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Updated: 02 जुलाई, 2017 06:12 PM
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GST का स्लोगन है - एक देश, एक टैक्स. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे 'गुड एंड सिंपल टैक्स' भी बताया है. राष्ट्रपति ने भी इस निजी तौर पर खुशी जाहिर की है लेकिन उनकी चिंता कुछ और है.

आधी रात को GST लागू होने के बाद राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों दिल्ली में अलग अलग कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे थे. राष्ट्रपति के भाषण में आम लोगों से सीधे संवाद था और प्रधानमंत्री की स्पीच में चार्टर्ड अकाउंटेंट. राष्ट्रपति कानून व्यवस्था को लेकर चिंतित थे तो प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार को लेकर. दोनों भाषण में संदेश थे आखिर देश को कैसे बचाया जाये - भ्रष्टाचार से भी और मॉब लिंचिंग से भी.

अगर ऋषि-मुनि चाह लें

योग कारोबारी स्वामी रामदेव ने कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी को राष्ट्रऋषि बताया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के चार्टर्ड अकाउंटेंटों को ऋषि-मुनियों के रूप में देखते हैं. प्रधानमंत्री उन्हें आगाह भी किया और सलाह भी दी.

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि शास्त्रों में चार पुरुषार्थ बताए गए हैं - अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष. मोदी ने कहा कि चार्टर्ड अकाउंटेंड अर्थ जगत के ऋषि-मुनि जैसे हैं. मोदी ने समझाया कि अर्थ जगत में चार्टर्ड अकाउंटेंट ही लोगों को मार्ग दिखाते हैं. इसी क्रम में मोदी ने कहा कि चार्टर्ड अकाउंटेंट के हस्ताक्षर प्रधानमंत्री के सिग्नेचर से भी ज्यादा ताकतवर होते हैं.

narendra modi, pranab mukherjeeएक देश, एक चिंता

प्रधानमंत्री ने हर सीए से अपील की कि वो अपने क्लाइंट को ईमानदारी से टैक्स भरने की सलाह दें. सही बात है अगर सीए प्रधानमंत्री की बात को दिल पर ले लें, फिर तो अर्थ जगत के सारे काले कारनामे फौरन ही बंद हो जायें.

वैकल्पिक शब्द नहीं है

देश भर में कातिल भीड़ के कारनामों पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गंभीर चिंता जतायी है और कहा है कि जब भीड़ का उन्माद तर्क से परे और नियंत्रण से बाहर हो जाए तो हमें रुककर विचार करना चाहिए कि क्या हम अपने समय के मूलभूत मूल्यों को बचाने को लेकर पर्याप्त सजग हैं?

राष्ट्रपति मुखर्जी ने कहा, "मैं चौकसी के नाम पर भीड़ द्वारा कानून हाथ में लेने की बात नहीं कर रहा. मैं बात कर रहा हूं कि क्या हम देश के बुनियादी सिद्धान्तों की रक्षा के प्रति सजग हैं?"

राष्ट्रपति ने जोर देकर कहा, "निरंतर सजगता ही स्वतंत्रता का मूल्य है. यह सजगता कभी परोक्ष नहीं हो सकती. इसे सक्रिय होना चाहिए. निश्चित तौर पर सजगता इस समय की आवश्यकता है.'

राष्ट्रपति की चिंता उनके शब्दों से साफ तौर पर झलक रही थी, "माफ करें मैं इस शब्द का बार बार इस्तेमाल कर रहा हूं क्योंकि मेरे पास कोई उपयुक्त वैकल्पिक शब्द नहीं है." राष्ट्रपति जिस शब्द का जिक्र कर रहे थे वो था विजिलेंट जिसे हिंदी में सजगता के रूप में समझा जा सकता है.

राजनीति चालू आहे...

नेशनल हेरल्ड अखबार के जिस कार्यक्रम में राष्ट्रपति ने ये बातें कहीं उसी में सोनिया गांधी ने भीड़ के हमलों का जिक्र करते हुये मोदी सरकार को निशाने पर लिया. सोनिया ने कहा, "स्वयंभू संस्कृति की वजह से ये हिंसा बढ़ रही है और इसे उनका समर्थन है जिन पर कानून लागू करने की ज़िम्मेदारी है."

मॉब लिंचिंग को लेकर सोनिया की बेटी प्रियंका वाड्रा का भी बयान आया है जिसमें उन्होंने कहा है, "इनसे मुझे बेहद गुस्सा आता है, जब मैं ऐसी चीजें टीवी या इंटरनेट पर देखती हूं तो मेरा खून खौलने लगता है... मुझे बहुत ज्यादा गुस्सा आता है. मुझे लगता है कि इससे सही सोच वाले हर एक व्यक्ति का खून खौलना चाहिए."

प्रियंका के बयान पर आम आदमी पार्टी नेता कुमार विश्वास कुमार ने पूछा है, "प्रियंका गांधी का खून चौरासी की घटनाओं से खौलना चाहिए था."

राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री की चिंता और मौजूदा राजनीति को देखें तो तमाम बातों का लब्बोलुआब भी एक ही नजर आ रहा है : एक देश, एक टैक्स और हर तरफ एक ही अपराध - मॉब लिंचिंग.

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