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Updated: 24 दिसम्बर, 2021 07:01 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के अमेठी दौरे से कांग्रेस को आखिर कितनी उम्मीद करनी चाहिये? 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को अमेठी (Amethi) में एक भी सीट नहीं मिली थी. रायबरेली से कांग्रेस के पास दो विधायक जरूर थे. अदिति सिंह के बीजेपी ज्वाइन करने के बाद से रायबरेली में भी कांग्रेस की स्थिति अमेठी जैसी हो गयी है.

2019 में स्मृति ईरानी के हाथों अमेठी में राहुल गांधी की हार के बाद कांग्रेस कार्यकर्ता बेहद निराश थे. लंबे अंतराल के बाद ही सही, राहुल गांधी जिस तरीके से पहुंचे और नये सिरे से भावनात्मक संवाद कायम करने की कोशिश की है, कांग्रेस कार्यकर्ताओं का जोश बढ़ाने वाला है.

छह किलोमीटर लंबी पदयात्रा के जरिये राहुल गांधी ने अमेठी के लोगों से नये सिरे से कनेक्ट होने की कोशिश की. किसी और तरीके से वैसा माहौल बनाना भी मुश्किल होता. लोगों से जुड़ने और अपनी बात कहने के लिए राहुल गांधी का ये तरीका बेहतर रहा.

राहुल गांधी की पदयात्रा के बाद से अमेठी में गांधी परिवार के लिए संभावनाओं को लेकर लोग अपने अपने हिसाब से आकलन करने लगे हैं. अंदाजा तो यहां तक जाने लगा है कि कांग्रेस नेतृत्व 2024 के आम चुनाव के मद्देनजर अमेठी में राहुल गांधी के लिए परिचय सम्मेलन प्लान किया था.

2024 को लेकर बहुत ज्यादा सोचना समझना तो अभी जल्दबाजी होगी, लेकिन अगर वास्तव में ऐसा कुछ है तो सवाल ये उठता है कि क्या राहुल गांधी अगले चुनाव तक इतने ताकतवर हो जाएंगे कि वो स्मृति ईरानी (Smriti Irani) से बदला ले सकें?

राहुल गांधी के लिए ऐसा मौका भी तभी संभव है जब अमेठी के लोग स्मृति ईरानी को लेकर भी निराश हो जायें. जिन उम्मीदों के साथ अमेठी के लोगों ने राहुल गांधी पर स्मृति ईरानी को तरजीह दी, बीजेपी नेता उन पर खरी न उतर पायें - हालांकि, अभी तक ऐसे कोई भी संकेत देखने को नहीं मिले हैं?

राहुल गांधी लड़ क्यों नहीं सकते

कन्फ्यूजन किस बात को लेकर है: 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा ने स्लोगन दिया है - लड़की हूं लड़ सकती हूं. इस नारे के साथ ही राहुल गांधी के साथ अमेठी दौरे के अगले ही दिन प्रियंका गांधी वाड्रा शक्ति संवाद कार्यक्रम में हिस्सा लेने रायबरेली गयी थीं.

राहुल गांधी अमेठी की प्रतिज्ञा पदयात्रा में तो हिस्सा लिये, लेकिन रायबरेली के कार्यक्रम में प्रियंका गांधी वाड्रा अकेले पहुंचीं. अरसा बाद ही सही, राहुल गांधी के अमेठी दौरे से ये तो समझ आ गया कि भाई-बहन मिल कर गांधी परिवार के गढ़ को बचाये रखना चाहते हैं. लेकिन अगले ही पल राहुल गांधी के अमेठी पहुंच कर रायबरेली से मुंह मोड़ लेने से संदेह भी पैदा होता है - आखिर कन्फ्यूजन किस बात को लेकर है.

rahul gandhi, priyanka gandhi vadra, smriti iraniअमेठी में स्मृति ईरानी से भिड़ने से पहले राहुल गांधी को प्रियंका के बारे में सोच लेना चाहिये

अमेठी में राहुल गांधी लोगों किस्सा सुनाते वाले अंदाज में कहते हैं, जब मेरी बहन ने लखनऊ चलने को कहा तो मैंने बोला पहले अमेठी जाऊंगा. बहुत अच्छी बात है. देर से ही सही, दुरूस्त होने की कोशिश तो की. राहुल गांधी लखनऊ से पहले अमेठी तो चले जाते हैं, लेकिन अगले ही दिन रायबरेली नहीं जाते. अमेठी और रायबरेली दोनों ही गांधी परिवार के गढ़ रहे हैं. चुनावों के समय दोनों भाई बहन जोर शोर से बताते भी रहे हैं कि कैसे वे लोग बचपन से ही अमेठी और रायबरेली आते रहे हैं.

राहुल गांधी आसान टारगेट क्यों: राहुल गांधी की ऐसी आदतों के चलते अमेठी से संसद पहुंची केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने प्रियंका गांधी वाड्रा के स्लोगन को अपने तरीके से पेश किया था - घर पर लड़का है, पर लड़ नहीं सकता.

प्रियंका गांधी वाड्रा ने स्मृति ईरानी के कमेंट पर सीधे सीधे रिएक्ट नहीं किया था, बल्कि महिलाओं के मुद्दे पर फोकस रहते हुए सवाल किया था कि महिला होकर वो महिलाओं के लिए लड़ने की बात से इत्तफाक क्यों नहीं रखतीं. प्रियंका गांधी वाड्रा ने नसीहत भी दी थी कि स्मृति ईरानी को भी महिलाओं के मुद्दे पर उनके स्लोगन का सपोर्ट करना चाहिये.

