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Updated: 29 जनवरी, 2020 07:44 PM
सुजीत कुमार झा
सुजीत कुमार झा
  @suj.jha
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आखिरकार वही हुआ जिसकी आशंका जताई जा रही थी. जेडीयू (JDU) ने पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) और महासचिव पवन वर्मा (Pavan Varma) को पार्टी की सभी जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया. यानी दोनों को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से बर्खास्त कर दिया गया है. हाल के दिनों में दोनों ही नेता पार्टी के निर्णयों और नियमों के खिलाफ बयान दे रहे थे. इन्होंने नागरिकता संशोधन कानून (Citizenship amendment act) पर भी खूब अड़ंगा लगाया था. ध्यान रहे कि नागरिक संशोधन एक्ट को पार्टी ने समर्थन दिया था इसके बावजूद दोनों ही नेता पार्टी लाईन के खिलाफ जाकर न सिर्फ बयानबाजी कर रहे थे. बल्कि निजी बातों को भी सार्वजनिक कर रहे थे. मामले पर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar )ने कहा है कि वो जहां जाना चाहे जाएं ये उनकी इच्छा पर निर्भर करता है. नीतीश की इस बात से साफ हो गया है कि दोनों ही नेताओं को पार्टी से निकाला नहीं जायेगा. 

Prashant Kishor, Pavan Varma, JDU, Nitish Kumar, Bihar   माना जा रहा है की प्रशांत किशोर और पवन वर्मा की बयानबाजी से तंग आकर ही कड़ा फैसला लिया है

मामले पर नीतीश कुमार ने यहां तक कहा कि उन्होंने अमित शाह के कहने पर प्रशांत किशोर को पार्टी में शामिल किया था. इस बात को लेकर प्रशांत किशोर ने जो प्रतिक्रिया दी वो पार्टी को बिल्कुल रास नही आई. प्रशांत किशोर ने कहा है कि वो पटना आकर नीतीश कुमार को जवाब देंगे. प्रशांत किशोर और पवन वर्मा को लेकर पार्टी के महासचिव केसी त्यागी भी खासे नाराज हैं.

त्यागी ने कहा है कि, आजतक के इतिहास में ऐसा नहीं हुआ होगा जिसमें पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष इस तरह से चुनौती दे रहा हो. त्यागी का मानना है कि प्रशांत किशोर को पार्टी से इसलिए निकाला गया ताकि वो और नीचे न गिरें. त्यागी के अनुसार, नीतीश कुमार ने दोनों ही नेताओं को बहुत सम्मान दिया. प्रशांत किशोर को जहां एक तरफ पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया तो वहीं दूसरी ओर पवन वर्मा को राज्यसभा भेजा गया. लेकिन इन लोंगों ने उस सम्मान को मजबूरी समझा.

पवन वर्मा को घेरते हुए केसी त्यागी ने कहा कि वर्मा ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को चिट्ठी लिखी. लेकिन चिट्ठी उनको मिलने से पहले ही मीडिया में आ गई. पवन वर्मा को अगर पार्टी की नीति से इतनी तकलीफ थी तो वो नीतीश कुमार से मिलकर बात कर सकते थे. वो पटना आये और बिना मिले चले गए. साफ है कि उनकी मंशा कुछ और है उनको पार्टी की नीति से कोई मतलब नही हैं.

गौरतलब है कि प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार ने सितंबर 2018 में जेडीयू में ज्वाईन कराया था. उस समय नीतीश कुमार ने साफ कहा था कि पार्टी में उनकी हैसियत नम्बर दो की होगी. नीतीश कुमार के इस निर्णय को लेकर पार्टी में अंदर ही अंदर नाराजगी थी लेकिन इसके बावजूद नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को हमेशा तवज्जो दी. हाल ही में जब एनआरसी की खिलाफत करके प्रशांत, नीतीश कुमार से मिलने आये थे और उन्होंने अपने इस्तीफे की पेशकश की थी उसे नीतीश कुमार ने ये कहते हुए ठुकरा दिया था एनआरसी बिहार में लागू नहीं होगा.

इसके बाद सीएए को लेकर भी प्रशांत किशोर विरोध में आए और नीतीश कुमार के आमने सामने हुए. ज्ञात हो कि प्रशांत किशोर ने 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के साथ मिलकर काम किया था. उससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रशांत किशोर बीजेपी के लिए काम कर चुके थे. 2015 में नीतीश कुमार बीजेपी के खिलाफ थे और लालू प्रसाद यादव के साथ थे.

उस समय महागठबंधन ने बीजेपी को जबरदस्त शिकस्त दी उसके बाद नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर के रिश्ते काफी गहरे होते गए. नीतीश कुमार ने बिहार विकास मिशन बनाया जिसका उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर को बनाया गया. लेकिन राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर उसके बाद ज्यादा बिहार में नही रहें और इस बीच उन्होंने यूपी और पंजाब के चुनाव में कांग्रेस के लिए काम किया.

जब 2018 में वो जेडीयू में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए गए उसके बाद उन्होंने बिहार के सभी तबकों से बैठकें शुरू की इस दौरान उन्होंने रंगकर्मियों और संस्कृतिक कर्मियों की बैठक भी बुलाई. इन बैठकों को लेकर नीतीश कुमार का यही कहना था कि, इन बैठकों का कोई लाभ नहीं होने वाला. उसके कुछ दिन बाद ही प्रशांत किशोर की कम्पनी आईपैक को पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के लिए काम करने का अवसर मिला इसके बावजदू नीतीश कुमार चुप रहे और कहा कि उनकी कम्पनी काम कर रही है.

लेकिन हाल ही में प्रशांत किशोर की कम्पनी को आम आदमी पार्टी की रणनीति का हिस्सा बनने का मौका मिला. अब वहां जेडीयू बीजेपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है और प्रशांत किशोर जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं और वो दिल्ली में जेडीयू बीजेपी गठबंधन के खिलाफ आम आदमी पार्टी की रणनीति बनाएं ये अटपटा तो लगता ही है लेकिन उससे भी नीतीश कुमार को कोई खास परेशानी नहीं हुई.

पर सीएए एनआरसी और एनपीआर को लेकर जब प्रशांत किशोर और पवन वर्मा लगातार बयान देते रहे तो बीजेपी के अंदर एक तबका ये जताने की कोशिश करने लगा कि ये दोनों नेता नीतीश कुमार के कहने पर बयान दे रहे थे. जिसके कारण एनडीए में अविश्वास का माहौल बन रहा था. इसके बावजूद इन्हें पार्टी से निकालने के बजाए उनकी इच्छा पर छोड दिया गया. लेकिन जब पानी सिर से उपर चला गया तो फिर नीतीश कुमार को ये कठोर निर्णय लेना पड़ा.

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लेखक

सुजीत कुमार झा सुजीत कुमार झा @suj.jha

लेखक आजतक में पत्रकार हैं

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