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Updated: 18 नवम्बर, 2022 09:57 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने विनायक दामोदर सावरकर (Savarkar) पर बयान देकर फिर से बवाल करा दिया है. जाहिर है ये सब यूं ही या दुर्घटनावश नहीं हुआ है, बल्कि राहुल गांधी ने एक सोची समझी रणनीति के तहत ये सब किया है.

भारत जोड़ो यात्रा के महाराष्ट्र पहुंचने पर राहुल गांधी का बिरसा मुंडा के मुकाबले सावरकर को खड़ा करके सवाल उठाने का खास मकसद है. महाराष्ट्र के साथ साथ लगे हाथ राहुल गांधी झारखंड की राजनीति को भी चर्चा में लाने की कोशिश कर रहे हैं - क्योंकि वहां मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन प्रवर्तन निदेशालय की जांच के घेरे में आ चुके हैं. जेएमएम के नेतृत्व में चल रही झारखंड सरकार में कांग्रेस भी गठबंधन सहयोगी की भूमिका में है.

ये भी पहली बार नहीं हुआ है कि उद्धव ठाकरे के सामने राहुल गांधी ने पसोपेश की स्थिति पैदा कर दी हो. जब दिल्ली में राहुल गांधी ने कहा था, 'मेरा नाम राहुल सावरकर नहीं...' तब उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हुआ करते थे - और तब संजय राउत ने बड़ी ही दबी जबान में राहुल गांधी के बयान से दूरी बना ली थी - अब तो उद्धव ठाकरे को खुद बयान जारी करके अपनी स्थिति स्पष्ट करनी पड़ी है.

हिंदुत्व की राजनीति से कट जाने के आरोपों से पहले से ही जूझ रहे उद्धव ठाकरे की स्थिति आगे कुआं पीछे खाई वाली हो जा रही है - क्योंकि महाराष्ट्र में भारत जोड़ो यात्रा में आदित्य ठाकरे भी राहुल गांधी के साथ मार्च कर चुके हैं.

बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के लिए तो इतना ही काफी है, उद्धव ठाकरे को घेरने के लिए. ऊपर से सावरकर के पोते रंजीत सावरकर ने मुंबई पुलिस के पास शिकायत भी दर्ज करा दी है.

राहुल गांधी को ऐसी चीजों से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खिलाफ पहले से ही वो मानहानि का मुकदमा लड़ रहे हैं और जब भी बुलाया जाता है, कोर्ट में हाजिर जरूर होते हैं - और बाहर आते ही जम कर बरसते भी हैं.

सावरकर के बहाने राहुल गांधी निश्चित तौर पर कांग्रेस और अपने खिलाफ एकतरफा हमलों की धार थोड़ा कुंद कर सकते हैं, लेकिन महाराष्ट्र में ऐसा करना कांग्रेस के लिए किसी भी रूप में फायदे का सौदा नहीं हो सकता - अव्वल तो ये सब करके महाराष्ट्र में वो भारतीय जनता पार्टी (BJP) को ही फायदा पहुंचा रहे हैं.

सावरकर पर ताजा विवाद

भारत जोड़ो यात्रा के के तहत महाराष्ट्र में भी राहुल गांधी की रैली पहले से ही तय था. बिरसा मुंडा की जयंती पर एक रैली वाशिम जिले में हुई और राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी को टारगेट करने के लिए सावरकर के नाम का इस्तेमाल किया - अब महाराष्ट्र में ऐसा होगा तो क्या होगा? बिलकुल वैसा ही रिएक्शन हुआ जो स्वाभाविक था. ऐसा तो नहीं लगता कि राहुल गांधी या उनके सलाहकारों को इसका अंदाजा नहीं होगा.

rahul gandhiसावरकर पर राहुल गांधी की टिप्पणी का और कोई असर हो न हो, कांग्रेस मुक्त महाराष्ट्र जरूर हो सकता है

गुजरात चुनाव को देखते हुए हाल फिलहाल सभी राजनीतिक दल अपने अपने तरीके से आदिवासी वोटर तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं. 22 नवंबर को राहुल गांधी के गुजरात दौरे का भी कार्यक्रम तय है. हो सकता है राहुल गांधी के गुजरात दौरे में कोई कार्यक्रम ऐसा भी बने जिसकी जद में आदिवासी आबादी का प्रभाव हो - और ये भी हो सकता है कि वहां भी एक बार फिर सावरकर पर राहुल गांधी की टिप्पणी सुनने को मिले. गुजरात में जैसी भी प्रतिक्रिया हो, लेकिन महाराष्ट्र जैसी तो नहीं ही होगी.

