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Updated: 09 दिसम्बर, 2015 01:49 PM
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दिल्ली में एक गोलघर है, गोल-गोल पिलरों पर खड़ा - लोग इसे संसद कहते हैं. कभी-कभी मीडिया वाले कहते हैं कि संसद चल रही है! घर भी कभी चल सकता है भला? इस प्रश्न का जवाब भी संसद से ही आया - मेरे ही द्वारा चुने गए नेताओं ने जिज्ञासा शांत कर दी. उन्होंने दिखा दिया कि नीति-राजनीति कौन कहे, बंगला-गाड़ी, बाप-चचा और तो और कोर्ट के मुद्दों पर भी वे संसद को चलने नहीं देंगे. शाबाश!

1885 में कांग्रेस का गठन हुआ था. 130 साल हो गए. कांग्रेस अभी भी बची हुई है. भारतीय राजनीति के लिए यह एक महान उपलब्धि है. ए.ओ. ह्यूम से महात्मा गांधी, नेहरू और अब सोनिया गांधी तक के सफर को कांग्रेस ने देखा है. जनता तो खैर देख ही रही है. जनता यह भी देख रही है कि कैसे राजनीति या कूटनीति करते हुए जेल जाने या लाठियां खाने के बावजूद अंग्रेजों को भगाने का मकसद रखने वाली कांग्रेस अब अपने एक नेता मात्र के ऊपर लगे आरोप और कोर्ट की कार्रवाई तक का विरोध करने को ही राजनीति मानने लगी है.

पश्चिम बंगाल में 34 साल तक राज करने वाली किसी पार्टी की सरकार को हराकर मुख्यमंत्री बनीं ममता बनर्जी ने राजनीति की नई परिभाषा रची थी. सीएम होने के बावजूद जिस सादगी से ममता अपना जीवन जीती हैं, उससे कहीं ज्यादा ममत्व उनके विचारों में है - कम से कम नेताओं को किसी भी मामले में कोर्ट जाने को लेकर तो निश्चित ही. राहुल और सोनिया गांधी को कोर्ट में हाजिर होने के फरमान पर ममता दीदी ने बड़े ही सरल शब्दों में कहा - इतने दिनों तक राजनीति में रहने के बाद कोर्ट जाना पड़े, तो यह ज्यादती है.    

भारत के मुख्य न्यायाधीश टी.एस. ठाकुर बड़े ही आशावादी व्यक्ति हैं. उन्होंने कहा कि जब तक न्यायपालिका की स्वतंत्रता बरकरार है, तब तक नागरिकों को चिंता करने की आवश्यकता नहीं है. अपने देश की न्यायिक व्यवस्था की बात करें तो सुप्रीम कोर्ट से बस एक ही पायदान नीचे होता है हाईकोर्ट. इसी एक पायदान नीचे वाले दिल्ली हाईकोर्ट ने नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी को 19 दिसंबर को कोर्ट में हाजिर होने को कहा है. कोर्ट-कचहरी से आम जनता डरती है, लेकिन नेता भी डरने लगें, वो भी कांग्रेसी नेता... जिनके पुरखों ने जेल में रहते हुए कई महान ग्रंथों की रचना तक कर डाली! हो सकता है अब जेल में किताब लिखने पर पाबंदी हो... शायद इसी कारण से नेताओं की यह पीढ़ी जेल जाने से डरती है!  

हिंदू-मुस्लिम, शिक्षा-स्वास्थ्य, देश-विदेश नीति जैसे मामलों पर राजनीति करने, विपक्ष द्वारा सत्ता पक्ष को घुटने टेकने पर मजबूर कर देना - संसद की अवधारणा शायद यही रही होगी. लेकिन पता नहीं क्यों... आज बापू बहुत याद आ रहे हैं. अपनी पुस्तक हिंद स्वराज में उन्होंने इंग्लैंड की संसद के लिए वेश्या और बांझ जैसे शब्दों का प्रयोग किया था !!!

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लेखक

चंदन कुमार चंदन कुमार @chandank.journalist

लेखक iChowk.in में पत्रकार हैं.

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