New

होम -> सियासत

बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 08 दिसम्बर, 2021 07:02 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
  • Total Shares

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य (Keshav Prasad Maurya) की निजी तकरार के भी पांच साल पूरे होने जा रहे हैं - 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले जब मौर्य को यूपी बीजेपी की कमान मिली तभी वो मन ही मन आगे के कई साल का प्लान कर चुके थे, लेकिन जब ये समझ में आ गया कि संघ और बीजेपी नेतृत्व ने उनकी भूमिका का दायरा पहले से ही तय कर रखा है, तो वो मान भी गये.

लेकिन जैसे ही योगी आदित्यनाथ ने अपने आभामंडल का रौब दिखाना शुरू किया, मौर्या की भी खामोश अंतरात्मा जाग उठी और फिर एक ऐसा सामंजस्य बिठाने की कोशिश हुई जिसमें लोगों को हिंदुत्व और जातीय समीकरणों का पूरा पैकेज नजर आये. एक कट्टर हिंदुत्व का ठाकुर चेहरा योगी आदित्यनाथ, एक शहरी ब्राह्मण दिनेश शर्मा - और एक ग्रामीण परिवेश से आने वाला ओबीसी चेहरा केशव प्रसाद मौर्य.

योगी आदित्यनाथ की बीजेपी नेतृत्व से तल्खी की खबरों के बीच ही कुछ दिन पहले केशव मौर्य का एक ऐसा बयान भी आया जिससे आगे भी योगी की दावेदारी को लेकर संदेश पैदा होने लगा. समझाने-बुझाने से लेकर मौर्य को मनाने के दौर भी शुरू हो गये - और फिर एक दिन मालूम हुआ कि योगी पहली बार अपने नजदीकी पड़ोसी मौर्य के घर पहुंचे हैं. थोड़ी ही देर बाद संघ के सहकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले की मौजूदगी में योगी आदित्यनाथ के मौर्य के बेटे को, देर से ही सही, शादी की बधाई की तस्वीर सामने आया. और संदेश ये कि दोनों के बीच पैचअप हो गया है.

बाद के दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की तरफ से कई बार यूपी के लोगों को योगी आदित्यनाथ को लेकर भी वैसे ही बीजेपी का चेहरा बताने की कोशिश देखी गयी है, जैसे 2020 के बिहार चुनाव में नीतीश कुमार के नाम को लेकर अनिश्चितताओं को खत्म करने की कोशिशें देखी जाती रही.

जब मथुरा को अयोध्या जैसा बताने वाले ट्वीट के बाद केशव मौर्य दिल्ली पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी से मिलने तो एकबारगी इसे नये सिरे से उनकी अंगड़ाई समझा जाने लगा, लेकिन जब मुलाकात की तस्वीरें सामने आयी तो सोशल मीडिया पर लोग मोदी के चेहरे का भाव पढ़ कर रिएक्ट करने लगे.

मथुरा पर ट्वीट और फिर लुंगी-टोपी की बातें कर केशव मौर्य तो खुद को कट्टर हिंदुत्व के चेहरे के तौर पर पेश करना शुरू कर दिया है. अब सवाल उठता है कि क्या ये मौर्य की निजी महत्वाकांक्षा का मौका देख कर प्रदर्शन भर है या संघ और बीजेपी की खास रणनीति का हिस्सा भी, जिसमें मुलाकात मोदी के मुहर जैसी प्रतीत हो रही है - या योगी आदित्यनाथ के लिए किसी नये खतरे का संकेत?

मथुरा पर मोदी ने मुहर लगा दी क्या?

अयोध्या, काशी और मथुरा सभी विश्व हिंदू परिषद का ही एजेंडा रहा है, भले ये सोच संघ मुख्यालय नागपुर से निकली हो सार्वजनिक तौर पर तो संघ और बीजेपी आंदोलन का हिस्सा बने हैं. अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद मोहन भागवत ने कहा भी था कि संघ वीएचपी के आंदोलन से जुड़ा था और काशी-मथुरा से उसका कोई वास्ता नहीं है - संघ राष्ट्र निर्माण के अपने काम में लगा रहेगा.

