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Updated: 21 अप्रिल, 2015 04:53 AM
संतोष कुमार
संतोष कुमार
 
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के लुटियन जोन में डॉ. भीमराव आंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर की आधारशिला रखने जा रहे हैं, जो विज्ञान भवन की तरह ही भव्य और आलीशान होगी. इसकी लागत 192 करोड़ रु. है. लेकिन सवाल है कि अचानक आंबेडकर बीजेपी के एजेंडे पर इतनी प्रमुखता से कैसे उभरे और इसके पीछे बीजेपी की क्या रणनीति है.

दरअसल बीजेपी को लगता है कि उसके दो आदर्श पुरुष श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीन दयाल उपाध्याय जन-जन में पहुंच नहीं रखते,  लिहाजा पार्टी को अपना जनाधार बढ़ाने के लिए सामाजिक प्रतीकों वाले महापुरुषों को आदर्श के रुप में अपनाना होगा. इससे पहले मोदी सरकार ने महात्मा गांधी को स्वच्छता मिशन जैसे कार्यक्रमों से जोड़ा तो उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में दलित वोटों की संख्या के लिहाज से पार्टी ने डॉ. आंबेडकर को अपनाया और इसी कड़ी में बीजेपी की नजर नेताजी सुभाषचंद्र बोस पर है ताकि पश्चिम बंगाल में राजनैतिक घुसपैठ का बड़ा आधार उसे मिल सके. बीजेपी को अहसास है कि लोकसभा चुनाव में उसे 24 फीसदी दलितों का वोट मिला उसे जोड़े रखने के लिए आंबेडकर से बड़ा कोई आदर्श पहचान नहीं हो सकती. इसलिए पार्टी ने एक अनौपचारिक कमेटी बनाकर आंबेडकर जयंती पर भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया तो संघ के मुखपत्र पांचजन्य ने उन पर एक विशेष कवर स्टोरी छापी जिसका प्रचार प्रसार जोर-शोर से किया गया. मोदी 20 अप्रैल की शाम आंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर की आधारशिला रखी.

हालांकि बीजेपी के दलित नेता इसे अपनी उपलब्धि बता रहे हैं और यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि पार्टी पर उनका दबाव काम आया और आंबेडकर पार्टी के एजेंडे पर प्रमुखता से उभरे. दलित नेता और पहली बार बीजेपी से सांसद बने उदित राज कहते हैं, "जब जागो तभी सवेरा."Ó हालांकि केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत कहते हैं, "बीजेपी की सोच सकारात्मक है और जनसंघ के जमाने से हम लोग आंबेडकर को सक्वमान देते रहे हैं. लेकिन मुझे दुख है कि आज लोग इसे चर्चा का विषय बना रहे हैं." लेकिन वाजपेयी सरकार में मंत्री और बीजेपी एससी मोर्चा के अध्यक्ष रह चुके संजय पासवान यह कहने से कोई गुरेज नहीं करते कि पार्टी की रणनीति चुनाव में आंबेडकरवादियों के मिले वोट को रोकना है. वे कहते हैं, "कांग्रेस ने अपना खोया आधार हासिल करने के लिए आंबेडकर पर अभियान की बात की तो बीजेपी पीछे क्यों रहती. हमारा मकसद कांग्रेस को रोकना है." हालांकि उनका मानना है कि आंबेडकर को पार्टी के मुख्य एजेंडे पर लाने में दलित नेताओं का दबाव रहा है. हालांकि आंबेडकर को प्रमुखता दिए जाने की बीजेपी की रणनीति पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विवि में बौद्य अध्ययन विभाग के प्रभारी निदेशक डॉ. सुरजीत कुमार सिंह सवाल उठाते हैं. वे कहते हैं, "बीजेपी को अब एहसास हो गया है कि सिर्फ बाबासाहेब ही ऐसी शख्सियत हैं जिनकी प्रतिमाएं देश के हर शहर, गांव में मौजूद हैं जिन्हें लोगों ने अपने चंदे से बनाया है. जबकि अन्य नेताओं की प्रतिमाएं सरकारों ने बनाई है. आंबेडकर एक प्रतीक नहीं, विचारधारा बन चुके हैं."

आंबेडकर की विरासत कब्जाने के लिए क्या कर ही है बीजेपी

बीजेपी अब आंबेडकर से जुड़े तमाम स्मारकों को भव्यता देकर पार्टी दलित वोट बैंक को संदेश देना चाहती है. दिल्ली के लुटियन जोन में जनपथ रोड पर मोदी सरकार 192 करोड़ रु. की लागत से आठ मंजिला भव्य इमारत बना रही है. इसे आंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम दिया गया है जिसमें विज्ञान भवन की तरह ही हॉल, लाइब्रेरी आदि होंगे. इसके अलावा 26 अलीपुर रोड जहां आंबेडकर का परिनिर्वाण (देहावसान) हुआ था, वहां 100 करोड़ रु. की लागत से भव्य स्मारक बनाने की तैयारी हो चुकी है तो लंदन में 1921-22 में पढ़ाई के दौरान रहे थे, उस घर को खरीदने की प्रक्रिया केंद्र और महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार ने शुरू कर दी है. जबकि उनकी जन्मस्थली महू में स्थापित डॉ. आंबेडकर इंस्टीटï्यूट को उनकी जयंती के मौके पर ही मध्य प्रदेश में स्टेट यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया गया है. 

दलितों में अपनी छवि बदलने में जुटा संघ

उधर बीजेपी केंद्र में सरकार होने का फायदा उठा रही है, तो संघ भी अपनी छवि दुरुस्त करने की कवायद में जुट चुका है. संघ ने मार्च में संपन्न हुई अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में एक मंदिर, एक कुआं और एक श्मशान का नारा देकर सामाजिक समरसता की अलख जगाने का फैसला किया था. अब संघ ने दलित द्वार दस्तक कार्यक्रम  चलाने का मन बनाया है. संघ ने अपनी प्राथमिक स्तर की इकाइयों मंडल, बस्ती और मोहल्ला संघों में जिक्वमेदारी देने, दलितों के सामूहिक विवाह का आयोजन जैसी कार्ययोजना तैयार कर ली है. सूत्रों की मानें तो संघ ने जल्द ही समाज में भरोसा बनाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी के साथ दलित महिलाओं को भोजन का कार्यक्रम आयोजित कराने की भी रणनीति बनाई है. संघ के मुखपत्र पाञ्चजन्य ने आंबेडकर पर विशेष सामग्री छापी जिसका लोकार्पण बड़े पैमाने पर किया गया तो पहली बार इस मुखपत्र की तीन लाख से भी ज्यादा प्रतियां छापी गईं. पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर कहते हैं, "अस्पृश्यता को लेकर हेडगेवार और आंबेडकर के विचार एक थे. एक ही कालखंड के दो मनीषियों की पीड़ा सामाजिक विषयों पर एक जैसी थी. संघ हमेशा तोडऩे की बजाए जोडऩे की सोच रखता है, इसलिए पाञ्चजन्य में भी वही चीजें छापी गई हैं जो सकारात्मक हैं."

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लेखक

संतोष कुमार संतोष कुमार

लेखक इंडिया टुडे में विशेष संवाददाता हैं.

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