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Updated: 06 अप्रिल, 2020 09:10 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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कोरोना वायरस (War against Coronavirus) के चलते लॉकडाउन. लॉकडाउन के चलते RSS को अपना ट्रेनिंग कैंप स्थगित करना पड़ा है - और BJP अपने 40वें स्थापना दिवस का जश्न नहीं मना पायी है. कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने तो 5 अप्रैल को 9 बजे 9 मिनट दीया जलाने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi)की अपील को भी बीजेपी की स्थापना दिवस की पूर्व संध्या का कार्यक्रम करार दिया था. फिर भी प्रधानमंत्री मोदी ने अटल बिहारी वाजपेयी की कविता का वीडियो शेयर किया ही - आओ मिल कर दीया जलायें.

लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने बीजेपी कार्यकर्ताओं (BJP Workers)को कोरोना के खिलाफ जंग में जिस तरह से झोंक दिया है - वो तो यही बता रहा है कि मौके पर की जाने वाली मदद ही काम की राजनीति कहलाने का हकदार होती है.

बीजेपी कार्यकर्ताओं को मोदी के 5 मंत्र

कोरोना के खिलाफ जंग में बीजेपी कार्यकर्ताओं को पूरी ताकत झोंक देने की अपील के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने ये भी कहा कि लड़ाई लंबी है, इसलिए न थकना है और न ही हारना है - सिर्फ जीतना है. ये जीत कैसे सुनिश्चित होगी इसे लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने 5 मंत्र भी दिये.

1. पांच घरों के लिए खाना बनाओ: बीजेपी कार्यकर्ताओं को जब प्रधानमंत्री मोदी संबोधित कर रहे थे और खाना खिलाने की बात की तो उनके पुराने भाषण की तरफ ध्यान चला गया. अप्रैल की ही बात है लेकिन साल भर पहले. प्रधानमंत्री मोदी वाराणसी में नामांकन के लिए पहुंचे थे और बीजेपी कार्यकर्ताओं से बातचीत कर रहे थे और उन्हें मुफ्त में चुनाव प्रचार की तरकीब समझा रहे थे - कैसे वे किसी के घर जाकर चाय पीते पीते वोट मांग सकते हैं और किसी के साथ लंच या डिनर करते हुए.

मोदी मुखातिब तो बीजेपी कार्यकर्ताओें से ही थे लेकिन मुद्दा अलग था. सामान्य दिनों में या तो राजनीति की बात होती या फिर केंद्र सरकार की उपलब्धियों की - लेकिन बात ये हुई कि कैसे कोरोना संकट के दौर में लोगों को भूखे न सोने दिया जाये.

narendra modiमोदी ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को डबल टास्क दिया है - ताकि कोरोना वायरस को शिकस्त दी जा सके

प्रधानमंत्री मोदी ने सलाह दी कि सभी बीजेपी कार्यकर्ता अपने घर के साथ साथ कम से कम 5 दूसरे घरों के लिए भी खाना बनवायें और उसे जरूरतमंद लोगों के बीच जाकर वितरित करें.

2. आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड करो और कराओ: प्रधानमंत्री मोदी ने हर बीजेपी कार्यकर्ता को डबल टास्क दिया - एक वो खुद करे और दूसरा वो दूसरों से कराये. मोदी ने सभी बीजेपी कार्यकर्ताओं को आरोग्य सेतु मोबाइल ऐप डाउनलोड करने के साथ ही कम से कम 40 अन्य लोगों के मोबाइल में इसे डाउनलोड करवाने की जिम्मेदारी भी दे डाली है.

आरोग्य सेतु कोरोना वायरस को ट्रैक करने के लिए नया ऐप बनाया गया है - इससे पहले कोरोना कवच बनाया गया था जिसे सरकार ने वापस ले लिया और अब लोगों को मैसेज भेज कर ये जानकारी भी दी जा रही है.

3. आर्थिक मदद दो भी, दिलाओ भी: मोदी ने ये भी समझाया कि युद्धकाल में लोग देश की मदद के लिए दान देते आये हैं, ऐसे में बीजेपी कार्यकर्ताओं को भी पीएम केयर फंड में खुद तो डोनेट करना ही चाहिये - दूसरे लोगों को भी ऐसा करने को प्रेरित करना चाहिये.

4. थैंकयू बोलो नहीं लिखो: बार बार देखने को मिल रहा है कि कोरोना वायरस का संक्रमण होने पर लोग इलाज में डॉक्टरों और दूसरे स्वास्थ्यकर्मियों का सहयोग तो दूर, उनके साथ बुरा बर्ताव और हमला तक कर दे रहे हैं. देश के अलग अलग हिस्सों से इस तरह की खबरें हर दिन आ रही हैं.

