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Updated: 25 मार्च, 2023 07:58 PM
रमेश सर्राफ धमोरा
रमेश सर्राफ धमोरा
  @ramesh.sarraf.9
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कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी राजनीति के चक्रव्यूह में फंसे हुए नजर आ रहे हैं. मानहानि के एक मामले में गुरुवार को सूरत की एक अदालत ने उन्हें दो साल की सजा व 15 हजार रूपयों का जुर्माना सुनाया था. हालांकि अदालत ने उसी समय राहुल गांधी की जमानत लेते हुए उन्हें एक महीने में ऊपरी अदालत में अपील करने का समय दिया था. निचली अदालत के इस फैसले को आधार बनाकर लोकसभा ने आज राहुल गांधी की सदस्यता समाप्त कर दी. राहुल गांधी को अपने बचाव में ऊपरी अदालत में अपील करनी होगी तभी वह जेल जाने से बच सकेंगे एवं उनकी संसद की सदस्यता भी बच पाएगी.

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कर्नाटक के कोलार में एक रैली के दौरान राहुल गांधी ने कहा था कि सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है. चाहे वह ललित मोदी, नीरव मोदी हो या नरेंद्र मोदी हो. इसको लेकर सूरत पश्चिम के भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी ने राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि का केस करते हुए कहा था कि राहुल गांधी ने हमारे पूरे समाज को चोर कहा है और यह हमारे समाज की मानहानि है. इस केस की सुनवाई के दौरान राहुल गांधी तीन बार सूरत कोर्ट में पेश होकर खुद को निर्दोष बताया था. इसी मामले में सूरत के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एच एस वर्मा की कोर्ट ने राहुल गांधी को भारतीय दंड विधान की धारा 499 और 500 के तहत दोषी ठहराया.  मगर इसके साथ ही उन्हे जमानत देते हुए 30 दिनों के लिए सजा को निलंबित कर दिया था. ताकि उन्हें हाई कोर्ट में अपील करने का मौका मिल सके.

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सूरत कोर्ट द्वारा राहुल गांधी को सजा सुनाने के 26 घंटे बाद ही लोकसभा ने उन्हें सदस्यता के अयोग्य ठहरा दिया है. यदि लोकसभा अध्यक्ष चाहते तो उन्हें ऊपरी अदालत के निर्णय होने तक संसद सदस्य रखा जा सकता था. मगर सरकार के दबाव में अति शिघ्रता में उनकी सदस्यता रद्द कर दी गयी है. कोर्ट के निर्णय से राहुल गांधी चौतरफा घिर गए हैं. उन्हें शीघ्र ही गुजरात हाई कोर्ट में अपील कर अपना पक्ष रखना होगा. यदि राहुल गांधी को हाईकोर्ट से भी राहत नहीं मिलती है तो अगले आठ साल तक वह चुनाव लड़ने के अयोग्य हो जाएंगे.

वर्तमान समय में कांग्रेस पार्टी चारों तरफ से घिरी हुई है. राजनीतिक रूप से भी पार्टी कमजोर हो रही है. ऐसे में राहुल गांधी को जेल की सजा होना व उनकी संसद सदस्यता जाना कांग्रेस पार्टी के लिए एक बड़ा झटका है. कांग्रेस पार्टी को बहुत ही सावधानी से अपने विधिक कदम उठाने होंगे. न्यायालय में मजबूती के साथ अपना पक्ष रखना होगा. यदि ऊपरी न्यायालय से राहुल गांधी को राहत मिल जाती है तो कांग्रेस पार्टी के लिए बहुत बड़ी राहत होगी.

केंद्र सरकार कांग्रेस सहित देश के अन्य सभी विपक्षी दलों पर पूरी तरह हमलावर मूड में है. विपक्षी दलों के नेताओं को लगातार सरकारी संस्थाओं के माध्यम से निशाना बनाया जा रहा है. 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं. उससे पूर्व राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ, कर्नाटक सहित कई प्रदेशों में विधानसभा के भी चुनाव होंगे. जहां कांग्रेस की सीधी भाजपा से टक्कर होनी है. ऐसे में भाजपा कांग्रेसी नेताओं को विभिन्न तरीकों से दबा कर उनका मनोबल कमजोर करना चाहती है.

