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Updated: 26 फरवरी, 2015 08:11 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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हे प्रभु,

सुरेश सर जी! सोशल मीडिया से लेकर मेनस्ट्रीम मीडिया तक, हर जगह आज आप इसी नाम से छाए रहे. ट्विटर पर भी #प्रभुकीरेल ट्रेंड करते देखा. चहुंओर आपको इस रुप में देखा तो ये नाम मुझे भी भा गया - और तबसे इसी नाम पर पूरे भक्ति भाव के साथ डूबकी लगा रहा हूं. प्रभु जी आपका कोटि कोटि धन्यवाद. जय हो सर जी.धन्य हैं प्रभु जी आप. कम से कम आप को तो जनरल डिब्बे का ख्याल आया. पक्का आप कभी न कभी जनरल डिब्बे में जरूर चढ़े होंगे. तभी आपको उस दर्द का अहसास है. वरना ये मौका तो उन्हें भी मिला जिन्होंने गरीबी हटाने के नाम पर वोट मांगे. मौका उन्हें भी मिला जिन्होंने महादलितों का गठजोड़ बनाकर वाहवाही लूटी. मौका उन्हें भी मिला जो भैंस तक चराने का दावा करते हैं. और तो और प्रभु जी, मौका तो उन्हें भी मिला जो मां, माटी और मानुष नाम की माला जपते फिरते हैं.ये सारे लोग हमे तो एक जैसे लगते हैं. जब जब जिसे मौका मिला, हर किसी ने अपने घर आने जाने के लिए ट्रेन चला ली. पर प्रभु आप तो बिलकुल अलग हैं. आपने ऐसा कुछ भी नहीं किया. अच्छा किया नई ट्रेन चलाकर मुसीबत बढ़ाने से बेहतर है जो पहले से चल रही हैं वही सलामत रहें और चलती रहें.लेकिन क्या कभी उन्होंने ये सोचने या समझने की कोशिश की कि जनरल डिब्बे में भी जो सफर करते हैं वे भी इंसान ही होते हैं. उन्हें ऐसे खाने का हक है जिसे खाकर बीमार न पड़ें. ऐसे पानी का हक है जिसे पीकर तबीयत खराब न हो. और कभी गलती से या ट्रेन छूटने की स्थिति में जनरल के बगल वाले डिब्बे में चढ़ गया तो काले कोट वाले साहब खाकी वर्दी वाले से बुरी तरह पेश आते हैं. उनके हाथ में लाठी नहीं रहती इसलिए लात मार कर ही भगा देते हैं.प्रभु जी, जनरल यात्रियों को भी टॉयलेट जाने की जरूरत महसूस होती है. उन्हें तो अब तक शायद ही इस बात का पता हो. वे हमारी थाली की कीमत तो लगा देते हैं पर अपने टॉयलेट पर हुए खर्च नहीं बताते. और प्रभु जी, अब तो हमे भी मोबाइल चार्ज करना होता है. आखिर मिस कॉल देने के लिए भी बैटरी चार्ज होनी चाहिए कि नहीं.

प्रभु जी, हम तो शुरू से ही जानते रहे कि जिसका कोई नहीं होता उसका प्रभु होता है. आपको इस रूप में प्रकट पाकर रेल का सफर धन्य हो गया. उनको तो छोड़ ही दीजिए जो आपसे जलते हैं. जो कहते हैं कि रेल बजट में है क्या? उन पर रहम कीजिए उन्हें कुछ न कुछ तो बोलना ही है. ऐसा नहीं बोलेंगे तो आलाकमान से डांट सुननी पड़ेगी. मै जानता हूं वो अपने मन की बात नहीं कह पा रहे हैं.

प्रभु जी, ज्यादा तो नहीं मगर आपसे भी थोड़ी-थोड़ी शिकायत है. आपने किराया नहीं बढ़ाया. अच्छी बात है. ऐसा औरों ने भी कई बार किया है. अगर मैंने ये बात यहां नहीं कही तो पाप चढ़ेगा.प्रभु जी, और कुछ न सही आप किराया घटा तो सकते थे. क्या जिस तेल से रेलगाड़ी चलती है उसका कोई किस्मत कनेक्शन नहीं है. क्या वो 'नसीबवाले' के चलते कभी सस्ता नहीं हुआ?

आपका,

एक आम मुसाफिर,

जनरल डिब्बे से.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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