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Updated: 23 जनवरी, 2019 08:01 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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प्रियंका गांधी वाड्रा को लेकर अब तक पूछे जा रहे सारे सवालों का जवाब कांग्रेस ने एक ही झटके में दे दिया है. अब तक ज्यादातर पर्दे के पीछे सक्रिय प्रियंका अब फील्ड में भी कांग्रेस की नेता होंगी, लेकिन तत्काल प्रभाव से नहीं - फरवरी के पहले हफ्ते से.

राहुल गांधी ने प्रियंका गांधी वाड्रा को कांग्रेस का महासचिव बनाया है और पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया है. अब तक उत्तर प्रदेश के प्रभारी रहे गुलाम नबी आजाद के काम की तारीफ करते हुए यूपी से हटाकर हरियाणा शिफ्ट कर दिया गया है.

राहुल गांधी ने प्रियंका वाड्रा को चुनावी समर में अपने साथ तो किया ही है, यूपी में मदद के लिए मध्य प्रदेश से ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी बुला लिया है. सिंधिया पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी बनाये गये हैं. 2018 में सिंधिया मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे, लेकिन यूपी से ही गये कमलनाथ ने कुर्सी पर कब्जा कर लिया.

ये तो ठीक है कि प्रियंका गांधी वाड्रा अब आधिकारिक तौर पर कांग्रेस की नेता हो चुकी हैं - लेकिन इस घोषणा से क्या कुछ बदलेगा और उनकी नयी भूमिका का क्या प्रभाव होगा यही गौर करने वाली बात होगी.

प्रियंका को सिर्फ पोस्‍ट मिली है, रोल वैसा का वैसा ही

कांग्रेस की राजनीति में प्रियंका गांधी वाड्रा की ऑफिशियल एंट्री ऐसे वक्त हुई है जब राहुल गांधी उन सारी बातों को झुठला चुके हैं जिन्हें लेकर उनकी काबिलियत को कठघरे में खड़ा किया जाता रहा. कांग्रेस अध्यक्ष बनने को लेकर आनाकानी वाली तोहमत तो राहुल गांधी पहले ही किनारे कर चुके थे, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनवाकर ये भी साबित कर दिया कि वो चुनाव भी जिता सकते हैं. जब सोनिया गांधी से राहुल और प्रियंका के बारे में पूछा जाता तो वो यही कहतीं कि वे अपने बारे में फैसला खुद करेंगे. फिर तो जिस तरह राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी अपने मन से संभाली प्रियंका गांधी भी मन की बात सुनते हुए राजनीति में आ गयीं.

घोषित तौर पर तो प्रियंका गांधी पर अपनी मां सोनिया गांधी के चुनाव क्षेत्र रायबरेली और राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी तक सीमित रही, लेकिन कहने भर को.

कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी की ताजपोशी की पूरी तैयारी प्रियंका गांधी की निगरानी में ही हुई थी. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के पसंदीदा साथ को भी प्रियंका गांधी ने ही अमली जामा पहनाया था. कठुआ और उन्नाव गैंगरेप के विरोध में इंडिया गेट पर कैंडल मार्च के पीछे भी प्रियंका गांधी का ही दिमाग माना जाता है. हाल ही की तो बात है - तीन राज्यों में कांग्रेस के मुख्यमंत्री चुने जाने थे और कोई नतीजा नहीं निकल रहा था और फिर प्रियंका गांधी जुटीं मुख्यमंत्रियों के नाम फाइनल हो गये.

priyanka gandhi, rahul gandhiप्रियंका के सामने आने से भी क्या बदलेगा

ऐसा तो बिलकुल नहीं लगता कि कांग्रेस में प्रियंका गांधी वाड्रा की भूमिका में कोई परिवर्तन आने वाला है. ऐसा भी नहीं है कि अब तक वो कुछ और कर रही थीं और अब कोई नया काम करने वाली हैं. ये भी नहीं कि अब वो अपने मन का काम कर सकेंगी. हुआ सिर्फ यही है कि कांग्रेस की राजनीति में प्रियंका गांधी के हस्तक्षेप को औपचारिक शक्ल दे दी गयी है. बस इतना ही हुआ है.

प्रियंका का नया अवतार कितना असरदार?