ऐसी परिस्थिति से बचने के लिए राहुल गांधी को अपने इर्द-गिर्द तैनात नेताओं में से उन लोगों को दूर कर देना चाहिए जो सिर्फ स्वयं को आगे बढ़ाने के लिए राहुल गांधी का सहारा ले रहे हैं. बहुत से जनाधार विहीन नेता राहुल गांधी के सहारे बड़े-बड़े पदों पर बैठे हुये हैं. जिनका जनता में जनाधार शून्य है. बड़े पदों पर तैनात कई नेता तो ऐसे हैं जिन्होंने आज तक कभी अपनी जिंदगी में चुनाव नहीं लड़ा. कई बड़े नेता लगातार कई चुनाव हार चुके हैं.

जनाधार विहीन नेता राहुल गांधी से नजदीकी का फायदा उठाकर उनकी नजरों में अपने नंबर बनाने के लिए अक्सर उन्हे गलत सलाह देते रहते हैं. राहुल गांधी को ज्ञान होना चाहिए कि जुबान से निकली हुई बात वापस नहीं आ सकती है. राजनीतिक जीवन में ऐसे शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए जिनका नतीजा नकारात्मक होता है. आज राहुल गांधी अपने गलत गलत बयानों के चलते ही कोर्ट से मुजरिम करार दिए गए हैं.

यदि गुजरात उच्च न्यायालय से राहुल गांधी को राहत नहीं मिलती है तो उन्हें जेल तो जाना ही होगा. इसके साथ ही अगले 8 सालों तक वह कोई भी चुनाव नहीं लड़ सकेंगे. इससे उनकी पूरी राजनीतिक साख समाप्त हो जाएगी. और भाजपा के नेता यही चाहते हैं कि राहुल गांधी की साख को समाप्त कर दिया जाए. राहुल गांधी जानबूझकर उन्हें ऐसे मौके दे देते हैं.  अभी राहुल गांधी पर मानहानि के चार और मुकदमे चल रहे हैं. जिस पर फैसला आना बाकी है. इनमें महाराष्ट्र के भिवंडी कोर्ट में, असम के गुवाहाटी कोर्ट में, रांची के एक कोर्ट में व महाराष्ट्र के मझगांव स्थित शिवडी कोर्ट में मुकदमे चल रहे हैं.

हालांकि राहुल गांधी कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के लिए इन दिनों पूरी मेहनत कर रहे हैं. मगर प्रदेशों में बैठे कांग्रेस के छत्रपों पर उनका नियंत्रण नहीं हो पा रहा है. बहुत से प्रादेशिक क्षत्रप अपनी मनमानी करते हैं. जिससे पार्टी तो कमजोर होती है पार्टी का अनुशासन भी भंग होता है. राजस्थान में 6 महीने पहले पार्टी की खिलाफत करने वाले नेताओं पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं करने से पार्टी के आम कार्यकर्ताओं में एक गलत संदेश जा रहा है. कांग्रेस को ऐसी घटनाओं से भी बचना चाहिए. पार्टी से बगावत करने वाला कितना ही बड़ा नेता क्यों ना हो उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए. तभी पार्टी में अनुशासन बना रह पाएगा.

कांग्रेस नेताओं को चाहिए कि महाराष्ट्र की तरह पूरे देश में एक मजबूत विपक्षी मोर्चा बनाए ताकि आने वाले चुनाव में भाजपा को करारी टक्कर दे सके. राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की सफलता से भाजपा पूरी तरह बौखला गई थी. उस पदयात्रा के प्रभाव को कम करने के लिए ही विभिन्न तरह से कांग्रेस पार्टी के नेताओं को दबाया जा रहा है. यदि सभी विपक्षी दलों के नेता अपना ईगो छोड़कर एकजुटता से मुकाबला करेंगे तो उनके सामने भाजपा कहीं ठहर ही नहीं पाएगी. इस बात का भाजपा नेताओं को भी पता है इसीलिए विपक्षी दलों में फूट डालने के लिए तरह-तरह के हथकंडे आजमाए जा रहे हैं जिनसे सावधान रहकर आगे बढ़ने की जरूरत है.

लेखक

रमेश सर्राफ धमोरा रमेश सर्राफ धमोरा @ramesh.sarraf.9

(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं। इनके लेख देश के कई समाचार पत्रों में प्रकाशित होतें रहतें हैं।)

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