जनता कर्फ्यू के दौरान मोदी ने देशवासियों से ताली और थाली बजाकर कोरोना वॉरियर्स का शुक्रिया कहने और आभार जताने की अपील की थी - अबकी बार बीजेपी कार्यकर्ताओं से ऐसा करने को कहा है, लेकिन उसमें भी दो कदम आगे बढ़ कर.

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि जो भी नर्स, सफाईकर्मी, पुलिसकर्मी या सरकारी कर्मचारी कोरोना वायरस के खिलाफ लागू लॉकडाउन के वक्त दिन रात सेवा में लगे हैं, बीजेपी कार्यकर्ता उन्हें धन्यवाद ज्ञापित करें - वो भी सिर्फ मौखिक तौर पर नहीं, बल्कि, कम से कम 40 घरों के लिए धन्यवाद पत्र लेकर जायें.

5. मास्क सबके लिए जरूरी है: बीजेपी कार्यकर्ताओं को जो भी टास्क दिये गये हैं उनके साथ साथ एक शर्त भी है, प्रधानमंत्री मोदी ने कार्यकर्ताओं से कहा कि सभी लोग मास्क तो पहनें ही, दूसरों को भी ऐसा ही करने के लिए प्रेरित करें.

काम की राजनीति क्या और कब होती है?

राजनीति अपनी जगह है, लेकिन कुमारस्वामी ही नहीं, सोनिया गांधी और राहुल गांधी से लेकर अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव तक को इसे नसीहत के रूप में देखना चाहिये. ऐसा भी नहीं कि बाकी राजनीतिक दल हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं, प्रियंका गांधी ने भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं से लोगों की मदद की अपील की थी - लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की तरह पार्टी कार्यकर्ताओं को टास्क तो किसी ने नहीं दिया है. मानते हैं पब्लिक मेमरी शॉर्ट होती है, लेकिन ऐसा भी क्या.

अगर आपको पुलिस एक्शन के शिकार लोगों की फिक्र है, तो कोरोना पीड़ितों की भी होनी चाहिये - कोरोना पीड़ित से आशय यहां कोरोना संक्रमित से नहीं है, उन गरीब, मजदूरों से है जो कोरोना संकट के समय घर के लिए पैदल ही निकल पड़े लेकिन लेकिन मंजिल से पहले ही राहत शिविरों में रुकने को मजबूर हुए. राहत शिविरों से निकलने के बाद उनका हाल पूछने वाला कोई तो होना चाहिये. ये ठीक है कि सरकार आर्थिक मदद दे रही है, लेकिन उतने भर से क्या होने वाला है - तभी तो मोदी ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को अपने साथ साथ औरों के लिए भी घरों में खाना बनाने को कहा है. भूख पर भी राजनीति खूब हुई है और आगे भी होती रहेगी, लेकिन किसी की भूख मिटाना ऐसे संकुचित दायरों से बहुत बाहर की चीज है. न तो यूपी में अखिलेश यादव और न ही बिहार में तेजस्वी यादव को ऐसी किसी गतिविधि में शामिल देखा गया है.

दिल्ली विधानसभा के चुनाव नतीजे आने के बाद अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि अब नये तरीके की राजनीति होगी और बताया भी था - काम की राजनीति. न तो दिल्ली दंगों के वक्त और न ही कोरोना संकट के बाद लॉकडाउन के समय ऐसा कुछ देखने को मिला. अगर वास्तव में काम की राजनीति हो रही होती तो आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता पूर्वांचल के लोगों को सड़क पर चले जाने के लिए रास्ता देने की जगह उनकी मदद में सड़क पर उतर आये होते. आरोप तो केजरीवाल पर ये भी लगे कि दिल्ली में दंगों के दौरान खामोश बैठ गये क्योंकि दिल्ली पुलिस की नाकामी केंद्र की मोदी सरकार के मत्थे मढ़ी जाती और कोरोना के वक्त इल्जाम लगा कि जिन लोगों के वोट से दोबारा सत्ता हासिल करने में मदद मिली, काम निकल जाने के बाद शहर छोड़ने के लिए उनको बसें मुहैया करवा दी गयीं.

अपीलों के मामले में केजरीवाल निश्चित तौर पर आगे रहे - लेकिन घर जाने के लिए पैदल ही सड़क पर निकल चले लोगों तक ट्विटर की पहुंच अभी नहीं बनी है. कम से कम भारत में तो नहीं ही है.

कुछ भी हो, सरकारी मशीनरी के साथ हर रोज मोर्चे पर डटे प्रधानमंत्री मोदी का कोरोना की जंग में बीजेपी कार्यकर्ताओं को भी झोंक देना राजनीतिक विरोधियों के लिए बहुत बड़ी नसीहत है.

क्या केजरीवाल भी अपने कार्यकर्ताओं से लोोगों की मदद के लिए वैसी अपील नहीं कर सकते थे जैसा मोदी ने किया है?

मौके पर मदद की राजनीति से बड़ी काम की राजनीति नहीं होती - ये पब्लिक अच्छी तरह जानती है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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