रैली में राहुल गांधी ने कहा कि एक तरफ जहा भगवान बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया... उनके सामने झुके नहीं... दूसरी ओर सावरकर ने अंग्रेजों के सामने घुटने टेक दिये. एक ओर बिरसा मुंडा जैसी महान शख्सियत हैं, जो अंग्रेजों के सामने झुके नहीं... और दूसरी तरफ सावरकर हैं, जो अंग्रेजों से माफी मांग रहे थे.

राहुल गांधी का कहना रहा, 'भगवान बिरसा मुंडा जी 24 साल की उम्र में शहीद हो गये. अंग्रेजों ने उनको जमीन देने की कोशिश की... पैसे देने की कोशिश की... खरीदने की कोशिश की, लेकिन वो सब नकार दिये.'

और फिर बिरसा मुंडा और सावरकर की तुलना करते हुए कहने लगे, 'सावरकर जी... दो-तीन साल उन्हें अंडमान में बंद कर दिया तो चिट्ठी लिखनी शुरू कर दी कि हमें माफ कर दो... जो भी हमसे चाहते हो ले लो... बस मुझे जेल से निकाल दो.'

सावरकर को लेकर राहुल गांधी ऐसी बातें अक्सर करते रहते हैं, लेकिन महाराष्ट्र जाकर ऐसा कहना उनको भारी पड़ रहा है. बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस का कहना है कि राहुल गांधी की टिप्पणी का जवाब महाराष्ट्र की जनता देगी. डिप्टी सीएम फडणवीस ने राहुल गांधी और आदित्य ठाकरे के भारत जोड़ो यात्रा में साथ साथ मार्च करने पर भी सवाल उठाया है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने भी कहा है कि महाराष्ट्र के लोग हिंदुत्व विचारक के अपमान को बर्दाश्त नहीं करेंगे.

और ऐसी चीजों का सबसे ज्यादा दबाव पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे महसूस कर रहे हैं. महाराष्ट्र बीजेपी ने की तरफ से एक ट्वीट में लिखा गया है, ‘उद्धव ठाकरे, हमारे डीएनए को हटाने के बजाय... वास्तव में, आपमें ये परिवर्तन किस वजह से हुआ है? जांच करें... उद्धव ठाकरे, आप राहुल गांधी से गले मिलकर आ गये.’

जब इतना सब हो रहा हो तो उद्धव ठाकरे को भी सामने आना ही पड़ेगा. आये भी, और बोले, ‘हम वीर सावरकर पर राहुल गांधी के बयान का समर्थन नहीं करते... हमारे दिल में वीर सावरकर के लिए आदर और सम्मान है... उनके योगदान को कोई नहीं मिटा सकता.'

लेकिन, लगे हाथ उद्धव ठाकरे संघ और बीजेपी को भी आड़े हाथों लेते हैं, 'मुझे तो हंसी आती है जब भाजपा और संघ सावरकर की बात करते हैं... भारत को आजाद करवाने में इनका कोई योगदान नहीं था... सावरकर के बारे में बोलने का उनको कोई हक नहीं है.’

हो सकता है, उद्धव ठाकरे के बयान के इस हिस्से को राहुल गांधी पूरी तरह अपने सपोर्ट में समझते हों, लेकिन उद्धव ठाकरे ने तो बीजेपी से अलग खड़े होने के लिए ऐसी बातें की है. हां, उद्धव ठाकरे की तरफ से अभी तक ऐसा कोई संकेत नहीं दिया गया है कि वो कांग्रेस से दूरी बना रहे हैं या फिर बीजेपी की तरफ घर वापसी के बारे में सोच रहे हैं.

राहुल गांधी की बातों का असर इतना तो हुआ ही है कि कांग्रेस के साथ साथ उद्धव ठाकरे की भी फजीहत बढ़ गयी है - अब अगर राहुल गांधी को संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गले मिलने के बाद आंख मारने जैसा आनंद आ रहा हो तो बात और है!

