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Updated: 22 दिसम्बर, 2017 03:12 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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वक्त करवटें बदलता है. गुजरते वक्त के साथ किस्मत भी करवटें बदलती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गुजरात में लंबा वक्त गुजरा है, चुनावों के चलते राहुल गांधी ने भी कुछ वक्त गुजार लिया है. गुजरात से दिल्ली पहुंचने पर मोदी ने तेल की कीमतों के सिलसिले में एक बार खुद को 'नसीबवाला' बताया था. गुजरात से दिल्ली लौटे राहुल गांधी का भी वक्त वैसे ही साथ देता नजर आ रहा है.

अभी 2G को लेकर बीजेपी की हालत सांप-छछूंदर वाली हो रखी है, अब आदर्श घोटाले में भी बीजेपी की किरकिरी होने वाली है. क्या मौजूदा दौर में राहुल गांधी नया 'नसीबवाला' बन रहे हैं?

नये 'नसीबवाला' राहुल गांधी!

क्या ये गुजरात की आब-ओ-हवा का असर है? क्या वाकई गुजरात में कुछ दिन गुजारने से किस्मत चमक उठती है? क्या कांग्रेस को इसीलिए पिछड़ना पड़ा क्योंकि मोदी फिर से गुजरात में कुछ दिन गुजारने पहुंच गये? होता जो भी हो. हकीकत जो भी. हो तो ऐसा ही रहा है.

प्रधानमंत्री बनने के बाद दिल्ली में एक चुनावी रैली में मोदी ने कहा था, “पेट्रोल, डीजल के दाम कम होने से लोगों की जेब में कुछ पैसा बचा है. इस पर भी आलोचक कहते हैं कि मोदी नसीबवाला है. अगर नसीबवाले से काम बन रहा है तो बदनसीब को लाने की क्या जरूरत है?”

rahul gandhiसियासी मार्केट में नया 'नसीबवाला'!

बतौर कांग्रेस अध्यक्ष CWC की मीटिंग लेने तक दो ऐसी खबरें आ चुकी हैं जो राहुल गांधी के लिए बेहद फायदेमंद हैं. 2G के बाद आदर्श घोटाले में भी कांग्रेस को बड़ी राहत मिली है.

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण का नाम उन 13 लोगों में शामिल रहा, जिनके खिलाफ सीबीआई ने आदर्श घोटाले में चार्जशीट तैयार किया था. बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के बाद साफ हो गया है कि चव्हाण के खिलाफ अब कोई केस नहीं चलेगा.

चव्हाण के वकील ने हाई कोर्ट में कहा था कि फरवरी 2016 में महाराष्ट्र के राज्यपाल सी विद्यासागर राव ने सबूतों के आधार पर नहीं, बल्कि राजनीतिक वजहों से केस चलाने की मंजूरी दी. कोर्ट ने चव्हाण के वकील की दलील को सही माना है जो बीजेपी के खिलाफ जाता है.

2G और आदर्श घोटाला - ये दोनों ही मामले जांच के लिए सीबीआई के हवाले किये गये थे. वही सीबीआई जिसे सुप्रीम कोर्ट पिंजरे का तोता बता चुका है. वही सीबीआई जिसे विरोधी दल सत्ता पक्ष पर दुरुपयोग का इल्जाम लगाता है. उसी सीबीआई ने सत्ताधारी बीजेपी के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है.

2G में स्पेशल कोर्ट का फैसला आने के बाद कांग्रेस को बीजेपी पर हमले का आधार मिल गया है. आदर्श घोटाले में बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले ने हमले की आग में थोड़ा और घी डाल दिया है.

प्रधानमंत्री बनना न बनना अलग बात है, लेकिन राहुल गांधी को कांग्रेस तो अध्यक्ष बनना ही था, विरासत जो संभालनी थी. गुजरात की जीत जैसी हार, 2G में सहयोगी डीएमके नेताओं का कोर्ट से बरी हो जाना और आदर्श घोटाले में मन की बात का हो जाना, निश्चित तौर पर राहुल गांधी के पक्ष में जाती हैं - वैसे अभी तक राहुल गांधी ने कनिमोझी से फोन पर बात तो की है, लेकिन सार्वजनिक तौर पर कुछ कहा नहीं है.

डीएमके के दोनों हाथों में लड्डू

2G केस में फैसला आने के बाद मनमोहन सिंह, कपिल सिब्बल, पी. चिदंबरम, आनंद शर्मा और एम वीरप्पा मोइली ने तो रिएक्शन दिये, लेकिन राहुल गांधी ने कुछ नहीं कहा. राहुल गांधी सार्वजनिक तौर पर इस मुद्दे पर कब और क्या कहते हैं देखना महत्वपूर्ण होगा. अब तक यही मालूम हुआ है कि उन्होंने कनिमोझी से फोन पर बात की, और कनिमोझी के मुताबिक, कहा - हम सब की जीत हुई है.

राजनीति में कर्टसी मुलाकातें भी रणनीति का हिस्सा ही होती हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और डीएमके नेता एम. करुणानिधि की मुलाकात को भी ऐसा ही बताया गया. क्या इतना बता देने भर से संभावित समीकरणों की चर्चाओं पर भी रोक लग जाती है? क्या वास्तव में बीजेपी आने वाले दिनों में डीएमके से कुछ भी नहीं चाहती? ऐसा लगता तो नहीं है.

तमिलनाडु में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान बीजेपी ने एआईएडीएमके से गठबंधन की तमाम कोशिशें की, लेकिन तब जयललिता ने नामंजूर कर दी. जयललिता के निधन के बाद शशिकला और पनीरसेल्वम गुट लड़ झगड़ कर अलग हो गये तो बीजेपी ने ही मेल-मिलाप कराया. बावजूद इसके एआईएडीएमके की हालत अच्छी नहीं नजर आ रही है. ऐसे में बीजेपी की डीएमके दिलचस्पी कैसे नहीं होगी, समझना मुश्किल लगता है.

2G केस में ए राजा और कनिमोझी के बरी हो जाने के बाद डीएमके के दोनों हाथों में लड्डू जैसी स्थिति हासिल हो गयी है. कांग्रेस उसे छोड़ना नहीं चाहती और बीजेपी भी डोरे डालने की तैयारी में है. पर्दे के पीछे की डील का पता तो औपचारिक घोषणा के बाद ही चल पाएगा. वैसे फैसला अब डीएमके को ही करना है कि उसे 'नसीबवाला' या नये नसीबवाले का साथ पसंद है!

ये तो नजर आ रहा है कि नया नसीबवाला पुराने को जोरदार टक्कर दे रहा है - हालांकि, कर्नाटक और दूसरे राज्यों में छिटपुट सियासी लड़ाइयों को छोड़ दें तो असली जंग तो 2019 में होनी है. जिस हिसाब से नसीब राहुल गांधी का साथ देता नजर आ रहा है, लगता तो यही है कि आगे की राजनीति और भी ज्यादा दिलचस्प होने वाली है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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