है, तो राहुल गांधी की क्यों नहीं. हालांकि, पहले ये देखना होगा कि कंगना रनौत के साथ कैसा सलूक हो रहा है.

संसद सत्र 7 दिसंबर से शुरू होकर 29 दिसंबर, 2022 तक चलने वाला है - ऐसे में सवाल ये उठता है कि सदन में कांग्रेस की आवाज के नेतृत्व कौन करेगा? लोक सभा में तो अधीर रंजन चौधरी हैं ही, अगर सोनिया गांधी नहीं पहुंची तो संभाल लेंगे. वैसे ही जैसे सोनिया गांधी और राहुल गांधी की मौजूदगी में संभालते हैं.

बड़ा सवाल ये है कि राज्य सभा में क्या होगा? वहां तो विपक्ष के नेता पद से मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं - और उनकी जगह अब तक किसी को भी आधिकारिक तौर कांग्रेस का नेता घोषित भी नहीं किया गया है.

और तो और, कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश का बयान आया है कि अब तक मल्लिकार्जुन खड़गे के इस्तीफे पर कोई चर्चा ही नहीं हुई है. माना जा रहा था कि संसद सत्र को लेकर 3 दिसंबर की मीटिंग में राज्य सभा में विपक्ष का नेता कौन होगा, साफ हो जाएगा. ऐसा तो हुआ नहीं, फिर क्या होगा?

फिर तो मल्लिकार्जुन खड़गे ही राज्य सभा में विपक्ष के नेता बने रहेंगे. अब तो वो कांग्रेस के अध्यक्ष भी बन चुके हैं - लेकिन 'एक व्यक्ति, एक पद' (One Person One Post) वाले राहुल गांधी के उदयपुर कमिटमेंट का क्या होगा? क्या राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए कमिटमेंट तोड़ देंगे? अशोक गहलोत के मामले में तो साफ साफ सलमान खान जैसा डायलाग बोल दिया था!

'एक व्यक्ति, एक पद' का क्या?

संसद के शीतकालीन सत्र को लेकर कांग्रेस की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं. संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को घेरने का क्या प्लान है और मुद्दे क्या हैं, कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने प्रेस कांफ्रेंस करके बता भी दिया है - और माना ये जा रहा है कि राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा से लोगों का ध्यान नहीं भटकने देना चाहते, इसीलिये संसद सत्र के मुकाबले यात्रा को तरजीह दे सकते हैं.

mallikarjun kharge, rahul gandhiअगर मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष के साथ साथ राज्य सभा में विपक्ष के नेता भी बने रहे, तो अशोक गहलोत तो और भी बेकाबू हो जाएंगे.

सोनिया गांधी के कार्यवाही से दूर रहने के पीछे एक वजह और मानी जा रही है - मल्लिकार्जुन खड़गे को खुल कर खेलने का मौका देने का मकसद हो सकता है. राहुल गांधी को कांग्रेस की कमान सौंपने के बाद से ही सोनिया गांधी थोड़ा आराम करना चाहती थीं, दूध का जला इस बार छाछ भी जोर जोर से फूंक कर पीने की कोशिश कर रहा है. और रास्ता भी क्या है. कभी कभी तो 'निर्विकल्पम्-निरीहम्' टाइप मामला भी हो जाता है.

बाकी बातें अपनी जगह और असली सवाल यही है कि मल्लिकार्जुन खड़गे का इस्तीफा मंजूर न किये जाने की वजह क्या हो सकती है - और एक सवाल ये भी कि राहुल गांधी के 'एक व्यक्ति, एक पद' वाले उदयपुर कमिटमेंट का क्या होगा?

2014 में तो मल्लिकार्जुन खड़गे लोक सभा में कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे थे, लेकिन तब कांग्रेस की सीटें कम होने के कारण नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं मिला था. हालांकि, संवैधानिक पदों पर नियुक्तियों और ऐसे जरूरी मामलों में उनको शामिल किया जाता रहा. 2019 में लोक सभा चुनाव हार जाने के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे को राज्य सभा भेजा गया - और जब गुलाम नबी आजाद का कार्यकाल खत्म हो गया तो मल्लिकार्जुन खड़गे राज्य सभा में विपक्ष के नेता बन गये.

कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के दौरान आपको याद होगा 'एक व्यक्ति, एक पद' के नियम की खूब चर्चा रही. क्योंकि तब अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष पद के दावेदार हुआ करते थे, लेकिन वो राजस्थान के मुख्यमंत्री भी बने रहना चाहते थे. जब राहुल गांधी ने खुद सामने आकर साफ कर दिया कि वो उदयपुर कमिटमेंट पर कायम हैं, और किसी भी सूरत में कोई समझौता नहीं करेंगे तो अशोक गहलोत ने भी पैंतरा बदल दिया. राजस्थान में समर्थक विधायकों के जरिये ऐसा खेल खेला कि मुख्यमंत्री बने रहे. अब भी बने हुए हैं. कांग्रेस नेतृत्व चाह कर भी सचिन पायलट के लिए कुछ नहीं कर पा रहा है.

कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के लिए नामांकन भरते वक्त मल्लिकार्जुन खड़गे ने 30 सितंबर को राज्य सभा में विपक्ष के नेता पद से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन उनकी जगह किसी की नियुक्ति नहीं हुई है. अब तक ये भी नहीं बताया गया है कि मल्लिकार्जुन खड़गे का इस्तीफा स्वीकार भी हुआ है या नहीं?

10, जनपथ पर कांग्रेस के संसदीय रणनीति समूह की बैठक के बाद कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने पूछे जाने पर बताया कि मल्लिकार्जुन खड़गे के मामले में कोई चर्चा नहीं हुई. बोले, ‘सोनिया गांधी हमारे संसदीय दल की अध्यक्ष हैं... और मल्लिकार्जुन खड़गे हमारी पार्टी के अध्यक्ष हैं... इस मुद्दे पर समिति की बैठक में चर्चा नहीं की जा सकती. जो भी कदम उठाया जाना है, वो हमारे संसदीय दल की प्रमुख तय करेंगी.’

मतलब, मामला सोनिया गांधी के हाथ में है. जो भी फैसला होगा, राहुल गांधी की मंजूरी भी जरूरी होगी - अभी तो जयराम रमेश की बातों से ही काफी कुछ साफ लगता है.

मल्लिकार्जुन खड़गे के मामले को और स्पष्ट करते हुए जयराम रमेश बताते हैं, ‘कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे न सिर्फ कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के रूप में, बल्कि राज्य सभा में विपक्ष के नेता के रूप में भी विपक्षी दलों के साथ काम करेंगे.’

फिर तो कोई कन्फ्यूजन ही नहीं होना चाहिये. सोनिया गांधी के फैसला लेने तक मान कर चलना चाहिये कि संसद के शीतकालीन सत्र में मल्लिकार्जुन खड़गे ही राज्य सभा में विपक्ष के पद पर बने रहेंगे - और लोक सभा में ये दारोमदार अधीर रंजन चौधरी के कंधों पर होगा.

अब तो ये समझना भी जरूरी हो गया है कि मल्लिकार्जुन खड़गे क्या इतने असरदार हो गये हैं कि राहुल गांधी कमिटमेंट तोड़ देंगे, या और कोई खास बात हो सकती है?

मल्लिकार्जुन खड़गे के इस्तीफे के बाद कई दावेदारों के नाम लिये जाने लगे थे. एक नाम दिग्विजय सिंह का भी रहा है. कुछ और भी कांग्रेस नेता हैं. कुछ सोनिया गांधी के करीबी और कुछ राहुल गांधी के.

वैसे मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपनी तरफ से राहुल गांधी को खुश तो कर ही दिया है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रावण से तुलना करके. राहुल गांधी की गुड बुक में ऐसे नेता निडर कैटेगरी में आते हैं. मल्लिकार्जुन खड़गे तो वैसे भी कभी डरपोक कैटेगरी में शामिल नहीं किये गये - जब प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारी सोनिया गांधी को पूछताछ के लिए बुलाये थे तो 80 साल की उम्र में भी विरोध प्रदर्शन कर रहे युवा कांग्रेसियों पर भी भारी पड़ रहे थे.