प्रियंका गांधी अब तक रायबरेली और अमेठी में चुनाव प्रबंधन तक सीमित रही हैं. चुनाव भी सोनिया गांधी और राहुल गांधी लड़ते थे और प्रियंका सारे इंतजाम देखती रहीं. अब तो उनका चेहरा भी दाव पर है. निश्चित रूप से प्रियंका गांधी एक बड़ा फेस हैं. अगर सिर्फ चेहरा चमत्कार दिखा सकता है तो कांग्रेस के लिए जश्न के साथ साथ बीजेपी के लिए चिंता का विषय जरूर हो सकता है. लेकिन राजनीति सिर्फ चेहरे से नहीं होती.

प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी दी गयी है. ये वो इलाका है जहां कांग्रेस के सामने चुनौतियां पहाड़ बन कर खड़ी हैं. ये ठीक है कि रायबरेली और अमेठी में काम करने के कारण प्रियंका इलाके के रग-रग से वाकिफ हैं, लेकिन मामला महज इतना ही नहीं है.

कांग्रेस ने प्रियंका को जिस इलाके का प्रभारी बनाया है वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है. उसी इलाके में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का कर्मक्षेत्र भी आता है. सबसे बड़ी बात वही वो इलाका है जहां यूपी गठबंधन का सबसे सफल प्रयोग हुआ है. वही इलाका जहां के चुनावी नतीजे मायावती और अखिलेश यादव के बीच चुनावी गठबंधन का आधार बने हैं.

पूर्वी उत्तर प्रदेश के ज्यादातर हिस्सों में बरसों से योगी आदित्यनाथ की हिंदू युवा वाहिनी का दबदबा रहा है - और योगी आदित्यनाथ के यूपी के सीएम की कुर्सी पर बैठने में बड़ी भूमिका रही है. ये इलाका बीजेपी का गढ़ भी है और यूपी गठबंधन की मजबूती का गवाह भी.

प्रियंका गांधी वाड्रा में कांग्रेस समर्थक इंदिरा गांधी की छवि देखते रहे हैं. राजनीतिक जमीन पर प्रियंका गांधी कितने पानी में हैं ये अभी साबित होना है. सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने दो लोक सभा चुनाव जीतकर केंद्र में दस साल सरकार भी चलायी है, राहुल गांधी भी लगातार फील्ड में बने हुए हैं. सफलता से ज्यादा तो राहुल गांधी ने असफलता ही देखी है.

एससी-एसटी एक्ट, सवर्ण आरक्षण, तीन तलाक और राम मंदिर निर्माण में उलझी यूपी की चुनावी राजनीति में प्रियंका कांग्रेस की झोली में कितना डाल पाती हैं - इसका लेखा जोखा चुनाव नतीजे ही दे पाएंगे. कयास तो कुछ भी लगाये जा सकते हैं.

रायबरेली, अमेठी या कहीं और

रायबरेली और अमेठी की सीटों पर बीजेपी नेतृत्व बिलकुल 'काक चेष्टा बको ध्यानं' वाले अंदाज में नजर लगाये हुए है. चर्चाओं का स्रोत जो भी हो कभी सोनिया के चुनाव नहीं लड़ने तो कभी राहुल गांधी के किसी और भी सीट से चुनाव लड़ने की भी बातें होती रही हैं.

priyanka posterये लो आ गयीं प्रियंका गांधी

सोनिया गांधी के रायबरेली और राहुल गांधी के अमेठी दौरे का 23 जनवरी का प्रोग्राम तो पहले से ही बना हुआ था, जाहिर है प्रियंका गांधी को महासचिव बनाने की घोषणा की तारीख भी उसी तैयारी का हिस्सा होगी. वैसे सोनिया का कार्यक्रम तो स्वास्थ्य कारणों से रद्द हो गया लेकिन राहुल गांधी अमेठी पहुंच रहे हैं. राफेल पर संसद में बहस के चलते राहुल गांधी ने पिछला दौरा रद्द कर दिया था. तब एक ही दिन स्मृति ईरानी का भी प्रोग्राम बना था और वो तो घूम भी आयीं.

अब भी ये नहीं कहा जा सकता कि रायबरेली सीट अब पूरी तरह प्रियंका गांधी के हवाले हो जाएगी. पूरी तरह इसलिए क्योंकि चुनावी राजनीति में सोनिया गांधी रायबरेली का प्रतिनिधित्व करती हैं, लेकिन लोगों के बीच तो प्रियंका ही रहती हैं. एक वक्त तो प्रियंका गांधी दिल्ली में ही रायबरेली के लोगों का जनता दरबार भी लगाती रहीं.