1. मोदी-मौर्य मुलाकात के मायने: प्रधानमंत्री मोदी के साथ हुई यूपी के डिप्टी सीएम केशव मौर्य की मुलाकात के मायने समझने के लिए 2019 के आम से पीछे चलना होगा. आपको याद होगा, कैसे संघ प्रमुख मोहन भागवत के मंदिर निर्माण को लेकर कानून की मांग के बाद हिंदू संगठनों के नेता अचानक आक्रामक हो गये थे और उनके निशाने पर सुप्रीम कोर्ट तक आ चुका था.

जैसे 2019 के पहले ही दिन एक इंटरव्यू में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मंदिर को लेकर बयान आया, सारा शोर शांत हो गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले वो कुछ भी नहीं करने वाले. नतीजा ये हुआ कि वीएचपी के मंच से आम चुनाव में भी अयोध्या को मुद्दा न बनाने का फैसला हुआ और फिर संघ और बीजेपी की तरफ से घोषणा हो गयी कि 2019 में राम मंदिर चुनावी मुद्दा नहीं रहने वाला है - और बीजेपी के मैनिफेस्टो में राम मंदिर पर पुराना स्टैंड कॉपी-पेस्ट हो गया.

keshav maurya, narendra modi, yogi adityanathकेशव मौर्य और योगी आदित्यनाथ की तकरार फिर से जोर पकड़ने लगी है क्या?

मथुरा में भी मंदिर पर केशव मौर्य के बयान के बाद प्रधानमंत्री मोदी से उनकी दिल्ली में हुई मुलाकात की अहमियत इसीलिये ज्यादा लगती है. जैसे आम चुनाव से पहले मोदी का बयान राम मंदिर पर मुद्दे को होल्ड करने का आधार बना, यूपी विधानसभा चुनाव से पहले मोदी-मौर्या मुलाकात भी मथुरा एजेंडे पर मुहर जैसा ही लगता है.

2. पहले ओबीसी फेस, अब हिंदुत्व का चेहरा: केशव प्रसाद मौर्य भी विश्व हिंदू परिषद और संघ की ही पृष्ठभूमि से ही बीजेपी में आये हैं, ऐसे में मथुरा में भी मंदिर की बातें अस्वाभाविक नहीं लगतीं - और फिर लुंगी-टोपी वालों को गुंडा बताना, साफ है वो अपनी पॉलिटिकल लाइन को ही आगे बढ़ा रहे हैं.

3. खास पहनावे पर निशाना: केशव प्रसाद मौर्य भी अमित शाह की ही तरह पहले की समाजवादी पार्टी की सरकारों में कानून व्यवस्था की हालत खराब बता रहे हैं और इसके लिए जो इशारा कर रहे हैं उसमें भी 'कपड़ों के जरिये पहचान' बताने जैसी ही लगती है - मतलब ये कि केशव मौर्या का बयान के बयान में मोदी और शाह दोनों के ही मन की बात सुनी जा सकती है. प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार कहा था कि इनके कपड़ों से पहचान की जा सकती है, जिसे मुस्लिम समुदाय के लोगों से जोड़ कर ही देखा गया था.

केशव मौर्य भी कानून-व्यवस्था की बेहतर हालत के लिए मिसाल तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही देते हैं, लेकिन टारगेट और फोकस वही लोग हैं जो लुंगी और जालीदार टोपी पहनते हैं. केशव मौर्य कहते हैं, योगी सरकार ने लुंगी और जालीदार टोपी वाले गुंडों को करारा जवाब दिया है.

4. अखिलेश भी 'मुल्ला मुलायम' जैसे ही: केशव मौर्य के सफेद जालीदार टोपी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खास तौर पर लाल टोपी का जिक्र किया है - और दोनों ही केस में निशाने पर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ही हैं.

अखिलेश यादव भी लाल रंग की टोपी पहनते हैं जो समाजवादी पार्टी की पहचान है. प्रधानमंत्री मोदी के लाल टोपी को रेड अलर्ट कहने पर अखिलेश यादव ने लाल रंग को क्रांति का प्रतीक बताया है जो 2022 में बदलाव लाने वाला है.