राहुल गांधी चाहते क्या हैं?

महाराष्ट्र के नेताओं के निशाने पर आ जाने के बाद राहुल गांधी जब मीडिया के सामने आये तो जो भी चर्चा रही, सवाल पूछे गये. राहुल गांधी भी पहले से ही तैयारी करके आये थे - मीडिया के सामने एक चिट्ठी पेश करते हुए राहुल गांधी ने दावा किया कि जो कुछ कहा है, पुख्ता सबूत के साथ कहा है.

राहुल गांधी ने उद्धव ठाकरे का कोई जिक्र नहीं किया. संकेतों में भी कुछ नहीं कहा, बस संघ और बीजेपी उनके निशाने पर रहे. एक पत्र की कॉपी दिखाते हुए बोले, 'ये मैंने नहीं लिखा... सावरकर जी ने लिखा है... आप इसको पढ़ लीजिये... देख लीजिए. अगर फडणवीस जी भी देखना चाहते हैं वो भी देख लें... मैं तो इसमें बहुत स्पष्ट हूं... सावरकर जी ने अंग्रेजों की मदद की थी.'

कांग्रेस नेता का कहना रहा, 'ये मेरे लिए सबसे जरूरी डॉक्यूमेंट है... ये सावरकर जी की चिट्ठी है जो उन्होंने अंग्रेजों के लिए लिखी है... जिसकी आखिरी लाइन है - सर, मैं आप का नौकर रहना चाहता हूं... वीडी सावरकर.’

फायदे में तो बीजेपी ही रहने वाली है

दिसंबर, 2019 में झारखंड चुनाव के दौरान राहुल गांधी के एक बयान पर संसद में बहुत बवाल हुआ था और बीजेपी सांसदों ने राहुल गांधी से माफी मांगने को कहा था. अगले ही दिन दिल्ली में कांग्रेस की तरफ से भारत बचाओ रैली करायी गयी और राहुल गांधी ने बातों बातों में ही सावरकर को घसीट लिया, 'मेरा नाम राहुल सावरकर नहीं, राहुल गांधी है... माफी नहीं मांगूंगा... मर जाऊंगा लेकिन माफी नहीं मांगूंगा.'

जिस तरीके से महाराष्ट्र की धरती पर पहुंच कर राहुल गांधी ने टिप्पणी की है, अगर उनको लगता है कि सावरकर का नाम लेकर वो संघ और बीजेपी को कठघरे में खड़ा कर सकेंगे... ये साबित कर सकेंगे कि संघ और बीजेपी का आजादी के आंदोलन में कोई योगदान नहीं रहा - और ऐसा करके वो नेहरू पर संघ और बीजेपी के हमले को रोक सकेंगे, लेकिन ऐसा नहीं होने वाला.

संघ और बीजेपी ने अपना जो सपोर्ट बेस बना लिया है, राहुल गांधी की बातों का उन पर कोई असर नहीं होने वाला है. हो सकता है राहुल गांधी को लगता हो कि ऐसा करके वो कांग्रेस कार्यकर्ताओं का जोश बढ़ा सकते हैं, लेकिन ये मंहगा भी पड़ सकता है - और राहुल गांधी, उनके सलाहकारों की सारी मेहनत बेकार की कवायद साबित होने जा रही है.

देखा जाये तो राहुल गांधी सावरकर को विवादों में घसीट कर महाराष्ट्र में कांग्रेस का भला नहीं कर सकते. सावरकर को कठघरे में खड़ा कर राहुल गांधी कांग्रेस मुक्त महाराष्ट्र के अलावा कुछ भी हासिल नहीं कर सकते.

ऐसा होने से महाराष्ट्र में कांग्रेस के खिलाफ जनमत खड़ा हो जाएगा. नाना पटोले इस मुद्दे पर राहुल गांधी के साथ खड़े होने का असर देख चुके हैं. सावरकर के नाम पर उद्धव ठाकरे भी पीछे हट जाएंगे और एनसीपी को भी कांग्रेस से पीछा छुड़ाने का मौका मिल जाएगा - और इसका पूरा फायदा बीजेपी को ही मिलेगा.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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