सवाल ये है कि स्मृति ईरानी सीधे सीधे प्रियंका गांधी वाड्रा से टकराने की जगह राहुल गांधी को ही टारगेट क्यों करती हैं? क्या प्रियंका गांधी वाड्रा से सीधे सीधे टकराने से स्मृति ईरानी परहेज करती हैं?

राहुल गांधी और स्मृति ईरानी में फर्क: 2014 के आम चुनाव में राहुल गांधी से चुनावी शिकस्त मिलने के बाद भी स्मृति ईरानी ने हार नहीं मानी. अगले आम चुनाव तक वो कोई न कोई बहाना लेकर अमेठी पहुंच ही जाती रहीं.

राहुल गांधी और स्मृति ईरानी की सक्रियता में डबल से भी ज्यादा का फासला देखा गया है. आंकड़े तो यही कहते हैं. 2014 से लेकर 2019 के बीच राहुल गांधी ने अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी 28 बार गये थे.

हार जाने के बावजूद उसी पांच साल की अवधि में स्मृति ईरानी ने 63 दौरे किये थे. कई बार तो ऐसा लगा कि संसद में राहुल गांधी के घेरने के बाद स्मृति ईरानी सीधे अमेठी पहुंच जाती थीं और वहीं से हमला बोल देती रहीं.

2019 में जीत हासिल करने के बाद तो कहना ही क्या. स्मृति ईरानी पहले की ही तरह एक्टिव हैं, लेकिन राहुल गांधी ने तो जैसे अमेठी से दूरी ही बना ली थी. चुनाव नतीजे आने के करीब दो महीने बाद एक बार अमेठी गये थे - और दोबारा कार्यक्रम बनाने में करीब ढाई साल का समय लगा दिये.

क्या राहुल गांधी सक्रियता की इस स्पीड से स्मृति ईरानी को रेस में पछाड़ सकते हैं - आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है.

अमेठी के लिए राहुल से बेहतर तो प्रियंका हैं

प्रियंका गांधी की सक्रियता को डाउनप्ले करने के लिहाज से बीजेपी नेता कह रहे हैं कि कांग्रेस ने सात सीटें भी जीत ली तो अच्छी बात होगी. दरअसल, 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सात ही सीटें जीती थीं.

सत्ता में वापसी के सपने तो वैसे भी कांग्रेस नहीं ही देख रही होगी, लेकिन 2014 के मकसद से खड़े होने लायक पोजीशन तैयार करने की कोशिश जरूर होगी. कांग्रेस ने किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं किया है - और यूपी की सभी 403 सीटों पर उम्मीदवार उतारने जा रही है. वादे के मुताबिक, कांग्रेस यूपी की 40 फीसदी सीटों पर महिला उम्मीदवार उतारेगी.

लेकिन कांग्रेस के लिए 7 सीटें जीतना नाकाफी होगा. वो भी तब जब वो 2024 की तैयारी कर रही हो. असल में अमेठी और रायबरेली मिला कर ही विधानसभा की 10 सीटें हो जाती हैं - दोनों लोक सभा सीटों के दायरे में विधानसभा की पांच-पांच सीटें हैं.

2024 में अगर राहुल गांधी अमेठी से किस्मत आजमाने का मन बना रहे हैं तो, पहले जरूरी है कि पांचो विधानसभी सीटों पर कांग्रेस की जीत सुनिश्चित हो - और रायबरेली को भी अगर आगे के लिए कांग्रेस के कब्जे में रखना है तो वहां की भी पांच सीटें जीत लेना बेहद जरूरी है.

वैसे विधानसभा की सभी दस सीटें जीत लेना भी लोक सभा चुनाव में जीत निश्चित होने की कोई गारंटी नहीं होती. विधानसभा और लोक सभा चुनाव के नतीजे अलग अलग होते हैं. 2018 में कांग्रेस ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सरकार बना ली, लेकिन 2019 के चुनाव में बीजेपी बाजी मार ले गये.

2019 के चुनाव में दिल्ली में अरविंद केजरीवाल दिल्ली में खाता भी नहीं खोल पाये, लेकिन साल भर बाद ही विधानसभा चुनाव में सात संसदीय सीटें जीतने वाली बीजेपी की हालत खराब हो गयी. लोक सभा चुनाव में आम आदमी पार्टी तीसरे स्थान पर तो रही ही, कई इलाकों मे उम्मीदवारों की जमानत तक जब्द हो गयी थी.

अगर इलाके में सक्रियता चुनाव जीतने का कारगर आधार है तो स्मृति ईरानी को टक्कर देना आगे भी राहुल गांधी के वश की बात नहीं लगती. देखा जाये तो अमेठी की हार प्रियंका गांधी के लिए भी बहुत बड़ा झटका रही. अमेठी में कांग्रेस तब तक जीतती चली आ रही थी जब तक प्रियंका गांधी परिवार की सदस्य होने के नाते चुनाव कैंपेन संभालती रहीं. बतौर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के लिए ये हार इसलिए भी तकलीफदेह रही क्योंकि वो पहली बार पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी बनायी गयी थीं.

देखा जाये तो प्रियंका गांधी भी अमेठी में ज्यादा सक्रिय नहीं रही हैं, लेकिन यूपी भर में उनकी सक्रियता को देखते हुए कहा जा सकता है कि अमेठी के लिए वो राहुल गांधी से बेहतर कांग्रेस उम्मीदवार हो सकती हैं - हार जीत तो लगी रहती है, लेकिन स्मृति ईरानी को भी प्रियंका गांधी से राहुल गांधी के मुकाबले कड़ी टक्कर मिल सकती है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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