जहां तक प्रियंका के चुनाव क्षेत्र का सवाल है तो जरूरी नहीं कि वो रायबरेली से ही मैदान में उतरें. राजनीति में अगर किसी बड़े नेता को नया चुनाव क्षेत्र चुनना होता है तो उसके लिए पार्टी का गढ़ होना तो जरूरी होता ही है, लेकिन ध्यान इस बात का भी रखा जाता है कि जिस क्षेत्र विशेष से वो खड़ा होगा उसके आस पास की सीटों पर उसका क्या असर होगा. 2014 में नरेंद्र मोदी ने गुजरात से आकर वाराणसी को चुनावी क्षेत्र बनाया - और यूपी में 72 सीटें आने में एक बड़ा फैक्टर ये भी रहा. प्रियंका अपने लिए भी खुद ऐसे ही तरीकों से चुनाव क्षेत्र का चयन करेंगी.

वैसे अब इतना तो लगता है कि प्रियंका लोक सभा में मौजूद रहना चाहेंगी. करीब करीब वैसे ही जैसे अमित शाह राज्य सभा पहुंचे हुए हैं. सीनियर कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा ने भी कुछ ऐसी ही उम्मीद जतायी है, 'प्रियंका को दी गयी जिम्मेदारी बेहद अहम है. इसका असर केवल पूर्वी यूपी पर ही नहीं, बल्कि अन्य इलाकों पर भी होगा.’

एक छोटी सी मुश्किल भी है

प्रियंका गांधी के अब तक परहेज बरतने को लेकर एक तरह का खास संकोच भी माना जाता रहा. इस संकोच की वजह भी उनके पति रॉबर्ट वाड्रा के विवादित कारोबार रहे हैं. अब तक बीजेपी सरकारें रॉबर्ट वाड्रा का नाम तो लेती रही हैं, लेकिन सरकारी एजेंसियों का एक्शन ज्यादातर उनके सहयोगियों के खिलाफ रहा है. सरकारी एजेंसियों की जांच पड़ताल हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए भी परेशानियां पैदा करता रहा है. बहरहाल, प्रियंका गांधी के कांग्रेस ज्वाइन करने के साथ अब उनके पति रॉबर्ट वाड्रा के चुनाव प्रचार और यहां तक कि चुनाव लड़ने की भी चर्चा होने लगी है.

rahul, priyanka, vadraवाड्रा के कारोबार को लेकर होने वाले विवादों से भी जूझना होगा

तो क्या प्रियंका के राजनीतिक मैदान में उतरने पर विरोधी उन पर हमले तेज करेंगे? विरोधी किसी के भी हों, वे तो बस विरोधी होते हैं. विरोध एक तरीके से उनका पेशेवराना बिजनेस होता है. 2014 के बाद वाड्रा विवाद यदा-कदा ही उठा है. खासकर चुनावी माहौल जब चरम पर रहा हो.

संभव है बीजेपी और उसके साथी वाड्रा विवाद को हवा देने की पूरी कोशिश करें. मगर, बीजेपी और उसके साथियों को ये भी समझाना होगा कि जब केंद्र और हरियाणा दोनों जगह सरकारें रहने के बावजूद वाड्रा की फाइल दबाकर क्यों बैठे हुए थे - और अब कर भी क्या सकते हैं - कुछ ठिकानों की तलाशी के सिवा. क्या इस मामले में भी सत्ताधारी पार्टी वैसे ही सवाल उठाने का मौका देगी जैसे मायावती-अखिलेश यादव की मुलाकात होते ही उनसे संबंधित ठिकानों पर छापेमारी शुरू हो जाती है.

2017 के विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर (तब पोल कैंपेनर, अब जेडीयू नेता) ने प्रियंका गांधी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने की सलाह दी थी, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व तैयार न हुआ. कांग्रेस प्रियंका को दी गयी जिम्मेदारी को जैसे भी परिभाषित करे, चुनौती तो तकरीबन वैसी ही है. कांग्रेस का मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव जीतना यूपी में संभावनाएं भले बढ़ाये, जीत की गारंटी नहीं है.

देखा जाये तो बीजेपी बनाम यूपी गठबंधन की लड़ाई में कांग्रेस को अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए मुकाबले को त्रिकोणीय बनाना होगा. एक बात तो साफ है कि प्रियंका के मोर्चे पर खड़े रहने से कांग्रेस कार्यकर्ताओं का जोश चौगुना हो जाएगा, लेकिन क्या क्या यूपी की जनता भी जाति और धर्म से ऊपर उठ कर प्रियंका के नाम पर वोट देने को तैयार है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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