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Updated: 26 मई, 2017 06:46 PM
मौसमी सिंह
मौसमी सिंह
  @mausami.singh.7
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सहारनपुर में भड़की हिंसा ने योगी सरकार की कानून व्यवस्था के वादों के पुलिंदों की पोल खोल कर रख दी. यूपी के गृह सचिव को आखिरकार मानना ही पीड़ा कि सहारनपुर के हालातों के पीछे पुलिस और प्रशासन की चूक है. सवाल यही, कि कैसे और क्यों जल उठा सहरानपुर? सहारनपुर में घटी एक छोटी सी घटना देखते ही देखते नासूर बन गई. क्या वजह है कि कई हफ्तों से सहारनपुर धधक रहा है ? आखिर कैसे भारी फोर्स के बावजूद भी सहारनपुर में हिंसा भड़कती रही ? क्यों उपद्रवी कानून की धज्जियां उड़ाते रहे?

ऐसी क्या गलतियां हुई जो अगर समय पर ठीक कर ली जातीं तो शायद दो समुदाय इतनी बुरी तरह न बंटे होते और हिंसा न घटी होती?

1) प्रशासन की कोताही-

सहारनपुर शहर से कुछ दूर शब्बीरपुर गांव में दलित समुदाय रविदास मंदिर में अंबेडकर की प्रतिमा लगाना चाहता था. सबसे पहली गलती तब हुई जब पुलिस ने प्रतिमा लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया. पर दलित समुदाय को विश्वास में नहीं लिया. प्रशासन ने ‘ना’ कहने के लिए न कोई वजह बताई और न ही ‘हां’ के लिए कोई रास्ता सुझाया, जिसको लेकर दलित समुदाय में नाराजगी थी.

dalit, saharanpur

2) प्रशासन पर भेदभाव का आरोप-

5 मई को महाराणा प्रताप के जयंती दिवस पर शब्बीरपुर गांव से 11 किलोमीटर दूर शिमलाना गांव जा रहे ठाकुर समुदाय के लोगों ने बिना अनुमति के जुलूस निकाला. तेज म्यूज़िक और डीजी के साथ जब 25-30 तजसकुर समुदाय के युवा शब्बीरपुर गांव से निकले तो लोगों ने तेज बाजे पर आपत्ति जताई. दलित समुदाय के लोग और भड़क गए, उनको लगा कि प्रशासन उनके साथ भेदभाव कर रहा है. प्रशासन ने सख्ती दिखाई होती तो न ये जलूस निकलता, न ही पत्थरबाजी और हिंसा होती. उस घटना में एक की मौत हुई और दो दर्जन से ज्यादा लोग घायल हुए.

3) सहारनपुर में बदलती परिस्थितियों को आंकने में गलती-

उत्तर प्रदेश के डीजीपी खुद 8 मई को सहारनपुर गए और वापस लौट, बोले कि हालात सामान्य हैं. ज़ाहिर है कि कहीं न कहीं डीजीपी को सहारनपुर में तैनात आला अधिकारियों ने गंभीर परिस्थियों को कम आंककर बताया. सूत्रों के मुताबिक डीजीपी को भीम सेना की हरकतों और दो समुदायों के बीच बढ़ते तनाव की सही तस्वीर नहीं मिली. यही कारण है कि उसके एक दिन बाद ही सहारनपुर में फिर हिंसा हुई.

4) लचर प्रशासन दंगाइयों के हौसले बढ़े-

मौका भांपते हुए 9 मई को भीम सेना ने दलितों पर हो रहे अत्याचार पर सहारनपुर में महापंचायत बुलाई. भीम सेना की मनमानी चलती रही और प्रशासन मूक दर्शक बना रहा. सहारनपुर में भारी फोर्स होने के बावजूद भी पुलिस की आंखों के सामने उपद्रवी कानून व्यवस्था की धज्जियां उड़ाते रहे. भीम पार्टी के मुखिया से लेकर कई दंगाई लोगों पर कठोर करवाई ना करना पुलिस की बड़ी विफलता रही.

dalit, saharanpur

5) प्रशासन का ढुलमुल रवैया पड़ा भारी-

मायावती की सभा को अनुमति: पुरानी गलतियों से सबक ना लेते हुए प्रशासन का मायावती को शब्बीरपुर गांव में सभा की अनुमति देना एक और भारी चूक थी. खुफिया विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक मायावती के आने से दंगे भड़कने की आशंका बनी हुई थी. इसके बावजूद भी मायावती को सभा करने की अनुमति दी गई. वहीं आरएएफ और पीएसी की भारी मौजूदगी के बावजूद भी डीएम, एसएसपी समेत तमाम अधिकारी मौके पर हालात को बिगड़ने से रोक पाने में फेल रहे.

6) सोशल मीडिया का हथियार-

सहारनपुर की आग में सोशल मीडिया ने घी डालने का काम किया. पर एक महीने से सोशल मीडिया में नफरत का कैम्पेन चल रहा था, लेकिन अफवाहों के बाजार से परे था प्रशासन. भीम पार्टी ने भीड़ इकठ्ठा करने और संगठन के लिए आर्थिक मदद मांगने के लिए सोशल मीडिया का जबरदस्त सहारा लिया. हैरानी की बात है कि प्रशासन को इस खतरनाक हथियार पर पाबंदी लगाने में हफ्तों लग गए. 25 मई को सहरानपुर में सोशल मीडिया की सेवाएं रद्द की गईं.

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लेखक

मौसमी सिंह मौसमी सिंह @mausami.singh.7

लेखिका आज तक में विशेष संवाददाता हैं.

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