केशव प्रसाद मौर्य ने समाजवादी पार्टी नेता का पूरान नाम बताया है - अखिलेश अली जिन्ना. अखिलेश यादव ने एक रैली में मोहम्मद अली जिन्ना को महात्मा गांधी और सरदार पटेल जैसा बताते हुए आजादी के आंदोलन में सभी की बराबर भूमिका की बात कही थी, जिसे लेकर बीजेपी नेता हमलावर हैं.

केशव मौर्य का अखिलेश का नाम जिन्ना से जोड़ कर पेश किया जाना, दरअसल, उनके पिता मुलायम सिंह यादव के मुस्लिम समुदाय की खास फिक्र को लेकर बीजेपी की तरफ से 'मुल्ला-मुलायम' के तौर पर पेश किये जाने का ही नया वर्जन लगता है.

योगी आदित्यनाथ के 'अब्बाजान' वाली बहस के साथ जोड़ कर भी देख सकते हैं. बेशक अखिलेश यादव ने जिन्ना का जिक्र कर समाजवादी पार्टी के पुराने वोटर को संबोधित किया है, लेकिन अपने पिता की तरह वो कभी ये याद दिलाने की कोशिश नहीं किये हैं कि अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश देने वाला मुख्यमंत्री भी समाजवादी पार्टी का ही रहा है.

लुंगी-टोपी वाले केशव मौर्य के बयान का बीजेपी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने बचाव किया है, डिप्टी सीएम ने लुंगी और टोपी की बातें समाजवादी पार्टी के शासन में प्रयाराज के कुछ व्यापारियों द्वारा झेली गई परेशानियों के संदर्भ में दिया है - और 'मथुरा को लेकर उनका ट्वीट बीजेपी के हिंदू धार्मिक स्थलों को भव्य और आकर्षक धार्मिक पर्यटन केंद्र बनाने की प्रतिबद्धता को लेकर रहा.'

योगी बनाम मौर्य रिटर्न्स?

केशव प्रसाद मौर्य 2002 में वीएचपी से औपचारिक तौर पर बीजेपी में भेजे गये. दो चुनाव हार जाने के बाद पहली बार 2012 में कौशांबी की सिराथू सीट से केशव मौर्य तो विधायक बन गये, लेकिन बीजेपी सत्ता से दूर रही. 2014 की मोदी लहर में वो फूलपुर से लोक सभा पहुंचे. यूपी विधानसभा चुनावों से साल भर पहले 2016 में केशव मौर्य को प्रदेश बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया और सरकार बनी तो डिप्टी सीएम की कुर्सी भी मिली - लेकिन अगले ही उपचुनाव में केशव मौर्य भी योगी आदित्यनाथ की ही तरह अपनी संसदीय सीट बीजेपी की झोली में नहीं पहुंचा सके. योगी एक मुख्यमंत्री बनने से खाली हुई गोरखपुर सीट पर हुआ उपचुनाव भी बीजेपी अखिलेश यादव के सपा-बसपा उम्मीदवार से हार गयी थी.

1. एक और चायवाला, लेकिन अब यूपी में: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो बीजेपी का सबसे बड़ा ओबीसी चेहरा हैं, लेकिन केशव मौर्य ओबीसी होने के साथ साथ एक और चायवाले हैं. बचपन में संघ से जुड़ने के पहले केशव मौर्य के भी चाय और अखबार बेचने के किस्से सुनाये जाते रहे हैं.

जब से अमित शाह ने प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर योगी आदित्यनाथ के लिए वोट मांगना शुरू किया है, ये भी साफ हो गया है कि बीजेपी के लिए ओबीसी वोट से कनेक्ट होना कितना मायने रखता है. ओडिशा से आने वाले केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान भी बीजेपी के ओबीसी चेहरों में भी शामिल किये जाते हैं - और वो फिलहाल यूपी के चुनाव प्रभारी हैं.