तो क्या राहुल गांधी अपने प्रिय नेता के लिए उदयपुर कमिटमेंट भी तोड़ देंगे? नियमों के तो हमेशा ही अपवाद होते हैं. मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे लोगों को छूट तो मिल ही सकती है - आखिर विशेषाधिकार कैटेगरी भी तो होती ही है.

क्या दिग्विजय सिंह नचाने लगे हैं

एक बार तो ऐसा लगा दिग्विजय सिंह के अच्छे दिन जा चुके हैं, लेकिन नर्मदा परिक्रमा ने उनके खिलाफ चल रही सारी साजिशों को न्यूट्रलाइज कर दिया. ये नर्मदा परिक्रमा का कार्यक्रम ही रहा जिसकी बदौलत तमाम कांग्रेस नेताओं को दरकिनार करते हुए दिग्विजय सिंह को भारत जोड़ो यात्रा का संयोजक बनाया गया.

अब जबकि राहुल गांधी और दिग्विजय सिंह का फिर से लगभग दिन रात का साथ हो चुका है, उनके पास अपने मन की कराने का मौका तो हो ही गया है. ये दिग्विजय सिंह ही हैं जिन्होंने अशोक गहलोत के खिलाफ 'एक व्यक्ति, एक पद' का दांव चल दिया था. तब तो वो ये भी कह रहे थे कि अध्यक्ष पद के दावेदारों की सूची से उनको भी अलग करके नहीं देखा जाना चाहिये. ये भी तो हो सकता है, मल्लिकार्जुन खड़गे के अध्यक्ष बन जाने के बाद वो किसी और को राज्य सभा में विपक्ष का नेता नहीं बनने देना चाहते हों.

दिग्विजय सिंह के अलावा दावेदारों में दो ही नाम सबसे ऊपर बताये जा रहे हैं. एक पी. चिदंबरम और दूसरे, केसी वेणुगोपाल. केसी वेणुगोपाल फिलहाल कांग्रेस में संगठन महासचिव भी हैं. अध्यक्ष भी दक्षिण भारत से और संगठन महासचिव भी उसी इलाके से, ऐसे में एक तबका उत्तर भारत के किसी नेता को राज्य सभा में विपक्ष के नेता पद की जिम्मेदारी देने का पक्षधर बताया जा रहा है - जाहिर है, ये काम दिग्विजय सिंह के इशारे पर ही चल रहा होगा.

भारत जोड़ो यात्रा के बीच से ही दिग्विजय सिंह के फिटनेस की चर्चा भी सामने आयी है. दिग्विजय सिंह, मल्लिकार्जुन खड़गे से पांच साल ही छोटे हैं. 75 साल के. मल्लिकार्जुन खड़गे की ही तरह दिग्विजय सिंह के भी फिटनेस लेवल की दाद दी जा रही है. बताते हैं कि चार बजे भोर में ही उठ जाते हैं और व्हाट्सऐप ग्रुप में सबको गुड मॉर्निंग मैसेज डाल देते हैं. भारत यात्रियों की सेहत और हाउसकीपिंग के जुड़े मसलों पर भी अपडेट देते हैं - खाने पीने से लेकर साथियों का जोश बढ़ाने तक. उनकी छोटी से छोटी डिमांड तक पूरी करने की कोशिश करते हैं - मसलन, फीफा वर्ल्ड कप देखने के लिए बड़े स्क्रीन की मांग भी फटाफट मंजूर कर ली थी.

ये भी तो हो सकता है, दिग्विजय सिंह की वजह से ही मल्लिकार्जुन खड़गे का इस्तीफा फिलहाल होल्ड कर लिया गया हो. अगर दिग्विजय सिंह को विपक्ष का नेता बनाया जाता तो उनको भारत जोड़ो यात्रा छोड़ कर संसद पहुंचना पड़ता - ऐसे में कम से कम यात्रा तक संसद सत्र में मल्लिकार्जुन खड़गे अपनी पुरानी भूमिका तो निभा ही सकते हैं.

फिर तो ऐसा लगता है कि मल्लिकार्जुन खड़गे नहीं, बल्कि दिग्विजय सिंह के लिए राहुल गांधी अपना कमिटमेंट तोड़ने का फैसला करने वाले हैं.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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