बीते कम से कम दो मौकों पर केशव मौर्य की ताकत को संघ की पृष्ठभूमि से आया चायवाला और ओबीसी चेहरा होना उनकी ताकत माना गया. बीजेपी के अंदर भी गरीबी, संघ और ओबीसी केशव मौर्य की ताकत समझी गयी - पहली बार जब वो यूपी बीजेपी के अध्यक्ष बने और दूसरी बार जब वो डिप्टी सीएम की कुर्सी पर बैठे.

और अब उसी चायवाले ओबीसी नेता को फिर से हिंदुत्व के चेहरे के तौर पर पेश किया जा रहा है - ध्यान देने वाली बात ये है कि क्या ये योगी आदित्यनाथ के लिए कोई नया खतरा बीजेपी में जगह बनाने लगा है?

2. योगी के लिए कितना खतरा: ऊपरी तौर पर केशव मौर्य को नये सिरे से प्रोजेक्ट किया जाना, बेबी रानी मौर्य जैसी रणनीति लगती है, लेकिन थोड़ा ध्यान देने पर फर्क आसानी से समझ में आ जाता है. बीजेपी की दलित फेस बेबी रानी मौर्य को उत्तराखंड के राज भवन से बुलाकर चुनाव मैदान में बीएसपी नेता मायावती के खिलाफ मोर्चे पर उतार दिया गया है.

बेबी रानी मौर्य भी मायावती के ही दलितों में जाटव समुदाय से आती हैं, लेकिन केशव प्रसाद मौर्य ओबीसी होने के बावजूद यादव समुदाय से नहीं आते - और बीजेपी के लिए यादव ओबीसी को अपने पक्ष में करना ज्यादा महत्वपूर्ण चैलेंज लगता है क्योकि बाकी ओबीसी तो पहले से ही बीजेपी के पक्ष में खड़े हो चुके हैं.

योगी आदित्यनाथ की तुलना में संघ की पृष्ठभूमि से आने वाले केशव मौर्य बीजेपी के लिए ज्यादा प्रिय लगते हैं - फिर भी तात्कालिक परिस्थितियों की वजह से 2017 में जब बीजेपी के लिए सरकार बनाने का मौका मिला तो मौर्य पर योगी भारी पड़े.

मौर्य और योगी की उम्र में तीन साल का फासला है. योगी आदित्यनाथ उम्र में छोटे हैं, लेकिन जिस तरीके मथुरा मंदिर का पताका थामे केशव मौर्य आगे बढ़ रहे हैं, योगी आदित्यनाथ के लिए चिंता की बात हो सकती है. योगी ने मुख्यमंत्री बनते ही अयोध्या में दिवाली और मथुरा में होली मनाना शुरू कर दिया था, लेकिन मंदिर आंदोलन में वो मोदी के साये में ढके रहे - मौर्य का नया अवतार योगी से अलग और थोड़ा खास लगता है.

योगी की ही तरह मौर्य ने भी ट्विटर पर मोदी के साथ तस्वीरें शेयर की है और दोनों ही तस्वीरों में कुछ खास मैसेज तो छिपे हुए हैं ही, लेकिन जिस तरीके से लोगों ने केशव मौर्य और मोदी की तस्वीरों प्रतिक्रिया दी है वो भी नजरअंदाज करना ठीक नहीं लगता.

योगी ने प्रधानमंत्री के साथ जो तस्वीर शेयर की उसमें मोदी का हाथ उनके कंधे पर देखा गया, लेकिन केशव मौर्य की तस्वीरों में लोगों को मोदी के चेहरे पर गुस्से का भाव महसूस हुआ है - आखिर माजरा क्या है?

इन्हें भी पढ़ें :

यूपी में योगी आदित्यनाथ के लिए सब ठीक है, सिवाय एक खतरे के- ओमिक्रॉन!

वसीम रिज़वी अर्थात जितेंद्र त्यागी की 'घर-वापसी' अस्थायी तो नहीं?

UP election में पलटी मारती बहस के बीच निजी हमले, बदलते जुमले!

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय